Book Title: Yashstilak Champoo Purva Khand
Author(s): Somdevsuri, Sundarlal Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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LADDA
श्रीसमन्तभद्राय नमः
श्रीमत्सोमदेवसूरि-विरचितं यशस्तिलकचम्पूमहाकाव्यम् यशस्तिलकदीपिका-नाम भाषाटीकासमेतम्
प्रथम आश्वास श्रियं कुवलयानन्दप्रसाक्तिमहोदयः । देवश्चन्द्रप्रभः पुष्याजगन्मानसासिनीम् ॥ १ ॥ निय दिश्यास्स वा श्रीमान् पस्य संदर्शनादपि । भवेत् लोम्यलक्ष्मीणां जन्नुः कन्नु निकेतनम् ॥ ३ ॥ श्रियं देपास्त वः काम यस्पोन्मीलति केवले । लोक्यमुस्सगंदारं पुरमेकमिवाभवत् ॥ ३ ॥
अनुवादक का मङ्गलाचरण जो है मोक्षमार्ग के नेता, अरु संगादि विजेता है। जिनके पूर्णज्ञान-दर्पण में, जग प्रतिभासित होता है।। जिनने कर्म-शत्रु-विध्वंसक, धर्मतीर्थ दरशाया है।
ऐसे श्रीऋषभादि प्रभु को, शत-शत शोश मुकाया है।।१।। जिनकी कान्ति चन्द्रमा के समान है और जिन्होंने समस्त कुवलय ( पृथिवीमंडल ) को यथार्थ सुख प्रदान करने के उद्देश्य से अपने महान् ( अस्त न होनेवाले ) उदय को उसप्रकार निर्मल ( कर्मरूप श्रावरगों से रहित, वीतराग, विशुद्ध व अनन्त ज्ञानादियुक्त ) किया है. जिसप्रकार शरत्कालीन पूर्ण चन्द्रमा समस्त कुवलय ( चन्द्रविकासी कमलसमूह ) को विकसित करने के लिए अपने महान उदय को निर्मल (मेघावि आवरणों से शून्य) करता है. ऐसे श्री चन्द्रप्रभ भगवान जगन के चिप्स में निवास करनेपाली लक्ष्मी ( भूतज्ञानविभूति) को वृद्धिंगत करें ॥१॥ जिसके दर्शनमात्र से अथवा सम्यग्दर्शन के प्रभाव से भी यह प्राणी तीन लोक ( ऊर्च, मध्य व अधोलोक) की लक्ष्मी (इन्द्रादि-विभूति ) का मनोहर मात्रय (निवासस्थान ) होजाता है एवं जो अन्तरालक्ष्मी (अनन्तदर्शन. अनन्तज्ञान, अनन्तसुख व मनन्त वीर्यरूप आत्मिक लक्ष्मी) और बहिरङ्गालक्ष्मी ( समवसरणादि विभूति ) से अलकृत हैं ऐसे श्री चन्द्रप्रभ भगवान् श्राप लोगों के लिए स्वर्गश्री व मुक्तिश्री प्रदान करें ॥२॥ जिसके केवलज्ञान प्रकट होने पर तीन लोक महोत्सव-केवलज्ञान कल्याणक-युक्त होने से अत्यन्त मनोहर-चित्त में रहास उत्पन्न करनेवाले-होते हुए एक नगर के समान प्रत्यक्ष प्रतीत हुए. वह चन्द्रप्रभ भगवान् श्राप लोगों के
-उपमालबार । २-अतिशयालझार ।