Book Title: Vardhaman Padmasinh Shreshthi Charitam
Author(s): Amarsagarsuri
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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वर्षमानलालणेन नता देवी । ह्यतानं गताथ सा॥ सोऽपि हृष्टो हृदि स्वीये । चकाराष्टमपारणं ॥६॥
चरित्रम. स श्रावतधारकः सुविदितः कल्पद्रुमो ह्यर्थिनां । श्रीमहालणगोत्रिणां सुपुरुषो जातोऽयमाद्यो जुधि ॥ तऊंशो जिनधर्मपालनपरः ख्यातोऽनवत् सर्वतः। सर्वप्राणिदयापरः परहितप्रह्वस्तथा विस्तृतः ॥ ६॥ ॥ इति श्रीमद्विधिपदगडाधीश्वरजट्टारकशिरोमणिश्रीमत्कल्याणसागरसूरीश्वरपट्टालंकारश्रीमदमरसागरसूरिविरचिते श्रीमहालणगोत्रीयश्राद्धवर्यश्रीमहर्धमानपद्मसिंदष्टिचरित्रे तमोत्रजप्रथमपुरुषलालणोदंतवर्णनो नाम प्रथमः सर्गः समाप्तः॥ श्रीरस्तु ॥
पछी लालणे नमस्कार करवाबाद ते महाकालीदेवी अदृश्य थयां, अने ते लालणे पण पोताना हृदयमा खुशी थइने अहमर्नु पारणुं कयु. ।। ६८ ॥ एवी रीते श्रावकोना (बार) व्रतोने धारण करनारा, प्रख्याति पामेला तथा याचकोप्रते कल्पवृक्ष समान एवा ते आ लालणशेठ लालणगोत्रीओना पृथ्वीपर पहेला उत्तम पुरुष थया. अने तेमनो वंश जैनधर्म पालनारो, सर्व प्राणिोपते दया राखनारो अने परना हितमा तत्पर सर्व जगोए विस्तार पामी प्रख्यात थयो. ॥ ६९ ।। एवी रीते वि| धिपक्षगच्छाधीश्वर भट्टारकशिरोमणि श्रीमान् कल्याणसागरसूरीश्वरना पाटने शोभावनारा श्रीमान् अमरसागरसूरिजीए रचेला टू
श्रीमान् लालणगोत्रना श्रावकोत्तम श्रीवर्धमान अने पद्मसिंहशेठना चरित्रमा तेमना गोत्रना आदिपुरुष लालणना वृत्तांतना का वर्णनरूप प्रथम सर्ग समाप्त थयो. ।। श्रीरस्तु ।
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