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विविध पूजासंग्रह जाग प्रथम.
॥ गीत ॥ राग गुर्जरी ॥
॥घणुं जीव तुं जीव जिनराज जीवो घं॥ शंख शरपाई वाजित्र बोले ॥ महुअरी परि परि देवकी डुडुनि, हे नहीं जिन तो कोइ तोले ॥ घणुं० ॥ १ ॥ ढोल निशान कंसाल तल तालशुं, जल्लरी पणव जेरी नफेरी ॥ वाजतां देव वाजित्र जाणे कहे, सकल जविको प्रजो जव न फेरी ॥ घं० ॥ २ ॥ एषी परे जविक वाजित्र पूजा करी, कहे मुखे तुं प्रभु त्रिजग दीवो ॥ इंद्र परे केम अमे जिनपपूजा करूं, खारती साखि मंगलपईवो ॥ घणुं ॥ ३ ॥ इति सप्तदश सर्ववाद्यपूजा समाप्ता ॥
॥ कलश ॥
॥ धन्याश्रीरागेण गीयते ॥
॥थुषीयो थुपी यो रे प्रभु तुं सुरपति जेम थुषीयो ॥ तीन जुवन मनमोहन लोचन, परम हर्ष तब जणी यो रे ॥ प्र० ॥ १ ॥ एक शत आठ कवित नित्य अनुपम, गुणमणि गुंथी गुणीयो ॥ जविक जीव तुम थय थुई करतां, डुरित मिथ्यामति खणी यो रे ॥ प्रभु० ॥ २ ॥ तपग बर दिनकर सरिखो, विजयदान गुरु मुणियो || जिनगुण संघ जगति करी पसरी,
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