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समाधि की डगर
1) राग, द्वेष और अज्ञान से रहित ऐसे वीतराग परमात्मा मेरे देव है ।
2) कंचन और कामिनी के त्यागी पंच महाव्रत धारी साधु भगवन्त मेरे गुरू है।
3) सर्वज्ञ परमात्मा द्वारा प्ररुपित अनंत कल्याणकारी जिन-धर्म, यही मेरा धर्म है । 4) अरिहंत परमात्मा का प्रत्येक वचन सौ-टच सोने जैसा है ।
5) मैं आदर पूर्वक सिर झुकाता हूँ ।
अज्ञान और मोह के कारण से मैनें बहुत जीवों का संहार किया, बहुत जीवों को असाता दी। बहुत जीवों का दिल दुखाया, उन सर्व से भीतर की शुद्ध पवित्र भावना से मैं माफी माँगता हूँ ।
6) भव-चक्र में घूमते- भमते झूठ, माया और प्रपंच करके मैंने बहुत जीवों को ठगा है, उन सभी जीवों से मैं क्षमा याचना करता हूँ ।
7) अठारह पापों का सेवन करके, मैने चिकने निकाचित् कर्म बांधे है, उन सबकी मैं निंदा करता हूँ, वे पाप मेरे निष्फल हो ।
8 ) संसार में परिभ्रमण करते करते, आज दिन तक मैने अनंत शरीर धारण किए, प्रत्येक भव में पुद्गलों के ढेर किए, उन सभी पुद्गलों को छोड़ कर मैं यहां आया हूँ। अब मेरा उन सभी पुद्गलों के साथ किसी प्रकार का सम्बंध नहीं है। मैं उन सभी पुद्गलों को वोसिराता हूँ ।
9)
अज्ञान या द्वेष के वश होकर मैनें महान् तारण हार ऐसे देव, गुरु, धर्म की अविनयआशातना की हो तो पश्चातापित हृदय से मिच्छामि दुक्कडं |
10) देव, गुरु के सान्निध्य में जाकर के भी, रात्रि भोजन अशुद्ध अभक्ष्य का सेवन किया हो,
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अब्रह्मचर्य अनाचार की सेवना की, आसातना की हो तो मिच्छामि दुक्कड़ं ।
11) पर्व तिथि के दिनों में विशेष आराधना करने की बजाय विराधनाएं की, उनका अन्तः करणपूर्वक मिच्छामि दुक्कड़ं ।
12) जगत् के जीवों को दुःख मय संसार से छूटने का मार्ग बताकर अरिहंत परमात्मा ने कितना महान् उपकार किया है, अरिहंत परमात्मा के अनंत गुणों की भाव से अनुमोदना करता हूँ ।
13) सर्व कर्म के क्षय से उत्पन्न हुए, अनंत आत्म गुणों के मालिक बने हुए; सिद्ध भगवन्तों के सिद्ध स्वरूप की भाव से अनुमोदना करता हूँ ।
14) पंचाचार का निर्मल पालन करने वाले और जिन शासन की जय जयकार फैलाने वाले ऐसे आचार्य भगवन्तों की भाव से अनुमोदना करता हूँ ।
15) पंच परमेष्टि में चौथे स्थान पर बिराजमान उपाध्यायजी भगवन्तों के महान गुणों की भाव अनुमोदना करता हूँ ।
16 ) पूज्य साधु-साध्वीजी महाराज, पाँच महाव्रतों का पालन करते है । अष्ट प्रवचन माता की पालना करते हैं। बावीस परीषहों को जीतते है, उनकी यह महान संयम आराधना की भावसे अनुमोदना करता हूँ ।
17 ) अनेक श्रावक और श्राविकाएँ बारह श्रावक व्रतों का निर्मल पालन करते है, श्रावक धर्म का सुन्दर ढंग से आचरण करते है । दान, शील, तप और भाव की सुन्दर आराधना करते है, उन सब की मैं अनुमोदना करता हूँ ।
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18) गृहस्थ वास में रहकर भी जो नर और नारी, मन, वचन और काया से निर्मल ब्रह्मचर्य का पालन करते है, उन सब की भाव से अनुमोदना करता हूँ ।