Book Title: Vardhaman Padmasinh Shreshthi Charitam
Author(s): Amarsagarsuri
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ॥ श्री विधिपक्षगच्छाधिराज युगप्रधान श्री १००८ श्री आर्यरक्षितगुरुभ्यो नमः ॥ श्रीविधिपक्ष ( अंचल ) गच्छाधिराज श्री १०८ श्री अमरसागरसूरिकृत - ॥ वर्धमानपद्मसिंहश्रेष्टिचरित्रम् ॥ ( भाषांतर सहितम् ) श्रीविधिपक्षगच्छीय मुनिमंडलाग्रेसर मुनिमहाराज श्री गौतमसागरजी महाराजना सदुपदेशथी स्थपायेला अंचलगच्छस्थापक आर्यरक्षितसूरि पुस्तकोद्धार खाता तरफथी www.kobatirth.org विक्रम संवत १९८० भाषांतर करी छपावी प्रसिद्ध करनार- पंडित श्रावक हीरालाल हंसराज जामनगरवाळा. वीर निर्वाण संवत २४५० बुक बांधेली किंमत रु. २८-० आवृति १ ली. प्रत २५० किंमत रु.२-०-० For Private And Personal Use Only Acharya Shri Kallassagarsuri Gyanmandir Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagerul Gyanmandit श्री जैनभास्करोदय प्रीन्टींग प्रेसमां मेनेजर वीठलजी हीरालाले छाप्यु. जामनगर. For Private And Personal Use Only Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra वर्धमान - %%) www.kobatirth.org Dea प्रस्तावना. Cotse. Acharya Shri Kallassagarsuri Gyanmandir सुज्ञ वाचकवृंद, आ " श्री वर्धमानपद्म सिंहचरित्र ” नामनो संस्कृत काव्यबद्ध ग्रंथ अंचलगच्छाधिराज महाप्रभाविक श्रीमान् कल्याणसागरसूरिजीना मुशिष्य कविरत्न श्री अमरसागरसूरिजीए वि. सं. १६९१मां रचेलो छे. आ ग्रन्थमां लालणगोत्रना प्रभाविक पुरुषो श्रीमान् वर्धमानशाह तथा तेमना भाइ पद्मसिंहशाहनुं जीवन चरित्र सविस्तर वर्णवेलुं छे. तथा लालण गोत्रना आदि पुरुष श्रीमान् लालणने गोत्रदेवीनुं प्रत्यक्ष देखावुं, तथा तेमणे लालणगोत्रीओने लक्ष्मीरूपे सहाय थवानुं आपेलुं वरदान विगेरे हकीकतथी आ ग्रन्थने विभूषित करेल छे, ते गोत्रदेवीप आपेला वरदानमुजब श्रीमान् लालण पछी तेमनी सोळमी पेढीए थयेला महान् पुण्यशाळी श्रीमान् वर्धमानशाह तथा तेमना बंधु श्रीमान् पद्मसिंहशाहने योगीरूपे वे बखत सहाय आपी महान् मदद आपी छे, अने ते गोत्रदेवीए आपेली चित्रावेलनी जडीबुटीना प्रभावधी ते श्रीमान बने भाइओए लाखोगमे धन अनेक धार्मिक कार्योंमां खरच्युं छे, विगेरे घणीज रसिक अने जाणवाजोग हकीकत आ ग्रन्थमां आपेल छे, तेथी भव्यजनोना उपकार माटे आ ग्रन्थनुं गुजराती भाषांतर जामनगर निवासी पंडित श्रावक हीरालाल हंसराज पासे करावी मूळ For Private And Personal Use Only चरित्रम्. Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra वर्धमान www.kobatirth.org Acharya Shri Kallassagarsuri Gyanmandir तथा भाषांतर सहित “ विधिपक्ष ( अंचल ) गच्छस्थापक आर्यरक्षितसूरि पुस्तकोद्धार खातां " तरफथी छपानी बहार पाडेल छे. आ ग्रन्थमां वर्धमानशाह तथा पद्मसिंहशाह नामना जे वे महान पुरुषोनुं जीवनवृत्तांत वर्णवेलुं छे, तेओमाना ते श्री वर्धमानशाहना महादानेश्वरी न्हाना पुत्र जगड़शाहनी प्रेरणाथी आ चरित्र महाकवि अंचलगच्छाधिराज श्री अमरसागरसूरिजीए रचेलुं छे. आ जगडशाहना वंशजो हाल पण जामनगर तथा कच्छमांडवीमां बसे छे, तथा पद्मसिंहशाहना वंशजो कच्छमांडवी तथा भुज विगेरेमां बसे छे. आ ग्रन्थना नव सर्गो छे ते भाषांतर सहित होवाथी अनुक्रमणिका लखी नथी. आ ग्रन्थनो सर्व कोइ लाभ लइ शके ते माटे फक्त तेनी पडतर कींमत राखी छे पत्राकारे किं. रु. र बुक बांधेल किं. रु. २॥ सं. १९८१ हालारी आषाढ शुक्ल द्वितीया. ली. प्रसिद्ध कर्ता. — अंचलगच्छस्थापक आर्यरक्षितसूरि पुस्तकोद्धार खाताना - ( पत्राकारे तैयार जैन ग्रंथो. ) उपदेश चिंतामणि- सटीक ( कर्ता जयशेखरसूरि - ( भाषांतरसहित ) - कुल पृष्ट २४०० ) भाग १ किं. रु. ३ भाग २ किं रु. ३ भाग ३ किं. रु. १० भाग ४ किं. रु. ४ चारे भाग साथे किंमत रु. २० श्री आदिनाथजीनो रास ( कर्ता दर्शनसागर उपाध्यायजी ) पृष्ट ८०० ) श्रीपालराजानो रास- ( कर्ता न्यानसागरजी - अर्थ सहित ) पृष्ट ६०० ) मळवानुं ठेका - पंडित दीरालाल हंसराज, जामनगर-काठीयावाड. For Private And Personal Use Only किंमत रु. ३ किंमत रु. २ चरित्रम्. Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jan Archana Kendra www.kobatrmorg Acharya Shri Kasagarsur Gyan and वर्धमान चरित्रम्, ॥ श्री जिनाय नमः ॥ ॥ श्रीअंचलगच्छस्थापक आर्यरक्षितमूरिभ्यो नमः ॥ ॥ श्रीमत्कल्याणसागरसूरिभ्यो नमः ॥ ॥ अथ श्रीवर्धमानपद्मसिंहचरित्रं प्रारभ्यते ॥ (कर्ता श्रीअमरसागरसूरिः) भाषांतर कर्ता, तथा छपावी प्रसिद्ध कर्ता-पंडित श्रावक हीरालाल हंसराज. लालन. (जामनगरवाळा ) ॥ अथ प्रथमः सर्गः प्रारभ्यते ॥ श्रीशांतिनाथं प्रणमामि भक्त्या । यस्याननेंदोर्हि सुधासमूह ॥पीत्वामरत्वं जविनोऽत्र नेजुः । श्रीशाश्वतानंदमयं जगत्यां ॥१॥ जेमना मुखरूपी चंद्रमांथी (निकळेला) अमृतना समूह ने पीने आ जगतमा ( रहेला) भव्यजनो शाश्वता आनंदवाळा मोक्षपणाने पाम्या छे, एवा श्रीशांतिनाथप्रभुने हुँ भक्तिवडे नमस्कार करुं छु. ॥१॥ ॥ For Private And Personal Use Only Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jan Aradhana Kendra www.kobatirm.org Acharya Shri Kallassagerar Gyanmandir पमान- वारनमारत्रपरसर चरित्रम्. ॥ ५ ॥ वीरप्रभोरत्र परंपरायां। गछे मनोझे विधिपक्षसंझे ॥ सुरिं वरं चार्यसुरक्षिताख्यं । नमामि भक्त्या गुरुवत्सलोऽहं ॥२॥ गच्छाधिष्टायिकां वंदे। महाकालीं महेश्वरी ॥ वांछितार्थप्रदां नित्यं । पावा. दुर्गनिवासिनीं ॥३॥ श्रेष्टिनो वर्धमानस्य । पद्मसिंहयुतस्य च ॥ चरितं वच्मि नव्यानां । बोधि. बीजांकुरोपमं ॥४॥ भारते पार्करे देशे। सिंधुनदतटस्थितः ॥ परितो वाटिकारम्यो । ग्रामोऽस्ति पीबुडानिधः ॥ ५॥ चंद्रवंशवरमौक्तिकरम्यो । भूमिपोऽत्र खट्नु रावजिदाख्यः ॥ शौर्यतादिगुणदयुतोऽसौ । पालयन्निजजनं वसतिस्म ॥ ६॥ अही श्रीवीरप्रभुनी परंपरामा मनोहर एवा श्रीविधिपक्ष नामना गच्छमा (अंचलगच्छमा ) थयेला श्रीआरक्षितजी नामना सूरीश्वरने गुरुपते प्रेमवाळो एवो हुँ भक्तिपूर्वक वंदन करूं छु. ।। २॥ श्रीअंचलगच्छनी अधिष्टायिका, हमेशा इच्छित पदार्थों आपनारी, तथा पावागढपर वसनारी एवी श्रीमहाकाली नामनी महेश्वरीने हुँ नमुं छु.॥३॥ भव्यजीवोना बोधिरूपी बीजना अंकुरासरखं पद्मसिंहसहित श्रीवर्धमान नामना शेठनु चरित्र हुँ कहुं छु. ॥४॥ आ भरतक्षेत्रमा पार्कर नामना देशमा सिंधुनदीने किनारे फरती वाडीओथी मनोहर पीलुडा नामर्नु गाम छे. ॥५ते गाममा चंद्रवंशीय क्षत्रिओमा उत्तम मुक्ताफल सरखो, तथा वीरताआदिक गुणोना समूहवाळो रावजीनामे राजा पोतानी प्रजाने पालतोथको वसतो हतो. ॥६॥ For Private And Personal use only Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirm.org Acharya Shri Kailasagarsur Gyanmandir चरित्र वर्धमान- रूपदेवीति तस्याभू-माझी शीलगुणोज्ज्वला ॥ सौंदर्येण स्वरूपस्य । यया देवी तिरस्कृता ॥॥ तत्कुक्षिशुक्त्यां खलु शौक्तिकेयौ । बभूवतुः पुत्रवरौ मनोज्ञौ ॥ वृकस्तयोरस्ति हि लक्षधीरो। र. णांगणे धैर्यगुणोपयुक्तः ॥॥ श्रीमान् लघुालणनामधेयः । सुलक्षणैर्लक्षितदेवनागः ॥ औदा. र्यगांजीयगुणौघपंक्ति-संप्रीणितार्थिवजगीतकीर्तिः ॥ ए॥ अथान्यदा पूर्वविनिर्मितेन । दुष्कर्मणा तस्य वनूव देहः॥ कुष्टानिनुतः परितश्च चित्रं । प्रपीडितौ तत्पितरौ बभूवतुः ॥ १० ॥ ते राजाने शीलगुणथी निर्मल रूपदेवी नामे राणी हती, के जेणीए पोताना रूपना सुंदरपणाथी देवीनो पण तिरस्कार को हतो. ॥ ७ ॥ तेणीनी कुक्षिरूपी छीपमा मुक्ताफलसरखा वे मनोहर पुत्रो थया, ते बन्नेमा महोटो लक्षधीर नामे हतो, केजे रणसंग्राममा धैर्यगुणवाळो हतो. ॥ ८ तेमज जेना शरीरमा उत्तम लक्षणो देखाता हता, तथा उदारता अने गंभीरता त आदिक गुणोना समूहथी खुशी थयेला याचकोना समूहथी जेनी कीर्ति गवायेली छे, एवो श्रीमान् लालण नामे न्हानो पुत्र हतो. ॥ ९॥ हवे एक समये पूर्व करेला दुष्कर्मना योगथी ते लालणना शरीरमा कुष्टरोग थयो, परंतु आश्चर्यनी बात छे के, 5. तेथी तेना मातपिता पण दुःख पामवा लाग्या! ॥१०॥ SSOCIETACANCERIAGARACK For Private And Personal Use Only Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobaturm.org Acharya Shri Kailassagarsurt Gyanmandie वर्धमान ॥४॥ *-5-45 भूमिपस्य खलु तस्य सुमंत्री । देवसिंह इति नामयुतोऽनुत् ॥ जैनधर्मविहितादरमानः । श्राद्धवर्यगुणवृंदसमेतः ॥११॥ गच्छश्रीविधिपक्षभूषणनिन्नाः श्रीसिद्धराजार्चिता । आचार्या जयसिंहसु. रिमुनयः संवेगरंगांकिताः ॥ वादे निर्जितदिक्पटाः सुविहिताः शास्त्रांबुधेः पारगा। लक्षात्रविबोधकाः परहिताः कालीप्रसादा बनुः ॥ १५ ॥ सूरयो विदरंतस्ते । ग्रामेऽत्र पीनुमानिधे ॥ गतरागाः समाजग्मु-मुनिबंदोपसेविताः ॥ १३ ॥ देवसिंहादिनिः श्रा-मिमध्ये प्रवेशिताः ॥ देशकालोचितां शक्तिं । कुर्वाणैः सूरयोऽथ ते ॥ १४ ॥ वळी ते रावजी नामना राजानो देवसिंहनामे मंत्री हतो, के जे जैनधर्ममा आदरमानवाळो तथा श्रावकना उत्तम गुणोना | समृहथी युक्त हतो. ॥ ११ ॥ (हवे ते समये) श्रीविधिपक्षगच्छना अलंकार समान, श्रीसिद्धराजे पूजेला, वैराग्यना रंगवाळा, वादमा दिगंबरोने जीतनारा, उत्तम आचारवाळा, शास्त्ररूपी समुद्रनो पार पामेला, एक लाख क्षत्रिओने प्रतिबोधनारा, परर्नु हित करनारा, तथा महाकालीदेवीना प्रसादवाळा श्रीजयसिंहसूरि नामे आचार्य शोभता हता. ॥ १२ ॥ रागरहित एवा ते श्रीजयसिंहसरि मुनिओना समूहथी सेवायाथका विहार करता (एक वखते) आ पीलुडा नामना गाममा पधार्या ॥१३।। त्यारे देव सिंहआदिक श्रावकोए देश कालने उचित एवी भक्ति करीने ते आचार्यश्रीनो ते गाममा प्रवेश कराव्यो. ॥१४॥ ॐ C ॥ ४ ॥ For Private And Personal Use Only Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Sh Kailasagarsur Gyanandit ॥ ५ ॥ वर्धमान- है देशनां चक्रिरे तेषां । पुरतः सूरयोऽपि ते ॥ मधुरामधरीभूत-सुधाधारां मनोहराम् ॥ १५ ॥ चरित्रम्. अथान्यदा सूरिवरस्य तस्य । प्रभावयुक्ताचरणं निशम्य ॥ स्वकीयमंत्रीशमुखान्नरेशो। जगाद हृष्टो हृदि देवसिंह ॥ १६ ॥ वरमुनीशमिमं हि निवेदय । निरुगथो तनयोऽत्र नवेन्मम ॥ लघु यथा खलु जालणनामको । मणिजटीप्रतिसदुपायतः ॥ १७ ॥ श्रुत्वा निजस्वामिवचोऽथ सोऽपि । जगाद वृत्तांतमिमं मुनीशं ॥ मुनीशवोऽपि जगौ तमेव-माचार एषस्त्विह नो मुनीनां ॥१०॥ ते आचार्यमहाराजे पण अमृतनी धाराने पण दूर करनारी मनोहर अने मधुर धर्मदेशना तेभोनी पासे करी. ॥ १५ ॥ हवे एक दिवसे त्यांना ते रावजी राजाए पोताना मंत्री देवसिंहना मुखथी ते आचार्य श्रीनु प्रभाववालु आचरण सांभलीने मनमा खुशी थइ ते देवसिंहने कयु के, ॥ १६ ॥ हे मंत्रि! मारो लालण नामनो पुत्र कोइ मणि, जडीबूटी आदिकना उपायथी में जो कोइपण रीते तुरत निरोगी थइ शके, तो तेवा उपाय माटे तुं आ आचार्यश्रीने विनंति कर? ॥ १७ ॥ एवी रीतनुं पोताना ॐ स्वामीनुं वचन सांभळीने ते मंत्रीए पण ते हकीकत आचार्यश्रीने कही. त्यारे आचार्यश्रीए पण तेने कां के, आवी रीतनो 151॥५॥ | (औपधादिक बताववानो) मुनिओनो आचार नथी.॥१८॥ ॐ For Private And Personal Use Only Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagerul Gyanmandit वर्धमान-3 वयं सदैव व्रतधारिणश्च । मंत्रौषधीच्यस्तु पराङ्मुखाः स्मः ॥ तथापि मत्वा जिनशासनस्य । प्र- 15चरित्रम्, नावकं लालणमत्र वच्मः ॥ १५॥ कृत्वाष्टमं सोऽथ तपो महोग्रं । देवीं समाराधयतु प्रसन्नः ॥ तां कालिका शर्मकरी मनोझा । नविष्यतिस्मारमसावरोगी ॥१०॥ कृताष्टमो लालणराजपुत्र । आराधयामास च कालिकां तां ॥ भृत्वा प्रसन्नाथ सुरीश्वरी सा । जगाद वाचं प्रति तं प्रसिका ॥ २१ ॥ प्रहालयस्वाथ जलेन तस्य । मुनीशितुस्त्वं चरणौ प्रसन्नः ॥ महाप्रभावौ जयसिंहसूरेः । सुप्रासुकेनामितशर्मदौ ते ॥ २२ ॥ अमो व्रतधारी मुनिओ हमेशा मंत्र, तथा औषधीआदिकथी विमुख रहीये छीये; तो पण आ लालणने जिनशासननो IP प्रभाविक जाणीने अमो ( तेना रोगनो उपाय ) कहीये छीये ॥ १९ ।। हवे ते लालणे आनंदथी अमनो उग्र तप करीने सुख करनारी तथा मनोहर एवी ते महाकालीदेवी, आराधन करवू, के जेथी ते तुरत नीरोगी थशे. ॥ २० ॥ पछी ते लालण नामना राजपुत्रे अहमनो तप करवापूर्वक ते महाकालीदेवीनुं आराधन कर्य, त्यारे ते प्रसिद्ध महाकालीदेवीए प्रसन्न थइ ते लालगने कयु के, ।। २१ ।। (हे लालण!) तुं खुशी थयो थको ते श्रीजयसिंहसरिजीना महामभाववाळा तथा तने घणु * सुख आपनारा बन्ने चरणोनुं मासुक जलवडे प्रक्षालन कर? ॥ २२॥ For Private And Personal Use Only Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra वर्धमान॥ ७ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जलेन तेन लिप्तेन । देहे त्वं च भविष्यसि ॥ मुक्तरोगोऽमृतेनेव । विषवारविदूषितः ॥ २३ ॥ क वेति देव सा । गता स्थानं निजंप्रति ॥ लालपोऽपि प्रजातेऽथ । चकाराष्ट्रमपारणां ॥२४॥ देवसिंहेन साकं स । गतोऽथ सुरिसन्निधौ ॥ चरणौ कालयामास । तस्य प्रासुकवारिणा ॥ २५ ॥ सूरीशचरणौ नत्वा । हर्षाश्रुपूरितेक्षणः ॥ पीयूषेणेव तेन स्वं । वारिणांगं लिलेप सः ॥ २६ ॥ गतरोगोऽथ तूर्णे स । शुशुभे कांचनद्युतिः ॥ मेघनिर्मुक्तमार्तम । इवामितप्रजासुरः ॥ २७ ॥ अमृतवडे करीने विपत्रिकारवाळो मनुष्य जेम ( विषरहित थाय) तेम तुं शरीरे ते जलनुं लेपन करवाथी रोगरहित थ इश. ॥ २३ ॥ एम कहीने ते देवी पोताने स्थानके गई, तथा लालणे पण प्रभाते अट्टमनुं पारणं कर्तुं ॥ २४ ॥ पछी ते लाल देवसिंहनी साथै आचार्यमहाराज श्रीजयसिंहरिपासे गयो, अने प्रामुक जलथी तेणे तेमना चरणोतुं प्रक्षालन कर्यु. ॥ २५ ॥ पछी हर्षाश्रुथी भरेला चक्षुवाळा ते लालणे ते आचार्यश्रीना चरणोने नमीने जाणे अमृतवडे करीने होय नही ? तेम ते चरणोदकवडे पोताना शरीरपर लेपन कर्यु. ।। २६ ।। अने तेथी ते तुरत वादळांभोथी रहित थयेला अत्यंत कांतिवाळा सूर्यनीपेठे निरोगी थयोथको सुवर्णसरखी कांतियुक्त शोभवा लाग्यो. ॥। २७ ॥ For Private And Personal Use Only 12504 चरित्रम् ॥ १ ॥ Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra बर्धमान ॥ ८॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दृष्ट्वैवं नीरुजं पुत्रं । तत्पितरौ जहर्षतुः ॥ दर्षाश्रूणि प्रवर्षतौ । सूरिपादौ प्रणेमतुः ॥ २० ॥ सुरीशोऽपि तदा ताभ्यां । धर्मलानं ददौ मुदा ॥ सर्वकर्म विनिर्मुक्ति-मुक्तिमार्गप्रदं सदा ॥ २९॥ योजित जलयस्तेऽथ । त्रयोऽपि जगडुर्मुनिं ॥ अहो महोपकारस्तेऽस्माकं वाचामगोचरः ॥ ३० ॥ अथादिशोचितं कार्यं । कुर्महे किं त्वदीयकं ॥ येन तेऽस्योपकाराब्धेः । पारं यामः कथंचन ॥३१॥ सूरीशोऽपि जगदाथ | नाविलाजं निभालयन् ॥ स्वीकुरुनाथ भो यूयं । जैनधर्म दयामयं ॥३२॥ एवी रीते पोताना पुत्रने रोगरहित थयेलो जोइने तेना मातापिता हर्षित थया, अने हर्षना आँसु वरसावताथका आचार्यश्रीना चरणोमां नम्या ॥ २८ ॥ ते समये आचार्यश्रीए पण हर्षथी तेओने हमेशां सर्व कर्मोथी रहित एवा मोक्षना मार्गने आपनारो धर्मलाभ आप्यो ।। २९ ।। पछी ते त्रणेए हाथ जोडीने आचार्यश्रीने कधुं के, आपना आ महान् उपकारतुं वर्णन अमाराथी वर्णवी शकाय तेम नथी. ॥ ३० ॥ हवे आपनुं अमो शुं उचित कार्य करीयें ? ते फरमावो ? के जेथी कोइ पण ते आपना आ उपकाररूपी समुद्रनो अमो पार पामीये. ।। ३१ ।। त्यारे आचार्यश्री पण आगामिकालमा लाभ थवानो जाणीने बोल्या के, तमो ( सबला ) दयायुक्त एवा जैनधर्मनो स्वीकार करो १ ।। ३२ ।। For Private And Personal Use Only শ৩% % % चरित्रम् ॥GH Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shui Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Shri Kailasagarsur Gyanmandir चरित्रम्. वर्धमान- एवं मुनेस्तस्य तु निःस्पृहत्वं । विज्ञाय चित्तेऽथ चमत्कृतास्ते ॥ स्वीकारयामासुर नग्ननावा। जैन सुधर्म नवतारकं वै ॥ ३३ ॥ लालणोऽथ महाकालीं। पूजयामास भावतः ॥ सूरीशस्योपदेशेन । ॥ए॥ पावादुर्गनिवासिनी ॥ ३४ ॥ रावजितु मुनिसत्तममेन-मारराध मधुपोव मधूरु।लालणोऽपि जननीजनकाच्यां । संयुतोऽथ जिनधर्मममोघं ॥ ३५ ॥ सूरीश्वरोपदेशेन । कारिता लालणेन वै॥ तत्रैका देवकुलिका । शांतिनाथ जिनेशितुः ॥ ३६॥ प्रतिमा प्रतिष्ठिता तत्र । स्फटिकोपलनि. मिता ॥ श्रीमतः शांतिनाथस्य । सूरिणा लालणेप्सया ॥ ३७॥ एवी रीतनुं ते आचार्यश्रीनु निःस्पृहीपणुं जाणीने हृदयमा चमत्कार पामेला ते त्रणेए अस्खलित भावथी संसारने तारनारो 5 जैनधर्म स्वीकार्यो. ॥ ३३॥ त्यारवाद लालण आचार्यश्रीना उपदेशथी भावपूर्वक पावागढपर वसनारी श्रीमहाकालीदेवीने पूजवा लाग्या. ।। ३४ ॥ हवे भमरो जेम मनोहर मधने सेवे, तेम रावजी पण ते श्रीजयसिंहसूरीश्वरजीने आराधवा लाग्या, अने लालण पण पोताना मातपितासहित सफल एवा जिनधर्मर्नु आराधन करवा लाग्या. ॥३५॥ पछी लालणे ते पीलुडा गाममा ते श्रीजसिंहसूरीश्वरजीना उपदेशथी श्रीशांतिनाथमभुनी एक देरी बंधावी. ॥ ३६॥ ते देरीमा लालणनी इच्छाथी ते आचार्यश्रीए स्फटिकरत्ननी बनावेली श्रीशांतिनाथमभुनी प्रतिमानी प्रतिष्ठा करी. ॥ ३७॥ ॥ ॥ For Private And Personal Use Only Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirm.org Acharya Shri Kailassagerul Gyanmandit वर्धमान ॥१०॥ SCANCRECER-150 यथोपदेशेन मुनीश्वरस्य । स देवसिंहो जुतमोशनायकः ॥ अमेलयल्लालणमोशपंक्तो । ज्ञात्वा | चरित्रम्. स्वसाधर्मिकमेव निश्चितं ॥ ३० ॥ कृत्वा चतुर्मासमथो मुनीश्वरा-स्ततो विजदुर्नविकप्रबोधकाः ॥ स्व शिष्ययुक्ता जयसिंहसूरयः । प्रवादिवादिगजसिंहसन्निन्नाः ॥३५॥ खालणाधिगत एष सुधर्मों। लदधीरमनमि हरुचन्न । निंबकाधिगतचित्तमुदे हा। नोष्ट्रकाय रुचते खलु मृछी॥४०॥ परलोकमगादेष । राव जिदन्यदा ततः ॥ मैत्री च सर्वजीवेषु । धारयन्निजमानसे ॥४॥ हवे ते श्रीजयसिंहमूरिजीना उपदेशथी ओशवालोना नायक एवा ते देवसिंहे लालणने पोताना खरेखरा साधर्मिक जाणीने ओशवालनी ज्ञातिमा भेळवी दीधा. ॥ ३८ ॥ भव्य जीवोने बोध आपनारा तथा वाचाल वादीरूपी हाथीने जीतवा माटे सिंहसरखा एवा ते श्रीजयसिंहमूरि त्यां पीलुडामा चतुर्मास करीने पोताना शिष्योसहित अन्य जगोए विहार करी गया. ॥३९॥ हवे लालणे स्वीकारेलो आ श्रीजैनधर्म (तेना महोटा भाइ) लक्षधीरना मनमा रुच्यो नहीं. केमके अरेरे! लींबडानी प्राप्तिथी Iल॥१०॥ जेना मनमा हर्ष थाय छे, एवा उंटने खरेखर द्राक्ष रुचती नथी. ॥ ४० ॥ त्यारबाद एक दिवसे रावजी पोताना हृदयमा सर्व | जीवोपते मित्राइ धारण करताथका परलोक पाम्या. ॥ ४१ ॥ For Private And Personal Use Only Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra वर्धमान ॥ ११ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मृतकार्याणि तस्याथ । कुर्वतोः समजायत || क्लेशः परस्परं जातो- र्ज्ञातिभोजनकर्मणि ॥ ४२ ॥ लालो हृदि नोऽसौ । वृद्धजात्रापमानितः ॥ मात्रा युतस्ततोऽचाली - लात्वा निजकुटुंबकं ॥ ४३ ॥ इतः प्रसिद्धे किल कहदेशे । ग्रामोऽभिरामोऽस्ति हि कोणनामा ॥ सूराजिदाख्यः खलु तत्र भूपः । समस्ति तल्लालणमातुलश्च ॥ ४४ ॥ प्रेरितोऽथ जननीस्ववधूच्यां । लालणोऽपि लघु तत्र समेतः ॥ यामिनी कुमुदिनी परिकृष्ट । एति चंद्र उदयाचलमेव ॥ ४५ ॥ लालणो नतमूर्धासौ ॥ मातुलेनाभिनंदितः ॥ कथयामास वृत्तांतं । स्वकीयं पुरतोऽस्य च ॥ ४६ ॥ ते रावजीना मृत्युसंबंधि कार्य करता एवा ते बन्ने भाइओवच्चे ज्ञातिभोजनना कार्यमां परस्पर क्लेश थयो ।। ४२ ।। त्यारे पोताना मोटा भाइथी अपमान पामेला लालण हृदयमां दुभाइने पोतानुं कुटुंब लेइ पोतानी मातासहित ते पीलुडा गाममांथी चाली निकल्या. ॥। ४३ || हवे कच्छ नामना प्रसिद्ध देशमां डोणनामे ( एक ) गाम छे, अने त्यां सुराजी नामे राजा हता, अने ते लालणना मामा थता हता. ॥ ४४ ॥ हवे पोतानी माता तथा खोना आग्रहथी ते लालण पण तुरत ते डोण गाममा आन्या, केमके रात्रि अने कुमुदिनीए आकर्षेलो चंद्र उदयाचल उपरज आवे छे. ।। ४५ ।। त्यां आवी नमस्कार करता एवा ते लालणने तेमना मामाए आश्वासन आप्युं. त्यारे लालणे पण तेमनी आगळ पोतानो वृत्तांत को. ॥ ४६ ॥ For Private And Personal Use Only चरित्रम्. ॥११॥ Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirm.org Acharya Shri Kailassagerul Gyanmandit वर्धमान चरित्रम. ॥१ ॥ अलब्धसंतानकमातुलेन । पुत्रीकृतोऽसौ खल्लु नागिनेयः॥ संस्थापितोऽरं निजराज्यपट्टे। सुराजिता तेन सुराजितोऽयं ॥४७॥ माताथ वृद्धा खयु रूपदेवी । निरीक्ष्य तं राज्यपदाभिषिक्तं ॥ पुत्रं निजं लालणनामधेयं । हर्षाश्रुधारामतुला ववर्ष ॥४॥ कालज्वरेणाकुलतां गतोऽथ । गतः सुराजित्परलोकमागे ॥ ततः परं सापि च रूपदेवी। मृता जिनाराधनतत्परा वै ॥४॥ जननीमृत. कार्यार्थी । लालणोऽथ समाह्वयत् ॥लदधीरं निजे इंगे। विनयी वृद्धबांधवं ॥५०॥ ते सुराजी नामना ते लालणना मामाने संतान न होवाथी तेणे आ शोभायमान एवा लालण नामना पोताना भाणेजने पुत्ररूप करीने तुरत पोतानी राज्यगादीपर स्थाप्या. ॥४७॥ ते वखते वृद्ध एवी ते लालणनी मा रूपदेवी पोताना ते पुत्रने राज्यासनपर अभिषिक्त थयेला जोइ अतिशय हर्षाश्रुनी धारा बरसवा लागी. ॥ ४८ ॥ हवे त्यारपछी कालज्वरथी व्याकुल थयेलो सुराजी (मृत्यु पामी) परलोकने मार्गे गयो. अने त्यारवाद ते रूपदेवी पण जिनेश्वरप्रभुना आराधनमा तत्पर थइथकी मृत्यु पामी. ।। ४९ ॥ त्यारे पोतानी माताना मृत्युकार्यमाटे विनयी लालणे पोताना महोटा भाइ लक्षधीरने पोताना गाममा 8 (डोणमा ) बोलाव्या. ॥१०॥ ॥१५॥ For Private And Personal Use Only Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirm.org Acharya Shri Kailassagerul Gyanmandit वर्षमान-1. || ज्ञात्वा मातुर्मरणं । तत्रागावकधीरकः सोऽपि ॥ निजपरिवारसमेतः । सुबुद्धितो बांधवं मिलितुं दरित्रम्, ॥५१॥ अथ मिलितो तो बंधू । वर्षतावशूणि च चक्षुया ॥ मातुर्वियोगदुःखा-कुलो कुलिनतां च संप्रातौ ॥ ५२ ॥ कृत्वा मृतेः कार्यमथ स्वमातु-स्तदग्निसंस्कारसुभूमिकायां ॥ तन्मूर्तियुक्तां खनु देवकूलिकां । तो त्रातरौ भक्तिपरौ च चक्रतुः ॥ ५३ ॥ ग्रामे निजे सोऽथ च लदधीरो। गतो युतः स्वीयकुटुंबकेन ॥ यापृच्च्य बंधुं वरलालणं तं । विशुचित्तः कलहप्रमुक्तः ॥ ५ ॥ त्यारे ते लक्षधीर पण पोतानी मातानुं मरण ययेलं जाणीने, तथा सुबुद्धिथी भाइने ( लालणने) मळवाणाटे पोताना 8 परिवारसहित त्यां (डोणमा) आव्यो. ॥५।। ते वरखते माताना वियोगना दुःखथी व्याकुल थयेला, तथा कुलीनतावाळा एवा ते बन्ने भाइओ आंखोमाथी आंसु वरसावताथका परस्पर मल्या. ॥५२॥ पछी भक्तिवान एवा ते बन्ने भाइओए पोतानी मातार्नु मृत्यु कार्य करीने तेणीना अग्निसंस्कारनी जगोए तेणीनी मूर्तिसहित देरी करावी. ॥५३ ॥ (के जे देरी आजे आइना स्थानतरीके ओळखाय छे.) त्यारबाद शुद्ध हृदयवाळो तथा क्लेशथी रहित थयेलो ते लक्षधीर पण पोताना ते उत्तम बंधु लालणनी रजा लेइने पोताना कुटुंबसहित पोताने गाम (पीलुडामा) गयो. ॥ ५४॥ For Private And Personal Use Only Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirm.org Acharya Shri Kailassagerul Gyanmandit वर्धमान चरित्रम्, ॥१४॥ निजां प्रजां पालयतिस्म लालणः । कम्पफुमानोऽखिलयाचकानां ॥ गुणोरुसोनाख्यवधूप्रसूतछिपुत्रयुक्तोऽमिततेजसांचितः ॥५५॥ अणुव्रतानि हितानि सुपालय-निरतिचारमथो खनु लालणः॥ गमयतिस्म निजं समयं ह्ययं । जिनवरोरुवचोविदितादरः ॥५६॥ अथैकदा महाकालीमारराध स लालणः ॥ कृताष्टमतपाः स्वीय-गोत्रस्थापनलालसः ॥ ५७ ॥ थागताथ धृतभीषणरूपा। काव्यपीद महिषासनसंस्था ॥ रुंडमुंडरचितां गलमालां । धारयंती करखपरशस्त्रा ॥५॥ ___सर्व याचकोने कल्पवृक्षसमान तथा उत्तम गुणोवाळी सोना नामनी स्त्रीथी उत्पन्न ययेला बे पुत्रोयें करीने युक्त, अने महातेजस्वी एवा ते लालण पोतानी प्रजान पालन करवा लाग्या. ॥ ५५ ॥ जिनेश्वर प्रभुना उत्तम वचनोमा आदरवाळा एवा आ लालण हितकारी अणुव्रतोने (श्रावकना बार व्रतोने ) अतिचाररहित पालताथका पोतानो समय व्यतीत करवा लाग्या. ॥ ५६ ।। हवे एक समये पोतार्नु गोत्र स्थापवानी इच्छाथी लालणे अट्ठमनो तप करवापूर्वक महाकाली मातार्नु आराधन कयुः ॥ ५७ ॥ ते वखते भयंकर रूपने धारण करनारी, पाडाना आसनपर बेठेली, रुंडमुंडनी मालाने गळामा धारण करनारी अने हाथमा खप्परना शस्त्रवाळी महाकालीदेवी पण ( तेमनी पासे) आव्यो. ॥ ५८ ॥ ॥१४॥ For Private And Personal Use Only Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra वर्धमान॥ १५ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kallassagarsuri Gyanmandir प्रेक्ष्य तां जीषणाकारां। लालणो जीतमानसः ॥ त्रिपदानि गतः पश्चा- जयकंपितदेदभाक् ||५|| विलोक्य जयजीतं स्वं । सेवकं सा मनस्विनी ॥ संहृत्य भीषणं रूपं । लक्ष्मीरूपं चकार च ॥ ६० ॥ पद्मासनस्थां च मनोरूपां । प्रशांतमूर्ति प्रविलोक्य देवीं ॥ विमुक्तभीतिरथ बालोऽपि । नत्वा च तस्याश्चरणौ प्रणोति ॥ ६१ ॥ मातस्त्वमेवासि ममोपकारिणी । निःकारणं सर्वजगद्धितैषिणी ॥ अतः परं त्वं मम वंशजांगिनां । रक्षापरा वैजवदायिनी जव ॥ ६२ ॥ त्यारे लालण पण भयंकर स्वरूपवाळी ते देवीने जोइने भयथी ध्रुजते शरीरे मनमां डर पामीने त्रण पगलां पाछा हठी गया. ॥ ५९ ॥ हवे उदार मनवाळी ते महाकाली देवीए पोताना ते सेवकने भयभीत थयेला जोइने पोतानुं ते भयंकर रूप संहरीने लक्ष्मीनुं स्वरूप कर्यु. ॥ ६० ॥ पछी कमलना आसनपर बेठेली, मनोहर स्वरूपवाळी तथा शांतमूर्तिवाळी एवी ते देवीने जोइने लालण पण निर्भय थयाथका तेणीना चरणोमां नमीने ( तेनी ) स्तुति करवा लाग्या. ॥ ६१ ॥ हे माताजी ! आप तो कई पण कारणविना सर्व जगतनुं हित करनारा तथा मारापर उपकार करनारा छो. अने तेथी हवे पछी तमो मारा वंशमां श्रनारा मनुष्योनुं रक्षण करनारा जने वैभव आपनारा थाओ १ ।। ६२ ॥ For Private And Personal Use Only चरित्रम्. ॥ १५ ॥ Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirm.org Acharya Shri Kailasagarsur Gyanmandir वर्षमान चरित्रम् SOCCRHIR-1945450 देव्यूचे भयतो वत्स । पश्चात्त्वं त्रिपदं गतः॥ मां च दृष्ट्वा ततस्तेऽपि । वंशेऽहं त्रिपदि स्थिता ॥ ६३ ॥ विस्तरिष्यति वंशस्ते । चिरमाम्रतरुरिव ॥ शतशाखाविकीर्णश्च । लाजणाख्याप्रसिफितः ॥ ६४ ॥ परं तवैषां खलु वंशजानां । संतानको को क्रमशो विमुच्य ॥ तृतीयसंतानकसुप्रसन्ना । नूनं भविष्यामि सुपूजिताहं ॥ ६५ ॥ कृत्वैवं तां महाकाली । गोत्राधिष्ठायिनी सुरीं ॥ लक्ष्मीरूपधरां साक्षा-खालणो मुमुदेतरां ॥६६॥ एवं सुवर्षे वरवैक्रमीये। निधिष्यार्कप्रमिते (१५२ ) मनोई॥ संस्थापयामास स गोत्रदेवीं । काली च लक्ष्म्या वररूपधीं ॥ ६७ ॥ त्यारे ते देवीए कह्यु के, हे वत्स! मने जोइने तुं त्रण पगला पाछो हठी गयो, तेथी हवे हुँ पण तारा वंशमा त्रीजी पहेडीए रहीश. ( अर्थात् दर नीजी पहेडीए हुँ लक्ष्मीरूपे सहाय करीश ) ॥ ६३ ॥ वळी तारो वंश आम्रवृक्षनी पेठे सेंकडो शाखाओमा विस्तार पामीने “लालण" नामनी प्रसिद्धिथी फेलावो पामशे. ।। ६४ ॥ परंतु आदरपूर्वक मारु पूजन करवाथी तारा ते वंशजोना अनुक्रमे वे संतानो छोडीने श्रीजा संतानप्रते हुँ प्रसन्न थइश. ॥६५॥ एवी रीते साक्षात् लक्ष्मीना रूपने धरनारी ते महाकाली देवीने पोताना गोत्रनी अधिष्ठायिका करीने लालण अत्यंत खुशी थया. ॥६६॥ एवी रीते विक्रम संवत १२२९मा ते लालणे लक्ष्मीना मनोहर रूपने धारण करनारी ते महाकालीदेवीने पोतानी गोत्रदेवीरूपे स्थापी. ॥६७|| ॥१६॥ For Private And Personal Use Only Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagerul Gyanmandit वर्षमानलालणेन नता देवी । ह्यतानं गताथ सा॥ सोऽपि हृष्टो हृदि स्वीये । चकाराष्टमपारणं ॥६॥ चरित्रम. स श्रावतधारकः सुविदितः कल्पद्रुमो ह्यर्थिनां । श्रीमहालणगोत्रिणां सुपुरुषो जातोऽयमाद्यो जुधि ॥ तऊंशो जिनधर्मपालनपरः ख्यातोऽनवत् सर्वतः। सर्वप्राणिदयापरः परहितप्रह्वस्तथा विस्तृतः ॥ ६॥ ॥ इति श्रीमद्विधिपदगडाधीश्वरजट्टारकशिरोमणिश्रीमत्कल्याणसागरसूरीश्वरपट्टालंकारश्रीमदमरसागरसूरिविरचिते श्रीमहालणगोत्रीयश्राद्धवर्यश्रीमहर्धमानपद्मसिंदष्टिचरित्रे तमोत्रजप्रथमपुरुषलालणोदंतवर्णनो नाम प्रथमः सर्गः समाप्तः॥ श्रीरस्तु ॥ पछी लालणे नमस्कार करवाबाद ते महाकालीदेवी अदृश्य थयां, अने ते लालणे पण पोताना हृदयमा खुशी थइने अहमर्नु पारणुं कयु. ।। ६८ ॥ एवी रीते श्रावकोना (बार) व्रतोने धारण करनारा, प्रख्याति पामेला तथा याचकोप्रते कल्पवृक्ष समान एवा ते आ लालणशेठ लालणगोत्रीओना पृथ्वीपर पहेला उत्तम पुरुष थया. अने तेमनो वंश जैनधर्म पालनारो, सर्व प्राणिोपते दया राखनारो अने परना हितमा तत्पर सर्व जगोए विस्तार पामी प्रख्यात थयो. ॥ ६९ ।। एवी रीते वि| धिपक्षगच्छाधीश्वर भट्टारकशिरोमणि श्रीमान् कल्याणसागरसूरीश्वरना पाटने शोभावनारा श्रीमान् अमरसागरसूरिजीए रचेला टू श्रीमान् लालणगोत्रना श्रावकोत्तम श्रीवर्धमान अने पद्मसिंहशेठना चरित्रमा तेमना गोत्रना आदिपुरुष लालणना वृत्तांतना का वर्णनरूप प्रथम सर्ग समाप्त थयो. ।। श्रीरस्तु । For Private And Personal Use Only Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra पर्थमान ॥२८॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ अथ द्वितीयः सर्गः प्रारज्यते ॥ लालणस्याथ तस्य द्वा-वभृतां तनयौ शुभौ ॥ माणिकाख्यस्तयोर्ज्येष्ठो । लघुस्तु मनुजित्स्मृतः ॥ १ ॥ माणिकस्याभवन्मेघ-स्ततो लुंभोऽजवत्सुतः ॥ ततश्च सहदेवोऽभूत् । टेकाख्यश्च ततोऽनवत् ॥ २ ॥ ततो बुंढोऽभवत्पुत्र - स्ततो लूणाह्नयोऽजनि ॥ सेवाख्यश्च ततो जातः । सिंह जित्तत्सुतोऽभवत् ॥३॥ दपालः सुतस्तस्य । देवनंदोऽजवत्ततः ॥ तनुजः पर्वतस्तस्य । वत्सराजस्ततोऽभवत् ॥४॥ ॥ हवे बीजा सर्गनो प्रारंभ थाय छे. ॥ 1 " हवे ते लालणना वे उत्तम पुत्रो थया, तेओमां महोटानुं नाम “ माणिकजी " तथा न्हाना " मनुजी ” नामे हता. ॥ ॥ १ ॥ माणिकना पुल " मेघाजी " थया, अने पछी तेमना पुत्र " कुंभाजी " थया. पछी तेमना पुत्र " सहदेवजी " थया, अने तेमना पुत्र “ टेडाजी " थया. ॥ २ ॥ तेना पुत्र " कुंडाजी " थया, अने तेना पुत्र " लूणाजी " नामे थया, तेना पुत्र “ सेवाजी " थया, अने तेना पुत्र " सिंहाजी " ( सिंघजी ) थया ॥ ३ ॥ तेना पुत्र “ हरपाल " थया, तथा तेना पुत्र " देवनंद " थया, तेना पुत्र " पर्वत " थया, अने तेना पुत्र " वत्सराज " थया ॥ ४ ॥ For Private And Personal Use Only चरित्रम्. ॥ १८ ॥ Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagerul Gyanmandit वर्षमान ॥१९॥ तस्यानूठत्सराजस्या-मरसिंहानिधः सुतः ॥ आरिषाणानिधग्राम-वासी कडे सुबुद्धिमान् ॥५॥ चरित्रम एवं तहंशजातानां । ज्येष्टानां कथितानि वै ॥ नामानि चानुसंधान-कृते ग्रंथकृता मया ॥ ६॥ तेषां पुत्रप्रपुत्राणां । परिवारोऽभवद्द हुः ॥ विस्तृतो यो महीपीठे । नूरीणां नाग्यशालिनां ॥ ७॥ अथैवमत्रामरसिंहनामा । वंशे वरे पंचदशे पदेऽभूत् ॥ मुक्तोपमोऽगण्यगुणो वरेण्यः । सुनिर्मलो ऽर्थिवजकंठसंस्थः ॥ ७॥ ते वत्सराजना “ अमरसिंह" नामे बुद्धिवान पुत्र थया, के जे कच्छदेशमां आवेला आरिखाणा नामे गाममा वसता हता. ।। ५ ।। (आ आरिखाणा गाम कच्छमा आवेला सुथरी गामथी एक गाउपर पश्चिम दिशामा हाल पण छे) (ग्रंथकार कहे छे के) एवी रीते (आ ग्रंथनायकना वंशना) अनुसंधान माटे में ते लालणवंशमा उत्पन्न थयेला मुख्य पुरुषोनां नामो कयां. ॥ ६॥ तेओना घणा भाग्यशाली पुत्रपौत्र विगेरेनो तो घणो परिवार थयेलो छे, के जे आ पृथ्वीतलपर विस्तार पाम्यो छे. ॥ ७॥ हवे अहीं उत्तम लालणवंशमा एवी रीते पंदरमी पहेडीए मुक्ताफलनी पेठे अगणित गुणोवाला ID (पक्षे-दोराबाळा ) मनोहर, निर्मल तथा (दान गुणथी) याचकोना समूहना कंठमा रहेला " अमरसिंह " नामे पुरुष ॥१ ॥ थया. ॥८॥ ( आ अमरसिंहना मूला अने राजा नामे वे भाइओ हता, जेमाथी राजाना वंशजो कच्छ मांडवीमा तथा जामनगरमा हालमा लालणगोत्रथी ओळखाय छे. जामनगरमा ते कुटुंब तलकसी जेसाणीना कुटुंबथी ओळखाय छे.) KOREA5 SC-CGCARRHECCA For Private And Personal Use Only Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirm.org Acharya Shri Kailasagarsur Gyanmandir वर्षमान - ॥२०॥ वंशयाग्या किमु वैजयंती । नार्या बभूवास्य च वैजयंती ॥ स्वरूपकात्या त्रिदशी जयंती। जयं स्वभर्तुः किल सूचयंती ॥ए॥ अथैकदा सा शयनीयमध्ये। निजायमाणा परिनिर्मलांगी॥ प्रवर्धमानां खलु वार्धिवेला । स्वप्ने पपौ पात्रतां निशायां ॥ १०॥ साथ जागरिता प्रातः । स्व. नोदंतं न्यवेदयत् ॥ स्वामिनोऽमरसिंहस्य । प्रहृष्टहृदया कुतं ॥ ११ ॥ स्वप्नपाठकमेषोऽपि । ग्रामस्थं इतमाह्वयत् ॥ पप्रच स्वप्नभावार्थ । तस्य सत्कारपूर्वकं ॥ १२ ॥ पोताना स्वामीनो जाणे विजय सूचवती होय नही ! एम ( पीयर तथा सासरीयां संबंधि ) बन्ने वंशोना ( पक्षे-वांसपर) अग्रभागे रहेली जाणे धजा ( पताका ) होय नही! तथा पोताना रूपनी कांतिथी देवांगनाने पण जीतनारी एवी "वैजयंती" नामे ते अमरसिंहनी पत्नी हती. ॥९॥ हवे एक दिवसे शुद्ध देहवाळी एवी ते वैजयंतीए रात्रिए बिछानामा 15 निद्रा करतांथका स्वप्नमा वृद्धि पामती अने पात्रमा भरेली एवी समुद्रनी वीरने (जलनी वेळाने) पीधी. ॥१०॥ पछी प्रभाते | जागेली अने मनमा आनंद पामेली एवी ते वैजयंतीये पोताना स्वामी अमरसिंहने तुरत ते स्वमसंबंधि वृत्तांत कह्यो ॥११॥ त्यारे ते अमरसिंहे पण पोताना गाममा रहेला अने स्वप्नविचार जाणनारा (कोइक ज्योतिषी ब्राह्मणने) तुरत बोलाव्यो, तथा तेनो सत्कार करीने तेने ते स्वमनो भावार्थ पछ्यो. ॥ १२ ॥ RGULABALI ॥२०॥ For Private And Personal Use Only Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shah Alachana Kenda www.kobaturm.org Acharya Sh Kailasagarsur Gyanmandir चरित्रम मान-1| स्वप्नपाठकवरोऽपि जगौ स । श्रेष्टिवर्य तनुजो भविता ते ॥ वर्धमान इह मोरुनरेण । सर्वदा स- पदि वार्धिजलंव ॥ १३ ॥ द्रव्यं दत्वोचितं तस्मै । श्रेष्टी तं च व्यसर्जयत् ॥ स्वप्नार्थ कथयामास ॥२१॥ । प्रियायै स प्रमोदतः ॥ १४ ॥ तनुजरत्नमथोरु निजोदरे-ऽधरदसौ धरणीव सुरत्नकं ॥ पतिहदंतरतीवसुमोददं । जिनवचोऽमृतपानसुदोददं ॥ १५ ॥ समये सुषुवे साथ । पुत्ररत्नं मनोहरं ॥ जास्वरं वार्धिवेलेव । छितीयोङ्गवचंद्रकं ॥ १६॥ त्यारे ते उत्तम स्वप्नवेत्ताए पण कयुं के, हे शेठजी! आपने पुत्र थशे, के जे अहीं हमेशा समुद्रनी वीरनी पेठे मनोहर लक्ष्मीना समूहथी तुरत वृद्धि पामशे. ।। १३ ।। पछी शेठे ते ज्योतिषीने उचित द्रव्य आपी विसर्जन कर्यो, अने हर्षथी ( पोतानी ) स्त्रीने ते स्वप्ननो भावार्थ कहो. ॥ १४ ॥ हवे पृथ्वी जेम उत्तम रत्नने धारण करे छे, तेम ते वैजयंतीए पोताना उदरमा पुत्ररत्नने धारण कर्यो. एयी तेणीना स्वामी अमरसिंह पोताना हृदयमा अत्यंत खुशी थया, अने ते वैजयं तीने पण जिनेश्वर प्रभुना वचनरूपी अमृतनुं पान करवानो दोहलो उत्पन्न थयो. ॥ १५ ॥ पछी समुद्रनी वेला जेम बीजना 18| देदीप्यमान चंद्रने उत्पन करे, तेम तेणीए मनोहर पुत्ररत्नने जन्म आप्यो. ॥ १६ ॥ CRACHUSAMACREC ॥२१॥ For Private And Personal use only Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirm.org Acharya Shri Kalansaarsur Gyarmandie वर्धमान चरित्रम्, ॥१ ॥ पिता महोत्सवोऽकारि । निजवित्तानुसारतः ॥ स्वप्नानुसारतश्चके । वर्धमानाभिधानकं ॥ १७ ॥ वयसा वर्धमानोऽसौ । वर्धमानोऽनवद् पुतं ॥ कलानिः कलितो रम्यो । राकाचंग इवाभितः॥ ॥ १७ ॥ द्वितीयश्चापसिंदोऽस्य । तनयः समजायत ॥ तृतीयः पद्मसिंहाख्यः । पद्मस्वप्नेन सूचितः ॥१॥ पित्रा प्रमोदांकुरपूरितेन । क्रमेण पुत्राः परिणायितास्ते ॥ सुयौवना यौवनमंडिताभिः । सुमंडनाः कामितकन्यकालिः ॥ २०॥ चक्रिरे प्रतिदिनं त्रयोऽपि ते । सेवनं जिनपतेः प्रमोदतः ॥ मातृपितृशुजजक्तितत्पराः । श्रावकोरुगुणवृंदमंडिताः ॥११॥ त्यारे पिताए ( अमरसिंहे) पोताना द्रव्यने अनुसारे तेनो जन्मोत्सव कर्यो, तथा स्वप्नने अनुसारे तेनु वर्धमान नाम पाड्यु. ॥ १७ ॥ पछी वयथी वृद्धि पामता ते वर्धमान पुनमना मनोहर चंद्रनीपेठे तुरत सर्व कलासंपन्न थया. ॥ १८ ॥ त्यारबाद तेमने बीजो चापसिंह नामे पुत्र थयो, अने त्रीजो पद्मस्वप्नथी सूचित थयेलो पद्मसिंह नामे पुत्र थयो. ॥१९॥ पछी हर्षथी रोमांचित थयेला पिताए यौवनवयने पामेला तथा (आभूषणोबडे) शोभिता एवा ते त्रणे पुत्रोने यौवनवय. वाळी इच्छित कन्याओ साथे अनुक्रमे परणाव्या. ॥ २० ॥ श्रावकना उत्तम गुणसमूहथी शोभिता थयेला ते प्रणे हमेशा | हर्षथी जिनेश्वर प्रभुनु पूजन करता हता, तथा ( पोताना) मातापितानी उत्तम भक्तिमा तत्पर रहेता हता. ॥ २१॥ -LCACANCHECK ॥२२॥ For Private And Personal Use Only Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagerul Gyanmandit वर्धमान अथैकदा संप्रविभज्य तेच्यो । प्रासं निजं सोऽमरसिंहनामा ॥ श्राद्धो जिनाराधनतत्परश्च । गता- IP ऽममात्मा परलोकमार्ग ॥२॥श्रेष्ट्येकदा वै वरवर्धमानः। स्थितोऽस्ति गेहांगणभूमिकायां ॥ कुर्वन् प्रशांतो वरदंतधावनं । स पद्मसिंहाभिधबंधुना युतः ॥२३॥ इतः समागादिह योगिनायकः । कंथावगूढांगसमस्तभागः॥प्रकंपमानो जरसाभिभूतः। कृशांगकस्तुंबकसक्तहस्तकः ॥२४॥ वामपाणिधृतदंडखंडको। रुद्रमालकृतशोलकंठकः॥ कुक्षिसक्तमृगचर्ममंडितो। भस्म लिप्तसुविशालजालकः ॥२५॥ हवे एक वखते निर्मल मनवाळा ते अमरसिंह श्रावक ते त्रणे पुत्रोने पोतानो गरास वहेंची आपीने जिनभक्तिमा तत्पर थयायका परलोकने मार्गे गया. ॥ २२ ॥ पछी एक वखते ते वर्धमान शेठ पोताना घरने आंगणे पोताना ते पमसिंह नामना भाइ साथे शांतिथी दातण करताथका बेठा हता. ॥ २३ ।। एटलामा त्यां एक योगिराज आवी चड्यो, ( ते योगीराज केवो हतो? तो के) कंथावडे तेना शरीरनो सपळो भाग ढंकायेलो हतो, तथा वृद्धावस्थाथी (तेनु शरीर ) कंपतुं हतुं, तेमज शरीरे दुर्बळ हतो, अने तेना एक हाथमां तुंबटुं हतुं. ॥ २४ ॥ तेना डावा हाथां तेणे दंढनो टुकडो धारण कर्यो हतो, तथा तेना कंठमा रुद्राक्षनी माळा शोभती हती, वळी तेणे पोतानी काखमा मृगचर्म (वींदीने ) राख्यु हतुं, अने पोताना विशाळ कपाळमां भस्म चोपडी हती. ॥ २५ ॥ CACACANCCHOCOCCCREBCALCO For Private And Personal Use Only Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirm.org Acharya Shri Kailasagarsur Gyanmandir वर्षमान ॥ ४॥ पादुकायुगलशालिपादकः । श्वेतकेशनिचयैर्जटाधरः ॥ अस्थिचर्मचयमानदेहको । वर्धिताग्रनख-चरित्रम्. हस्तजीप्रदः ॥ २६ ॥ त्रिभिर्विशेषकं ॥ इतस्तौ त्रातरौ वीक्ष्य । समागात्संनिधौ तयोः ॥ योगीश ईश्वरीकर्तु-मिव साक्षानेश्वरः ॥ २७ ॥ स तयोराशिषं दत्वा । मेघवभिरध्वनिः ॥ जोजनं प्रार्थयामास । कामकुदिर्बुजुक्षितः ॥ २७॥ दयाहृदयावेतौ। नोजयामासतुर्मुदा ॥ सुस्निग्धमधुराहारै-योगिनं तं नियोगिनौ ॥२५॥ तेना बन्ने पगो पेहेरेली चाखडीओथी शोभता हता, अने (तेना मस्तकपर ) श्वेत वाळना समूहनी जटा हती, तथा तेना शरीरपर फक्त हाडका अने चामडीज जणाती हती, तेमज वधेला नखोनी अणीओवाळा हाथथी ते भयंकर देखातो हतो. ॥ २६ ॥ पछी ते योगीराज त्यां (बेठेला ) ते बन्ने भाइओने जोइने जाणे साक्षात् कुबेरनीपेठे तेओने द्रव्यवान करवा माटे होय नहीं? तेम तेओनी पासे आव्यो. ॥ २७ ॥ पछी क्षुधाथी दुर्बल उदरवाळा ते योगीराजे मेघगर्जनानी पेठे गंभीर ॥२४॥ ध्वनिथी तेओ बनेने आशीष आपीने भोजन माटे याचना करी. ॥ २८ ॥ त्यारे दयाळु हृदयवाळा ते बन्ने व्यापारीओए हर्षथी ते योगीराजने घृतवाळा मधुर आहारवडे भोजन कराव्यु. ॥२९॥ -CARKAKASGANACEACHOk For Private And Personal Use Only Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagerul Gyanmandit वर्धमान ॥२५॥ ज्रातरावपि तो देव-पूजायै जग्मतुस्ततः ॥ गृहस्थजिनबिंबानां । सदाहशक्तिभास्वरौ ॥ ३० ॥ चरित्रम. तुंबकं लंबयित्वा स्वं । नारपट्टे स योगिराट् ॥ ततश्च निर्गतः क्वापि । सुतं केनाप्यलक्षितः ॥३१॥ देवपूजां विधायैता-वागतावंगणे निजे ॥ अदृष्ट्वा योगिराजं तं । परिवारमपृच्छतां ॥ ३२ ॥ जगौ सोऽपि किलास्मानि-दृष्टो लुजन् स योगिराट् ॥ परं जुक्त्वा गतः क्वैष । जानीमो नो वयं खलु ॥३३॥ कृताशनः स संतुष्टो । गतः क्वापि भविष्यति ॥विचार्येति स्वकार्येषु । लग्नौ तौ जातरावपि॥३४॥ पछी हमेशा जिनेश्वरमभुनी भक्तिमा तत्पर एवा ते बन्ने भाइओ पोताना घरमा रहेली जिनमतिमार्नु पूजन करवा गया. ॥ ३० ॥ एवामां ते योगीराज पोतानुं तुंबटुं त्यां भारोटीयामा (उंचे डेलीना आडसरमा) लटकावीने त्यांथी तुरत क्यांक चाल्यो गयो, ( अने ए रीते तेने त्यांथी जता) कोइए पण जोयो नही. ॥ ३१ ।। एटलामा ते पन्ने भाइओ देवपूजा करीने पोताना ( घरना ) आंगणामां आव्या, परंतु त्यां ते योगिराजने न जोवाथी (ते संबंधि) पोताना परिवारने पूछवा लाग्या. ॥३२॥ त्यारे ते परिवारे पण का के, अमोए ते योगिराजने खरेखर भोजन करता जोयो हतो, परंतु भोजन करीने ते क्या गयो? ते अमो जाणता नथी. ॥ ३३॥ भोजनथी संतोष पामी ते क्यांक चाल्यो गयो हशे, रम विचारी ते बन्ने भाइओ 151॥२५॥ तो पोताने कामे लागी गया. ॥ ३४ ॥ For Private And Personal Use Only Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobaturtm.org Acharya Shri Kailasagarsur Gyarmandie मान ॥१६॥ SAR देहलीभारपट्टाव-लंबितस्तुंबकस्तु सः ॥ ऊर्ध्वगोऽथ न केषांचिद् । दृष्टिगोचरतां गतः ॥ ३५॥ सुखस्थयोस्तयोरेवं । एमासी च विनिर्ययौ । तथापि तुंबकं कोऽपि । नापश्यत्तत्र लंबितं ॥३६॥ योग्यागमनवृत्तांतो। जातः स्मृतिपथातिगः ॥ सर्वेषां परिवारेषु । स्वस्वकार्यजुषामथ ॥३७॥ अथ किल प्रविलंबिततुंबक-दवरकस्युटितो निशि जैर्ण्यतः ॥ शटितकंद श्वेद सुपादपो । निरवलंवनतां च जगाम सः ॥३०॥ तुंबकस्युटितस्तत्र । तूर्णं च पतितस्ततः ॥ अधःस्थरिक्तताम्रोरु-कटाहोपरि वेगतः ॥ ३५ ॥ हवे डेलीना भारपट्टमा लटकावेल ते तुंबडं उंचु होवाथी कोइनी पण नजरे पड्युं नही. ॥ ३५ ॥ एवी रीते सुखेसमाधे | रहेतां थको छ मास वीती गया, परंतु त्यां लटकावेलु ते तुंबडु कोइनी दृष्टिए पड्युं नही. ॥३६॥ परिवारना सर्व माणसो पोतपोताना कार्योमा जोडाइ जवाथी ते योगीराजना आगमननी वात सर्व कोइ वीसरी गयु. ॥ ३७ ॥ हवे एक वखते सडेला मूळवाळो वृक्षनीपेठे ते लटकावेला तुंबडांनो दोरो जीर्ण थइ जबाथी रात्रिए त्रुटी गयो, अने तेथी ते तुंबई आधाररहित थइ ग. ॥ ३८ ॥ पछी ते तुंबडं त्रुटी जवाथी तुरत त्यां नीचे पडेली खाली त्रांबानी कडाइपर वेगथी आवी पड्यु. ॥३९॥ 18| ॥२६॥ For Private And Personal Use Only Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirm.org Acharya Shri Kailasagarsur Gyanmandir वर्षमान चरित्रम RECORRIA* जनश्च शतशः खमी-भूतस्तत्र स तुंबकः ॥ रसश्च निर्गतस्तस्मा-छिस्तीर्णः पात्रकोपरि ॥४०॥ तत्क्षणं स खलु ताम्रकटाहः । स्वर्णतामनजदस्य तु योगात् ॥ स्वातिसंगममथाप्य पयोद-बिंदुवृंद मिव मौक्तिकभावं ॥ ४१ ॥ अथोबितौ तौ च ततः प्रनाते । सुबांधवौ तं परिपश्यतःस्म ॥ सु. भाग्यतः स्वर्णमयं कटाई । खंडत्वमाप्तं बत तुंबकं तं ॥ ४२ ॥ योग्यागमोदंतमथ स्मरंतौ। तो विस्मितो चेतसि सुप्रसन्नौ ॥ कटाइमध्यस्थरसावशेषै-विलेपयामासतुरन्यपात्रं ॥१३॥ त्यां ते तुंबडं भांगी जवाथी तेना सेंकडो टुकडा थइ गया, अने तेमांथी निकळेलो रस ते कडाइमां पडवाथी तेमा फेलाइ गयो. ॥ ४० ॥ वरसादना बिंदुओनो समूह स्वातिनक्षत्रनो संगम पामीने जेम मुक्ताफलपणाने पामे छे, तेम ते रसना योगथी तुरतज ते त्रांबानी कडाइ ते वखते सुवर्णपणाने पामी. ॥ ४१ ॥ पछी प्रभाते उठेला ते बन्ने भाइओए (पोताना) सुभाग्यथी ते कडाइने स्वर्णमय थयेली जोइ, अने ते तुंबडांने टुकडे टुकडा थयेलु जोयु. ॥ ४२ ।। त्यारे पोताना मनमा आश्चर्य सहित आनंद पामेला ते बन्ने भाइओ ते योगीराजना आक्वाना वृत्तांतने याद करवा लाग्या, तथा कडाइमा बाकी रहेला रस वडे तेओए बीजां पात्रपर लेपन कयु ॥ ४३ ।। ॥२४॥ For Private And Personal Use Only Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagerul Gyanmandit चरित्रम्, वर्षमान मुडिकालक्षमेकं त-त्पात्रविक्रयतश्च तौ ॥ लेजातेस्म तथा जातो। धनाप्तिपादपांकुरः ॥४४॥ समेतोवर्धमानोऽसौ । पद्मसिंहयुतस्ततः ॥ त्यक्तग्रामः कुटुंबेन । युतो जमावतीं पुरीं ॥ ४५ ॥ ॥२०॥ व्यापारिणस्तत्र वसंति भूरयः । सुदूरयंतः स्वदरिद्रभाव ॥ कयाणकानां क्रयविक्रयैरलं । लानं लनंतोऽमितसंप्रयासैः ॥ ४६॥ चीनादिनानाविधदेशजानां । सांयात्रिकाणां बत बंदिरेऽत्र ॥ यानान्यमानानि विलोकयंतौ । चमत्कृतौ चेतसि बांधवौ तौ ॥७॥ हवे ते पात्रोना वेचवाथी ते बन्ने भाइओने एक लाख कोरी प्राप्त थइ, अने एवी रीते द्रव्यनी प्राप्तिरूपी वृक्षनो अंकुरो उत्पन्न थयो. ॥ ४४ ॥ पछी ते वर्धमान शेठ ते (आरिखाणा) गामने छोडीने पोताना भाइ पद्मसिंहसाथे कुटुंबसहित भद्रावती नगरीमा आवी वस्या. ( ते भद्रावती कच्छ देशना दक्षिण भागमा समुद्र किनारे ते समये महोटुं बंदर हतुं. त्यार४ बाद ते उजड थइ जवाथी तेना खंडेरोनी नजीका भद्रेसर नामनुं गाम वसेलु हालमा देखाय छे.)॥ ४५ ।। ते नगरमा ( अनेक जातना) करीयाणाओना लेवा वेचवाथी घणा प्रयासे लाभ मेळवी पोतानी दरिद्रताने दूर करनारा घणा व्यापारीओ वसता हता. ॥ ४६ ।। त्या बंदरमा चीनआदिक भिन्नभिन्न देशना व्यापारीओना महोटां वहाणोने (आवेला) जोइने ते बन्ने भाइओ पोताना मनमा आश्चर्य पाम्या. ॥४७॥ ॥२ ॥ For Private And Personal Use Only Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirtm.org Acharya Shri Kailassagerul Gyanmandit वर्षमान चरित्रम्, ॥२ ॥ पश्यतःस्म वरबांधवावुभौ । हपंक्तिमभितोऽत्र यलतः॥विस्तृतं च विविध क्रयाणकं । विक्रयार्थमथ भूरिलाजदं ॥४७॥ स्थानकं निजमितः समागतौ । व्रातरौ मनसि विस्मितौ च तौ ॥ स्नानपूर्वमथ चर्चिताहतो । शांतितोऽशनविधि च चक्रतुः ॥ ४५ ॥ बंधुरोऽथ गुरुबांधवं अघुः । पद्मसिंह इति बांधवो जगौ ॥ वर्धमानमिद वर्धितांबुधि-ध्वानचारुवचनः कृतांजलिः ॥ ५० ॥ जात. रत्र परदेशवासिनो। यानपात्रवरवार्धिवादिनः ॥ थानयंति विविधं क्रयाणकं । विक्रयंति बहलाभदं च ते ॥५१॥ WHEN15454 पछी ते बने उत्तम भाइओ त्यां नगरमा चारे तरफ आवेली दुकानोनी श्रेणिने, तथा (ते दुकानोमां) वेचवामाटे खुल्ला राखेला तथा घणो लाभ आपनारा जातजातना करियाणा जोवा लाग्या. ।। ४८ ।। त्यारवाद ते बन्ने भाइओ मनमा आश्चर्य पामताथका पोताने स्थानके आव्या, तथा स्नानपूर्वक जिनपूजा करीने शांतिथी तेओए भोजन कयु. ।। ४९ ।। पछी मनोहर GI एवा न्हाना भाइ पद्मसिहे हाथ जोडीने वृद्धि पामता समुद्रना अवाज सरखी मनोहर वाणीथी पोताना वडिलबंधु वधेमान-IGI शाहने कडं के, ॥ ५० ॥ हे बंधु! वहाणोवडे समुद्र खेडनारा परदेशी व्यापारीओ अहीं जातजातनां करीयाणां लावे छे, तेथी ४ ते वेंचीने तेश्रो घणो लाभ मेळवे छे. ॥५१॥ For Private And Personal Use Only Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobaturm.org Acharya Sh Kailasagarsur Gyanmandir पर्थमान ॥३०॥ SARKA-N.154 श्तोऽपि बहुधान्यादि । नृत्वा प्रवहणे निजे ॥ यांति विदेशिनस्ते तु । द्रव्यलाभाय सर्वदा 5 चरित्रम्, | ॥५२॥ अथ चेन्मे तवादेश-स्तदा लाजसमुत्सुकः॥ याम्यहं यानपात्रस्थ-श्चीनदेशे प्रहर्षितः ॥५३॥ यूयमत्र स्थिताः स्वीय-कुटुंबपरिपालनं ॥ धर्मध्यानपरा नित्यं । कुरुध्वमप्रमद्धराः ॥५४॥ बांधवस्य निशम्यैवं । वाणी न विनयान्वितां ॥ वर्धमानो मुदा वर्ध-मानोऽथ मधुरं जगौ ॥५५॥ जातरत्र वचनं बहु मन्ये । तावकीनमपि साहससंग ॥ ते वियोगजनितं मम दुःखं । मानसं बत परंतु दुनोति ॥ ५६ ॥ बळी ते विदेशी व्यापारीओ अहिंथी पण घणुं धान्य आदिक पोताना वहाणोमा भरीने हमेशा द्रव्यना लाभमाटे लेइ जाय हे. ।। ५७॥ माटे हवे जो आपनी आज्ञा होय तो हुँ पण द्रव्य मेळववामाटे उत्सुक थयोथको हर्षथी वहाणमा बेसी चीनदेशमा जाउं. ॥५३॥ अने आप अहिं हुशियार रहीने हमेशा धर्मध्यानमा तत्पर थइ आएणा कुटुम्बन रक्षण करो। ॥५४॥ एची रीतनी पोताना भाइनी विनययुक्त वाणी सांभलीने पछी हर्षथी वृद्धि पामता वर्धमान मधुर स्वरथी बोल्या के, || ॥ ५० ॥ हे भाइ ! तमारां आ साहसवाळा (हिम्मतभरेला ) वचनने जो के हुं बहु उत्तम मार्नु छ, परंतु तमारा वियोगथी उत्पन्न यतुं दुःख मारा मनने दुभावे छे. ॥५६॥ For Private And Personal use only Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra वर्षमान ॥ ३१ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पद्मसिंहो जगादाथ | सुधामधुरया गिरा । निशम्य वृद्धबंधोश्च । वचनं स्नेहनिर्जरं ॥ ५७ ॥ वामपि ते नाशिषा । यानपात्रग इतः प्रयामि वै ॥ संगमोऽपि मम ते जविष्यति । तूर्णमेव जनप्रसादतः ॥ ५८ ॥ मा कुरुध्वं खेदं भो । कंचिद्यूयं तु मानसे ॥ श्रागमिष्याम्यरं नूनं लब्धलाजस्तवाशिषा ॥ ५० ॥ अथ तन्निश्चयं ज्ञात्वा । वर्धमानोऽपि तं जगौ ॥ वर्धमानः सदा धो । पद्मया त्वं समेारं ॥ ६० ॥ अथासौ पद्मसिंहोऽपि । यानपात्रमपूरयत् ॥ पद्मयेव निजं साक्षा-कान्यराशिभिरुत्सुकः ॥ ६२ ॥ एवी रीते पोताना वडील बंधुनुं स्नेहभरेलुं वचन सांभलीने अमृतसरखी मधुर वाणीथी पद्मसिंदे कधुं के, ॥ ५७ ॥ हे बांधव ! आपनी शुभ आशीषथी हुं वहाणमां बेसी अहिंथी जर्ज लुं, तथा जिनेश्वर प्रभुनी कृपाथी मारो अने आपनो पाछो तुरतज मेलाप थशे. ।। ५८ ।। वळी हे भाइ ! तमो तमारा मनमां जरा पण खेद न करो ? आपनी आशीषथी हुं लाभ मेलवीने खरेखर तुरत अहीं पाछो आवीश. ।। ५९ ।। पछी तेनो निश्चय जाणीने वर्धमानशाहे पण तेने कयुं के, हे भाइ ! तुं हमेशां लक्ष्मीथी वृद्धि पामतोथको तुरत ( अहीं पाछो ) आवजे. ।। ६० ।। हवे पद्मसिंहे पण उत्साहपूर्वक जाणे साक्षात् लक्ष्मीवडे होय नहीं ? तेम धान्यना समूहोथी पोतानुं वहाण भर्यु. ।। ६१ ।। For Private And Personal Use Only चरित्रम्, ॥ ३१ ॥ Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra वर्षमान ॥ ३२ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir लक्षार्धमुद्रिकाक्रीतं । धान्यराशिं च तत्र सः ॥ प्रयाणमकरोद्धर्षा-न्निक्षिप्य च शुभेऽहनि 3 चरित्रम्. ॥ ६२ ॥ एवं प्रयाणं कृतमंगलोऽसौ । चकार यानाधिगतोऽथ वा ॥ कल्लोललीलां कलयन् ज । बुद्धि निधानो धृतधर्मध्यानः ॥ ६३ ॥ वायुनाथानुकूलेन । प्रेरितं यानपात्रकं ॥ वार्धिं विगाहयामास । लोलकल्लोलचंचलं ॥ ६४ ॥ मासत्रयमतिक्रम्य । प्राप्तं कंतानवंदिरे ॥ प्रेरितं पद्मसिंहस्य | मानसोत्कंठयेव किं ॥ ६५ ॥ धान्यसंचयमथोदतारयत् । पद्मसिंह इह पोततस्ततः ॥ विक्रयं विदधतोऽस्य बुद्धितो । लाज एव समजूच्च भूरिशः ॥ ६६ ॥ ते वाणम अर्ध लाख कोरीनी किंमतनो धान्योनो समूह भरीने तेणे हर्षपूर्वक शुभ दिवसे प्रयाग कर्यु. ।। ६२ ।। एवी ते मंगल करवापूर्वक तेणे वहाणमां बेशी समुद्रमां प्रयाण कर्यु. हवे बुद्धिना भंडारसरखा ते पद्मसिंह जलना मोजांओनी लीलानो अनुभव लेताथका धर्मध्यानपूर्वक रह्या. ।। ६३ ।। दवे अनुकूल वायुथी प्रेरायेलं ते वहाण उछळता मोजांओथी चपल थयेला समुद्रमां चालवा लाग्यं ॥ ६४ ॥ पछी जाणे ते पद्मसिंहना हृदयनी उत्कंठाथी प्रेरायुं होय नही ? तेम ते वहाण ऋण मास वीत्याबाद ( चीन देशना ) कंतान बंदरे पच्यु ।। ६५ ।। पछी पद्मसिंहे अहिं ते धान्योनो समूह वहाणमांथी ( किनारे) उतार्यो, अने त्यां बुद्धिपूर्वक तेनुं वेचाण करवाथी तेने घणो लाभज थयो ।। ६६ ।। For Private And Personal Use Only ॥ ३२॥ Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirm.org Acharya Shri Kailassagerul Gyanmandit चरित्रम्, पर्वमान-2 सौहार्द समभृदथास्य विविधैापारिभिर्वेदिरे । कुर्वनिःक्रयविक्रयं च विविधं पीयूषवाचोऽत्र 151 वै॥ दृश्रेणिमथानितःस कलितां नानाक्रयाणवजै-श्चित्ते चित्रमवाप्नुवन् सहृदयः पश्यन् परित्रा. ॥३३॥ म्यति॥६७ ॥ इति श्रीमछिधिपक्षगडाधीश्वरभट्टारकशिरोमणिश्रीमत्कल्याणसागरसूरीश्वरपट्टालंकारश्रीमदमरसागरसूरि विरचिते श्रीमहालणगोत्रीयश्राझवर्यश्रीमहर्धमानपद्मसिंहश्रेष्टिचरित्रे तजन्मयोग्यागमनस्वर्णप्राप्तिभावत्यागमनपद्मसिंहचीनदेशगमनवर्णनो नाम हितीयः सर्गः समाप्तः॥ श्रीरस्तु.॥ हवे ते बंदरमा नाना प्रकारनी लेवढदेवड करनारा जूदा जूदा व्यापारीओ साथे अमृतसरखी वाणीवाळा ते पद्मसिंहने मिबाइ यइ. पछी ते बुद्धिवान् पद्मसिंह विविध प्रकारना करीयाणाओथी भरेली दुकानोनी अणिने जोइने मनमा आश्चर्य पामताथका त्या फरवा लाग्या. ।। ६७ ।। एवी रीते श्रीमान् विधिपक्षगच्छाधीश्वर भट्टारकशिरोमणि श्रीमान कल्याणसागर पुरीश्वरना पाटने शोभावनारा श्रीमान् अमरसागरसूरिजीए रचेला श्रीमान् लालणगोत्रना श्रावकोत्तम श्रीवर्धमान अने पयसिंहशेठना चरित्रमा तेमनो जन्म, योगीनु आगमन, स्वर्णनी माप्ति, भद्रावतीनगरीमा आगमन, तथा पचसिंहना चीनदेशमते प्रयाणना वर्णनरूप बीजो सर्ग समान थयो. ॥ श्रीरस्तु. ।। HARDAGAONGS For Private And Personal Use Only Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Archana Xend www.kobamirm.org Acharya Sh Kailasagar url Gyarmandir चरित्रम. वर्षमान॥३४॥ ॥अथ तृतीयः सर्गः प्रारभ्यते ॥ अथासौ पद्मसिंहोऽत्र । लब्धलाभो निरीक्षणं ॥चीनदेशजवस्तूनां । चकारामितबुद्धिमान् ॥१॥ शर्करादौमवस्त्रादि-वस्तुजातं सुखानदं ॥ क्रीत्वा प्रवहणे स्वीये । सोऽक्षिपञ्च शनैः शनैः ॥२॥ एवं निजं प्रवहणं बिजरांचकार । सोऽयं स्वदेशजनयोग्यसुवस्तुजातैः ॥ यानाधिकारिजन. वृंदमपि स्वदानात् । संप्रीणयंश्च सुहृदः समतोषयच्च ॥३॥ CSC-CGLKACASS ॥हवे त्रीजा सर्गनो मारंभ थाय छे.॥ हवे अहीं लाभ मेळवनारा तथा अतिशय बुद्धिवान एवा ते पद्मसिंह चीनदेशमा उत्पन्न थती वस्तुओर्नु निरीक्षण करवा लाग्या. ॥ १ ॥ पछी तेणे सारो लाभ आपनारी साकर तथा रेशमी वस्त्रादिक वस्तुओ खरीद करीने धीमे धीमे पोताना वहाणमां भरी. ॥२॥ एवी रीते तेणे पोताना देशना लोकोने योग्य एवी वस्तुओथी पोतानुं वहाण भयु. पछी तेणे वहाणना अधिकारी लोकोने (खलासीओने) धनना दानथी खुशी करी (त्यांना) मित्रोने पण खुशी कर्या. ॥३॥ GI॥३४॥ C+ S For Private And Personal Lise Only Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirm.org Acharya Shri Kailassagerul Gyanmandit वर्षमान चरित्रम. ॥३५॥ सुहृदमेकमथो धनिनं निज-ममृततुख्यवचः स्ववशीकृतं ॥ युलनचंगसुनामयुतं वरं । विविधदेशनिरीक्षणसोत्सुकं ॥४॥स स्वसाधं समादाय । समागान्निजपोतके ॥ गृहीत्वा संबंलं नूरि। वार्यपि मधुरं वरं ॥५॥ युग्मं ॥ निविष्टः सुहृदा तेन । सार्ध पोतगवादके ॥ पद्मसिंहस्तदा साक्षा-त्पद्मयेव कटाक्षितः ॥ ६॥ पोतं तं प्रेरयामासुः। संप्राप्तेऽथ शुन्जेऽहनि ॥ दत्ताज्ञाः पद्म| सिंदेन । संतुष्टास्ते नियोगिनः ॥ ७॥ प्रवहणं जलधौ च चचाल त-चपलमेव सुवातसुवाहितं ॥ अतिचलोमिजलैरपि नोदितं । कुशलसर्वनियोगिसुरक्षितं ॥॥ पछी भिन्न भिन्न देशो जोवानी उत्कंठावाळा पोताना युलनचंग नामना एक उत्तम अने धनवान मित्रने अमृतसरखो वचनोथी पोताने वश करी, तथा तेने पोतानी साथे लेइ, तेमज पुष्कळ भातुं अने उत्तम मिष्ट जल पण लेइ ते पद्मसिंह पोताना वहाण पर आव्या. ॥ ४ ॥५॥ त्यारवाद ते पयसिंह जाणे साक्षात् लक्ष्मीवडे कटाक्षित थया होय नही ? तेम ते मित्रनी साथे वहाणना झरुखामा बेठा. ।। ६॥ पछी संतुष्ट थयेला ते खलासीओए पण पासिंहे आज्ञा आपवाथी शुभ दिवसे ते वहाणने इंकायु, ॥ ७॥ पछी सारा वायुथी, तथा अति चपल मोजाओना जलथी प्रेरायेलुं अने सघळा कुशल खलासीओथी रक्षित थयेलं ते वहाण पण तुरत समुद्रमा चालवा लाग्यु.॥८॥ 31॥३५॥ For Private And Personal Use Only Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirm.org Acharya Shri Kailassagerul Gyanmandit चरित्रम्, पर्धमान स पद्मसिंहः सुहृदाथ तेन । कुर्वन् विनोदं विविधैरुदंतैः ॥ व्यापार संबंधिनिरप्रमत्त-स्तदीय 5 देशोनववस्तुकानां ॥॥ सत्कारयस्तं मधुरैर्वचोभिः । सुधोरुनानाविधनोजनैश्च ॥ वार्डं चललो॥३६॥ लसुयानसंस्थः । कालं स्वकीयं गमयांनकार ॥१०॥ युग्मं ॥ इतोऽसौ वर्धमानोऽपि । स्थितो जद्रावतीपुरि ॥ स्वमेकं कारयामास । यानपात्रं नवं महत् ॥ ११ ॥ कोष्टागारस्तथा तत्र । बंदिरे तेन कारितः॥ महानेकः सुरम्यश्च । वार्निधेर्निकटावनौ ॥ १२ ॥ SEARCH हवे ते पद्मसिंह ते (यूलनचंग नामना) मित्रनी साथे तेना देशमा उत्पन्न यती वस्तुओना व्यापारसंबंधि विविध प्रकारना वृत्तांतोवडे विनोद करताथका, तथा सावधान रह्यायका, तेमज मधुर वचनोवडे अने अमृतसरखां मनोहर जातजातना भोजनवडे ते मित्रने सत्कार करताथका, समुद्रमा चालवाथी चपल थयेला श्रेष्ठ वहाणमा बेठाथका पोतानो समय निर्गमन करता हता. ॥ ९॥ १० ॥ हवे अहीं भद्रावतीनगरीमा रहेला ते वर्धमानशाहे पण पोतार्नु एक महोटु नवु वहाण कराव्यु. ॥११॥ वळी तेणे त्यां बंदरपर समुद्रकिनारे एक महोटो मनोहर कोठार कराव्यो. ॥ १२ ।। NRNALCOHORICALC For Private And Personal Use Only Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagerul Gyanmandit वर्षमान चरित्रम्, ॥३७॥ वैदेशिका येऽत्र वसंति भूरयो । व्यापारिणो अव्यगणाभिलाषुकाः ॥ सार्ध च तैरेष चकार मित्रतां । व्यापारलाभकमना अनाकुलः ॥ १३ ॥ सत्यैकनिष्टं धनवर्धमानं । तं वर्धमानं प्रविलोक्य केऽपि ॥ समर्पयामासुरथ स्ववस्तु-जातं समस्तं वरविक्रयार्थ ॥१४॥ निज निज देशमरं प्रयाता । दिदृढ़या स्वीयकुटुंबकानां ॥ श्रीवर्धमानोपरि तुष्टनावा-श्चिचे सुविश्वस्ततयैव तेऽपि ॥१५॥ एषोऽप्यथो निर्मलचित्तवृत्ति-स्तेषां समस्तं वरवस्तुजातं ॥ रक्षन् स्वकोष्टेऽवसरं च लब्ध्वा । करोति वै विक्रयमेव तस्य ॥ १६॥ ___ जरा पण कंटाळ्याविना व्यापार करी लाभ मेळववामाज जेमनुं चित्त लागेलुं छे, एवा आ वर्धमानशाहे, द्रव्यना समूहनी इच्छावाळा जे अहीं घणा परदेशी व्यापारीओ वसता हता, तेओनी साथे मित्राइ करी. ॥१३ । एक सत्य निष्टावाला अर्थात् प्रमाणिक एवा ते वर्धमानशाहने धनधी वृद्धि पामता जोइने तेमाना केटलाक विदेशी व्यापारीओए पोतानो सघळो माल लाभदायक वेचाण माटे सोंप्यो.॥१४॥ तया तेओना मनमा ते वर्धमानशाहपर विश्वास बेशी जबाथी ते विदेशी व्यापारीओ खुशी थइ पोतपोताना कुटुंबने मळवानी इच्छाथी तुरत पोतपोताने देश चाल्या गया. ।। १५ ।। अहीं ते वर्धमानशाह पण निर्मल मनोवृत्तिपूर्वक तेओनोसपनो उमदो माल पोताना कोठारमा राखीने अवसर मेळवी ते मालनो बकरो करवा लाग्या.॥१६॥ ACANCCRACHANCHALCS For Private And Personal Use Only Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra वर्षमान ॥ ३८ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir द्रव्यं तदुत्पन्नमपीह तेषां । स प्रेषयामास समुत्सुकोऽरं ॥ न्याय्यं स्वलभ्यं लभते स्वयत्न-पदेSपि भूरि खलु वर्धमानः ॥ १७ ॥ मलबारादिदेशीय - मूव्यिापारिनिरयं । कारयामास सौहार्द | सुधामधुरया गिरा ॥ १७ ॥ निर्मलं सत्यवृत्तिं तं । ज्ञात्वा मुमुदिरेऽपि ते ॥ कीर्तिरेवं वितस्तारा - जितोऽस्य धनलाजदा ॥ १९ ॥ संप्रेषयामासुरथ प्रसन्नाः । क्रयाणकं भूरि सुविक्रयार्थ ॥ पूगीफलाद्यं विविधं च नित्यं । लाभाय तस्येद् च तेऽपि तूर्ण ॥ २० ॥ ते मालना वकराथी उपजेलं दव्य पण उत्सुकताथी कई पण विलंबविना तेओने मोकली देवा लाग्या. अने पोतानी मेहेनतना बदलामा तेमने व्याजवी हकशीनुं घणुं द्रव्य मळवा लाग्युं ॥ १७ ॥ एवी रीते तेमणे पोताना अमृत सरखां मधुर वचनोथी मलवार आदिक देशोना घणा व्यापारीओ साथै मित्राइ करी ।। १८ ।। ते वर्धमानशाहने कपटरहित तथा प्रमाणिक वृत्तिवाळा जोइने ते व्यापारीओ पण घणा खुशी थया. अने एवी रीते धननो लाभ आपनारी तेनी कीर्ति चोतरफ फेलावा लागी. ।। १९ ।। बळी ते व्यापारीओ पण खुशी थयाथका तेना लाभ माटे वेचवा माटे हमेशां सोपारी आदिक जात जातनुं घणुं करीयां तुरतातुरत अहीं ( भद्रावतीमां ) मोकलवा लाग्या. ॥ २० ॥ For Private And Personal Use Only चरित्रम्. ॥ ३८ ॥ Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirm.org Acharya Shri Kailasagarsur Gyanmandir वर्षमान चरित्रम, ॥३ ॥ स्वयानपात्रेण नवेन सोऽपि । तेषां समानाव्य सुबंदिरेऽत्र ॥ क्रयाणकबातमथो सुजातं । संविक्रयामास कृतप्रयत्नः ॥११॥ ऽव्यमेवमथ सोऽर्जयन् मुदा । रक्षयनिजकुटुंबमप्यलं ॥ जैनधर्मपरिदृष्टमानसः। कालमत्र गमांचकार च ॥ २॥ एवं प्रकुर्वतस्तस्य । व्यवसायं सुबुद्धितः॥ षण्मासीह व्यतिक्रांता। धर्मध्यानपरस्य च ॥१३॥ परमयावधि कापि । कथा नाथ श्रुतामुना ॥ स्वबंधोः पद्मसिंहस्य । यानपात्रविहारिणः ॥ २४ ॥ ते वर्धमानशाह पण पोताना नवा वहाण मारफते तेओना उंचा उंचा करीयाणाओनो जत्यो आ बंदरमा मगावीने प्रयत्नपूर्वक वेचवा लाग्या. ॥२१॥ एवी रीते द्रव्य जपार्जन करता, तथा हर्षपूर्वक पोताना कुटुंबर्नु पण सारी रीते रक्षण करता, अने जैनधर्मपते आनंदित हृदयवाळा ते वर्धमानशाह शेठ अहीं पोतानो समय निर्गमन करवा लाग्या. ॥ २२ ॥ एवी रीते उत्तम बुद्धिपूर्वक व्यापार करतांथका, तथा धर्मध्यानमा तत्पर रह्याथका तेना छ मास निकली गया. ॥ २३ ॥ परंतु 18 हजु सुधी वहाणमा चडीने (चीनदेशमा ) गयेला पोताना भाइ पद्मसिंहना कई पण समाचार तेणे सांभल्या नही. ॥२४॥ COR-LANGANA-%DHANKS For Private And Personal Use Only Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra पर्थमान ॥ ४० ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तेनास्य मानसं मग्नं । चिंतांभोधौ शनैः शनैः ॥ इतस्तत्राययौ चैकं । यानपात्रं तु चीनतः ॥१५॥ श्रुत्वाथ पोतागमनं च चीनतो । चातुः शुनोदंतसमुत्सुकोऽयं ॥ तत्पोतसांयात्रिको पार्श्वे । ग वा सोऽदमानसः ॥ २६ ॥ तेऽपि तं जगुरगूढमानसा । नोऽथ तत्र तव सुंदराकृतिः ॥ दृष्टिगोचरमगात्स बांधवो । बंदिरेऽश्विरमथागमिष्यति ॥ २७ ॥ सोऽपि तदनतो निशम्य तत् । पूरितः पुलकवृंदभतः ॥ संमदेन वदनं प्रफुल्लितं । धारयन्नथ गृहं समाययौ ॥ २८ ॥ अने तेथी ते वर्धमानशाहनुं मन धीमे धीमे चिंतारूपी समुद्रमां डुबवा लाग्यं. एवामां त्यां एक वहाण चीनदेशथी आव्युं. ।। २५ ।। एवी रीते चीनथी कोइ वहाण आव्यानुं सांभळीने गंभीर हृदयवाळा ते वर्धमानशाह पोताना भाइना शुभ समा चार ( मेळवावा माटे ) उत्सुक थयाथका ते वहाणना खलासीओ पासे जइ समाचार पूछवा लाग्या ।। २६ ।। सरल मनवाळा ते खलासीओए पण तेने कथं के, सुंदर आकृतिवाळा तमारा ते भाइ त्यां कंतान बंदरमां अमारी नजरे पड्या हता. अर्थात् अमोए तेमने त्यां जोया हता, अने ते हवे थोडा वखतमां अहीं आवशे ।। २७ ।। त्यारे ते वर्धमानशाह पण तेओना मुखमथी ते समाचार सांभळीने रोमांचना मिषथी हर्षवडे संपूर्ण थयाथका पोतानां विकस्वर मुखने धारण करता थका घेर आव्या ॥ २८ ॥ For Private And Personal Use Only X चरित्रम्. ॥ ४० ॥ Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagerul Gyanmandit वर्षमान चरित्रम, ३४१॥ इतस्तृतीयेऽह्निच यानपात्रकं । सपद्मसिंहं किल बंदिरेऽत्र तत् ॥ समाययौ कृष्टमिवोरुवांबया। श्रीवर्धमानाभिधवांधवस्य ॥ २ ॥ अथ कुटुंबयुतो गुरुबांधवः । सपदि सन्मुखमस्य समाययौ ॥ लघुरपोइ लघु प्रणनाम स । गुरुमिवोरुगुरुं निजबांधवं ॥३० ।। हृद्यमातबहुदर्षसमूहो-उदयश्रुदंत इह प्रससार ॥ बंदिरे तदुनयोरपि तूर्ण । दुग्धवारिनिजबंधुरबंध्वोः ॥ ३१ ॥ स पद्मसिंदः सुह. दाथ तेन । युतस्तदा यूलनचंगकेन । सन्मानितः स्वीय कुटुंबकेन । गृहं समेतो गुरुवांधवेन ॥३॥ एवामा ते श्रीवर्धमानशाह नामना बंधुनी भली इच्छावडे जाणे खेंचाइ आव्युं होय नही? एम ते वहाण पण पद्मसिंह सहित त्रीजे दिवसे ते बंदरमा ( भद्रावतीने किनारे ) आवी पहोंच्यु. ॥२९॥ त्यारे महोटा भाइ ते वर्धमानशाह पण तुरत कुटुंबसहित तेमनी सामे आव्या, अने त्यां ते न्हाना भाइ पद्मसिंहे पण तुरत गुरुनीपेठे पोताना ते वडिलबंधुने सारी रीते नमः स्कार कर्यो. ।। ३० ॥ध तथा जलनी मित्राइनीपेठे अत्यंत स्नेहवाळा एवा ते बन्ने भाइओनो हर्षनो समूह जाणे हृदयमा न मावाथी उभराइ गयो होय नही? तेम आंखोमाथी पडेला हर्षाश्रुना मिषथी तुरत ते बंदरपर फेलाइ गयो. ॥ ३१ ॥ पछी 18॥४१॥ ते समये ते पद्मसिंह पण पोताना कुटुंब तथा वडिल बंधुवडे सन्मानित थयायका पोताना ते यूलनचंग नामना मित्र सहित घेर आव्या. ॥ ३२॥ For Private And Personal Use Only Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailasagarsur Gyanmandir ॥४ ॥ विधाय पूजा परमेशितुश्च । स तोषयामास निजं सुमित्रं ॥ सुजोजनैस्तं विविधैर्विधिज्ञः । सन्मानपूर्व परमादरेण ॥ ३३ ॥ ततश्च बंधू कृतजोजनौ तौ । मित्रेण युक्तौ मुदितौ निविष्टौ ॥स पद्मासिंहो विनयावनम्रो । जगौ निजोदंतमथ स्वत्रातुः ॥ ३४ ॥ श्रुत्वा निखिलमुदंतं । लघुबंधोरितीह पद्मसिंहस्य ॥ मुमुदेऽथ वर्धमानो-मानां तच्चातुरी वीक्ष्य ॥ ३५ ॥ स्वकीयं निखिलोदंतं । वर्धमानोऽपि बुद्धिमान् ॥ गदित्वा बांधवं प्रीत्या । बंधुरोऽरंजयवृशं ॥ ३६ ॥ STREENAKA5455 पछी जिनेश्वरप्रभुनी पूजा करीने मर्यादाने जागनारा एवा ते पद्मसिंहशाहे पोताना ते उत्तम मित्रने सन्मानपूर्वक घणा आदरमानथी जातजातना उत्तम भोजनथी खुशी कर्यो. ॥ ३३ ॥ पछी ते बन्ने भाइओ भोजन करीने ते मित्रसहित हर्षथी बेठा. पछी ते पद्मसिंहशाद्दे विनयथी नम्र थइ पोतानुं वृत्तांत पोताना भाइने कही संभळाव्यु. ।।३।। एवी रीते पोताना न्हाना भाइ पद्मसिंहशाहनुं सर्व वृत्तांत सांभळीने तेनी अतिशय चतुराइ जोइ वर्धमानशाह खुशी थया. ॥३५॥ पछी बुद्धिमान अने स्नेहवाळा एवा ते वर्धमानशाहे पण पोतानुं सपळु वृत्तांत कहीने प्रीतिवडे पोताना ते भाइने बहु खुशी कर्या. ।। ३६ ॥ दू ॥४२॥ For Private And Personal Use Only Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra वर्धमान ॥ ४३ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वस्तुजातमथ यानपात्रत । उत्ततार निखिलं नियोगिनिः ॥ श्रक्षिपञ्च निजकोष्टके वरे । पद्मसिंह इढ बांधवान्वितः ॥ ३१ ॥ क्रयाणकानां क्रयविक्रयैरलं । व्यापारकार्य बहु वर्धितं तयोः ॥ तदीया किं बत विस्तृताजितः । कीर्तिस्तु वारांनिधिपार संगता ॥३८॥ सत्यकतां बांधवयोस्तयोरयं । सन्नीतिमार्ग स्वनिशं ह्यमुचतोः ॥ विलोक्य चित्तेऽतिचमत्कृतोऽजितो । व्यचिंतयद्यूलन चंगका निधः ॥ ३५ ॥ बंधुरौ बांधावेतौ । नूनं नीतिपरायणैौ ॥ धर्मनिष्टौ महीख्यातौ । धन तो यशसापि च ॥४०॥ पछी भाइनी साधे रही पद्मसिंहशाहे ते वहाणमांथी मजूरो पासे सघळो माल उतरावी अहीं पोताना सुंदर कोठारमां भर्यो. ॥ ३७ ॥ हवे सारी रीते मालनी लेवाली वेचवालीथी ते बन्ने भाइओना व्यापारनुं कार्य घणुं वधी गयुं. अने शुं जाणे तेनी ईर्ष्या होय नही ? एम चोतरफ फैलायेली तेओनी कीर्ति समुद्रने पेले पार पहोची ।। ३८ ।। हमेशां उत्तम नीतिना मार्गनो नही त्याग करनारा एवा ते बन्ने भाइओनुं सर्व बाबतमां उंचा प्रकारनुं प्रमाणिकपणुं जोड़ने मनमां अत्यंत आश्चर्य पामेलो ते यूलनचंग विचारखा लाग्यो के, ॥ ३९ ॥ खरेखर नीतिमां तत्पर, धर्मनी निष्टावाळा आ बन्ने उत्तम भाइओ घनथी तथा यशथी पण पृथ्वीपर मख्यात थयेला छे. ॥ ४० ॥ For Private And Personal Use Only चरित्रम्. ॥ ४३ ॥ Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Sh Kailasagarsur Gyanmandir बर्षमान चरित्रम ॥१४॥ अहो वैदेशिका विश्वे । विश्वस्ता एतयोः सदा॥व्यापारिणः स्वकीयानि। वस्तूनि प्रेषयंत्यरं ॥४१॥ विक्रयार्थ स्वलानाय । मन्त्रबारादिवासिनः ॥प्रेषयिष्येऽप्यहं चात्र । वस्तुजातं ममैतयोः ॥१२॥ ॥ युग्मं ॥ एवं चिंतयतस्तस्य । मास एको विनिर्ययौ ॥ ताभ्यां सन्मानितस्याथ । वाणिज्यं पश्यतस्तयोः ॥ ४३ ॥ अथैकदा यूलनचंगकोऽसौ । तं वर्धमानं खलु पद्मसंयुतं ॥ व्यजिझपत्स्वं नगर यियासुः । कृतांजलिः विनयावनम्रकः ॥४४॥ अहो ! मलबारआदिक देशमा रहेनारा सघळा परदेशी व्यापारीओ आ बन्ने भाईओपर विश्वास आवचाथी हमेशा पोताना लाभ पाटे पोतानो माल तुरत वेचवाने तेमनापर मोकले छ, माटे हुँ पण मारो माल ( वेचवा माटे) आ बन्ने भाइ ओने अहिं मोकलीश. ॥४१॥ ॥ ४२ ॥ एम विचार करतांथकां ते चन्ने भाइपोथी सन्मान पामेला, तथा तेश्रोनो व्यापार जोता एवा ते यूलनचंगनो एक मास वीती गयो. ॥ ५३॥ हवे एक दिवसे ते यूलनचंग पोताना नगरप्रते जवानी 18| इच्छाथी विनयथी नम्र थइ हाथ जोडी पलसिंहसहित ते वर्धमानशाहने विनंति करवा लाग्यो के, ॥ ४? it ॥४४॥ For Private And Personal Use Only Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailasagarsur Gyanmandir वर्धमान चरिश्रम युवयोमहर्यक । रख बनिश भाव"s६ ॥ कुर्वतोः स जो प्रियौ सुसहृदो ममोत्तमौ । याम्यहं जनपदे निजे इतं ॥ सत्यतां च युवयोर्विलोक्य वै। नि- श्चितं मनसि मे चमत्कृतः ॥ ४५ ॥ प्रेषयिष्य इद वस्तुवृंदकं । चीनतोऽत्र युवयोमहर्यकं ॥ क्षौ. १५॥ मवस्त्रवरशर्करादिकं । विक्रयार्थमभितोऽतिलानदं ॥४६॥ कुर्वतोः सपदि विक्रयं च वां । तत्कयाणकगणस्य लाजतः ॥ लाभ एव ह्यनिश भविष्यति । सत्यतैकपरयोर्धनप्रदः ॥४७॥ कृतविनिश्चय एवमथो गतो। जनपदे स निजे सुहृयुत्तमः ॥ उलयबंधुवरामितसत्कृतः । सुधनिको धनलाजसमुत्सुकः ॥ ४० ॥ हे मारा प्रिय अने उत्तम मित्रो! हवे हुं तुरत मारा देशमा जउं . तमो बन्नेनुं प्रमाणिकपणुं जोइने खरेखर ढुं मारा 2 मनमा आश्चर्य पाम्यो छु. ।। ४५ ।। हवे हुँ तमो बन्नेने सर्व रीते अतिलाभ आपनारो तथा घणी किम्मतनो रेशमी वस्त्र तथा साकर आदिक जत्थाबंध माल चीनथी अहीं वेचवामाटे मोकलतो रहीश. ॥ ४६॥ ते जत्थाबंध मालतुं नफाथी तुरत वेचाण करवायी तमारा प्रमाणिकपणाथी तमोने हमेशां द्रव्य आपनारो लाभज थशे. ।। ४७ ॥ एवी रीते करार करवाबाद ते बन्ने उत्तम भाइओथी अत्यंत सत्कार पामेलो ते द्रव्यवान उत्तम मित्र यूलनचंग धनना लाभनी उत्कंठाथी पोताना चीनदेशमा गयो. ॥४८॥ %EXAMPARANASHAKA CATEGGARALACROCALCCARE ४॥४५॥ For Private And Personal Use Only Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra वर्षमान - ॥ ४६ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रथायं चीनदेशीय - व्यापारिणां शिरोमणिः ॥ प्रेषयामास कोटीश - स्तयोः क्षौमादिकं बहु ॥४९॥ तावपि प्रातरौ सत्य - परौ तद्विक्रयं मुदा ॥ चक्रतुः कृतपुण्यौ च । व्यापारैकहृदौ सदा ॥ ५० ॥ एवं स्तोकेन कालेन । पद्मयालिंगितावुजौ ॥ सत्यनीतिवशीभृत-स्वांतयेवाथ बांधव ॥ ५१ ॥ विगतमददौ तौ बांधवौ वंधुरांगौ । मधुरतरवचोभिः प्रीणयंतौ जनौघं ॥ अमलकमलयानं सर्वदालंकृतौ च । गमयत इति कालं प्रीणितार्थप्रगीतौ ॥ ५२ ॥ त्यारबाद चीनदेशना व्यापारीओमां मुख्य एवो आ करोडपति यूलनचंग ते बन्ने भाइओपर रेशमआदिक घणो माल मोकलवा लाग्यो. ।। ४९ ।। त्यारे पुण्यशाली तथा फक्त व्यापारमांज एकमनवाळा ते बन्ने भाइओ पण हमेशां प्रमाणिकपणे हर्षथी तेनुं वेचाण करवा लाग्या. ।। ५० ।। एवी रीते थोडा समयमांज तेओना प्रमाणिकपणाथी हृदयपूर्वक जाणे तेओने वश थइ होय नही? एवी लक्ष्मीवडे ते बन्ने भाइओ आलिंगित थया. अर्थात् तेओए घणुं द्रव्य मेळव्युं. ।। ५१ ।। एवीते गर्वरहित हृदयवाळा, मनोहर शरीरवाळा, अति मधुर वचनोथी लोकोना समूहने खुशी करनारा, तथा निर्मल लक्ष्मीथी हमेशां सारी रीते शोभायुक्त थयेला, अने ( दानथी ) खुशी ययेला याचकोवडे जेमनी कीर्ति गवाह रहेली छे, एवा ते बन्ने भाइओ पोतानो समय निर्गमन करवा लाग्या. ।। ५२ ।। For Private And Personal Use Only चरित्रम्. ॥ ४६ ॥ Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra वर्धमान ॥ ४७ ॥ www.kobatirth.org. इति श्रीमद्विधिपगबाधी श्वरभट्टारक शिरोमणि श्रीमत्कल्याणसागरसूरीश्वर पहालंकार श्रीमदमरसागरसूरिविरचिते श्रीमलाल गोत्रीयश्राद्धवर्य श्री वर्धमान पद्मसिंह ष्टिचरित्रे तदीयव्यापारलमी प्राप्तिवर्णनो नाम तृतीयः सर्गः समाप्तः ॥ श्रीरस्तु ॥ ॥ अथ चतुर्थः सर्गः प्रारभ्यते ॥ इतश्च चांपसिंहाख्यो । बांधवोऽथ तयोस्तदा ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रिषाणाभिधग्रामे ॥ वसतिस्म कुटुंब युक् ॥ १॥ एवी रीते श्रीमान् विधिपक्षगच्छाधीश्वर भट्टारकशिरोमणि श्रीमान् कल्याणसागर सूरीश्वरना पाटने शोभावना श्रीमान् अमरसागरवरिजीए रचेला श्रीमान् लालणगोत्रना श्रावकोत्तम श्रीवर्धमान अने पद्मसिंह शेठना चरित्रमां तेओनो व्यापार तथा लक्ष्मीप्राप्तिना वर्णनरूप श्रीजो सर्ग समाप्त थयो । श्रीरस्तु ॥ ॥ हवे चोथा सर्गनो प्रारंभ थाय छे. ॥ हवे ते वखते ते वर्धमानशाह तथा पद्मसिंहशाहनो चापसिंह नामनो भाइ आरीखाणामां कुटुंबसहित रहेतो हतो. ॥ १ ॥ For Private And Personal Use Only चरित्रम्, ॥ ४१ ॥ Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirm.org Acharya Shri Kailasagarturl Gyarmandie पर्षमान-5 तत्र चैकोऽवसत् श्रेष्टी । क्यों नागडगोलजः ॥ राज्यसिंहानिधो धीमा-नोशवंशविजूषणः ॥२॥ 18चरित्रम. तस्यैका कन्यका चासी-पसौजाग्यभूषिता ॥ परिणीता युवा तत्र । चापसिंहांगजन्मना ॥३॥ ॥४०॥ जाताथ मैत्री प्रवरैतयोस्ततो। वैवाहिकीयातिविशुद्धचेतसोः ॥ श्रीराज्यसिंहाख्यसुचापसिंहयोः । क्रमेण दुग्धांबुनिभा प्रसिझयोः ॥४॥ अथैकदा तं सुहृदं स्वकीयं । स राज्यसिंहः खलु चांपसिंह ॥ जगाद चेत्तेऽनुमतिस्तदावा । नद्रावती याव इतः प्रसिकां ॥५॥ CANCIE+SA-ALK -KA-NCRACHARACANCIRCMA वळी ते गाममा नागडा गोत्रनो राज्यसिंह नामे बुद्धिमान तथा ओशवाळोना वंशमा आभूषण सरखो एक उत्तम शेठ वसतो हतो. ॥ २ ॥ ते राज्यसिंहने रूप तथा सौभाग्यथी विभूषित थयेली (सेवंत्रि नामनी) एक पुत्री हती. अने तेणीनुं त्यां ते चापसिंहना पुत्र ( अमीचंदसाथे) लग्न थयुं हतुं. ॥३॥ त्यारबाद अति शुद्ध मनवाळा तथा प्रसिद्ध एवा ते राज्यसिंह अने चापसिंह वचे अनुक्रमे वेवाइओना संबंधवाळी दूध अने जलसरखी गाढ मित्राइ थइ. ॥ ४ ॥ हवे एक दिवसे ते राज्यसिंहे ते पोताना मित्र चापसिंहने कयु के जो तमारी सलाह होय तो आपणे बन्ने अहींथी प्रसिद्ध एवी भद्रावती नगरीमा जइये. ॥५॥ ॥४ ॥ ४ For Private And Personal Use Only Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirm.org Acharya Shri Kailasagarsur Gyanmandir पर्वमान चरित्रम, व्यापारतो मां समुपार्जयेव । प्रयत्नतो नौ तव बांधवाविव ॥ अव्यं विना ही तृणतुल्यतां व इन् । नो मानमाप्नोति जनः कदाचित् ॥६॥राज्यसिंहवचनं निशम्य त-चांपसिंह शति तं जगा. एद वथ ॥ मित्र सत्यवचनं त्वदीयकं । मह्यमेतदनिरोचते हितं ॥७॥ विचार्येति गतावेतौ । पुरी भद्रावती प्रति ॥ स्वीयखीयकुटुंबेन । सहितौ च शुन्नेऽहनि ॥७॥ मिलित्वा सुहृदोस्तत्र । वाणिज्य कुर्वतोस्तयोः ॥ कियान् कालो व्यतीतश्च । व्यार्जनैकचित्तयोः॥ ए॥ AUCREACHECACARKECRECRUST ___ अने (त्यां ) नमारा ते ( वर्धमान अने पद्मसिंह नामना ) बन्ने भाइओनीपेठे आपणे बन्ने प्रयत्नवाला व्यापारथी लक्ष्मी उपार्जन करीये. केमके द्रव्यविना तृणनी तुल्यताने धारण करनारो माणस अरेरे! कोइ पण वखते मान पामतो नथी. ॥६॥ एवी रीतर्नु राज्यसिंहनुं ते वचन सांभळीने चापसिंहे तेने कयु के, हे मित्र ! तमाएं कहेवू सत्य अने हितकारक छे, अने ते मने रुचे छे. ॥ ७ ॥ एम विचारीने तेओ बन्ने पोतपोताना कुटुंबसहित सारे दिवसे भद्रावती नगरीमां गया. ॥ ८॥ पछी त्यो साथे मळीने व्यापार करता तथा द्रव्य उपार्जन करवामां एकमनवाग एवा ते चन्ने मित्रोनो केटलोक समय 15 व्यतीत थयो. ॥९॥ ॥४ ॥ For Private And Personal Use Only Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ S h ana Kenda www.kobaert.org Acharya Shri Kailassagersur Gyanmand पर्धमान ५०॥ इतस्तत्र समायाता। विधिपक्षगणाधिपाः ॥ शिष्ययुक्ता महीपीठे। विहरंतःप्रजावकाः ॥ १०॥ बोधयंतो जनांजोज-वजालिं नानुमानिव ॥ कल्याणसागरेत्याख्याः। प्रख्याता वरसूरयः ॥ ११ ॥ ॥ युग्मं ॥ तेषां निशम्यागमनं त्वमान-वर्धापनोऽवर्धत वर्धमानः॥ हर्षेण संवर्धितनुरिऽव्यः । सू. रीश्वरं नंतुमथागमत्सः ॥ १२ ॥ स पद्मसिंहोऽपि च पद्मयाल-मालिंगितः सूरिनिनसयैव ॥ तत्रागतः सजनसंगतोऽरं । युक्तः कुटुंबेन च संमदेन ॥ १३ ॥ GRECRUSTRICIRCROSECS एवामां विधिपक्षगच्छ (अंचलगच्छ) ना नायक, महाप्रभाविक प्रख्यात अने शिष्यसमुदाय सहित श्रीकल्याणसागर नामना उत्तम आचार्य पृथ्वीतलपर विहार करता थका, तथा सूर्यनीपेठे माणसोरूपी कमलोना समूहनी पंक्तिने प्रबोधित करता थका ते भद्रावती नगरीमा पधार्या ॥ १० ॥१२ ।। तेमनुं पधार, सांभळीने म्होटी वधामणी पामेला, तथा जेनुं द्रव्य घणु वृद्धि पामेल छे, एवा ते वर्धमानशाह हर्षवडे वृद्धि पाम्या, अर्थात् घणो आनंद पाम्या, अने ते आचार्यमहाराजने चांदवामाटे दि॥५०॥ आव्या. ॥ १२ ॥ लक्ष्मीवडे सारी रीते आलिंगित थयेला ते पद्मसिंह पण ते आचार्यश्रीने वांदवानी इच्छाथीज सज्जनोसाथे 18| कुटुंबसहित हर्षपूर्वक त्यां आव्या. ॥ १३ ॥ For Private And Personal Lise Only Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirm.org Acharya Shri Kailasagarsur Gyanmandir बमान चरित्रम, स चांपसिंहोऽपि च राज्यसिंहः । समागतः स्वमिदावखितः ॥ एवं त्वनेकेऽत्र मुदा समेताः। सु. श्रावकाः सूरिवरं प्रणतुं ॥ १४ ॥ धर्मलाभमनितोऽथ लानदं । सूरयो गतमदास्तदा ददुः ॥ सर्वसंकटघटानिवारकं । तारकं किल नवार्णवादरं ॥ १५ ॥ श्रथो निषामेषु जनबजेषु । धर्मोपदेशश्रवणोत्सुकेषु ॥ सूरीश्वरोऽपि श्रवसा सुधानं । धर्मोपदेशं च मुदा चकार ॥१६॥ अपाररत्नाकरसन्निभो. ऽस्ति । संसार एषोऽमितसंकटोदः॥ कषायकहोलसमाकुलोऽयं । विलासिनीनोगसुनकचकः ॥ १७ ॥ LOCASHIKARANAHARA SHERLESSKAGAS पोताना धनना मदथी गर्विष्ट थयेला राज्यसिंह पण चापसिंहनी साथे त्यां आव्या. अने एवी रीते ते आचार्यश्रीजीने चांदवामाटे त्यां अनेक उत्तम श्रावको हर्षथी आव्या. ।।१४।। ते वखते मदरहित एवा आचार्यमहाराजे पण सर्व संकटोना समूहने निवारनारो, अने संसारसमुद्रथी खरेखर तुरत तारनारो एवो धर्मलाभ (तेओने) आप्यो. ॥१५॥ पछी धर्मोपदेश सांभळवाने उत्सुक थयेला माणसोना समूहो ( त्यां ) बेठाबाद ते आचार्यमहाराज पण हर्षथी कर्णोने अमृतसरखो धर्मोपदेश करखा लाग्या. ॥१६॥ आ संसार अपार महासागरसरखो छे, तेमां पारविनानां दुःखोरूपी जल भरेलुं छे. अने कषायोरूपी मोजाओथी ते उछळी रहेलो के, अने स्वीओना भोगोरूपी जलचर जंतुओथी व्यापेलो छे. ॥ १७ ॥ ॥५१॥ For Private And Personal Use Only Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shah Jain Archana Kenda www.kobatm.org Acharya Sh Kalasagarsur Gyarmand चरित्रम, पर्षमान- धर्मास्त्वनेके किल कर्कराजाः । सुशर्कराणामभितो विकीर्णाः ॥ संत्यत्र निःसारतया प्रसिद्धाः। कौलेयकाद्या बहिरेव रम्याः ॥ १० ॥ रत्नबुद्धिमधिकृत्य तेष्वपि । बालिशा अनिशमाऽयंति तान् ॥५ ॥ ॥ पुःखनाज इद ते परं सदा । दुर्विषानविषयव्यथाकुलाः॥ १५ ॥ दुष्कृतान्यतनु ते तु तन्वते। नित्यमेव विषयेषु लोलुपाः ॥ संकटं विकटमत्र कार्दमाः । कीटका व सहंत एव ते ॥ २०॥ विषयसेवनतोऽथ परत्र ते । नरकसंकटसंगमिनोंगिनः॥ अमितदुःखपरंपरयाकुला। अनुजवंति जवाकुरमन्वहं ॥१॥ __ तेमा खरेखर वेळुना कांकराओनी पेठे नास्तिकवाद आदिक अनेक धर्मो चोतरफ विखरायेला छे, के जेओ उपरउपरथी मनोहर देखाताथका निःसारपणाथी प्रसिद्ध छे. ।। १८ ॥ तेवा ( कांकरासमान) निःसार धर्मोमां पण रत्ननी बुद्धि लावीने अज्ञानीओ हमेशा तेओनो आदर करे छे, परंतु तेओ हमेशां कातिल विषसरखा विषयोना दुःखथी व्याकुल वइ अहीं दुःख पामे छे. ।।१९।। वळी तेओ हमेशां विषयोमा आसक्त थइ खरेखर घणां दुष्कार्यों करेछे, तथा कादवना कीडाओनीपेठे तेओ आ लोका असह्य संकटो सहन करे छे. ।२०। वळी विषयोना सेवनथी ते प्राणीओ परलोकमां पण नरकना दुःखना संगमवाळा यायछे, अने अतिशय दुःखोनी परंपराधी व्याकुल थयायका हमेशा संसारना अंकुराने अनुभवे छे, अर्थात् संसारमा परिभ्रमण कर्या करे छे.॥२१॥ -GECANCI-CRACCACTECHOON ॥५ ॥ For Private And Personal Lise Only Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirtm.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir चरित्रम् वर्षमान परमवाप्तविवेककलामल-वरविलोचन एव विलोकते ॥ अधिगतोरुगुरूक्तवचोंजनो। जिनसुशास नकौस्तुभरत्नकं ॥२२॥ रत्नमेतदधिगत्य गताधि-व्याधयो नविजना जनतानां ॥ पूज्यनावमजि॥५३॥ यांति जगत्यां । जन्ममृत्युजुजगप्रविमुक्ताः॥२३॥ दान जावशुनशीलतपोभि-जैनधर्म इह भाति चतुर्धा ॥ भाव एव खलु मुख्यतयेषु । मुक्तिदस्तु गदितोऽत्र जिनेशैः ॥२४॥ दानशीलतपसामपि याति टू। निष्फलत्वमनितश्च सुयत्नः ॥ अंगिनामिह विना शुजनावं । कर्षकस्यव विना जलदोघं ॥ २५॥ परंतु जेणे विवेकरूपी मनोहर, निर्मल अने उत्तम चक्षु मेळवेला छे, तथा (ते चक्षुभोमां ) जेणे सुगुरुना वचनोरूपी अंजन आंजेलुं छे, तेज माणस (आ संसाररूपी महासागरमा रहेला) जिनेश्वरप्रभुना उत्तम शासनरूपी कौस्तुभरत्नने जोइ शके छे. ॥२२।। आ जिनशासनरूपी रत्नने मेळवबाथी भव्यलोको आधिव्याधियी रहित थइ आ जगतमा जन्म अने मृत्युरूपी सर्पथी मुक्त थयाथका लोकोना पूजनीयपणाने ( मोक्षपणाने) पामे छे. (केमके मणीना प्रभावथी सर्पनो भय नष्ट थाय छे, ते युक्त छे.) ॥२३॥ अहीं दान, भाव, उत्तम शील अने तपथी जैनधर्म चार प्रकारनो शोभे छे, तेमां पण निश्चे भावनेज अहीं जिनेश्वरोए मुख्यपणे मोक्ष आपनारो कह्यो छे. ॥ २४ । वक्री वरसादना समूहविना खेतीकारना प्रयत्ननीपेठे अहीं शुभभाचविना पाणीओनो दान, शील अने तपसंबंधि चारे कोरथी करेलो यत्न निष्फलपणाने पामे छे. ॥ २५॥ CHAGUNGLEASE ॥५३॥ For Private And Personal Use Only Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagerul Gyanmandit पर्थमान ॥५४॥ MAHARMA-CA भाव एव भविनां भवार्णवा-तारकः कुगतिवारको मतः॥ तीर्थयात्रिकजनोऽपि जावत-स्तूर्णमेव बनतेऽपवर्गकं ॥२६॥ न्यायोपार्जितवित्त एव नविको भावेन यात्रा शुना। श्रीशत्रुजयरैवतार्बुदमहासंमेतशैलादिषु ॥ कुर्वन्निर्मलमानसो जिनवरं संपूजयन् नक्तितः। संप्राप्नोति सदैव मुक्तिमहिलासौख्यं क्षणेनाक्षयं ॥ २७॥ चतुर्विधेन संघेन । युक्ता ये नविनो जनाः ॥ कुर्वते तीर्थयात्रा ते । तीर्णा एव नवार्णवात् ॥ २७ ॥ सफलमेव धनं धनिनार्जितं । तदिह संघसुजक्तिनियोजितं ॥ सकलतीर्थसमागमनांचितं । जिनवरेंद्रसुत्नक्तिपवित्रितं ॥ ए॥ भावज भव्यजनोने संसारसमुद्रथी तारनारो तथा कुगतिने निवारनारो मान्यो छे. तीर्थयात्रा करनारो माणस पण भावथीज तुरत मोक्ष मेळवे छे. ॥ २६ ॥ न्यायथीज धनने उपार्जन करनारो तथा निर्मल मनवाळो भव्यजीव भावथी शत्रुजय, रैवताचल, आयु तथा महान सम्मेतशिखर आदिक तीर्थोमा शुभ यात्रा करतोथको, अने भक्तिथी हमेशा जिनेश्वरप्रभुने पूजतोथको क्षणवारमा मुक्तिरूपी स्त्रीना शाश्वतां मुखने पामे छे. ॥२७॥ वळी जे भव्य माणसो चतुर्विध संघसहित तीर्थयात्रा करे छे, तेओने आ संसारसमुद्रथी तरीगयेलाज जाणवा. २८। आजगतमा संघनी उत्तम भक्तिमाटे उपयोगा लीधेलु, तथा सर्व तीर्थोनी यात्राथी शोमितुं थयेलं, तेमज जिनेश्वरमभुनी उत्तम भक्तिथी पवित्र थयेलु एवुज धनवाने उपार्जन करेलुं धन अहीं सफल (कहेवायछे.)।२९) ॥५४॥ For Private And Personal Use Only Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shanavan Archana Kenda www.kobanrm.org Acharya Sh Kailasagas Gyanand मान- चरित्रम ॥५५॥ *OCALCULACE परनवार्जितपुण्यनिबंधन-रधिगतं गतपापनिबंधनं ॥ इह धनं निधनं सकलैनसां। नवति वै नववैज- वदं च तत् ॥ ३० ॥ परजवार्जितपापनिबंधन-रधिगतं बत पुण्य निबंधनं ॥ इह धनं निधनं सुकृतां च त-नवति तापदपापदमंगिनां ॥ ३१ ॥ पुण्यानुबंधिपुण्येन । येनोपार्जितमर्थकं ॥ संघार्थ कुरुतेsमोघं । सोऽघसंघातघातकं ॥ ३२॥ पुरापि वस्तुपालादि-श्राद्धवर्यैः शुजार्थिनिः॥ स्वीयार्थ सार्थक चके । संघजक्त्या महाशयः ॥ ३३ ॥ परभवां उपार्जन करेला पुण्यना निबंधनोथी मेळवेलु, अने पापना निबंधनो विनानुं ते धन आ लोकमां सर्व पापोने नाश करनारूं तथा संसारसंबंधि वैभव आपनारुं थाय छे. ।। ३० ।। परभवां उपार्जन करेला पापना निबंधनोथी मेळवेढुं पुण्यना निबंधनवाडं ते धन आ लोकमां पाणिओने पुण्योनो नाश करनारुं तथा संताप आपनारां पापोने आपनारुं थाय छे. ॥ ३१ ॥ परंतु जे माणसे पुण्यानुबंधी पुण्यवडे धन उपार्जन करेलुं छे, ते माणस पापोना समूहने नाश करनारा ते ध*नने संघना कार्यमाटे सफल करे छे. ॥३२ ।। पूर्वे पण पुण्यना अर्थी तथा महान आशयवाळा वस्तुपालआदिक उत्तम श्राव 18] कोए संघनी भक्तिवडे पोताना धनने सफल कर्यु छ. ॥ ३३ ॥ ॥५५॥ For Private And Personal use only Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra पर्थमान ॥ ५६ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kallassagarsuri Gyanmandir तीर्थयात्रिकजनांहिपांसवोऽपांसुलांगिकलकंठकंदले ॥ मुक्तिमुक्तवरमाल मालिका - माल्यराजिरिव रेजिरेऽभितः ||३|| यादिनाथचरणांबुजार्चितं । चर्चितं वरसुरेश्वरव्रजैः ॥ भारते निरुपमं जिनेश्वरैरत्र वै निगदितं गदापदं ॥ ३५ ॥ तीर्थ शत्रुंजयाहान- माह्वानमिव संपदां ॥ अंतरंगोप्रशत्रूणां । सर्वदा जयकारकं ॥ ३६ ॥ युग्मं ॥ त्रिलोकमध्येऽपि न तत्समं परं । तीर्थ जत्रांनो निधिपोतसन्निनं ॥ मुक्ताधयः सिद्धगिरा विदामिता । जाता जनाः सिद्धिवधूवृता मुदा ॥ ३७ ॥ तीर्थयात्रा करनारा माणसना चरणनी रज निष्पापी प्राणिओनाज मनोहर कंठमां चोटे छे। अने ते जाणे चोतरफथी सुक्तिरूपी स्त्रीए पहेरावेली वरमालानी श्रेणिना गुंथेलां पुष्पोनी पंक्ति होय नही ? तेम शोभे छे. ||३४|| आ भरतक्षेत्रमां श्रीऋषभदेवप्रभुना चरणकमलोथी पूजायेलं, तथा उत्तम इंद्रोना समूहोथी चर्चित थयेलं, अने रोगोने दूर करनाएं, तथा संपत्तिना आमंत्रणसरखं शत्रुंजय नामनुं तीर्थ जिनेश्वरोए अनुपम कहेलुं छे. तथा ते तीर्थ हमेशां ( कषायोरूपी ) भयंकर अंतरंग शओनो जय करनारुं छे. ।। ३५ ।। ३६ ।। आ संसाररूपी समुद्र (तरवामां ) वहाणसरखं तेना जेतुं बीजुं तीर्थ त्रणे लोकमां पण नथी. आ सिद्धगिरिपर अनंता मनुष्यो व्याधिरहित थइ हर्षथी मुक्तिरूपी स्त्रीने वरेला छे. ॥ ३७ ॥ For Private And Personal Use Only चरित्रम्. ॥ ५६ ॥ Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ She Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Sh Kallassagarsur Gyanandit वर्धमान चरित्रम्, १५॥ www.kabaniem.org धन्य एव धनिको धनव्ययं । तीर्थ अत्र विदधाति धार्मिकः ॥ कश्चिदंगजविको जवार्णवाऽपारपारगमनेन्जयांगजाक ॥ ३० ॥ संघ एष विधिना चतुर्विधः । पूजितोऽत्र परिपूजनीयतां ॥ पू. जितो जिनवरैरपीहितां । स्वचित्तनविनां प्रयवति ॥ ३७॥ प्रथमतीर्थकरांगसमुनव-जरतभूपतिना प्रकटीकृतं ॥ गणधरेंडसुनामपवित्रित-मसुरनिर्जरनाथनमस्कृतं ॥ ४०॥ प्रवरतीर्थमिदं प्रमदप्रदं । विकटसंकटसंगविदारकं ॥ निकटसिकिवधूसकटाक्षितो । नविक एव जनः परिपश्यति ॥४१॥ युग्मं ॥ संसारसमुद्र ने पेले पार पहोंचवानी इच्छावाळो कोइक धर्मात्मा भविक अने धन्य एवोज धनवान माणस आ तीर्थमा ( पोताना ) धननो व्यय करे छे. ॥ ३८ ॥ जिनेश्वरोए पण पूजेला एवा आ चतुर्विध संघने अहीं विधिपूर्वक पूजवाथी ते स्वच्छ हृदयवाळा भव्योने इच्छित पूजनीयपणुं अर्थात् मोक्ष आपे छे. ॥ ३९ ॥ श्रीआदिजिनेश्वरना पुत्र भरतराजाए प्रकट करेलु, अने गणधरेश जे पुंडरीकजी तेना नामथी पवित्र धयेलु (पुंडरिकगिरिनामवाळु) तथा असुरेंद्रो अने देवेंद्रोथी नमस्कार 13॥५॥ करायेलु, हर्ष आफ्नारु, भयंकर संकटोना संगने कापी नाखनारुं आ उत्तम तीर्थ छे, अने एवा आ तीर्थने नजीक रहेली मुक्तिस्वीथी सारी रीते कटाक्षित थयेलो भव्य प्राणीज जोइ शके छे. ॥४०॥४१॥ For Private And Personal Use Only Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirm.org Acharya Shri Kailasagarsur Gyanmandir वर्षमान ॥५ ॥ SA-ATA-CA वरगिरेमहिमानममानकं । न बत वर्णयितुं ह्यलमस्य तु ॥ प्रवरकेवलबोधसुबंधुरो। जिनव. रोऽपि वरो विबुधार्चितः ॥ ४२ ॥ वधविधायिजना विविधा अपि । गिरेरदो रजसा विरजीकृताः॥ सपदि मुक्तिरमारमणीयता-सुखसमागमसंकलिता बन्नुः ॥ ४३ ॥ राजादनीनामसुपादपोऽत्र । प. विलितः श्रीवृषभध्वजस्य ॥ अधःस्थितस्योरुपदव्येन । भव्यांगिसंतापनिवारकोऽस्ति ॥ ४४ ॥ यो. गिनोऽत्र सततं गताधयो । ध्यानयुक्तहृदया दयान्विताः ॥ रागमुक्तहृदया थपि स्मृता। मुक्ति| चारुमहिलातिरागिणः ॥ ४५ ॥ उत्कृष्ट केवलज्ञानथी शोभता, अने देवोथी पूजायेला एवा उत्तम जिनेश्वरप्रभु पण आ उत्तम गिरिराजना अगणित महिमाने वर्णववाने खरेखर समर्थ नथी. ॥ ४२ ॥ अहो! हिंसा करनारा विविध प्रकारना मनुष्यो पण आ गिरिराजनी रजवी निर्मल थयाथका तुरत मुक्तिस्त्रीनी मनोहरताना सुखना समागमवाळा थयाथका शोभे छे. ।। ४३ ॥ आ तीर्थपर रायणनामर्नु जे उत्तम वृक्ष छे, ते तेनी नीचे समवसरेला श्रीऋषभदेवप्रभुना मनोहर वे चरणोयी पवित्र थयुथकुं भव्यजनोना संतापर्नु निवारण करे छे. ॥ ४५ ॥ वळी आ तीर्थमा दयालु अने आधिरहित थयेला योगिओ हमेशा ध्यानयुक्त हृदयवाळा थइने रहे छे, तथा रागरहित हृदयवाळा एवा पण ते योगिओ मोक्षरूपी मनोहर स्वीना अति रागवाळा देखाया छे. ॥ ४५ ॥ ॥५ ॥ For Private And Personal Use Only Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirm.org Acharya Shri Kailassagerul Gyanmandit | *चरित्रम. ॥५ ॥ KHEKAS संघसेवन विधायको नरो। वित्तचित्तवरपात्रयोगतः॥ मुक्तिरम्यरमया गतामयो। वर्यते वरतरागिरागया ॥ ४६॥ युगादिजिनेशपदोः शरणं । तरणं तु जवार्णवतोऽनिहितं ॥ चरणांचितचारुमुनेश्चरणं । शरणीकरणीयमिदोरु गिरौ ॥ ४ ॥ लजते खलु योऽत्र गिरौ पदवीं । वरसंघपतेल भते सुपदं ॥ तततीर्थपतेः सततं स ततं । त्रिदशाधिपतेरपि संमददं ॥ ४ ॥ धन, हृदय तथा उत्तम पात्रना योगथी संघनी सेवा करनारो माणस नीरोगी (कर्मोरूपी रोगथी रहित) थयोथको अति उत्तम मनुष्योप्रते राग धरनारी मुक्तिरूपी उत्तम स्त्रीसाथे वरे छे. ॥ ४६ ॥ आ उत्तम गिरिराजपर श्रीऋषभदेवप्रभुना चरणोनुं शरण संसारसमुद्रथी तरवारूप कहेलुं छे. तेमज अहीं चारित्रथी शोभता उत्तम मुनिराजना चरण शरणुं करवं. ॥४७॥ वळी | आ गिरिराजपर जे माणस उत्तम संघपतिनी पदवी मेळवे , ते माणस हमेशा इंद्रने पण हर्ष आपनारा तथा विस्तारवाळा 18| विस्तृत तीर्थपतिना उत्तम पदने मेळवे छे. अर्थात् ते तीर्थकरपद प्राप्त करे छे. ॥४८॥ AMARHICALCA ॥५ ॥ For Private And Personal Use Only Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirtm.org Acharya Shri Kailasagarsur Gyanmandir चरित्रम. वर्षमान-3 श्रीशत्रुजयतीर्थचारुमहिमा संसारसंतारक-स्तीर्थेशैर्गदितः श्रुतोऽपि नविना कल्पपुमानो जुवि॥ धन्या एव विलोकनं गिरिपतेरस्यात्र कृत्वादरात्। साफल्यं निजनेत्रयोर्विदधते द्रव्यव्ययेनापि च ॥६ ॥ ॥ ४५ ॥ इति श्रीमद्विधिपक्षगडाधीश्वरजट्टारकशिरोमणिश्रीमत्कल्याणसागरसूरीश्वरपट्टालंकारश्रीमदमरसागरसूरि विरचिते श्रीमहालणगोत्रीयश्राद्धवर्यश्रीवर्धमानपद्मसिंहश्रेष्टिचरित्रे श्रीक. व्याणसागरसूरिकृतोपदेशशत्रुजयतीर्थमाहात्म्यवर्णनो नाम चतुर्थः सर्गः समाप्तः ॥ श्रीरस्तु.॥ ANS ACCO5C श्रीशत्रुजय तीर्थनो मनोहर महिमा तीर्थंकरप्रभुओए संसारमाथी तारनारो कह्यो छे. अने सांभळवाथी पण भव्योने ते महिमा आ पृथ्वीपर कल्पवृक्षसमान थाय छे. माटे अहीं द्रव्य खरचीने पण धन्य प्राणीओज आदरपूर्वक आ गिरिराजनुं दर्शन करीने पोताना नेत्रोनी सफलता मेळवे छे. ॥ ४९ ॥ एव रीते श्रीमान् विधिपक्षगच्छाधीश्वर भट्टारकशिरोमणि श्रीमान् कल्याणसागर सूरीश्वरना पाटने शोभावनारा श्रीमान् अमरसागरमूरिजीए रचेला श्रीमान् लालणगोत्रना श्रावकोत्तम श्रीवर्धमान अने पद्मसिंह शेठना चरित्रमा श्री कल्याणसागर मूरिजीए करेलो उपदेश तथा शत्रुजयतीर्थना माहात्म्यना वर्णनवाळो चोथो सर्ग समाप्त थयो. ॥ श्रीरस्तु. ।। -SERIALSCROLO ॥६ ॥ For Private And Personal Use Only Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra बर्धमान - ॥ ६१ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ अथ पंचमः सर्गः प्रारभ्यते ॥ देशनांते नमस्कृत्य । सूरिं कल्याण सागरं ॥ वर्धमानो जगादाथ । वर्धमानो मुदाजितः ॥ १ ॥ संनिपीय तब देशनामृत-मद्य कर्णपुटतो ममाजवत् ॥ शांतिरेव जवतापवारिणी । मानसेऽमित सुखौघकारिणी ॥ २ ॥ तीर्थनाथमहिमानममानं । सन्निशम्य जगवन्ननधं तं ॥ वंदनाय मम नंदति तस्य । मानसं ह्यमितमोदसमूहं ॥ ३ ॥ || हवे पांचमा सर्गनो प्रारंभ थाय छे. ॥ हवे एवी रीते धर्मदेशना सांभल्याबाद ते श्रीकल्याणसागरसूरिजीने नमस्कार करीने सर्व प्रकारे हर्षथी वृद्धि पामताथका वर्धमानशाह बोल्या के, ॥ १ ॥ ( हे भगवन् ! ) आजे आपनी देशनारूपी अमृतने कर्णरूपी पडीयाथी पीने मारा हृदयमां अत्यंत सुखना समूहने करनारी तथा संसारनो ताप निवारण करनारी शांतिज थइ छे. ॥ २ ॥ वळी हे भगवन् ! ते श्रीशजयतीर्थाधिराजनो ते निर्मल अपार महिमा सांभळीने अत्यंत हर्षना समूहथी भरेलुं मारू मन ते तीर्थना वंदनमाटे आनंदित थाय छे. ॥ ३ ॥ For Private And Personal Use Only चरित्रम्. ॥ ६१॥ Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirm.org Acharya Shri Kailasagarsur Gyanmandir बधमान चरित्रम. ॥६ ॥ संघसंयुत इतो ह्यमिताब्धेः । पारमेनमपरं वरयानैः॥ यामि हृष्टहृदयोऽहमथोऽरं । नागनाख्यधरबंदिरमेषः ॥॥ युष्माकं रणमार्गेण । सपद्यागमनं त्वहं ॥ समीदे शिष्ययुक्तानां । तत्र मंगलकारणं ॥५॥ मुनीशोऽपि जगादाथ । सुधामधुरया गिरा ॥ धन्योऽसि कृतपुण्योऽसि । वर्धमान त्वमेव हि ॥६॥ तूर्णमेव सफलो भवत्वथ । ते मनोरथतरुनिनंसया ॥ तीर्थराज इह राजितस्य च । तीर्थनायकपदांबुजातिनिः ॥ ७ ॥ हवे आ हुँ हृदयमा आनंदित थइने तुरत अहींथी संघसहित उत्तम वहाणोमारफते समुद्रने पेले पार ते नागना नामना उत्तम बंदरे जाउं छु, ।। ४ ।। अने रणमार्गे त्यां शिष्योसहित आपना मंगलकारी तुरत आगमननी हुं त्यां राह जोउं छु. ।।५।। त्यारे ते आचार्यश्रीए पण अमृतसरखां मधुर वचनथी कयुं के, हे वर्धमान ! खरेखर तमोज धन्य अने पुण्यशाली छोः ॥६॥ हवे अहीं तीर्थनायक एवा श्रीऋषभदेव मभुना चरणकमलोनी श्रेणिोथी शोमिता थयेला ते तीर्थाधिराजने वांदवानी इपछाथी तमारो मनोरथरूपी वृक्ष तुरतज सफल थाभो! ॥ ७ ॥ ॥६ ॥ For Private And Personal Use Only Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jan Athana Kendra Acharya Short Kalasagassut Gyanmand वर्धमान चरित्रम. ॥६३॥ www.kobau.Org प्रोच्य सूरि रिति तिकोविदो। वासचूर्णमथ मस्तके तदा॥ श्रेष्टिनोऽस्य खलु सोऽदिपन्मुदा । संघनायकपदाजिसूचकं ॥७॥ दुंदुनिध्वनय आसमंततो। नेदुरंबुदनिनादसन्निभाः ॥ वर्यतूर्यरवरा जिराजिता । जझिरे बत तदा दिशो दश ॥ ए॥पद्मसिंह इति बांधवाझया। सर्वसंघमथ वै न्यमंत्रयत् ॥ दुर्लनं कुरुत जन्म पावनं । सिहशैखवरतीर्थयात्रया ॥ १०॥ अशनपानसुयानसमु. नवं । पथि विधेयमथो न च चिंतनं ॥ सकलयात्रिकलोकगणे रिह। गिरिवरेंऽसुवंदनकोत्सुकैः ॥११॥ एम कहीने व्यवहारकुशल एवा ते आचार्यश्रीए तेज वखते हर्षवी ते वर्धमानशेठना मस्तकपर निश्चे संघपतिनी पदवीने सूचवनारो वासक्षेप नाख्यो. ॥८॥ ते वखते चारे तरफथी मेघगर्जारवसरखा दुंदुमिभोना ध्वनिओ वागवा लाग्या, अने दशे दिशाओ मनोहर वाजिबोना शब्दोनी श्रेणिोथी शोभवा लागी.॥९॥ पछी पोताना ( वडिल ) बंधुनी आज्ञाथी पद्मसिं हशाहे सर्वसंघने निमंत्रण कयु के, (हे बंधुओ!) सिद्धगिरि नामना उत्तम तीर्थनी यात्रावडे तमो आ दुर्लभ मनुष्यजन्मने Pा पवित्र करो ॥१०॥ वळी अहीं ते गिरिराजने वांदवाने उत्सुक थयेला सर्व यात्राल लोकोना समूहोए मार्गमा भोजन, पान 13|॥६३॥ तथा वाहनसंबंधि ( जरा पण ) विचार करवो नही, अर्थात् ते सघर्छ संघपतितरफथी मळशे. ॥ ११ ॥ For Private And Personal Use Only Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra वर्षमान ॥ ६४ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इति निमंत्र्य स संघजनं समं । सममथोऽरमितो निजबंधुना ॥ कृतमुनीं सुवंदनको मुदा । निज निकेतनमृद्धिनिकेतनं ॥ १२ ॥ कृतजिनेंद्रवरार्चनको वरा-वशनपानविधिं किल चक्रतुः ॥ मतिमतां मुकुटोपमबांधत्रौ । सरसवस्तुगणैः सुगुणांचितौ ॥ १३ ॥ निविश्याथ विदेशीय - जैनाहानकृते ततः ॥ लिलेखतुः स्वयं चैतौ । भूरि कुंकुमपत्रिकाः ॥ १४ ॥ निजगोत्रजनाह्वान - कृते तौ बांधव ततः ॥ प्रेषयामासतुः प्रेष्यान् । नानायामपुरादिषु ॥ १५ ॥ एबी रीते ते पद्मसिंहशाह संघना सर्व लोकोने आमंत्रण करीने, तथा हर्षथी ते सूरिराजने सारीरीते वंदन करीने तुरत त्यांथी पोताना वडील बंधुनी साथै समृद्धिना स्थानसरखां एवां पोताना घरप्रते आव्या. ।। १२ ।। पछी जिनेश्वरप्रभुनी पूजा कर्याबाद बुद्धिवानोमा मुकुटसरखा अने उत्तम गुणोथी शोभता एवा ते वत्रे उत्तम भाइओए रसयुक्त पदार्थोना समूहथी भोजनपान कर्य. ॥। १३ ।। पछी तेओए बेशीने परदेशमां रदेला जैन लोकोने ( संघमां आववामाटे ) बोलाववासारं पोताने हाथे घणी कुंकुमपत्रिकाओ लखी ॥ १४ ॥ पछी ते बन्ने भाइओए पोताना लालणगोत्रीय भाइओने बोलाववापाटे जूदा जूदा गामो अने नगरआदिमां नोकरोने मोकल्या. ।। २५ ।। For Private And Personal Use Only चरित्रम्. ॥ ६४ ॥ Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailasagarsur Gyanmandir बर्धमान चरित्रम, ॥६५॥ अथाजग्मुरनेकेऽत्र । जना यात्राजिलाषिणः ॥ स्वीयवीयकुटुंबैश्च । सहिता हितकांक्षिणः ॥ १६॥ जोजनोरुव्यवस्थायां । यात्रिकाणां च वर्मनि ॥ ताभ्यां बुकिनिधानोऽत्र । राज्यसिंहो नियोजितः ॥ १७ ॥ पटवासव्यवस्थाकृत् । पद्मसिंहांगजः पथि ॥ श्रीपालः शुशुन्ने श्मश्रू-मिषेण श्रीकटादितः ॥ १० ॥ वर्धितो वर्धमानस्य । नंदनः संभदोर्मितिः ॥ वीरपालो घृतान्नादि-व्यवस्थामकरोत्ततः ॥ १॥ CAKRENCOCACASSAGAR हवे अहीं तीर्थयात्रानी इच्छावाळा तथा पोताना आत्महितनी अभिलाषावाला अनेक लोको पोतपोताना कुटुंबसहित आव्या. ॥१६॥ पछी ते बन्ने भाइओए अहीं मार्गमा यात्रिकोनी भोजनसंबंधि उत्तम व्यवस्था करवामाटे बुदिना भंडारसर खा ( नागडागोत्रवाळा) राज्यसिंहने जोड्या. (अर्थात् ते कार्य तेमने सोंग्यु.) ॥ १७ ।। वळी दाढीमूछना वाळना मिषधीका 8 जाणे लक्ष्मीवडे कटाक्षित थया होय नही? एवा पद्मसिंहना (वडिल) पुत्र श्रीपाल मार्गमा तंबूझोनी व्यवस्था करनारतरीके है। शोभवा लाग्या. ( अर्थात् ते कार्य श्रीपालने सोंप्यु.) ॥१८॥ पछी हर्षना मोजाओवडे वृद्धि पामेला वर्धमानशाहना वडिल IP पुत्र वीरपाले घृत तथा अनाज आदिकनी व्यवस्था करी. ॥१९॥ For Private And Personal Use Only Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailasagarsur Gyanmandir वर्षमान-5 यानानि वाधौं प्रगुणीकृतानि । श्रीवर्धमानांगसमुन्नवेन ॥ पित्राज्ञया श्रीविजपासकेन । प्रयाणयो. ग्यामितवस्तुबुंदैः ॥ २० ॥ यानानि तानि परिमंडितानि । नानापताकोरुकरांगुलीभिः ॥ समावयंतीव सुयात्रिकाणां । वृंदानि वृंदारकवंद्यतीर्थे ॥ १॥ अथ शुन्नेऽहनि यानकृते कृती। कृतनमस्कृतिरादिजिने शितुः ॥ तुषितचारणचारुगणालिनि-रभिनुतो ह्यनितो गतनीतिकः ॥२२॥ प्रवहणे चटितस्तटिनीपते-रपरपारयियासुरसौ मुदा ॥ अमितéपुनिनादविनादित-गगनभूतल CREAST पछी ते वर्धमानशाहना (बीजा) पुत्र विजपाले पितानी आज्ञाथी मुसाफरीने योग्य एवी अनेक वस्तुओना समूहोवडे भरेला वहाणो समुद्रमा तैयार कयां. (अर्थात् तेणे वहाणोमा अनेक प्रकारना पदार्थो भरी तैयार कर्या) ॥ २० ॥ ते शणगारेला वहाणो (रंगबेरंगी) विविध प्रकारनी पताकाओरूपी मनोहर हस्तांगुलीओवडे देवोथी वंदायेला तीर्थमा (यात्रामाटे) उत्तम यात्रा भोना समूहोने जाणे बोलावता होय नहीं? तेम (शोभता हता) ॥२॥ हवे शुभ दिवसे कृतार्थ थयेला ते वर्धमानशाह श्री ऋषभदेवप्रभुने नमस्कार करीने (दानथी) खुशी थयेला चारणोना समूहोनी श्रेणिओवडे चोतरफथी स्तुति करायाथका भयरहित थइ प्रयाणमाटे समुद्रने पेले पार जवानी इच्छाथी अगणित दुंदुभियोना अवाजथी गाजीरहेला एवा C-AAAAAAAAAAES ॥ ६॥ For Private And Personal Use Only Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ S h ana Kenda www.kobaert.org Acharya Shri Kailasagarsur Gyanmar चरित्रम नाम- दिग्गणसंमतः ॥५३॥ वर्धमानस्ततोऽमान-जनवजसमन्वितः ॥ सकुटुंबो जुतं प्रीत-पद्मसिंहादि सेवितः ॥ २४ ॥ त्रिनिर्विशेषकं ॥ ॥६ ॥ अपरेऽपि जनाः सर्वे । निविष्टा यात्रिकास्तदा ॥ परेषु यानपात्रेषु । यथास्थानं मुदान्विताः॥२५॥ प्रवहणं प्रवरं पवनेरितं । प्रवहणैरपरैरपि संयुतं ॥ विविधरंगितकेतुकरोच्चयै-रजिनयांचितचर्चितनर्तनं ॥ २६ ॥ जननिधौ वरसौध इवाचनौ । परिवृतं परितोऽग्रगवाक्षकैः ॥ जलतरंगचलं तदरं तत-स्ततजनामितमोदमथाचलत् ॥ २७ ॥ युग्मं ॥ आकाश, पृथ्वीतल, तथा दिशाओना समूहे (जाणे प्रयाणमाटे तेमने संमति आपी होय नही ? तेम) अगणित माणसोना समूह सहित कुटुंबयुक्त अने खुशी थयेला पद्मसिंहआदिकयी सेवायेला हर्षथी तुरत वहाणपर चड्या. ।।२२।। २३ ॥ २४॥ पछी ते वखते वीजा पण सघळा यात्रा माणसो बीजा वहाणोपर योग्यता मुजच हर्षसहित बेठा. ।। १५ ।। हवे पवनथी। प्रेरायेलं ते महोदं वहाण वीजा वहाणोनी साथे रंगबेरंगी पताकाओरूपी हाथना समूहोवडे करीने हावभावसहित जाणे नृत्य करतुं होय नहि ? तेम पृथ्पीपर रहेला महोटा महेलनी पेठे चोतरफ बहार पडता झरुवाओवडे घेरायुं यकू तथा जलनां मोजां2 ओथी चपल थयेलुं अने माणसोना अतिशय हर्षने विस्तारतुं थकुं त्यांथी तुरत समुद्रनी अंदर चालवा लाग्यु. ॥ २६-२८ ॥ SUGARCANCE For Private And Personal use only Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailasagarsur Gyanmandir पओमान-2 ॥६ ॥ नागनाख्यवरबंदिरेऽथ त-द्यानपात्रमपरैः समैः समागतं गतनयं रयान्वितं । संघनायकमनोरथैः समं ॥२॥ तूर्णमेव वरबंदिरावनौ । तेनिरे पटनिकेतनान्यथ ॥ संघनायक निदेशतोऽभितो । नृत्यकैर्दवरकोरुबंधतः ॥ ३०॥ सितपटोसनिकेतनकैश्च तैः । पवनसंचलितैस्तु व्यराजत ॥ प्रवरदुग्धसमुजतरंगकै-रिव नृता वरबंदिरनूरियं ॥ ३१ ॥ प्रवहणेभ्य इतोऽमितयात्रिकाः। प्रमुदिता बत तूर्णमवातरन् । पटगृहेषु ततेषु च तेषु ते । निज कुटुंबयुता ह्यवसन् समे ॥ ३२ ॥ पछी ते बहाण बीजां सघळां वहाणो साथे निर्भयपणे वेगसहित संघपतिना मनोरथो सहित नागनानामना उत्तम बंदर मां आवी पहोंच्यु. ।।२९।। पछी ते उत्तम बंदरती जमीन पर संघपतिना हुकमथी तुरत चोतरफ नोकरोए दोरडाओना मजबुत शबंधनधी तंबूओ विस्तार्या ॥३०॥ पवनधी उडती एवी ते मनोहर श्वेत तंबूती धजाओवडे करीने ते बंदरनी ते उत्तमभूमि मनोहर क्षीरसमुद्रनां मोजांओबडे जाणे भरेली होय ना? तेम शोभवा लागी. ॥ ३१ ॥ त्यारबाद अगणित यात्राछुओ हार्पित थया थका वहाणोपरथी तुरत ( जमीनपर) उतो, अने पोताना कुंटुंबसहित ते सघळा यात्राळुओ ते विस्तीर्ण तंबूओमा जइ 18/ वस्या. ॥ ३२ ॥ ॥६ ॥ For Private And Personal Use Only Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagerul Gyanmandit चरित्रस, वर्षमान ॥६ ॥ इतस्तइंदिरस्वामी । नामितानेकनृपतिः॥ यशोजिदभिधो जामो। नवीननगराधिपः ॥ ३३ ॥राज्यं प्राज्यं करोतिस्म । नवीननगरे वरे ॥ समीपे बंदिरस्यास्य । पुत्रवत्पालयन् प्रजां ॥ ३४ ॥ युग्मं ॥ सपद्मसिंहोऽथ स वर्धमानो।मानार्थमेतोऽवनिपस्य तस्य ॥ पावे च मुक्त्वा कनकोरुमुद्रा-नृतं सु. पात्रं चरणौ ननाम ॥ ३५॥ नूमिपोऽपि परितुष्टमानसः । श्रेष्टिनं तमथ संजगाद सः ॥ कथ्यतां किमपि कार्यमादरात् । कारयामि रमया वरस्य ते ॥ ३६ ॥ ( हवे जेणे अनेक राजाओने नमावेला छे एवा जामश्री जसाजी ते नागनावंदरना स्वामी अने नवानगरना महाराजा ते नागनाबंदरनी पासे आवेला नवानगर नामना उत्तम नगरमा पुत्रनी पेठे प्रजानुं पालन करता थका विशाल राज्य करता हता. ।। ३३ ।। ३४ ॥ हवे ते वर्धमानशाह शेठ पद्मसिंहसहित ते महाराजानी पासे तेमने सन्मान आपवामाटे आव्या, तथा तेमनी पासे मनोहर सोनामहोरोथी भरेलु उत्तम पात्र मूकीने तेमना चरणोमां नम्या. ॥३५॥ त्यारे ते महाराजा पण हृदयमा अत्यंत खुशी थइने ते वर्धमानशाह शेठने कहेवा लाग्या के, कंई पण कार्य कहो ? अने लक्ष्मीथी शोभता एवा जे तमो तेनु ते कार्य 151 हूं आदरपूर्वक करावी आपुं. ॥ ३६ ॥ ॥६ ॥ For Private And Personal Use Only Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Sh Kallassagarsur Gyanmandir चरित्रम्, वर्षमान-5 मेघगर्जगनिरध्व निर्जगौ । वर्धमान इति भूपतिप्रति ॥ सिकशैलनमनोत्सुकः प्रनो। यामि संघस- हितो हितार्थ्यहं ॥ ३७॥ संघयात्रिकलोकानां । रक्षार्थ पथि दीयतां ॥ कृपयकं सशस्त्राणां । सु. भटानां शतं मम ॥ ३० ॥ नृपेणाथ समादिष्टाः । क्षत्रियाः सुजटोत्तमाः ॥ स्वीकृत्य श्रेष्टिनो वाचं । तं तेऽपि समागताः ॥ ३५ ॥ ततो दृष्टेन भूपेन । श्रेष्टिने ते सपर्पिताः ॥ रक्षार्थ पथि संघस्य । रणकर्मैकजीविनः ॥ ४०॥ मंत्रिणा प्रेरितोऽथासौ । भूपतिः श्रेष्टिनं जगौ ॥ ममापि वचनं त्वेक । स्वीकार्य जवता ध्रुवं ॥४१॥ मेघना गग्विसरखी गंभीर वाणीथी ते वर्धमानशाह शेटे महाराजा प्रत्ये कहा के, हे स्वामिन् ! आत्माना हितनो अर्थी एवो हुँ सिद्धगिरिने नमवामाटे उत्सुक धयो को संघसहित जाउंछ । ३७ || माटे मार्गमा संघना यात्राळुलोकोना रक्षणमाटे कृपा करीने आप भने हरीयारबंध एकसो सुभटो आपो. ॥ ३८ ॥ त्यारे महाराजाए पण शेठना ते वचननो स्वीकार करीने उत्तम क्षत्रिय सुभटोने हुकम कर्यो, अने तेओ पण त्या जलदी आव्या, ॥ ३९ ॥ पछी खुशी थयेला राजाए संग्रामना कार्य परज आजीविका चलावनारा ते सुभटोने मागेमा संघनी रक्षामाटे शेठने सोप्या. ॥ १० ॥ पछी मंत्रिनी प्रेरणाधी ते महाराजाए वर्धमानशाहशेठने को के, तमारे मारुं पण एक वचन खरेखर स्वीकार जोइए. ॥ ४१ ॥ 1900 For Private And Personal Use Only Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra बर्धमान ॥ ७१ ॥ www.kobatirth.org. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गौ सपद्मसिंहोऽपि । वर्धमानः कृतांजलिः ॥ करिष्ये ध्रुवमादेशं । जवतामप्यमन्वहं ॥ ४२ ॥ नू मिपोऽप्यवदद्धीमान् | मंत्र्यालोचनपूर्वकं ॥ श्रेष्टिनंप्रति पीयूष - धोरणीसन्निनां गिरं ॥ ४३ ॥ व्या पारार्थ त्वमत्रैव । पुरे मे वसनं कुरु ॥ अतः परं च सिद्धाडि - कृतयात्रः समागतः || ४४ ॥ अर्ध शुल्कप्रमुक्तं त्वां । करिष्ये सर्वदाप्यहं ॥ ततो यास्यति वृद्धिं ते । व्यापारोऽत्र हि कहतः ॥ ४५ ॥ पद्मसिंहः सहालोच्य । बंधुना विनयान्वितः ॥ जगौ राजंस्तवादेशो ऽस्माकं मौलिकिरीटकः ॥४६॥ त्यारे वर्धमानशाह पण हाथ जोडी पद्मसिंह सहित बोल्या के, आपनो हुकम पण हुं हमेशां खरेखर करीश. ॥४२॥ पछी ( पोताना ) मंत्र साथै सलाह करीने ते बुद्धिवान महाराजा पण अमृतनी नहेर सरखी वाणी ते शेठ प्रत्ये बोल्या के, ॥४३॥ हवेथी सिद्धगिरिनी यात्रा करीने आव्या बाद तमारे मारा आ नगरनी अंदरज व्यापार माटे निवाल करवो. ॥४४॥ वळी हूं हमेशां तमारी अर्धी जगात माफ करीश, अने तेथी कच्छ करतां अहिं खरेखर तमारो व्यापार वृद्धि पामशे. ||४५|| त्यार पछी पद्मसिंह पोताना भाइ साथे विचार करीने विनयपूर्वक कहेवा लाग्या के हे राजन् ! आपनी आज्ञा अमारा मस्तकपर मुकुट समान छे, अर्थात् आपनी आज्ञा अमो माथे चडावीये छीये. ॥ ४६ ॥ For Private And Personal Use Only चरित्रम्. ॥ ७१ ॥ Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra वर्धमान - ॥ ७२ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kallassagarsuri Gyanmandir सत्कृतावथ नृपेन । वरवस्त्रादिदानतः ॥ बांधवा तौ ततः स्वीय- पटावासे समागतौ ॥ ४७ ॥ चरिश्रम् अथ भूपसमादिष्टा । राजन्याः सचिवादयः ॥ तोषिताः श्रेष्टिनाप्येते । दानमानादिनिरलं ॥४८॥ सामग्री प्रगुणी चक्रु-रनुकूलां समंततः ॥ प्रयाणार्थ रथाश्वेन शकटोष्ट्रादिसंयुतां ॥ ४५ ॥ युग्मं ॥ शुशुभिरे रथपंचशतानि वै । शकटसप्तशती ह्यतिवेगिनी ॥ नवशती गतितीत्र सुवाजिनां । नव गजा विकटा इद रेजिरे ॥ ५० ॥ दासेरकाः पंचशतप्रमाणाः । प्रलंबकंवा वरवेगधारिणः ॥ सहस्रमेकं वरवेसराणां । सामान्यतोऽरं पथि भारवादिनां ॥ ५१ पछी ते महाराजा उत्तम पोषाक आदिक दइ ते बन्नेनो सत्कार कर्यो. त्यार पछी ते बन्ने भाइओ पोताना तंबूना उताराम आव्या ॥४७॥ त्यारबाद राजाए हुकम करेला अने वर्धमान शाह शेठे पण दान मानादिकथी पूर्णरी ते संतोषित करेला मंत्र आदिक जना माणसो प्रयाण करवामाटे चोतरफथी अनुकूल रथ, घोडा, हाथी, गाडा, ऊंट, इत्यादिकथी युक्त एवी सामग्री तैयार करवा लाग्या ।। ४८ ।। ४९ ।! हवे ते संघमां पांचसो रथ, अतिवेगवाळां सातसो गाडां, चालवामां उतावळा नवसो घोडा अने मदोन्मत्त नव हाथी शोभता हता ॥ ५० ॥ तथा लांबी गरदनवाळा, अने मनोहर वेग धरनारा पांचसो ऊंट, तथा सामान्यपणे मार्गमां बोजाने वहन करनारा एक हजार उत्तम खच्चरो हता ॥ ५१ ॥ For Private And Personal Use Only ॥ १२ ॥ Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra वर्षमान ॥ ७३ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir निष्पादकानां वरजोजनानां । शतद्वयं तत्र विराजितं च ॥ पक्कान्न निष्पादक कांदवीय - शतं प्रमाणप्रमितं मयैकं ॥ ५२ ॥ सुनापितानां शतकं तथैकं । शतार्धमवाथ सुनर्तकानां । नेर्यादिवाजित्रसुवादकानां । ज्ञेया सदा विंशतिसंख्यकाथ ॥ ५३ ॥ चारणैकशतकं तथा वरं । कीर्तिपाठमुखरं व्यराजत ॥ लालणाख्यवरवंशज न्मिनां । शौक्तिकेय निभ निर्मलौजसां ॥ ५४ ॥ पटनिकेतन कोरुनियोगिनां । शतकमेकमिहार्धयुतं मतं ॥ विविधकार्य नियोगयुजामिति । गणनयाथ सृतं परदेहिनां ॥ ५५ ॥ तेमज उत्तम रसोइ बनावनार बसो माणस तेमां शोभता इता, तथा पकान्नने बनावनार ( मीठाइ बनावनार ) एकसो कंदोई में गण्या हता. ॥ ५२ ॥ वळी एकसो क्षौरकर्म करनार नापित, अने पचास नृत्य करनारा, तथा मेरी आदिक वाजित्र बजावंनारा वीस माणसो हता ॥ २३ ॥ तथा मुक्ताफलनी कांति जेवां निर्मल तेजवाला लालण नामना उत्तम वंशमा जन्मेला उत्तम पुरुषोनी कीर्ति गावामां चतुर अने उत्तम एकसो चारणो (माटो) हता. ॥ ५४ || अने तंबू खोडवा usar आदि काम करनारा दोढसो माणसो हता. अने एवी रीते नाना प्रकारना बीजां कार्यो करनारा बीजा माणसोनी गणत्री करवाथी सर्यु. ( अर्थात् तेओनी संख्या हवे अमो कहेता नथी, एम ग्रंथकार कहे छे. ) ॥ ५५ ॥ For Private And Personal Use Only चरित्रम् ॥ ७३ ॥ Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirm.org Acharya Shri Kailasagarsur Gyanmandir 190k C Octe वर्धमान- इतोऽथ रणमार्गेण । तत्र कल्याणसागराः ॥ सुरयः शिष्यसंयुक्ताः । समेताः पादचारिणः॥५६॥ श्रेयोऽर्थ श्रेष्टिनाप्येते । वंदिता विधिपूर्वकं ॥ दृष्ट्राथ संघसामग्रीं । तेऽपि मुमुदिरेतरां ॥ ५७॥ अन्येऽपि साधवस्त त्रा-नेके यात्राभिलाषिणः ॥ साव्यश्चापि समाजग्मु-राकृष्टाः सुकृतैरिव ॥५॥ साधूनां छिशती चैवं । शुरुचारित्रधारिणां ॥ विज्ञेयात्र प्रमाणेन । साध्वीनां त्रिशती तथा ॥५॥ अथ शुन्नेऽहनि मंगलकारिणि । विहितमंगल एष सबांधवः ॥ पथि चचाल सुसंघयुतोंबरं । बधिरयन् वरकुंदुभिनादतः ॥ ६०॥ हवे एवामां पगे चाली विहार करनारा श्री कल्याणसागरसूरीश्वरजी (पण) शिष्यो सहित रणने मार्गे त्यां ( नागना हा बंदरे) पधार्या. ।। ५६ ।। त्यारे ते बनेए (वर्धमानशाह तथा पद्मसिंहशाहे ) पोताना कल्याण माटे विधिपूर्वक तेमने वांद्या, अने ते आचार्यजी पण संघनी सामग्रीने जोइने अत्यंत खुशी थया. ॥५७ ॥ तथा जाणे पुण्यवडे खेंचाइने आव्या होय नही? तेम वीजा पण अनेक साधुओ तथा साध्वीओ त्या आल्या. || १८ ॥ अने एवी रीते शुद्ध चारित्रने धारण करनारा बसो साधुओ तथा प्रणसो साध्वीओन प्रमाण (ते संघमां ) जाणवू. ॥ ५९ ॥ त्यारपछी मंगलकारी शुभ दिवसे जेणे मंगलमुहूर्त कर्युःछे एवा वर्धमानशाहशेठ बांधव सहित उत्तम दुंदुभिना शब्दोथी आकाशने बधिर बनावता संघनी साथे मार्गे चालता थया.६० -CCOct-04-SAMACHAR +C + ॥ ४ ॥ +S For Private And Personal Use Only Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Sh Kailasagarsur Gyanandit * चरित्रमा मान-2 पथि समागतसर्व जिनौकसां । विहितपूजनसुध्वजरोपणः ॥ वररथस्थितशांति जिनेश्वर-प्रतिमया विनिवारितविघ्नकः ॥६॥ तुषितयाचकचारणराजिजि-रभिनुतः कविचक्रपरिस्तुतः ॥ अमितनूप1940 तिसंततिसत्कृतः । सुकृतसंचयसंचितसकनः ॥६॥ कुर्वन् साधर्मिकोकारं । रिडव्यादिदानतः ॥ ससंघः स कमेणागात् । सिकाद्रिनिकटावनौ ॥६३॥॥ त्रिनिर्विशेषकं ॥ विलोक्य शत्रुजयनामशैलं । युगादितीर्थकरपादपूतं ॥ ननाम संघाधिपवर्धमानः। प्रवर्धमानोऽथ मुदा सबंधुः॥६॥ मार्गमा आवेला सर्व जिनमंदिरोर्नु पूजन करी ( तेओपर ) सारी धजाओ चढावता, अने उत्तम रथमा रहेली शांतिजिनेश्वरनी प्रतिमावडे जेना विनो नाश ययेल छे एवा, तथा संतुष्ट करेल याचक चारणना समूहोबडे स्तुति कराता, कविओना समूहथी वखणाता, घणा राजाओना समूहथी सत्कार करायेला, पुण्यना समूहथी मेळवेल छे उत्तम प्रकारनु धन जेणे एवा, अने घणु द्रव्यआदिक देवाथी साधर्मिकोनो उद्धार करता एवा ते वर्धमानशाह शेठ संघसहित क्रमे करी सिद्धाद्रिनी नजीकनी तलेटीमा आवी पहोंच्या. ॥ ६१ ॥1॥ १२॥-।। ६३ ।। त्यारपछी युगादितीर्थकरना चरणोथी पवित्र थयेला शबंजय || 51॥५॥ 51 नामना पर्वतने जोइने संघना अधिपति एवा ते वर्धमानशाह शेठे हर्षवडे वृद्धि पामताथको बंधुसरित नमस्कार कर्यो.॥६॥ For Private And Personal Use Only Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagerul Gyanmandit पमान चरित्रम्, ॐ ॥१६॥ पटनिकेतनकानि वितेनिरे। गिरितटान्निकटेऽथ नियोगिनिः ॥ अमलवाणयुक्तटिनीतटे। सकलसंघनिवासकृतेऽभितः ॥६५॥ पंचदशसहस्राणि । संघयात्रिकदेहिनां ॥ पटावासेषु ते. वत्र । न्यवसन् सुखनिरं ॥६६॥ सूरेरथादेशमवाप्य संघा-धिपोजिनाधीशपवि त्रितस्य ॥ शत्रुजयार्विधिनार्चनं स । प्रातर्व्यधात् संघयुतः प्रमोदात् ॥ ६७॥ तमारुरोहोरुगिरि ततोऽसौ । शनैः शनैः सूरिवरेण साकं ॥ सबांधवो बंधुरसंघयुक्तो । मुक्त्यंगनासौधमिवोरुनावः ॥ ६ ॥ हवे चाकरोए ते गिरिराजनी तलेटी पासे निर्मळ पाणीना समूहथी भरेती (शत्रुजयी नामनी) नदी किनारे सर्व हा संघने निवास करवा माटे चोतरफ तंभो खोडी दीधा. ॥६५॥ त्यां ते तंबूोमा पंदर हजार संघना यात्रालु लोको घणा ४ सुखथी निवास करी रह्या. ॥ ६६ ॥ पछी आचार्य महाराजनो आदेश मेळवीने ते वर्धमानशाहशेठे संघ सहित प्रभातमा हर्षथी जिनेश्वरमभुथी पवित्र थयेला ते शत्रुजय गिरिराजनी विधिपूर्वक पूजा करी. ॥ ६७ ॥ त्यारबाद ते वर्धमानशाहशेठ पोताना बंधुसहित ते मनोहर संघनी साथे शुभ भावची जाणे मुक्तिरुपी स्त्रोना महेल उपर चडता होय नहीं ? तेम ते मूरिराxो जनी साथे ते मनोहर गिरिराजपर धीमे धीमे चड्या. ॥६८॥ 19-15AM- ॐ ॥ ६॥ For Private And Personal Use Only Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatrm.org Acharya Sh Kallassagarsur Gyanandit ॥3 JP सिहशैलमहिमानममानं । वर्ण्यमानमथ सूरिवरेण । शृण्वतोऽस्य निकटे विकटं त-मुख्यशृंगम | पि कृष्टमिवैतं ॥ ६९ ॥ सूरिदर्शितविधेर्विधानत-स्तेन तत्र विदधे प्रवेशनं ॥ आदिदेववरमंदि॥ रे ततः । संयुतेन निजबांधवादिनिः ॥ ७० ॥ भूरिइंऽभिनिनादपूरितं । मंदिरं जिनपदेंदिरावर ॥ झबरीरवसुराजिराजितं । जातमेतदखिलं तदा खल्नु ॥ १ ॥ वर्यतूर्यरवगर्जनालिनि-रवरं जमदनादबरं ॥ जव्यकेकिनिकरोरुनर्तना-लंकृतं रवपदं तदा बनौ ॥ ७ ॥ + + पछी ते आचार्य महाराजवडे वर्णन कराता एवा ते गिरिराजना अनुपम महिमाने सांभळता एवा ते वर्धमानशाह शेठनी समीपे जाणे खेंचाइने आव्युं होय नहि? तेम ते गिरिराजनुं विकट एवं मुख्य शिखर पण नजीक आवी पहोंच्युं. ॥ ६९।। पछी आचार्य महाराजे वतावेली विधि करवापूर्वक ते वर्धमानशाहशेठे पोताना पांधा आदिक सहित त्यां श्रीआदिदेवप्रभुना उत्तम मंदिरमा प्रवेश कयों. ॥ ७० ॥ ते बखते तीर्थकरपदनी लक्ष्मीथी शोभीतुं एवं ते सघर्छ जिनमंदिर घणी दुंदुभिओना शब्दोथी भराइ गयुं तथा झालरोना नादोनी श्रेणिओवडे खरेखर शोभवा लाग्यु. ।। ७१ ।। वळी ते वखते शब्दना स्थानरूप 18|॥७॥ एवं आकाश उत्तम वाजीत्रोना शब्दोनी गर्जनानी श्रेणिोथी मेघना गर्जारवना आउंबरवाळु थयु, अने तेथी भव्यजनरूपी 51 मयूरोना समूहोना उत्तम नाच माटे शोभवा लाग्यु. (अनुकूल ययु)॥ ७२ । + + For Private And Personal Use Only Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirm.org Acharya Shri Kailassagerul Gyanmandit वर्धमान- चारणालिपरिगीतलालण-वर्यवंशजयशांसि शृण्वतां ॥ संघसंमिलितयात्रिकांगिनां। तत्र वृंदम 18/ भितः स्थिरं बभौ ॥ १३ ॥ स्नानशुद्धवरवस्त्रराजितः । कुंकुमोरुघनसारवासितः॥ अंगलिप्तवरचं1G दनांचितो । मुक्तमानकलितोरुकंठकः ॥ ४ ॥ वर्यगंधसुमपात्रपाणिको । धूपधूमपरिवासितांबरः॥ द्रव्यदानपरितोषितार्थिक-र्गीयमानगुणसंचयांचितः ॥ ५॥ वर्धमानशुलभावनावित-चित्तवृत्तिरथ वर्धमानकः ॥ सूरिदर्शितविधिरपूजय-दादिदेव मिह कुंकुमादितिः ॥ १६ ॥ त्रिभिर्विशेषकं ॥ ते वखते त्यां चारणोनी श्रेणीवडे चोतरफ गवाता लालणना उत्तम वंशजोना यशने सांभलता एवा संघना एकठा थयेला यात्रा मोनो समूह चोतरफथी स्थिर थयेलो शोभवा लाग्यो.. ७३ ।। त्यारपछी अहिं स्नानथी शुद्ध थयेला, अने पछी उत्तम वस्त्रोथी शोभता, केसर तथा मनोहर वरासथी सुगंधित थयेला, अंगे लेपन करेला, उत्तम चंदनथी शोभता, मनोहर कंठमा जेमणे मुक्ताफलनी माला पहेरेली छे एवा, उत्तम सुगंधिवाळा पुष्पोर्नु पात्र हाथमा धारण करेलुं छे जेणे एवा, धूपना धृमाडाथी आकाशने पण मुगंधयुक्त करनारा, द्रव्यना दानथी खुशी करेला याचकोबडे गवाता गुणोना समूहथी शोभता, वृद्धिपामता मनोहर भावथी वासित थयेल छे मनोवृत्ति जेनी एवा ते वर्धमानशाह शेठे आचार्य महाराजे देखाडेली विधिपूर्वक केसरादिकवडे करीने श्री आदिदेवमभुनी पूजा करी. ॥ ७४ ।।-॥ ७ ॥-11 ७६ ।। +91- 4K.* दा॥॥ For Private And Personal Use Only Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra बर्धमान - ॥ १९ ॥ 964-4 www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सांजलिर्नत विशालजालको । मुद्रणो सितरोमकूपकः ॥ अष्टभेदपरिपूजितप्रभुं । सोऽनमत्स्तुतिपरंपरापरः ॥ 99 ॥ जगवंस्तवैव शरणं | हरणं मरणादिदुःखवाराणां ॥ भवे भवे मम नूया - भूयो भूयो नवार्णवोत्तारं ॥ ७७ ॥ कृतनुतिरिति रीत्यां पंडितो मंडितोऽसा - गणित गुण वृंदैनै दितः संघलोकैः ॥ मितकनकदानैः प्रीणितार्थिजनौघैः । पदि पदि वरपद्यैर्गीयमानोरुकीर्तिः ॥ ७९ ॥ वर्धापितः पुष्पगणैरगण्यैः । सुवासिनीजिस्त्वजितोऽमितानिः ॥ शनैः शनैरप्रित उत्ततार । ततांतरंगारिविदारणोत्कः ॥ ८० ॥ युग्मं ॥ पछी हाथ जोडीने तथा पोताना विशाळ ललाटने नमावीने हर्षना समूहथी उल्लसित थयेला रोमांचचाळा ते वर्धमानशाह शेठे जिनेश्वरमधुनी अष्टप्रकारी पूजा करीने स्तुतिओनी श्रेणीमां तत्पर तांकां प्रभुने नमस्कार कर्यो. ॥ ७७ ॥ ( अने क के) हे भगवन् ! मरणादिक दुःखोना समूहने हरनाएं, अने संसारसागरथी उतारनाएं, आपनुज शरण मने भव भव प्रत्ये वारंवार थाओ. ॥ ७८ ॥ एवी रीते करेल छे स्तुति जेणे एवा, व्यवहार कुशल, अने अगणित गुणसमूहोथी शोधता, तथा संघना लोकोथी वखणायेला, अने घणा सुवर्णना दानोवडे प्रसन्न करेल आयजनना समूहोवडे डगले डगले उत्तम पयोथी ग वाती छे मनोहर कीर्ति जेनी एवा, अने चोतरफथी घणी सौभाग्यवंती स्त्रीओए अगण्य सुगंधि पुष्पोवडे बघावाएला, अने मोटा अंतरंग शत्रुओने नाश करवामां उत्साहवाळा, ते वर्धमानशाह शेठ धीमे धीमे पर्वत उपरथी उतरवा व्यग्या. ॥ ७९ ॥८०॥ For Private And Personal Use Only चरित्रम्. ॥ १५ ॥ Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagerul Gyanmandit समान चरित्रम, 1000+ समागतोऽसौ पटवासमध्ये । सबांधवो बंधुरचित्तनावः ॥ सूरींद्रकादेशमवाप्य तुर्ण-मष्टाहिकोरू- त्सवमाततान ॥१॥ सकलसंघजना अपि पूजनं । वृषलतीर्थपतेः क्रमशो गिरौ ॥ विदधुरत विधेर्विविधक्रमै-रपगताखिल विघ्नसमूहकं ॥ ७२ ॥ प्रदक्षिणामष्टमवासरेऽसौ । संघाधिपः संघयुतस्ततान॥तीर्थाधिनाथस्य सुसिविध्वाः। पाणिग्रहोरुक्षणसूचकां किं॥३॥ राजादनीक्षीरसमूहद्धारां । ववर्ष संघाधिपतेः सुमूर्ति ॥ बभौ नु सामुक्तिवधूप्रमुक्ता । किं कुंदमाला वरणाय तस्य ।। 5+C++1151451516 XXC-5-1551 त्यारपट्टी बांधवसहित मुंदर चित्तना भाववाळा ते वर्धमानशाह शेठ (तळेटीमा रहेला पोताना) तंबृमां आव्या, अने आचार्य महाराजना आदेशने पामी तुरत अष्टाह्निकनो महोटी उत्सव विस्तारवा लाग्या. ॥ ८॥ पछी त्यां ते गिरिराजपर संघनां सघळो माणसोए पण विधिना नानाप्रकारना अनुक्रमपूर्वक सर्व विनोना समूहने दूर करनारुं श्रीऋषभदेवमधुनु पूजन कर्य. ॥४॥ पड़ी ते संघपतिए आठमे दिवसे संघसहित उत्तम एवी मुक्तिरूपी स्त्रीने पाणवाना मनोहर समय ने जाणे सूच वनारी होय नहिं एवी रीतनी ते तीर्थाधिराजनी प्रदक्षिणा करी. ॥ ८३ ।। (ते वखते)रायणना वृक्षे ते संघपतिना उत्तम मस्तकपर क्षीरना समूहनी धारा वरसाची, ते जाणे मुक्तिरूपी स्त्रीए ते शेठने वरवा माटे मोगराना पुष्पोनी वरमाळाज जाणे पहेरावी होय नही? तेम शोभवा लागी. ।। ८४ ॥ Gon For Private And Personal Use Only X Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra वर्धमान ०१ ॥ www.kobatirth.org. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वर्य चिह्नणसरोऽर्ककुंडकं । इस्तिपर्वतकदंब का द्रिकं ॥ सूरयः प्रमुदिता दर्शयन् । संघपं च तदुदंतपूर्वकं ॥८५॥ तीर्थेऽत्रारात्रिकं कर्म । ध्वजारोपणकादि च ॥ भूरिद्रव्यव्ययेनासौ । कृतवान् कृ तिनां वरः ॥ ८६ ॥ स्थितश्चैवमयं तत्र । पंचदशदिनावधिं ॥ पूजयंस्तीर्थनाथं तं । भावतः संघसंयुतः ॥ ८१ ॥ कृतप्रयाणोऽथ ततश्च चाल । वाजित्रनादैः परिपूरयन् दिशः ॥ सिंहावलोकेन स तीर्थनाथं । विलोकयन् संघयुतः शनैः शनैः ॥ ८० ॥ क्रमेणैवं समायात श्चलन् संघपतिस्ततः ॥ नवीननगरस्याथ | समीपेऽमित संमदः ॥ ८९ ॥ पछी ते आचार्य महाराजे खुशी थने ते संघपतिने मनोहर चिल्लण तळाव, सूर्यकुंड, हस्तगिरि, तथा कदंब गिरि तेओना माहात्म्यना वृत्तांत कहेवा पूर्वक देखाड्यां ।। ८५ ।। पछी कृतार्थ ओमां उत्तम एवा ते वर्धमानशेठे ते तीर्थमां आरती उतारवानुं तथा ध्वजा चढाववा आदिकनुं कार्य घणुं द्रव्य खर्चीने कर्यु. ॥ ८६ ॥ एवी रीते ते वर्धमानशाह शेठ त्यां ते तीर्था. धिराजने भावथी पूजताथका संघ सहित पंदर दिवसो सुधी रह्या ॥ ८७ ॥ पछी वाजीत्रोना शब्दोवडे दिशाओने पूरता था तथा ते तीर्थाधिराजने सिंहनी पेठे पाछु बाळी जोता थका संघसहित त्यांथी प्रयाण करीने धीमे धीमे चालवा लाम्या. ॥ ८८ ॥ एवी रीते त्यांथी चालता थका ते संघपति अनुक्रमे अत्यंत हर्ष सहित नवानगर पासे आवी पहोंच्या. ।। ८९ ॥ For Private And Personal Use Only चरित्रम्, ॥ ८१ ॥ Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirm.org Acharya Shri Kailassagerul Gyanmandit चरित्रम्, मान वर्धमानमथ तं समागतं । संनिशम्य पुरवृमिपस्तदा॥प्रेरितोऽस्य वरमंत्रिणागतः । सन्मुखं गज- रथादिसंयुतः ॥ ए. ॥ आयांतमेन मिति भूमिपति निशम्य । स्वं सन्मुख सपदि बंधुयुतो जगाम ॥२॥ ॥ संवर्धमानसुविवेकवराशयोऽसौ । प्रीत्या समीपमथ तस्य च वर्धमानः॥॥ नतिपरोऽवनिपस्य स पादयोः । सपदि नृपतिनापि विनोदितः ॥ वरगिरा कुशलागमपृच्छया । ह्यमृतदृष्टिजलैरभिषेचितः ॥ ए ॥ अमिततोरणकैः समलंकृते । तमथ तत्र पुरे वरभूपतिः॥ निजसमृद्धिपुर| स्सरमिभ्यकं । सकलसंघयुतं ह्यनयन्मुदा ॥ ३ ॥ हवे ते वखते ( पोताना नगरनी ) समीपमा आवेला ते वर्धमानशाह शेठने सांभळीने उत्तम कारभारीए प्रेरणा करायेला ते नगरना राजा (जामश्री जसाजी) हाथी, रथ, इत्यादिथी युक्त थइ ( सामैयं करवाने ) तेनी सामा आव्या. ।। ९० ॥ एवी रीते ते राजाने पोतानी सन्मुख आवता सांभळीने वृद्धि पामता उत्तम विवेकथी मनोहर आशयवाळा ते वर्धमानशाह शेठ पण तुरत बंधुसहित मीतियी तेमनी सामे गया. ॥ ११ ॥ पछी राजाना चरणोमां नमता एवा ते वधेमानशाह शेठने | मधुर वचनथी कुशलागम पूछीने राजाए पण तुरत आनंदित कर्या, अने अमृतसरखी दृष्टिरूपी जलवडे करीने सिंच्या. ॥ २२ ॥ पछी अगणित तोरणोथी शणगारेला पोताना ते नगरमा ते उत्तम राजाए पोतानी (सर्व ) समृद्धिपूर्वक ते वर्ध४ामानशाह शेठने सर्व संघसहित हर्षथी प्रवेश कराव्यो. ॥ १३॥ KARO For Private And Personal Use Only Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailasagarsur Gyanmandir बनाम चरित्रम्, ॥ ३ ॥ कनकमुजिकपंचसहस्रक-नृतमथो वरपात्रमढौकयत् ॥ अवनिपस्य पदोर्मुदिताशयः । कृतनमस्कृतिरस्य स संघपः ॥ ९४ ॥ भूमिपोऽपि ततस्तस्य । सत्कारमकरोन्मुदा ॥ भूरिसन्मानदानेन । वस्त्रालंकरणादिभिः ॥ एy ॥ प्रार्थितः पुनरथो महीनुजा । निश्चयं निवसनेऽत्र स व्यधात् ।। संघमेनमनघं व्यसर्जय-द्भुषणादिपरिधानपूर्वकं ॥६॥ इति श्रीमद्विधिपक्षगहाधीश्वरभट्टारकशिरोमणिश्रीमत्कल्याणसागरसूरीश्वरपट्टालंकारश्रीमदमरसागरसूरिविरचिते श्रीमहालणगोत्रीय ॐॐॐॐॐॐॐॐ है। पछी ते संघपतिए हर्षित थइने ते राजाना चरणोभा नमस्कार करी पांचहजार सोनामहोरोथी भरेलो उत्तम थाळ भेट | । कर्यो. ॥ ९४ ॥ पछी राजाए पण हर्षथी घणु सन्मान आपीने वस्त्रो तथा आभूपणादिकथी ते वर्धमानशाह शेठनो सत्कार को. ॥ ९५ ।। पछी फरीने राजाए प्रार्थना करवाथी ते शेठे अहिं ( नवानगरमांज ) निवास करवानो निश्चय कर्यो, तथा ते पवित्र संघने आभूषणादिकनी पहेरामणी आपदा पूर्वक विसर्जन कर्यो. ॥ ९६ ॥ एवी रीते श्रीमान् विधिपक्षगन्छाधीश्वर 8 13 भट्टारकशिरोमणि श्रीमान् कल्याणसागरसूरीश्वरना पाटने शोभावनारा श्रीमान् अमरसागरसूरिजीए रचेला श्रीमान् लालण-15 ॥ ३॥ For Private And Personal Use Only Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagerul Gyanmandit मान ॥ श्राइवर्यश्रीवर्धमानपद्मसिंहश्रेष्टिचरित्रे संघसहितशत्रुजयतीर्थयात्रानवीननगरनिवासवर्णनो नाम पंचमः सर्गः समाप्तः ॥ श्रीरस्तु॥ ४॥ 0000000 ॥ अथ षष्टः सर्गः प्रारभ्यते ॥ पप्रसादादिह वर्धमानः । स्थितः स्ववाणिज्य विवृद्धयेऽथ ॥ कलत्रपुत्रादिकुटुंबयुक्तः । सबांधवो बुद्धिमतां वरेण्यः ॥१॥ गोत्रना श्रावकोत्तम श्रीवर्धमान अने पद्मसिंहशेठना चरित्रमा संघसहित शत्रुजयतीर्थनी यात्रा, तथा नवानगरमा निवासना वर्णनरूप पांचमो सर्ग समाप्त ययो. ।। श्रीरस्तु । ॥ हवे छहा सर्गनो प्रारंभ थाय के.॥ हवे बुद्धिवानोमा उत्तम एवा ते वर्धमानशाह शेठ स्त्रीपुत्रादिक कुटुंब सहित (पोताना ते भाइ पञ्चसिंहशाहने पण) 18| साथे राखी पोताना व्यापारनी वृद्धि माटे राजानी कृपाथी अहिं ( नवानगरमा ) रह्या. ॥१॥ http NABALACKMCHANCC ॥ ४॥ For Private And Personal use only Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra वर्धमान ॥ ५ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शज्ञातिसमुद्भूत- जैनधर्मावलंविनां ॥ सदस्राएयंगिनां पंच । लालपायुरुगोत्रिणां ॥ २ ॥ पुरेऽत्रैव स्थितान्येवं । स्वकीयाजीविकाकृते ॥ श्रेष्टिना वर्धमानेन । नानाकार्यनियोजिताः ॥ ३ ॥ युग्मं ॥ राज्यसिंहोऽपि मित्रेण । चपसिंहेन संयुतः ॥ स्थितोऽत्रैव स वाणिज्यं । कुर्वश्च विविधं मुदा ॥ ४ ॥ अथ भव्याब्जबोधार्थे । सूरयो गुणभूरयः || विजहुरन्यतो वर्याः । श्रीमत्कल्याणसागराः ॥ ५ ॥ क्रमेण पद्मसिंहोऽनुत् । प्रीतिपात्र मिलापतेः ॥ मंत्रीशपदवीं प्राप्तो । बुद्धिनेव बृहस्पतिः ॥ ६ ॥ - अने ओशवाल ज्ञातिमां उत्पन्न थयेला तथा जैन धर्म पालनारा, लालण आदिक मनोहर गोत्रवाला पांच हजार माणसो आ ( नवानगर ) मांज पोतानी आजीविका माटे वर्धमान शाह शेठवडे करीने नाना प्रकारना कार्यामां जोडाएला छता रह्या. || २ || ३ || हवे ते रायसीशाह शेठ पण ( पोताना ) मित्र चॉपसीशाह साथे नाना प्रकारनो वेपार करता थका हर्षथी अि नवानगरमजि रह्या. ॥ ४ ॥ पछी उत्तम अने घणा गुणोवाळा ते श्रीमान् कल्याणसागरसूरीश्वर भव्यरूपी कमलो ने प्रबोधित करवा माटे अन्य जगोए बिहार करी गया. ॥ ५ ॥ पछी बुद्धिवडे करीने बृहस्पति सरखा ते पद्मसिंहवाह अनुक्रमे राजानी (जामश्री जसाजीनी ) घणी प्रीतिवाळा थया, अने तेमना मंत्रीश्वरनी पदवीने प्राप्त थया ।। ६ ।। For Private And Personal Use Only चरित्रम्, ॥ ८५ ॥ Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailasagarsur Gyanmandir पर्धमान / वाणिज्यं कुर्वतोात्रोः । सदा मिलितयोस्तयोः ॥ लक्ष्मीरपि प्रसन्नाभू-नीतिमा कचित्तयोः ॥७॥ चरित्रम्, ॥६॥ नृपस्यापि रमालानो । भूरिवाणिज्यतस्तयोः॥ महानेवाजवत्कूप-स्येव वारिदवर्षणात् ॥ ७॥ एवं गता हादशवत्सरीद । नृपप्रसादाक्षणवत्तयोश्च ॥ जिनाचनप्रीतहृदोः सदैव । संप्राप्तकीर्तिवजयो. रथारं ॥ ए॥ एकदा राज्यसिंहोऽसा-वपुत्रो निजमानसे ॥ यशसा वर्धमानस्य । इनश्चैवमचिंतयत् ।१ मया तु नार्जिता कीर्तिः । केवलं धनमर्जितं ॥ जराजर्जरितेनापि। दृष्टं नैव सुताननं ॥११॥ हमेशा साथे मळीने व्यापार करता अने केवल न्यायमार्गमाज मनवाळा एवा ते बन्ने भाइओपर लक्ष्मी पण प्रसन्न थइ. *॥७॥ पछी ते बन्ने भाइओना घणा व्यापारथी बरसादना वरसबाथी जेम कूवाने ( लाभ थाय ) तेम राजाने पण लक्ष्मीनो मोटो लाभ थयो. ॥ ८॥ हवे एवी रीते जिनेश्वर प्रभुनी पूजामा हमेशा प्रीतियुक्त हृदयवाळा अने प्राप्त करेल छे कीर्तिनो समूह जेमणे एवा ते बन्ने भाइओने राजानी कृपाथी अहीं वसतां थका क्षणनी पेठे चार वरसो तुरत व्यतीत ययां. ॥ ९ ॥ हवे एक दिवसे ते पुवरहित रायसीशाह वर्धमानशाहना यशथी दुभाइने पोताना मनमा एम विचारवा लाग्या के, T ॥ ६॥ । १० ॥ में तो कीर्ति पण मेळवी नहि, अने फक्त धनज उपार्जन कयु, तेमज घडपणथी जीर्ण थयां छतां पण में पुत्रनु मुख 87 तो जोयुज नहि. ॥ ११ ॥ For Private And Personal Use Only Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra वर्धमान || 09 || www.kobatirth.org. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रेरे धनं मे विफलं प्रयास्यति । बहु प्रयासात्समुपार्जितं मया ॥ विना तनूजं ह्यनुजोररीकृतं । दादा करोमीद नु किं हताशकः ॥ १२ ॥ इतः समागादिह चांप सिंह- स्तदीयमित्रं किल बुद्धिवर्यः ॥ चिंतातुरं वीक्ष्य च राज्यसिंहं । पप्र तत्कारणमेष शीघ्रं ॥ १३ ॥ राज्यसिंहोऽपि मित्राय । स्वचिंताकारणं जगौ ॥ सोऽपि तं प्रेरयामास । जिनगे विनिर्मितौ ॥ १४ ॥ स्वीकृत्य निजमित्रस्य । वाचं तेन जिने शितुः ॥ गेहकार्य समारेने । स्वकीर्तिस्पृहयालुना ॥ १५ ॥ कृतस्तेन तदा तत्र । त्रिलमुद्रिकाव्ययः ॥ प्रतिष्ठापि कृता शीघ्रं । सूरि कल्याण सागरैः ॥ १६ ॥ अरेरे! घणा प्रयासवी में मेळवेलं मारुं धन पुत्र विना नानाभाइने हाथ जवायी निष्फळ जशे माटे हा हा ! हताश एवो हुं अहिं हवे शुं करूं? ॥ १२ ॥ एवामां तेनो बुद्धिवान मित्र चांपसी त्यां (तेनी पासे ) आध्यो, अने रायसीने चिंतातुर जोइ तेणे तेनुं तुरत कारण पूछयुं ॥ १३ ॥ त्यारे रायसीए पण ( पोताना ते ) मित्रने पोतानी चिंतानुं कारण कीं, त्यारे तेणे पण जिनमंदिर बनाववा माटे तेने प्रेरणा करी ॥ १४ ॥ पछी पोताना ते मित्रनां वचनने स्वीकारीने पोतानी कीर्तिनी इच्छाथी तेथे जिनेश्वरप्रभुना मंदिरनुं कार्य प्रारंभ्युं ॥ १५ ॥ ते कार्यमा ते वखते तेथे त्रण लाख कोरीतुं खर्च करें, अने श्रीमान् कल्याणसागर सुरीश्वरजीए ( तेनी ) तुरत प्रतिष्ठा पण करी ॥ १६ ॥ For Private And Personal Use Only चरित्रम्. 1109 11 Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra वर्धमानNGG ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पुरैवं स्वीयतातेन । कारितं च जिनालयं ॥ परितोऽमंडयद्देव - कुलिका शिखरादिनिः ॥ १७ ॥ इतोSr पद्मसिंहस्य | महिला कमलाजिधा ॥ कमलेव ध्रुवं गेहे । विश्रुता देधारिणी ॥ १७ ॥ बुद्ध्या सरस्वतीवेयं । दृढधर्मानुरागिणी ॥ स्वामिनं ज्येष्टसंयुक्त-मेकदा निजगाद सा |१०| युग्मं ॥ घनं धनं वै निधनानुगं सदा । घनप्रयासैरपि रक्षितं भुवि ॥ तस्मान्नियोज्यं खलु धर्मकर्मणि । विवेकना मोक्षसु वालाबिणा ॥ १७ ॥ मक्षिकार्जितमधुत्रजं द्रुतं । भिल्लवाल व काल एष वै ॥ अर्जितं निखिलमेव लीलया । लात्यलं क्षणत एवं सद्धनं ॥ २० ॥ एवी रीते पोताना पिताए पूर्वे करावेला जिनमंदिरने तेणे फरती देरीओ तथा शिखरादिकवडे शोभाव्यं ॥। १७ ।। हवे एवामां खरेखर घरमां जाणे देहधारी लक्ष्मीज होय नहिं ? एत्री तथा बुद्धिवडे करीने सरस्वती सरखी तथा धर्मना दृढ अनुरागवाळी कमला नमानी पद्मसिंहनी ते आ प्रख्यात स्त्री एक दिवसे पोताना जेठ सहित स्वामीने कहेवा लागी के, ॥ ॥ १७ ॥। १८ ।। घणा मयासथी जमीनमां दाटेलं एवं पण घणुं धन खरेखर हमेशां विनाशना परिणामवाळु छे, माटे मोक्षसुखनी इच्छावाळा विवेकी माणसे खरेखर ते धनने धर्मकार्यमा जोडनुं जोइए. ।। १९ ।। मत्रमाखोए एकठा करेला मधना समूहने मिल्लनो बालक जेम एकदम लइ ले छे, तेम आ काळ पण उपार्जन करेला छतां ( नजरे देखात ) एवां पण सर्व धनने क्षणवारमांज जोतजोतामां विना प्रयासे खंचवी ले छे. ॥ २० ॥ For Private And Personal Use Only चरित्रम्. ॥ 05 ॥ Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra बर्धमान - श्री ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कंटकाकुलपदेव देहिनी । नैव सा स्थिरपदा कदापि दि ॥ लालितापि कमला कलावता । रक्षिता क्षितितलेऽपि वीक्षिता ॥ २१ ॥ यतः दानं जोगो नाश-स्तिस्रो गतयो भवंति वित्तस्य ॥ यो न ददाति न फुंक्ते । तस्य तृतीया गतिर्भवति ॥ २२ ॥ इति तदीयसुधोरुवचोंबुदै निर्मलमानसौ ॥ जिनवरेंद्र सुमंदिर निर्मितौ । दधतुरुत्सुकतां कृतिनौ तु तौ ॥ २३ ॥ विव जेणीना पगमां कांटा बागेला छे एवी जाणे स्त्री होय नहि ? तेम कलावान पुरुषे (शृंगारादिकमां विचक्षण एवा पुरुषे ) लाड लडाया छपण, तेमज जमीननी अंदर दाव्या छतां पण भोंयरामा राख्या छतां पण ) तेमज तेपर चापती देखरेख राख्या छतां पण ते लक्ष्मी क्यारे पण स्थिरपदवाळी जोवायली होतीज नथी. ॥२२॥ कधुं छे के दान, भोग अने नाश एम धननी त्रण गतिओ थाय छे, तेमांथी जे माणस कोइने धर्मार्थे देतो नयी अने पोते पण (खावापीवाना) उपयोगमा लेतो नथी, तो तेना धननी त्रीजी गती जे नाश ते थाय छे. ।। २२ ।। एवी रीते ते पद्मसिंहनी स्त्रीनां अमृत समान वचनोरूपी वरसादधी धोवायेल छे मेल जेना, अने तेथीज निर्मल अंतः करणवाळा, एवा ते बन्ने विचक्षण भाइओ जिनेश्वरप्रभुनुं उत्तम मंदिर बनाववामां उत्साहने धारण करवा लाग्या. ॥ २३ ॥ For Private And Personal Use Only चरित्रम्. ॥ ८‍ ॥ Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirm.org Acharya Shri Kailassagerul Gyanmandit मान ॥ए ॥ शुजनुजौ निजमिजुजो मुजात् । समधिगम्य निदेशमविघ्नकं ॥ फुतमथाह्वयतां सुसलाटकान् । सकलवास्तुकशास्त्रविचक्षणान् ॥२४॥ शुभमुहूर्तविलोकनकोविदा-नथ समाह्वयतिस्म यतीश्वरान् ॥ जिनवरोरुरुचिः सचिवेश्वरः । कृतिवरः सुकृतांचितमानसः ॥२५॥ वृष्बंधुनिदेशेन । श्रीमत्कयाणसागरान् ॥ पद्मसिंहः परानंदः । पद्मयालिंगितः सदा ॥ २६ ॥ युग्मं ॥ सूरयोऽपि पुरमे तदाययु-रायतो यतिगणैरसंकृताः॥धार्मिकोन्नतिमतीव वीक्ष्य ते । आईतामितसुशास्त्रपारगाः ।२७। त्यारपछी सुंदर भुजाचाळा ते बन्ने भाइओए पोताना राजाना हाथनो हुकम मेळवीने कोइ जातनी अगवद विना सघळां शिल्पशास्त्रमा हुशीयार एवा सारा सलाटोने जलदी बोलाव्या. ॥२४॥ पछी जिनेश्वरमभुमा मनोहर प्रीतिवाळा महाबुद्धिवाळा अने पुण्ययुक्तमनवाला, हमेशां लक्ष्मीथी युक्त थवेला, अने परमआनंदमा रहेनारा एवा ने मंत्रीश्वर पद्मसिंहशाहे पोताना महोटा भाइना हुकमथी उतम मुहूर्त जोवामा कुशल तथा मुनिओमा अग्रेसर एवा श्रीमान् कल्याणसागर सूरीश्वरजीने बोलाव्या. ॥ २५॥ २६ ॥ त्यारपछी यतिगणोबडे करीने शोभता अने अरिहंत प्रभुना अपार शास्त्रोना पारंगामी एवा ते ४/ सूरीश्वर पण भविष्यमा थनारी धर्म संबंधि अत्यंत उन्नति जोइने ते शेहेरमा (नवानगरमां) पधार्या ॥ २७ ॥ ॥ए ॥ For Private And Personal Use Only Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra वर्धमान ॥ १ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir परि ते प्रवेशिता । उत्सवेन महता महाशयाः ॥ जैनमंदिरकृतेर्मनोरथः । स्वीयकश्च सपदि प्रकाशितः ॥ २८ ॥ अथ स इभ्यवरो वरसूरिपं । नतिपरः परमं प्रमदं वहन् ॥ अकथयत्कथयध्वमरं प्रजो । जिनमंदिरखातमुहूर्तकं ॥ २७ ॥ मुनिवरा अपि लाजनिरीक्षया । यत एव विलोक्य मुहूर्त ॥ सपदि तं निजगाद शुभप्रदं । सकल विघ्ननिवारणकारकं ॥ ३० ॥ दशसहस्र स्वर्णोरु- मुडिकादानतो नृपं ॥ जिनमंदिरम्यर्थे । तोषयामास स डुतं ॥ ३१ ॥ अने त्यारबाद ते वर्धमानशाह शेठे पण गंभीर हृदयवाळा ते सूरीश्वरजीने महोटा उत्सवपूर्व नगरमा पधराव्या, अने जिनमंदिर बंधनवानो पोतानो मनोरथ जलदी तेनी पासे प्रकाशित कर्यो. ।। २८ ।। पछी ते उत्तम एवा वर्धमानशाह शेठे परम हर्षने धारण करतां थकां ते उत्तम एवा श्रीकल्याणसागरसूरिराजने नमस्कार करी कधुं के, हे भगवन् ! उत्तम जिनमंदिर बंधात्रवानुं खातमुहूर्त आप जलदी कहो ? ।। २९ ।। त्यारे ते मुनीश्वरजीए पण लाभ (थनारो ) जोड़ने क्षणवारमांज निरीक्षण करीने कल्याणकारक तथा सर्व विनोने निवारण करनाएं मुहूर्त तेमने तुरत कयुं ॥ ३० ॥ पछी ते वर्धमानशाह शेठे जिनमंदिरनी भूमि माटे दश हजार सोनामोहोरो आपीने तुरत राजाने (जामश्री जमाजीने) खुशी कर्या. ।। ३१ ।। For Private And Personal Use Only चरित्रम्. ॥ ५१ ॥ Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagerul Gyanmandit पर्धमान चरित्रम, ए ॥ सूरिभिर्दर्शितेऽथारं । मुहर्ते शुभसूचके ॥ श्रावणे सितपंचम्यां । विघ्नवदनिवारके ॥ ३२ ॥ अष्ट- तुषट्शशांकोरु ( १६६०) । वत्सरे वैकमायके ॥ खातं जिननिकेतस्य । सोऽकरोबंधुसंयुतः ।३३। युग्मं ॥ भूमियोऽपि परितुधमानसः। संनिरीक्ष्य च तयोरुदारतां ॥ सर्वतो बत ददौ सहायतां । जैनमंदिरकृती कृतज्ञकः ॥ ३४ ॥ गतमदोऽथ ददौ अविणादिकं । प्रमुदितः कृतखातमुहूर्तकः ॥ अमितचारणकादिगणाय स । निजयशोऽमितगानसुवादिने ॥ ३५॥ __पछी तुरत आचार्यश्रीए देखाडेला अने कल्याण ने सूचवनारा तथा विनोना समूहने निवारनारा मुहूर्त समये विक्रम संवत शोळसो अइसठना ( १६६८) श्रावण सुद पांचमने दिवसे ते वर्धमानशाह शेठे पोताना बंधु पयसिंहशाहनी साथे जिनमदिरनो पायो नाख्यो. ।। ३२ ।। ३३ ।। पठी ते कृतज्ञ राजाए पण ने बन्ने भाइओनी उदारता जोइने मनमा खुशी थइ ते जिनमंदिरना कार्यमा सर्व प्रकारनी मदद आपी. ॥ ३४ ॥ त्यारपछी अहंकारविनाना अने अत्यंत हर्ष पामेला एवा ते वर्धमानशाह शेठे ते (जिनमंदिरनुं ) खातमुहूर्त करीने पोतानो घणो जशवाद बोलनारा अगणित चारणआदिकोना | समूहने द्रव्य आदिकनुं दान आप्यु. ॥ ३५॥ ॥ए ॥ For Private And Personal Use Only Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra वर्धमान॥ ए३ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शलाका एकशतप्रमाणाः । प्रमाणपत्राधिगमप्रशस्ताः ॥ प्रशस्तवास्तुवरशास्त्रकेषु । कृतप्रयत्नाः शुभयतोऽथ ॥ ३६ ॥ उत्साहिता वस्त्रवरप्रदाना ते श्रेष्ट्निा बुद्धिनिधानकेन || यशोऽभिलाषांचितचितावाः । प्रासादकायें किल संप्रलग्नाः ॥ ३७ ॥ युग्मं ॥ नियोगिनः पंचशतप्रमाणा । अन्येऽपि साहाय्यकृतेऽथ तेषां ॥ अश्मादिचूर्णादिपदार्थसार्थ-संवाहका बुद्धिमतात्र बोध्याः ॥३८॥ पद्मसिंहवरजार्यया ततो । दानतो मतिनिधानयानिशं ॥ तोषिता अतिशयेन तेऽप्यरं । कुर्वते स्म सकलं स्वकर्मकं ॥ ३७ ॥ प्रमाणपत्रोनी मातिथी ख्याति पामेला तथा प्रख्यात अने उत्तम वास्तुशास्त्रोमो शुभ यत्नपूर्वक जेओए अभ्यास करेलो के एवा, अने बुद्धिना भंडार सरखा ते वर्धमानशाह शेटे उत्तम पोशाको आपवाथी उत्साहित करेला, तथा यश मेळबवानी इच्छायुक्त हृदयभाववाळा एकसो सलाटो ते जिनमंदिर बांधवाना कार्यमां निचे जोडाया. || ३६ ||३७|| बळी अहीं ते सलाटोने मदद करवा माटे पत्थर आदिक अने चूनाआदिक वस्तुओना समूहने उपाढनारा वीजा पण पांचसो मजूरोने बुद्धिवाने जाणी लेवा. ॥ ३८ ॥ बळी बुद्धिना भंडार सरखी पद्मसिंहशाहनी उत्तम स्त्रीए ( कमलादेवीए ) हमेशां दान आपवाथी अत्यंत खुशी करेला ते सघळा कारीगरो पण पोतानुं सर्व कार्य तुरत करवा लाग्या. ।। ३९ ।। For Private And Personal Use Only चरित्रम्, ॥ ए३ ॥ Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra बर्धमान - ॥ ए४ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वर्धमान महिलाप्यहर्निशं । तत्र चैति सकलं विलोकितुं ॥ वस्त्रपालवसुना तोषयत् । सा मुहुरतितरं नियोगिनः ॥ ४० ॥ तदीर्ष्यया तप्तहृदाथ राज्य- सिंहेन वै नागडगोत्रजेन ॥ वशीकृतैईव्य समर्पणेन । शलाटकैर्हेत समैः कृतमैः ॥ ४१ ॥ प्रासादशृंगं तु तदूर्ध्व जागा-तनूकृतं नो विद्दितं च तुंगं ॥ ज्ञात्वापि किंचित्कुपितौ न तौ तत् । केभ्योऽपि बंधू गजिरौ सदैव ॥ ४२ ॥ युग्मं ॥ परं पताकापरिमंदितं तत् । प्रासादशृंगं गिरिशृंगतुल्यं ॥ ध्वजोरुदंडेन विराजितं तयोः । कीर्तित्रजस्तंजनिजं व्यराजत ॥ ४३ ॥ वर्धमानशाहनी स्त्री (नवरंगदेवी ) पण हमेशां त्यां ते सघकुं कार्य जोवाने आवती, अने वस्त्र, वासण तथा द्रव्यवडे ते वारंवार कारीगरोने अत्यंत खुशी करती ।। ४० ।। हवे एवामां ते बन्ने भाइ ओपर थयेली ईर्षाथी तपेला हृदयवाळा नागडगोत्रीय रायसीशा द्रव्य आपीने ते सघळा सलाटोने वश कर्या, अने तेथी अरेरे! कृतन एवा ते सलाटोए ते जिनमंदिरनुं मुख्य शिखर तेनी उंचाइना भागमांथी संकोची लीधुं, अने ते शिखरने उंचुं कर्यु नही. ते हकीकत जाण्या छतां पण हमेशां गंभीर हृदयवाळा ते बन्ने भाइओए कोइना पर कोई पण गुस्सो कर्यो नहीं. ॥। ४१॥ ४२|| तो पण पताकाथी शोभतुं, अने धजादंडथी विराजित थयेलं पर्वतना शिखरसरखं ते जिनमंदिरनुं शिखर ते बन्ने भाइओना कीर्तिना समूहना स्तंभसरखं शोभवा लाग्यं । ४३ । For Private And Personal Use Only चरित्रम्. ॥ ए४ ॥ Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagerul Gyanmandit वर्षमाम चरित्रम्, ॥ ५॥ S+CE एवं गतेष्वष्टसु वत्सरेषु । प्रायोऽथ तन्मंदिरकार्यमत्र ॥ बभूव पूर्ण परितः परंतु । स्तोकं ह्यपूर्ण किल शेषमेव ॥ ४४ ॥ एकाधिकाः पंचशतप्रमाणा। निर्मापितास्तत्र जिनेश्वराणां ॥ सुरत्नकादिप्रभवा मनोज्ञा-स्ताभ्यां प्रमाणात्प्रतिमा भवियां ॥४५॥ कृतांजनशलाकास्ताः । श्रीमकल्याणसागरैः ॥ प्रतिमाः शुशुजुर्विश्व-कर्मणा किमु निर्मिताः ॥ ४६॥ संपूर्णे शिखरे मुख्यमंदिरस्याथ कारिता ॥ शांतिबिंबत्रयस्यात्र । प्रतिष्टा तेन सूरिणा ॥४॥ + + एवी रीते आठ वर्षों वीत्याबाद अहीं पायें करीने ते मंदिरनु कार्य संपूर्ण थयु, परंतु फरतीनुं थोडं कार्यज खरेखर बाकी रथु. । ४४॥ हवे त्यां ते बन्ने भव्य भाइओए उत्तम रनआदिकनी बनावटवाळी जिनेश्वरपभुनी पांचसोएक मनोहर प्रतिमाओ प्रमाणपूर्वक बनावरावी. ॥ ४५ ॥ ते सर्व प्रतिमाओनी श्रीमान् कल्याणसागरसूरीश्वरजीए अंजनशलाका करी, अने तेथी ते सर्व प्रतिमाओ शुं जाणे विश्वकर्माए बनावी होय नही? तेम शोभवा लागी.॥४६॥ पछी ते मुख्यमंदिरनु शिखर संपूर्ण 131॥ | थयाबाद तेमां ते आचार्य महाराजना हाथे शांतिनाथप्रभुनी त्रण प्रतिमाओनी प्रतिष्टा करावी. ।। ४७ ॥ ५॥ + For Private And Personal Use Only Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ She Mahavir Jain AradhanaKendra www.kobalrm.org Acharya Sh Kailasagarsur Gyanmar ॥ ए६॥ पर्धमान-5 षएनयषडेकसंख्ये (१६७६)। वत्सरे विक्रमार्कतोऽथ शुन्ने॥वैशाखोरुतृतीया-दिवसे सितपक्षसंजूते ४॥४०॥ प्रतिष्टा प्रथमा तत्र । संजाता बुधवासरे ॥ नानामहोत्सवाकीर्णा । भूरिदानविजासुरा ॥४९॥ युग्मं ॥ तथाष्टसप्तषडेक-प्रमिते (१६७०) शुजवत्सरे द्वितीयात् ॥ शेषजिनविकानां । प्रतिष्टा मंदिरोरुनमौ ॥५०॥ वैशाखे सितपदे । पंचम्या शुक्रवासरे च शुभा ॥ भूरिद्रव्यव्ययेन । सूरिजिश्च कारिता नूनं ॥५१॥ युग्मं ॥ मौर्यपुरानिधे ग्रामे । लध्वेकं जिनमंदिरं ॥ पुर्यां तथैव श्रीकर्या । ताभ्यां कारितमेककं ॥ ५ ॥ ____एवी रीते विक्रम संवत शोळसो छहोतरना (१६७६) वैशाखसुदी त्रीजना शुभ दिवसे बुधवारे नाना प्रकारना महोत्स वबाकी, अने घणा दानथी प्रकाशित थयेली ते जिनमंदिरमा पहेली प्रतिष्ठा थइ ।। ४८ ।। ४९ ।। बळी ते जिनमंदिरनी विशाल धमतीमा विक्रम संवत १६७८ना शुभ वर्षमा वैशाख सुदी पांचमने शुक्रवारे बाकीनी जिनमतिमाओनी बीजी शुभ प्रतिष्ठान | खरेखर घणुं द्रव्य खरचीने तेज श्रीकल्याणसागरसूरिजीना हाथथी करावी. ५०|| ५१ ॥ वळी ते बन्ने भाइओए मौर्य- ॥ए६॥ पुर ( मोडपर) नामना गाममा एक न्हार्नु जिनमंदिर कराव्युं, तथा तेवीज रीते एक जिनमंदिर तेओए श्रीकरी (छीकारी) 8 नामनी नगरीमा कराव्युः ॥ ५२ ॥ For Private And Personal Lise Only Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirm.org Acharya Shri Kailassagerul Gyanmandit बर्धमान- चरित्रम, श्रीशत्रुजयशैलाग्र-शिखरेऽपि जिनमंदिरं ॥ कारितं श्रेयसे ताभ्यां । सूरिवयोंपदेशतः ॥ ५३॥ रिष्टरत्नमयी ह्येका । वर्धमानेन कारिता ॥ श्रीनेमेः प्रतिमा मुद्रा-सहस्रनवकव्ययात् ॥ ५४ ॥ माणिक्यरत्न संभूता । पद्मसिंहेन कारिता ॥ प्रतिमा वासुपूज्यस्य । सहस्रनवकव्ययात् ॥ ५५ ॥ भार्यया वर्धमानस्य । सहस्त्रदशकव्ययात् ॥ नीलरत्नमयी मूर्तिः । पार्श्वनाथस्य कारिता ॥५६॥ नीलरत्नमयी चैवं । सहस्रदशकव्ययात् ॥ पद्मसिंह स्त्रिया मूर्ति-मल्लिनाथस्य कारिता ॥ ५॥ | बळी ते बन्ने भाइओए ( पोताना ) कल्याण माटे ते उत्तम आचार्य महाराजना उपदेशथी शत्रुजयपर्वतना मुख्य शिख रपर पण एक जिनमंदिर कराव्यु. ॥ ५३ ।। वर्धमानशाहे नवहजार महोरो खरचीने रिष्टरत्ननी श्रीनेमिनाथ प्रभुनी एक - प्रतिमा करावी. ॥ १४ ॥ पद्मसिंहशाहे नवहजार महोरो खरचीने माणिक्य रत्ननी श्रीवासुपूज्यस्वामिनी एक मतिमा करावी. ॥ ५५ ॥ वर्धमानशाहनी स्त्रीए ( नवरंगदेवीए ) दशहजार महोरो खरचीने श्रीपार्श्वनाथ प्रभुनी नीलम रत्ननी एक प्रतिमा करावी. ॥५६॥ एवीज रीते दश हजार महोरो खरचीने पद्मसिंहशाहनी स्त्रीए ( कमलादेवीए) नीलमरत्ननी श्रीमल्लिनाथप्रभुनी एक प्रतिमा करावी. ॥ ७ ॥ For Private And Personal Use Only Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra वर्षमान ॥ ए८ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir परिवारेण सर्वेण । श्रेयसे कारिताः पराः ॥ मूर्तयो जिननाथानां । कषपट्टादिसंजवाः ॥ ५० ॥ राज्यसिंहस्तु निःपुत्रो । हृदि खेदं समुद्रद्दन् ॥ कालेन कियता तत्र । दंत पंचत्वमाप सः ॥ ५९ ॥ लघुबंधुरधैतस्य । नामतो नेणसिंहकः ॥ धनाढ्योऽत्रानवडीमान् | जैनधर्मैकमानसः ॥ ६० ॥ प्रोत्तुंगः कारितस्तेन । प्रासादोऽत्र चतुर्मुखः ॥ रम्यो भूरिव्ययेनाथ । गवाक्षैरभितोंचितः ॥ ६१ ॥ मेलितोऽयं विशालत्व - ख्यापनार्थे द्वयोरपि ॥ स्वबंधुकारिते चैत्ये । द्वारैकप्र विधानतः ॥ ६२ ॥ बळी ( तेमना ) सर्व परिवारे ( पोतपोताना ) कल्याण माटे कसोटी आदिकमांथी जिनेश्वरपशुओनी बीजी प्रतिमाओ करावी. ।। ५८ ।। हवे पुत्ररहित एवा ते रायसीशाह हृदयमां खेद धारण करता थका केटलेक काले अरेरे! ते नवानगरमां मरण पाया. ॥ ५९ ॥ हवे अहीं ते रायसीशाहनो नेणसीशाह नामे एक न्हानो भाइ हतो, तथा ते धनवान, बुद्धिवान तथा जैनधर्मपर दृढ मनवाळो हतो. ॥ ६० ॥ ते नेणसीशाहे अहीं नवानगरमां षणुं द्रव्य खरचीने फरता झरुखाओथी शोभतो उंचो मनोहर चतुर्मुख जिनप्रासाद बंधाव्यो ॥ ६१ ॥ पछी ते मासादने बन्ने जिनमंदिरोतुं विशालपणुं देखाडवा माटे तेओनो एकज दरवाजो करीने पोताना भाइए करावेला प्रासादमां मेळवी दीघो. ॥। ६२ ।। For Private And Personal Use Only चरित्रम्. ॥ ए ॥ Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailasagarsur Gyanmandir कालान ॥एए॥6 श्रीसंजवाख्योरुजिनेश्वरस्य । प्रतिष्ठितानीह सुबिंबकानि ॥ सुश्रेष्टिना तेन बहुव्ययेन । सूरीश्वरस्योरुकरेण शीघं ॥ ६३ ॥ राज्यसिंहमृतितोऽतिखेदित-श्चापसिंह श्व कीर्तिखालसः ॥ प्रारजतिननिकेतमेककं । कर्तुमत्र शुजभावनावितः ॥ ६४॥ पूर्णतामथ गतं परं न तत् । शंगमात्रमपि तु व्यराजत ॥ तत्र मूर्तिरपि नो जिनेशितु-विघ्नतः खलु निवेशिता ध्रुवं ॥६५॥ इति श्रीमधिधिपगबाधीश्वरजहारकशिरोमणिश्रीमत्कल्याणसागरसूरीश्वरपट्टालंकारश्रीमदमरसागरसूरि विर पछी ते उत्तम एवा नेणसीशाह शेठे ते जिनप्रासादमा घणु द्रव्य खरची आचार्य श्रीकल्याणसागरसूरिजीना उत्तम हाथे श्रीसंभवनाथजी नामना मनोहर तीर्थकर प्रभुनी श्रेष्ट प्रतिमाओनी तुरत प्रतिष्ठा करावी. ।। ६३ ॥ रायसीशाहना मरणथी अतिशय खेद पामेला चापशीशाहे कीर्तिनी इच्छायी अहीं ( नवानगरमा ) शुभ भावथी भावित थइने एक जिनमंदिर करवानो प्रारंभ कर्यो. ॥ ६४ ॥ परंतु ते जिनमंदिर संपूर्ण थयु नही, फक्त ( तेनुं) शिखरमात्रज शोभवा लाग्युं. तेमज खरेखर विनने लीधे ते जिनमंदिरमा जिनेश्वरप्रमुनी प्रतिमानी पण स्थापना थइ नहीं ।। ६५ । एवी रीते श्रीमान् विधिपक्षगच्छाधीश्वर भट्टारकशिरोमणि श्रीमान् कल्याणसागर सूरीश्वरना पाटने शोभावनारा श्रीमान् अमरसागरसूरिजीए रचेला श्रीमान् एए॥ For Private And Personal Use Only Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra वर्धमान - ॥ १००॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चिते श्रीमहालणगोत्रीयश्राद्धपर्यश्री मद्वर्धमानपद्म सिंहभेष्टिचरित्रे नवीननगर निवास विशाल जिनमंदिर विधानतत्प्रतिष्ठादिवर्णनो नाम षष्टः सर्गः समाप्तः ॥ श्रीरस्तु ॥ ॥ अथ सप्तमः सर्गः प्रारभ्यते ॥ इतोऽत्रै जुवैको | नवीननगरे शितुः ॥ निधाननायकस्तस्य । लोहाणज्ञातिसंजवः ॥ १ ॥ हर्मजीत्य निघाख्यातो । दुर्जनानां शिरोमणिः ॥ हृदि दुष्टो वचोरम्यो । द्रव्यमात्राभिलाषुकः ॥ २ ॥ प्रीतिपात्रं नृपायं । पद्मसिंहं च मंत्रिणं ॥ विलोक्येष्यसमाक्रांतो । ह्येकदा भूपतिं जगौ ॥ ३ ॥ oraणगोत्रना श्रावकोत्तम श्रीवर्धमान अने पद्मसिंह शेठना चरित्रमां नवानगरमां निवास, विशाल जिनमंदिरनुं बंधावनुं, तथा तेनी प्रतिष्ठा आदिका वर्णनरूप छट्टो सर्ग समाप्त थयो. ॥ श्रीरस्तु ॥ || हवे सातमा सर्गनो प्रारंभ थाय छे. ॥ हवे अहींज ते नवानगरना महाराजा जामश्री जसाजीनो हर्मजी ( हडमत ठकर) नामनो लहाणा ज्ञातिमां जन्मेलो एक खजानची हतो, के जे दुर्जनोनो सरदार, हृदयमां दुष्ट अने वचनमां महोडे मीठो, तथा फक्त द्रव्यनोज इच्छक हतो. ||१||२|| desan करे ते पद्मसिंहशाह मंत्रीने राजानी प्रीतित्राळा जोइने ईर्षालु थइ एक दिवसे राजाने कधुं के, ।। ३ ।। For Private And Personal Use Only चरित्रम्, ॥ १००॥ Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra वर्षमान॥१०२॥ www.kobatirth.org. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्वामिन्नवसहस्राणां । मुद्रिकाणां प्रयोजनं ॥ शीघ्रमेवास्ति राज्यार्थे । सौवर्णानां ध्रुवं मम ॥ ४ ॥ यदि चेद्रवदादेशो ऽधुना गृह्णामि तास्तदा ॥ वर्धमानादहं पश्चात् । प्रेषयिष्यामि तं द्रुतं ॥ ५ ॥ राज्ञोक्तं तर्हि कुर्वेव - मेवमाज्ञामवाप्य सः ॥ अंतर्दुष्टः प्रहृष्टश्च । पत्रिकामलिखत्खयं ॥ ६ ॥ तां ततो भूमिनाथोऽपि । निजनामांकितां व्यधात् ॥ गृहीत्वा तां ततः सोऽपि । ह्यागतः स्थानके निजे ॥ ७ ॥ तत्र नवसदस्रांको - परि बिंदुद्वयं च सः ॥ कृत्वा समागतो दुष्टो । वर्धमानांतिके डुतं ॥ ॥ हे स्वाभि! राज्यकार्य माटे मने खरेखर नव हजार सोनामोहोरोनो ( अत्यारे ) तुरतमांज खप छे. ॥ ४ ॥ माटे जो आपनो हुकम होय तो हुं हमणा वर्धमानशाह शेठ पासेथी ते सोनामहोरो लेडं, अने हुं तेने ते तुरत पाछी मोकलावी आपीश. ।। ५ ।। त्यारे राजाए कहुं के खुशीथी एम करो ? एवी रीते आज्ञाने पामीने हृदयमां दुष्ट एवा ते खजानचीए हर्षित थर पोते (एक) चीठ्ठी कखी ॥। ६ ।। पछी ते चीहीने राजाए पण पोताना नामथी अंकित करी ( अर्थात् ते चीही नीचे राजा पोतानी सही करी ) पछी ते चीठ्ठी लहने ते खजानची पण पोताने स्थानके आव्यो. ॥ ७ ॥ पछी ते दुष्ट खजानची ते चीठीमां नवहजारना आंक उपर वे मींडां चडावीने तुरत वर्धमानशाह पासे आन्यो. ॥ ८ ॥ For Private And Personal Use Only * चरित्रम्. ॥१०१॥ Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobaturm.org Acharya Sh Kallassagarsur Gyanandit धमान ॥१०॥ कृताशनोऽसौ किल वर्धमान-स्तदा मुदा गेहगवादमध्ये ॥ स्थितो बनुवादजुतनाग्यशाली । संच- चरित्रम्, वयंस्तांबुलमानने स्वे ॥ ॥ इतः स पुष्टोऽपि समेत्य पावें । तां पत्रिका दर्शयतिस्म तस्य ॥ विलोक्य तस्यां नवलक्षकांकं । स विस्मितश्चाह्वयतिस्म बंधु ॥१०॥ समेत्य पद्मसिंहोऽपि । पुतं तत्र समुत्सुकः ॥ पत्रिका वाचयामास । भूपनामांकितामधः ॥ ११॥ विस्मितो हृदि तदा निजे स्वयं । सोऽप्यचिंतयदिति ध्रुवं नृपः ॥ दृश्यते कुपित एव नः स्वयं । ह्यद्यतः सपदि उर्जनेरितः ॥ १२ ॥ ते वखते अद्भुत भाग्यशाली एवा ते वर्धमानशाह शेठ भोजन कर्या बाद पोताना मुखमां तांबूल चावता थका खरेखर हर्षथी (पोताना ) घरना झरुवामा बेठा हता. ॥ ९॥ एवामां ते दुष्ट खजानचीए पण तेमनी पासे आवी ते चीडी देखाडी. तेमां 12 नव लाखनो आंक जोइने विस्मय पामेला ए वर्धमानशाह शेठे पोताना भाइने ( पद्मसिंहशाहने) बोलाव्या. ।। १० ।। त्यारे पद्मसिंहशाहे पण तुरत त्यां आवी उत्सुक थयां थकां नीचे राजाना नामनी सहीवाळी ते चीही वांची. ॥ ११ ॥ त्यारे दा॥१०॥ पोताना मनमा विस्मय पामेला ते पनसिंहशाहे पोते विचार्य के खरेखर दुर्जननी प्रेरणावडे आज थी राजा पोते आपणा पर 8| एकदम कोपायमान थयेलाज देखाय छे. ॥ १२ ॥ For Private And Personal Use Only Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra बर्धमान - ॥१०३॥ www.kobatirth.org. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इति विचार्य स मंत्रिवरो निज-मकथयद्वरबांधव मेनकं ॥ नयतु हर्मजितं ह्यधुना भवान् । स पदिनः प्रमुद्रा किल दट्टके ॥ १३ ॥ आयाम्यहं डुतं तत्र । चिंता नो भवता ध्रुवं ॥ एतस्मिन् विषये कापि । विधेया धीनिधेऽधुना ॥ १४ ॥ इति निशम्य गिरं तदुदीरितां । स हि गतः सह तेन च दट्ठकं ॥ मिलितुमेष गतः खलु पद्मकः । सपदि भूमिपतेश्च समुत्सुकः ॥ १५ ॥ परमंतःपुरं प्राप्त-स्तेन दृष्टो न भूपतिः ॥ अमावास्यागतश्चंद्र | उत्सुकेनापि नेक्ष्यते ॥ १६ ॥ एम विचारीने ते मंत्रीश्वर पद्मसिंहशाहे पोताना ते ज्येष्ठ बंधुने कछु के आ हडमत ठक्करने हमणां तो तमो हर्षथी तुरत आपणी वखारे ले जाओ. || १३ || अने हुं पण तुरत त्यां आबुं हुं, वळी हे बुद्धिनिधान बंधु ! आ समये तमारे आ कार्यना संबंध खरेखर कंइ पण चिंता करवी नहि. ॥ १४ ॥ एवी रीते तेणे कहेलं वचन सांभळीने ते वर्धमानशाह शेड पण ते खजानची सहित (पानी) वखारे गया. अने ते पद्मसिंहशाह उत्सुक थया थका तुरत राजाने मळवा गया. ।। १५ ।। परंतु जनानामां पधारेला राजाने ते जोड़ शक्या ( मळी शक्या ) नहिं, केमके अमावास्याने प्राप्त थयेला चंद्रने उत्सुक माणस पण जोड़ शकतो नथी. ।। १६ ।। For Private And Personal Use Only चरित्रम्. ॥१०३॥ Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagerul Gyanmandit पर्वमान- ॥१०॥ प्राह रिकोऽपि संदेशं । तदीयं नोऽथ भूपतेः ॥ प्रापयामास पुष्टेन । प्रेरितस्तेन पूर्वतः ॥ १७ ॥ चरित्रम, निरुपायस्ततः सोऽय-मागबन् हटके निजे ॥ मार्गितो नोजनं मागें । वृझेनैकेन योगिना ॥ १० ॥15 अथ विलोक्य सुयोगिनमेनकं । हृदि विचारयतिस्म स धीनिधिः ॥ अयमहोऽस्ति स यो हि गतः पुरा । मम विमुच्य गृहे रसतुंबकं ॥ १७ ॥ सपदि दापयतिस्म स जोजनं । मतिनिधिः किल कांदविकापणात् ॥ घृतनृतं च तदीयहृदिप्सितं । परिवृतोऽप्ययमस्य तु चिंतया ॥ २० ॥ *CRECR5R- बळी प्रथमयीज ते दुष्ट खजानचीए समजावेला एचा चोकीदारे पण तेमनो ( पद्मसिंहशाहनो ) संदेशो राजामे पहोंचाड्यो नहि. ॥ १७॥ पछी ते पद्मसिंहशाह निराश थइ पोतानी वखारे आववा लाग्या, एवामां मार्गमा एक वृद्ध योगीए तेनी ॐ पासे भोजन माग्यु. ॥१८॥ हवे ते उत्तम योगीने जोइने बुद्धिना निधान सरखा ते पद्मसिंहशाहे मनमा विचार्य के, अहो ! आ | तेज योगी छे, के जे पूर्वे मारे घेर सिद्धरसनु तुंबडं मूकीने गयो हतो. ॥ १९ ॥ पछी पोते चिंताग्रस्त छतां पण बुद्धिना ₹ निधान सरखा ते पद्मसिंहशाहे तुरत खरेखर घृतथी भरेल मनोवांछित भोजन कंदोइनी दुकानेथी तेने अपाव्यु. ॥ २० ॥ ॥१०॥ For Private And Personal use only Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shravan Aadhana Kendra www.kobaturm.org Acharya Sh Kailassagerull Gyanmandir वर्धमान चरित्रम्, ॥१०॥ चिंतातुरं वीक्ष्य स योगिनाथो । जगाद तं वत्स किमाकुलोऽसि ॥ स पद्मसिंहोऽपि तदावद- स्वं । संक्षेपतोऽस्मै निखिलं युदंतं ॥ १ ॥ निष्कास्य जटिकामेकां । जटातो योगिराडसी ॥ दत्वास्मै मौनमालंब्य । गतः क्वापि न वीक्षितः ॥ २२ ॥ आदाय पद्मसिंहस्तां । पथि पश्यनितस्ततः ॥ परं क्वापि न दृष्ट्वा त-मागतो हट्टकं पुतं ॥ २३ ॥ तेन हर्मजिता साक-मुपविष्टं निजबांधवं ॥ विलोक्यानयदेकांते । वातरं धीनिधिरयं ॥ १४ ॥ पछी ते पद्मसिंहशाहने चिंतातुर जोइने ते योगीराजे कयु के, हे वत्स! तुं व्याकुल केम छे? त्यारे ते पमसिंहशाहे पण पोतानो सघळो वृत्तांत संक्षेपथी ते योगीराजने कही संभळाव्यो. ॥ २१ ॥ त्यारे ते योगीराज (पोतानी) जटामांथी एक | जडी कहाडी तेमने दइ मौन धारण करी क्यांक चाल्यो गयो, अने जोवामां आव्यो नहि. ॥ २२ ॥ पछी पद्मसिंहशाह ते जडी लेइ मार्गमा आम तेम जोता हता, परंतु तेने क्यांय पण न जोवाथी तुरत (पोतानी) वग्वारे आव्या. ॥ २३ ॥ त्यां ते हडमत ठक्करनी साथे वेठेला पोताना बंधुने जोइने बुद्धिना निधान सरखा ते पद्मसिंहशाह ( पोताना) ते भाइने एकांते 51 लेइ गया. ॥२४॥ ॥१०॥ For Private And Personal use only Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra वर्धमान ॥१०६॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गदित्वा निजवृत्तांतं । सकलं जटिकां ततः ॥ दर्शयित्वा जगौ सोऽथ । वृत्तांतं योगिनो डुतं ॥२५॥ पद्मसिंहं निशम्येति । वर्धमानो मुदा जगौ ॥ नः खलु गोत्रदेवीयं । योगिरूपविधायिनी ॥ २६ ॥ वैवात्र सहस्राणि । मुद्रिकाणां विलोक्य सा ॥ जांडागारेऽधुना नून-मस्मदीये समुत्सुका ॥ २७ ॥ पदो रक्षणायैषा-स्माकं नूनमिहागता ॥ ददौ ते जटिकामेतां । चित्रवल्लीसमुद्भवां ॥ २० ॥ युग्मं ॥ वर्धमानसमादिष्टः । पद्मसिंहोऽथ तां न्यधात् ॥ जटिकां सपदि स्वीय-जांमागारे सुरक्षितां ॥ २९ ॥ पछी पोतानुं सघळु वृत्तांत कहीने अने जडी बतावीने ते पद्मसिंहशाहे योगीनुं वृत्तांत तुरत कधुं ।। २५ ।। त्यारे एवी तनुं वचन सांभळीने वर्धमानशाह (पोताना बंधु ) पद्मसिंहशाहने हर्षथी कहेवा लाग्या के हे बंधु ! योगीना रूपने धारण करनारी खरेखर ते आपणी गोत्रदेवी हती. ।। २६ ।। खरेवर तेणी आपणा भंडारमां आ वखते नव हजारज सोनामहोरो जो उतावळी आपणने आपदार्माथी उगारवा माटे खरेखर अहिं आवी हती, अने चित्रावेलथी उत्पन्न थयेली आ जडी तेणीए तने आपीछे. ।। २७ ।। २८ ।। पछी वर्धमानशाहनी आज्ञाथी पद्मसिंहशाहे ते जडीने तुरत सारी रीते साचवीने पोताना भंडारमां मकी. ॥ २९ ॥ For Private And Personal Use Only चरित्रम्. ॥१०६४ Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirm.org Acharya Shri Kailasagarsur Gyanmandir माम ॥१०॥ MAHESHLAUSER ततोऽर तोलयित्वादा-न्मुद्रिकानवलक्षकं ॥ सौवर्ण स्वीयहस्तेन । तस्मै हर्मजिते ह्यसौ ॥३०॥ IPचरित्रम विस्मितो वेपमानांगो। जयेन शकटे नृतं ॥ सोऽपि तत्सकसं अव्यं । गृहीत्वा मौनभाग्ययौ।३१। जांडागारे सहस्राणि । मुखिकाणां नवात्र तौ ॥ ऐक्षतामयाण्येव-महो नाग्यविशालता ॥३॥ बांधवं तमथ वर्धमानको। बंधुरं मधुरवागयं जगौ॥ज्रातरत्र वसनं च नः पुरे।श्रेयसेन हि विलोकयाम्यहं ॥३॥ध्रुवमथो वसनं व्यसनप्रदं । प्रकुपिते नृपतौशठसंगते॥ह पुरे प्रवरेऽपि वरेण्य नो निजकुटुंबनरोरुहितैषिणां ॥ ३४ ॥ पछी तेणे पोताने हाथे नवलाख सोनामहोरो तोलीने तुरत ते हडमतठक्करने आपी. ( वर्धमानशाहनी ते वखार आजे ४. पण नवानगरमा नवलखाना नामथी ओळखाय छे.) ॥ ३० ॥ पछी आश्चर्य पामेलो तथा मयथी कंपता शरीरवालो ते हडमतठकर पण ते सपळु द्रव्य गाडामा भरी लेइ कंड पण बोल्या विना चाल्यो गयो. ॥ ३१ ।। पछी ते बन्ने भाइओए (पोताना) ते भंडारमा नवहजार सोनामहोरोने अक्षतज जोह, अहो भाग्यनुं विशालपणुं (के के) ॥ ३२ ॥ त्यारवाद ते वर्धमानशाहे (पोताना) ते मनोहर बांधवने मधुरवाणीवी कथु के, हे भाई! (हवे) आ नगरमा आपणो निवास हुँ खरे- ॥१०॥ खर कल्याणकारी जोतो नथी. ॥३॥ वळी हे उत्तम बंधु : दुष्टनी सोबतवाळा राजानो कोप थवाथी आ उत्तम नगरमा पण | आपणा कुटुंबना समूहनु उत्तम हित इच्छनारा पवा आपणनुं वसवू अहिं खरेखर कष्ट आपनाएं यशे. ॥ ३४ ॥ SUCHCHAARAKAR For Private And Personal Use Only Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra वर्धमान॥१०८॥ *%%%% অ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इति निशम्य सुधामधुरं वचः । प्रमुदितो गदितं निजबंधुना ॥ यवददेष हितं वचनं हि वो । निजकुटुंब सुरक्षणकांक्षिणां ॥ ३५ ॥ अथ तौ चातरौ प्रातः । प्रयाणाय कृतत्वरौ ॥ नागनाबंदिरे प्राप्तौ । कुटुंबेन युतौ ततः ॥ ३६ ॥ सहस्राण्यथ चत्वारि । ह्योशज्ञातीयदेहिनां ॥ निर्गतानि तदा साकं । ताभ्यां मुक्त्वा पुरं ह्यदः ॥ ३७ ॥ वस्त्रालंकारपात्रादि । निखिलं गेवस्तुकं ॥ ते समारोयानेषु । गता जडावतीं पुरीं ॥ ३८ ॥ तमाता चापसिंहश्च । नेणसिंहोऽपि नागमः ॥ अष्टशतौशज्ञातीयां-गिभिः सार्धमिद स्थितौ ॥ ३५ ॥ एत्री रीते पोताना भाइए कलां अमृत सरखां मधुर वचनने सांभळीने हर्षित थयेला ते पद्मसिंहशाहे क के आपणा कुटुंबना रक्षणनी इच्छावाळा एवा जे तमो तेओनुं आ वचन खरोखर हितकारी छे ।। ३५ ।। पछी ते वने भाइओ प्रमाण माटे उतावळ करीने प्रभाते कुटुंब सहित त्यांथी नागना बंदरमां आव्या. || ३६ || ते वखते तेओनी साधे आ नवानगरने छोडीने ओशवाल ज्ञातिना चार हजार माणसो निकल्या. ।। ३७ ।। तेओ सघळा वस्त्र, आभूषण, पात्र, आदिक सघळी घरवखरी वहाणोमां चडावी भद्रावती नगरीए गया. ॥ ३८ ॥ परंतु तेओना भाइ चांपसीशाह तथा नागडा गोत्रवाळा ने शीशाह पण ओशवाल ज्ञातिना आउसो माणसोनी साथे अहीं नवानगरमांज रह्या ॥ ३९ ॥ For Private And Personal Use Only चरित्रम्. ॥१०७॥ Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Maha Athana Kendra www.kobaert.org Acharya Shri Kailasagers Gyanmar वर्धमान ॥१०॥ श्रुत्वा वृत्तांतमेनं च । कुपितो भूपतिस्तदा ॥ दर्मजितं तमाइया-मारयन्निजकासिना ॥४०॥ चरित्रम, वर्धमानस्तदाहतो। इतनाव निपेन सः॥ पश्चादागमनायाथ । परमेषस्तु नागतः॥४१॥ गतो जमावतीं वर्ध-मानो बांधवसंयुतः॥ सत्कृतस्तत्र नूपेना-वसत्प्रमुदितः पुनः ॥४२॥ स्वाश्रितांस्तान् जनान् सर्वान् । नानाकार्येषु योजयन् ॥ वाणिज्यमकरोरि । जटिकायाः प्रसादतः ॥४३॥ युग्मं॥ इतोऽत्र नगरे नव्ये । चापसिंहो नृपाझ्या ॥ स्वाधीनं सकलं चक्रे । वर्धमानगृहादिकं ॥ ४ ॥ ते वखते आ वृत्तांत सांभळीने कोपायमान थयेला राजाए (जामश्री जसाजीए) ने हडमत करने बोलावीने पोतानी तलवारथी मारी नाख्यो. ॥ ४० ॥ त्यारबाद राजाए नोकरमारफत ( अर्थात् पोताना हजुरीने मोकलीने ) ते वर्धमानशाहने पाछा बळवा माटे चोलाम्पा, परंतु ते आव्या नहि. ॥ ४१ ।। पछी पोताना ते बांधव सहित भद्रावती नगरीमा गयेला एवा वर्धमानशाह शेठ ( त्यांना) राजाए सत्कार करायेला छता हर्षित थइने रहेबा लाग्या, अने पोताना आश्रित एवा ते सघळा मनुष्योने ( पोतानी साथे आवेला चार हजार ओशवालोने) नाना प्रकारना कामोमा जोडता यका जडीना IR॥१०॥ प्रसादथी फरीने त्यां घणो व्यापार करवा लाग्या. ॥ ४२ ॥ ४३ ।। हवे अहीं नवानगरमां राजानी आज्ञाची चांपसीशाहे 8| वर्धमानशाह शेर्नु घर आदिक सघलु पोताने स्वाधीन करी लीधुं. ॥ ४४ ॥ COACLOCASC+C45Ck ॐॐॐॐ For Private And Personal use only Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirm.org Acharya Shri Kailasagarsur Gyarmandie पर्षमान- प्रासादः शांतिनाथस्य । वर्धमानकृतो महान् ॥ अपूर्णश्च तथा स्तोकं । स्थितो नाविनियोगतः।४५॥ | चरित्रम, चतुर्मुखोरुप्रासाद-शिखरे के जमाविद ॥ पाश्वयोर्मुख्यशृंगस्य । ह्यपूर्णे एंव संस्थिते ॥ ४६॥ ॥११०॥ गवाक्षालिस्तथैवात्र । मंडपा अपि चैतयोः ॥ जाविप्रावख्यतो नून-मपूर्णा एव संस्थिताः ॥ ४ ॥ तथापि शांतिनाथस्य । प्रासादोऽयं विराजते ॥ विमानमिव देवानां । कीर्तिस्तंभ इवैतयोः ॥४॥ गुप्तभूमिगृहादिनां । व्यवस्था सुदुर्खना ॥ विद्यते बिंबकादिनां । कदाचिअक्षणकृते ॥४॥ ___हवे वर्धमानशाहे बंधावेलु श्री शांतिनाथजीनुं ते महोटुं मंदिर भाविना नियोगथी थोडं अपूर्ण रही गयुं हतुं. ॥ ४५ ॥ ते जिनमंदिरनी भमतीमा ( फरतीमा ) मुख्य शिखरनी बन्ने बाजुए आवेली बने चोमखोपरना बन्ने शिखरो अपूर्णज रह्या. ॥ ४६ ॥ तेवीजरीते ते चोमखना झरुखाओ अने मंडपो पण भाविनी प्रबलताने लेइ खरेखर अपूर्ण रही गया छे. ॥४७॥ तो पण आ शांतिनाथनो प्रासाद देवताओन जाणे विमान होय नहिं ! अथवा ते वर्धमानशाह तथा पद्मसिंहशाहनो कीर्तिनो जाणे स्तंभ होय नहि ? एम शोमे छे. ॥ ४८ ।। कोइ वखते मूर्ति आदिकनी रक्षा माटे आ मंदिरमा गुप्त भोयरा आदिकनी 18| दुर्लभ व्यवस्था करेली के. ॥४॥ दा॥११०॥ For Private And Personal Use Only Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailasagarsur Gyanmandir वर्षमान चरित्रम, ॥११॥ P अथैकदा सूरिवराः समेता । जव्यांबुजानीद विबोधयंतः ॥ भद्रावती नकृतो जनानां । क्रमेण कुर्वत इतो विहारं ॥ ५० ॥ समागतांस्तत्र मुनीशवां-स्तो श्रेष्टिवरों मुदितो विदित्वा ॥ वितेनतुर्वर्यमहोत्सवं त-त्प्रवेशनायाथ सुभक्तिमंतौ ॥ १ ॥ उपाश्रयं तेऽपि गताश्रवास्ततः । समागताः संघजनस्तुता नृशं ॥ वचोऽमृतैः संस्मृतितापतापिता-मितांगिनां तापमपूरयन्नथ ॥ ५५ ॥ ज्रातरावथ पृष्टौ तौ । सूरिकल्याणसागरैः ॥ नवीननगरोदंतं । सर्वमाचख्यतुर्दुतं ॥ ५३ ॥ AAAA हवे एवामा एक दिवसे भव्यरूपी कमलोने विकसित करता अने मनुष्योर्नु कल्याण करता एवा श्रीकल्याणसागर सूरीश्वर क्रमे करी आ तरफ विहार करता भद्रावतीमां पधार्या ॥५०॥ पछी त्यां (भद्रावतीमा) मुनीश्वर श्रीकल्याणसागरजीने | आवेला जाणीने ते उत्तम बने शेठीआओ हर्ष पाम्या, तथा तेमने त्यां पधराववा माटे उत्तम भक्तिवाळा ते बन्ने भाइओएमनोहर महोत्सव को. ॥५१॥ त्यारपछी आश्रवरहित तथा संघना लोकोथी घणी स्तुति कराता एवा ते मुनीश्वरो पण उपाश्रयमा आव्या, तथा वचनरूपी अमृत वडे करीने संसारना तापथी तपेला अगणित मनुष्योना तापने दूर करवा लाग्या. ॥ ५२ ॥ त्यारपछी ते कल्याणसागर सूरीश्वरजीए ते बन्ने भाइओने नवानगरनुं वृत्तांत पूछ्यं, त्यारे तेओए पण तुरत सपळु वृत्तांत कही संभळाच्यु.॥ ५३ ।। AACANCHECK ॥१११ For Private And Personal Use Only Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirm.org Acharya Shri Kailassagerul Gyanmandit पर्धमान ॥११२॥ योगितो जटिकावाप्ति-रपि ताभ्यां निवेदिता ॥ सद्गुरुन्यो यतो गोप्यं । नैव किंचिद्विवेकिनां ॥५४॥ चरित्रम्, ताभ्यां वारयं चैवं । योगिमेलापको जगे ॥ सुरिभ्यो हितकारिभ्य-स्तवृत्तांतपुरस्सरं ॥ ५५ ॥ विस्मिता मुनिवरा अपि स्वय-मेतयोरथ निशम्य तां गिरं ॥ श्रेष्टिनोनिजहृदीति ते तदा-ऽचिंत. यंत खनु को नु योगिराट् ॥५६॥ श्रुतोपयोगेन मुनीश्वरास्ततो । हृदीति चक्रुः स्वयमेव निश्चितं ॥ तदीयगोत्रामरिकाथ कालिका । प्रसन्नचित्तोपरि नूनमेतयोः ॥ ५७ ॥ वळी तेओए योगी पासेथी जडी मळी ते पण कयु, कारण के विवेकि पुरुषोने ( पोताना ) सद्गुरुओथी कांइपण छानु राखवा जेवू होतुंज नथी. ॥५४॥ अने ते योगीनो वृत्तांत कहेवापूर्वक ते बन्ने भाइओए बे वखत ते योगिनो जे मेलाप ८ थयो, ते पण हित करनारा ते (कल्याणसागर) सूरीश्वरजीने कही संभळाव्यो. ॥ ५॥ एत्री रीते ते बन्ने शेठीआओनी ते (उपर कहेली ) वाणीने सांभळीने विस्मय पामेला ते मुनीश्वर पण त्यारे ते योगीराज निश्च कोण हशे? एवी रीते पोताना हृदयमा विचार करवा लाग्या. ॥६॥ त्यारपछी ते मुनीश्वरे श्रुतज्ञानना उपयोगथी (पोताना) हृदयमा पोतानी मेळेज || एम निश्चय कर्यो के तेओनी गोत्रदेवी कालिका खरेखर आ बन्ने उपर प्रसन्न थइ . । ५७॥ ॥११॥ For Private And Personal Use Only Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagerul Gyanmandit पर्धमान - योगिरूपममरी विकुळ सा । कालिका किल तयोः सहायदा ॥ सर्वदास्ति वरदानयंत्रिता । पूर्व- चरित्रम् जप्रवरलालणार्चिता ॥७॥ वर्धमानस्ततोऽपृछत् । सूरीणां क्रमयोर्नतः ॥ नगवन् योगिनाथोऽ-15 ॥११३॥ सौ। क इति मम कथ्यतां ॥ ५९ ॥ निवेदयामासुरिमे मुनीश्वरा । अपि श्रुतझानसमुद्रपारगाः ॥ वृत्तं समस्तं च तदीयपूर्वजो-रुलालणस्याथ सविस्तरं तयोः ॥ ६० ॥ इति निशम्य मुनीशनिवे. दितं । प्रमुदितौ निजपूर्वजवृत्तकं ॥ पुलकितौ किल सुरिपदांबुजा-नतिपरौ वदतःस्म च बांधवौ।६।। कारण के तेमना पूर्वज एवा उत्तम लालणथी पूजाएली अने वरदान देवाथी बंधायेली ते कालिका देवी खरेखर योगीनुं रूप धारण करीने तेश्रो बन्नेने हमेशा सहाय करनारी थइ छे. ॥ ५८ ।। त्यारबाद ते सूरीश्वर श्रीकल्याणसागरजीना चरणोमां नमेला वर्षमानशेठ पूछवा लाग्या के हे भगवन् ! ते योगिराज कोण हता? ते कृपा करी मने कहो? । ५९ ॥ त्यारे श्रुतज्ञानरूपी समुद्रने पार पामेला आ श्री कल्याणसागर मुनीश्वरे पण तेओना पूर्वज एवा उत्तम लालणनु सपळु वृत्तांत विस्तार सहित ते वनेने कही संभळाव्यु.॥६० ॥ एवी रीते मुनीश्वरे कहेलु पोताना पूर्वजनुं वृत्तांत सांभळीने खरेखर हर्षित ॥११३॥ थयेला अने रोमांचित थयेला ते बन्ने भाइओ सूरीश्वरना चरणोमा नमस्कार करता छता कहेवा लाग्या के, ।। ६१ ॥ ANCHORCHACHUSIAS ॐॐॐॐॐ535 For Private And Personal Use Only Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Sh Kailasagarsur Gyanmandir चरित्रम्, पर्धमान-5 गोत्रदेव्याश्च तस्या नः । क्वास्ति स्थानं मनोहरं ॥ लालणाराधितायास्तु । वद नगवंश्च तत्।६श श्रुत्वेति सूरयोऽवोचन्। युष्माकं गोत्रदेवता॥ महाकालीति सा ख्यातापावापुर्गनिवासिनी ।६३। ॥१९॥ श्रेष्टिनाविति निशम्य सूरितः । तुर्णमेव हृदि इर्षमापतुः ॥ तत्र तच्चरणयोनतेर्मुदा-ऽकुर्वतामथ मनोरथं च तो ॥६४॥ अथ मनोरथमेन मिमौ च तौ । मुनिवराय निवेद्य गृहं गतौ ॥ नतिपरावमितं मुदितो हृदो। हृतमलौ मिलितांजलिसंपुटौ ॥६५॥ हे भगवन् ! ( अमारा पूर्वज ) लालणे आराधन करेली ते अमारी गोत्रदेवीनु मनोहर स्थान कयां छे? ते (कृपा करीने) आप कहो? ।। ६२ ।। आबु ते बन्नेनुं वचन सांभळीने सूरीश्वर कहेवा लाग्या के, तमारी ते गोत्रदेवी महाकाळी एवा नामथी प्रख्यात छे, तथा ते पावागढपर निवास करनारी छे. ॥ ६३ ॥ सूरीश्वरजीनु आवी रीतर्नु वचन सांभळीने ते बन्ने भाइओ एकदम हृदयमा हर्ष पाम्या, अने त्यां पावागढ पर ते महाकालीदेवीना चरणोमा नमवानो आनंदवी मनोरथ करवा लाग्या. ॥६४॥ त्यारवाद (पोतानो) आ मनोरथ ते मुनिवरनी पासे निवेदन करीने नमन करवामां परायण एवा, अति हर्षित थयेला, | हृदयमाथी नाश थयेल छे मेल जेनो एवा, अने जोडेल छे हाथ जेमणे एवा ते चन्ने भाइओ (पोताने) घेर गया. ॥६५॥ ॥११॥ For Private And Personal use only Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailasagarsur Gyanmandir वर्धमान ततः प्रजाते कृतमंगलावुभौ । कुटुंबयुक्तो चलितो च बांधवौ ॥ प्रमोदतस्तौ स्थलमार्गतो जुतं । चरित्रम रथाद्यनेकोचितवाहनस्थितौ ॥ ६६ ॥ एवं प्रयाणाय कृतप्रयत्नौ । कमेण पावाचलदुर्गमेतौ ॥ ॥११॥ एतौ युतौ स्वीयकुटुंबकेन । नतो कृतौचित्यकृती कृतज्ञौ ॥ ६७ ॥ क्रमाब्जयोयोजितहस्तयुग्मौ । स्वगोत्रदेव्याः किल कालिकायाः॥ विधाय पूजां विविधैर्विधान-स्ततः स्तवं चक्रतुरेकचित्तौ।६। युग्मं ॥अस्माकं कुलदेवी। सदैव रक्षापरा त्वमेवासि ॥ यावाच्यां कृपया ते । संकटजलराशिरुत्तीर्णः॥६॥ त्यार पछी प्रभाते करेल छे मंगल मुहूर्त जेमणे एवा ते बन्ने भाइओ ( वर्धमानशाह तथा पद्मसिंहशाह ) कुटुंब सहित हर्षथी स्थादिक अनेक उत्तम वाहनोमा बेशी जमीन मार्गथी जलदी चालता थया. ।। ६६ ।। एवी रीते प्रयाणने माटे करेल के यत्न जेणे एवा, पोताना कुटुंबथी युक्त एवा, करेला उपकारने जाणवावाला, क्रमें करीने पावागढमां आवेला, उचित काम करनारा, अने पोतानी गोत्रदेवी कालिकाना चरणकमलमा जोडेल छे वे हाथ जेणे एवा अने नमता एवा ते बन्ने भाइओ नाना प्रकारनी विधिओथी पूजा करीने एकचित्त थया थका ते देवीनी निश्च स्तुति करवा लाग्या. १६७।६८।। (हे कालिका 18/॥११५॥ देवी! ) तमें अमारी कुलदेवी छो, अने हमेशा ( अमारी ) रक्षा करवामां तमोज परायण छो, आपनी कृपाथीज अमो बन्ने 5] संकटना समुद्रने तरी गया छीये. ॥ ६९ ॥ HALCHALA SOCIALA For Private And Personal Use Only Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra वर्षमान११६॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रविधाय योगरूपं । दत्तं किल दर्शनं त्वयास्माकं ॥ तव कृपयैव सदैवा-वयोः सुखं सर्वतो मिलितं ॥ ७० ॥ इति वितत्य नुतिं नतितत्परौ । प्रमुदितौ च तदीयपदोस्तदा ॥ कृतिपरौ बत बंधुरबांधवावथगतौ किल तौ पटमंदिरं ॥ ७१ ॥ अतिविभासुरसुरविजित्वरं । किल विधाय मुदा निजरूपकं ॥ प्रकटमेव ततो निशि सामरी । बत समादिशतिस्म तयोरथ ॥ ७२ ॥ वत्सावहं प्रसन्नास्मि । युवयोर्ज क्तिदर्शनात् ॥ पूर्वजार्पितवाकूपाशैः । सदैवात्र नियंत्रिता ॥ ७३ ॥ बळी तमोए योगिराजनुं रूप लेइने अमोने खरेखर दर्शन दीधुं हतुं, तमारी कृपाथीज हमेशां अमने बधी जगोए मुख मल्यं ।। ७० ।। आधी रीते तेना चरणमा नमन करवामां परायण एवा तेओ बन्ने स्तुति करीने हर्षित थयेला (सत् ) - त्यां परायण तथा सुंदर एवा ते बन्ने भाइओ पोताना तंबूमां गया. ॥ ७१ ॥ त्यारपछी रात्रिमां ते (कालिका) देवी अति तेजस्वी एवा सूर्यना तेजने पण पराभव करना है पोतानुं खरेखर स्वरूप प्रगट करीने हर्षथी ते बन्नेने कहेवा लागी के, || ७२ || हे वत्सो ! तमारी भक्ति जोवाथी अने अहिं तमारा पूर्वज ( लालण ) ने आपेलां वचनरूपी पासथी हमेशांज बंधायेली हुं तमारा बन्ने उपर प्रसन्न यह छु. ॥ ७३ ॥ For Private And Personal Use Only चरित्रम्, ॥ ११६॥ Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shah Alachana Kenda www.kobaturm.org Acharya Shri Kallassagersur Gyanmandir वर्धमान ॥११७॥ ACHHAKKRA लक्ष्मीरूपधरा नित्यं । गोत्रे वास्त्रपदि स्थिता ॥ मन्नक्तिकारिणां कुर्वे । साहाय्यं सर्वतो वरं ॥३॥ +चरित्रम्, योगिरूपं विधायैवं । साहाय्यं जवतोर्मया ॥ हिवारं विहितं वर्य । वचःपालनहेतवे ॥ १५ ॥ इत्युक्त्वा प्रतिमामेकां । स्फटिकोपलनिर्मितां ॥ निजां ताभ्यां च दत्वा पा-गंताने बभूव सा ॥१६॥ अथ प्रातरुजावेता-वेतस्या मंदिरस्य च ॥ जीणोंकारं च सद्भक्त्या । कारयामासतुरं ॥ १७॥ इति विहितसुकृत्यो चातरौ मन्यमानौ । निजमथ कृतकृत्यं तौ कुटुंबेन युक्तौ ॥ निजनगरमरं वे मोदमानौ समेतौ । धनवितरणतुष्टैश्चारणैः स्तूयमानौ ॥ १७ ॥ ____तमारा गोत्रमा लक्ष्मीना रूपने धारण करनारी हुं हमेशां त्रीजी पेढीए रहेली छु, तथा मारी भक्ति करनाराओने चोतरफथी उत्तम रीते हुं मदद करुं छु. ।। ७४ ।। अने तेथीज में (मारु) वचन पाळवा माटे चे वार योगीनु रूप धारण करीने तमारी सहायता उत्तम रीते करी छे. ।। ७५ ।। एम कहीवे स्फाटिकमणिनी बनावेली पोतानी एक प्रतिमा (मूर्ति) ते बन्ने भाइओने आपीने एकदम ते ( देवी कालिका) अंतर्ध्यान थइ गइ. ॥ ७६ ॥ त्यारपछी प्रातःकाले ते बन्ने भाइओ तुरत आ (कालिकादेवी )ना मंदिरनो जीर्णोद्धार उत्तम भक्तिवडे करवा लाग्या. ।। ७७ ।। त्यारवाद एवी रीते करेल के 18॥११॥ सत्कृत्य जेणे एवा, अने पोताने कृतकृत्य मानता एवा, धन आपवाथी प्रसन्न थयेला चारणोथी स्तुति कराता अने कुटुंबधी 2| युक्त हर्ष पामता थका ते बन्ने भाइओ तुरत पोताना नगरमा आव्या. ।। ७८ ॥ For Private And Persoesi Lise Onty Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra वर्धमान - ॥११८॥ 556 www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इति श्रीमद्विधिपगठाधीश्वर जट्टारक शिरोमणिश्रीमत्कल्याण सागरसूरीश्वरपट्टालंकारश्रीमदमरसागरसूरिविरचिते श्रीमलाणगोत्रीयश्राद्धवर्य श्रीमद्वर्धमानपद्मसिंह थेष्टिचरित्रे योगिरूपधारिणीगोत्रदेवतायाश्चित्रवल्लीज टिकाप्राप्तिपुण्यप्रकाशद्रव्य वृद्धिनावत्यागमन गोत्र देवी दर्शनादिवर्णनो नाम सप्तमः सर्गः समाप्तः ॥ श्रीरस्तु ॥ ॥ अथाष्टमः सर्गः प्रारभ्यते ॥ धर्मज्ञा शुभावेन । वर्धमानवधूर्व्यधात् ॥ गुरूपदेशतः सिद्ध-चक्राराधनमादरात् ॥ १ ॥ एव ते श्रीमान् विधिपक्ष गच्छाधीश्वर भट्टारकशिरोमणि श्रीमान् कल्याणसागर सूरीश्वरना पाटने शोभावनारा श्रीमान् अमरसागरसूरिजीए रचेका श्रीमान् लालणगोत्रना श्रावकोत्तम श्रीवर्धमान अने पद्मसिंहशेटना चरित्रमां योगरूपने धारण करनारी गोत्रदेवी पासेधी चित्रावेलनी जडीनी प्राप्ति, पुण्य प्रकाश, द्रव्यनी वृद्धि, भद्रावतीमां आगमन, तथा गोत्रदेवीना दर्शन आदिकना वर्णनरूप सातमो सर्ग समाप्त भयो. ॥ श्रीरस्तु ।। || हवे आठमो सर्ग प्रारंभ थाय छे. ॥ (त्यारपछी ) धर्मने जाणनारी वर्धमानशाहनी स्त्री (नवरंगदेवी ) उत्तम भाववडे करीने गुरुना उपदेशथी आदरपूर्वक सिद्धचक्र आराधन करवा लागी ॥ १ ॥ For Private And Personal Use Only चरित्रम्. ॥११८॥ Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra वर्धमान ॥११४॥ www.kobatirth.org. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संपूर्णे तपसि तस्यो - यापनं साकरोन्मुदा ॥ मुद्रिकाणां तया तत्र । लक्षयी व्ययीकृता ॥ २ ॥ भार्यया पद्मसिंहस्य । महाबुद्धिनिधानया ॥ विदितं ज्ञानपंचम्या - स्तपो धर्मविधित्सया ॥ ३ ॥ उद्यापनं तथा चक्रे । तपते शुभावतः ॥ विदिता ज्ञानजक्तिश्च । महोत्सवपुरस्सरं ॥ ४ ॥ अर्हदागमशास्त्राणि । लेखितानि तया तदा ॥ व्ययो द्विलकमुद्राणां । कृतोऽत्र शुजभावनः ॥ ५ ॥ जगडोर्निजपुत्रस्य । वीवादः श्रेष्टिना कृतः ॥ अघोर्हि वर्धमानेन । त्रिलक्षमुद्रिकाव्ययात् ॥ ६ ॥ उष्ट्राणां सहस्राणि । चारणेभ्यस्तदा ददौ । चत्वारि चतुरः श्रेष्टि-वर्योऽसौ वर्धमानकः ॥ ७ ॥ अने तप पूरुं थये तेणीए हर्षथी ते ( तप )नुं उद्यापन कर्यु, तेमां तेणीए वे लाख सोनामहोरोनो खर्च कर्यो. ॥ २ ॥ ( तेवी रीते ) पद्मसिंहशाहनी महाबुद्धिना निधानरूप खीए ( कमलादेवीए ) धर्म करवानी इच्छाश्री ज्ञानपंचमीनो तप कर्यो. ॥। ३ ।। अने ते तपने अंते शुभभावथी तेणीए उद्यापन करें, अने महोत्सवपूर्वक ज्ञानभक्ति करी ।। ४ ।। ते वखते तेणीए जिनेश्वरमवना आगम शास्त्रो लखाव्यां, अने तेमां शुभभावथी वे लाख सोनामहोरोनो तेणीए खर्च कर्यो ।। ५ ।। वर्धमानशाह शेठे पोताना न्हाना पुत्र जगदुशाहनो त्रण लाख सोनामहोरोनो निचे खर्च करी विवाह कर्यो || ६ || ते वखते चतुर अने शेठीआओम पण महोटा एवा आ वर्धमानशाह शेठे चार हजार ऊंट चारणोने आप्या. ॥ ७ ॥ For Private And Personal Use Only + चरित्रम्. ॥११५॥ Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirm.org Acharya Shri Kailassagerul Gyanmandit चरित्रमा वर्धमान-31 पद्मसिंहोऽपि पुत्रस्य । रणमसानिधस्य च ॥ मुद्रिकाणां त्रिलक्षाणां । वीवाहे कृतवान् व्ययं ॥७॥ अमरसागरसूरिवरस्य च । कविवरस्य सुसूरिपदार्पणे ॥ सपदि सूरिवरस्य समाझ्या। प्रमुदितौ ॥११०॥ निजचेतसि बांधवौ ॥ ॥ हिलक्षमुधिकाणां तो।श्रेष्टिव? च चक्रतुः ॥ व्ययं साधर्मिकोछार -पूर्वकं शुनमानसौ ॥१०॥ युग्मं ॥ कौशांबीति पुरा यस्याः । ख्यातं नाम महीतले ॥ सां. प्रतं विद्यते भद्रा-वतीति विश्रुता हि सा ॥ ११ ॥ पुरा संप्रतिभूपेन । कारितं तत्र मंदिरं ॥ श्रीमत्पार्श्वजिनेशस्य । भव्यं जव्योपकारकं ॥ १२ ॥ (तेवी रीते ) पद्मसिंहशाहे पण रणमलशाह नामना (पोताना ) दीकराना विवाहमा त्रण लाख मुद्रिकानो खर्च कर्यो. का॥८ । बळी पोताना हृदयमा हर्ष पामेला एवा, अने उत्तम शेठ एवा ते बन्ने भाइओए आचार्य महाराज श्रीकल्याणसागर५ सूरिजीनी आज्ञाथी (आ चरित्रना रचनार) महाकवि श्रीअमरसागरसूरिजीने श्रेष्ट सूरिपद आपवामां तुरत वे लाख सोनामोहोरोनो खर्च शुभ चित्तथी साधर्मिकोनो उद्धार करवापूर्वक कर्यो. ॥९॥१०।। पूर्वे पृथ्वीमा जे नगरीनु कौशांबी एवं प्रख्यात नाम हतुं, ते नगरी हालमां भद्रावती एवा नामथी विख्यात छे. ॥ ११॥ पूर्वे संपति नामना राजाए त्या सुंदर अने भव्यजनोपर ४ा उपकार करनारुं श्रीमान्पार्श्वमभुर्नु मंदिर कराव्यु हतुं. ॥ १२ ॥ STORE ॥१२०॥ For Private And Personal Use Only Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailasagarsur Gyanmandir वर्धमान चरित्रमा ॥१२१॥ जीर्णोद्धारस्ततस्ताभ्यां । सूरीणामुपदेशतः ॥ कारितः सार्धलक्षस्य ।मुखिकाणां व्ययेन च ॥१३॥ नवीननगरे ताभ्यां । चापसिंहाय बंधवे ॥ स्वकारितार्हदागार-रक्षणाय सदैव हि ॥ १४ ॥ वाटिका नव क्षेत्राणि । चत्वारि च निजानि च ॥ मनोझा त्वेकपंचाश-दृश्रेणिः समर्पिता ॥१५॥ हिसक्षमुडिकाश्चापि । प्रेषिताः संघसादिकं ॥ मंदिरापूर्णकार्याणि । पूर्णीकर्तु सुभावतः॥१६॥ त्रिनिविशेषकं ।। परं नाविनियोगेन। न च पूर्ण बभूव तत् ॥ नूनं प्रयत्नतोऽप्यत्र । विधिरेव समर्थकः ॥१७॥ ___त्यारपछी ते श्रीकल्याणसागरसूरीश्वरना उपदेशथी ते बन्ने भाइओए दोढलास्त्र मुद्रिकाना खर्चथी ( तेज मंदिरनो) जीर्णोद्धार कराव्यो. ॥ १३ ॥ त्यारबाद ते चन्ने भाइओए नवानगरमा ( पोतानी मीलकतमांनी) नव वाडीओ, चार खेतर, अने सुंदर एवी एकावन हाटनी श्रेणी, ते पोते करेला उत्तम मंदिरनी हमेशा रक्षा थाय ते माटे चापसी नामना (पोताना) भाइने समर्पण करू, अने संघनी सालिए मंदिरना अपूर्ण काम पूरा करचा माटे उत्तम भावपूर्वक बे लाख मुद्रिका पण तेने मोकली. ॥ १४ ॥ १५ ॥ १६॥ परंतु भाविनी प्रबलताथी ते ( मंदिरनु अपूर्ण काम ) पूर्ण थयु नहि, खरेखर आ दुनीआमां प्रयत्नथी पण विधिज बलवान छे. ॥१७ ।। For Private And Personal Use Only Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirm.org Acharya Sh Kallassagarsur Gyanmandir वर्धमान-3 निजसाधर्मिकोझार-कृते ताभ्यां व्ययीकृताः । मुडिकापंचलक्षाश्च । जटिकायाः प्रजावतः ॥१०॥ चरित्रम्, श्रथो गतौ तौ वरबांधवावुभौ । श्रीउजायंते स्वकुटुंबयुक्तौ ॥ कर्तु पवित्रं निजजन्म दुलनं । ॥१५॥ 8 श्रीनेमिनाथांहिनिनंसयालं ॥ १५ ॥ ताभ्यां कृता तत्र विशुद्धचेतसा । श्रीनेमिनाथस्य पदाब्जसे- 5 वा ॥ महोत्सवेनाष्टदिनप्रमाणतः। संप्रीणितार्थिवजसंप्रशस्ता ॥२०॥ हिलदमुद्राव्ययतः कृतो. | ऽत्र । श्रीनेमिनाथोजिनालयस्य ॥ नकार आभ्यामिव संसृतेश्च । निजात्मनोः स्वांतविशुकजावात् ॥१॥ अने जडीना प्रभावथी पोताना साधर्मिक भाइओना उद्धार माटे तेओए पांच लाख कोरीनो खर्च कों. ।। १८ ।। त्यारपछी पोताना कुटुंबथी युक्त एवा ते बने उत्तम भाइओ दुर्लभ एवो पोतानो जन्म पवित्र करवा सारं श्रीनेमिनाथना चरणमां नमस्कार करवा माटे गिरनार पर्वतपर गया. ॥१७॥ त्यां जइने ते बनेए शुद्ध चित्तवडे करीने अष्टाहिक महोत्सवपूर्वक प्रसन्न करेला अर्थी श्रोना समूहथी वखणाएली श्रीनेमिनाथना चरणकमलनी सेवा करी. ॥ २० ॥ अने त्यां ॥१२॥ पोताना अंतःकरणना शुद्ध भावथी पोताना आत्मानो संसारथी उद्धार करता होय नदि Y? तेम श्रीनेमिनाथना मनोहर जिनमंदिरनो बे लाख मुद्रानो खर्च करी, तेओए जीर्णोद्धार को. ॥२१॥ For Private And Personal use only Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagerul Gyanmandit वर्धमान ॥१२३॥ | जवार्णवोत्तारणयानसन्निनं । ततो गतौ तौ कनकाजिशृंग ॥ श्रीआदिनाथोरुपदाब्जसेवया। चरित्रम निजात्मनोमोदमवापतुश्च ॥ २२ ॥ तान्यां ध्वजारोपणमत्र कारितं । हिलक्षमुद्राव्ययतो महेन॥ निजात्मनोमोक्षपदाधिरोपणं । कर्तु विशुद्धेन हृदेव नूनं ॥३॥ तारिंगतीर्थेऽथ ततो गताविमौ । संसारवारांनिधितारणेऽलं ॥ कुटुंबयुक्तौ शुभनावनावितौ। संप्रोणितार्थिवजगीतकीर्ती ॥ २४ ॥श्रजितनाथपदांबुजसेवया । सफलमत्र निजं कुरुतःस्म तौ॥जिननिकेतनमत्र तु जीर्णतां । गतमलं ह्यतितुंगमपश्यतां ॥ १५ ॥ त्यारवाद संसाररूपी समुद्रमाथी तारवाने वहाण सरखा शत्रुजय पर्वतना शिखर प्रत्ये ते बन्ने भाइओ गया, अने त्यांना | श्रीआदिनाथना मनोहर चरणकमलनी सेवाथी पोताना आत्माने विष हर्ष पाम्या. ॥ २२ ॥ अने खरेखर पोताना आत्माने मोक्षपदमा स्थापित करवानेज जेमतेम विशुद्ध हृदयथी बने भाइओए वे लाख मुद्राना खर्चथी महोत्सवपूर्वक त्यां (ते नेमिनाथना मंदिर उपर ) धजा चडाववाचें काम कयु. ॥ २३ ॥ त्यारपछी कुटुंबथी युक्त एवा अने शुभभावथी शोभीता एवा अने प्रसन्न थयेला याचकोना समूहथी गवायेल छे कीर्ति जेनी एवा ते चन्ने भाइयो संसाररूपी समुद्रमांधी तारवामां समर्थ 18॥१२३॥ एवा तारिंग तीर्थमा (तारंगाजीपर) गया. ॥२४॥ अने त्यां ते बनेए श्रीअजितनाथना चरणकमलनी सेवावडे करीने पोताना जन्मने सफल कर्यो, अने त्यां तेओए अति उंचा अने अति जीर्ण थयेला ते (अजितनाथनां) पवित्र जिनमंदिरने जोयु. ॥२५॥ For Private And Personal use only Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirm.org Acharya Shri Kailassagerul Gyanmandit वर्धमान-5] सार्धद्विलक्षमुडाणां। व्ययेन विहितस्तदा। जीर्णोधारोऽस्य तीर्थस्य । ताभ्यां कल्याणदेतवे ॥२६॥ 1चरित्रम, ततोऽर्बुद गिरावेता-वेतौ श्रेयोऽभिलाषिणौ ॥ वकीयोरुकुटुंबेन । सहितौ हितकारिणि ॥ २७ ॥ ॥१२॥ वीक्ष्य तत्र विमलेन कारितं । मंदिरं वृषजनाथमंडितं ॥ वर्यशिल्पकलितं मनोहरं । तावुभौ हृदि निजे चमत्कृतौ ॥रा रंगमंझपमनपशिल्पकं । सुंदरं गजगणोरुमंदिरं ॥ स्वर्ग एव नुवि किं समागत-स्तत्र वीक्ष्य खलु मन्यतःस्म तौ ॥ १९ ॥ वस्तुपालपरिनिर्मितं तथा । नेमिनाथवरमंदिरं ततः ॥ संविलोक्य किल चित्रितावुभौ । मानसे परममोदमापतुः ॥ ३० ॥ त्यारे ते बन्नेए (पोताना ) कल्याण माटे आ तीर्थनो अढी लाख मुद्राना खर्चबडे करीने जीर्णोद्धार कर्यो. ॥ २६ ॥ पात्यारपछी पोताना उत्तम कुटुंब साथे कल्याणनी इच्छावाळा ते बन्ने भाइओ हितकारी अर्बुद गिरि उपर (आबु पर्वतपर) गया. ॥ २७ ॥ त्यां विमलशाहे बनावेलुं वृषभनाथ प्रभुथी शोभतुं उत्तम कारीगरीवाळु मनोहर मंदिर जोइने ते बन्ने पोताना हृद| यमा आश्चर्य पाम्या. ॥ २८ ॥ त्या ते जिनमंदिरमा अतिशय कारीगिरीवाळा सुंदर रंगमंडपने तथा हाथीओना समूहनी 151 विशाल शाळाने जोइने तेओ पोताना मनमा खरेखर एम मानवा लाग्या के, शुं अहिं पृथ्वीपर स्वर्गज आवेलो के? ॥२२॥ ॥१४॥ बळी पछी त्या वस्तुपाले बनावेलु नेमिनाथप्रभुनु उत्तम मंदिर जोइने खरेखर ते बन्ने आश्चर्य पाम्या थका मनमा अति ह४ा ने पामवा लाग्या. ॥ ३०॥ For Private And Personal Use Only Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirm.org Acharya Sh Kallassagarsur Gyanmandir है चरित्रम्, वर्धमान वीक्ष्य तत्राद्जुतां सर्वा। शिपकर्मेकवार्णकां ॥मन्वाने कारकं तस्य । जुवि धन्यतमं च तौ॥३१॥ ततस्तो शुभभावेन । जीर्णोकारं योरपि ॥ मुद्रिकापंचलःश्च । चक्रतुर्जिनगेहयोः ॥ ३ ॥ ११२५॥ मंत्रीशवस्तुपालस्य । तेजपालान्वितस्य च ॥ तथैव विमलस्यापि । कीर्तिस्तंभनिने उत्ने ॥ ३३ ॥ अर्बुदाचलशृंगोरु-मुकुटे जिनमंदिरे ॥ तावेतौ परमानंदं । वीक्षमाणौ मुहर्मुहुः ॥३४॥ युग्मं ॥ ततः समुनीर्य नगेंद्रतस्तौ । सम्मेतशैलानिधतीर्थमेतौ ॥ जिनालिमोक्षाधिगमातिपूतं । सुपुर्लभ नव्यमभव्यर्बुदैः ॥ ३५ ॥ तेमां कारिगिरीना सर्व प्रकारना अद्भुत नमुनाने जोइने ते मंदिरना बनावनारने ते बन्ने पृथ्वीमा अति धन्य मानवा * लाग्या. ॥ ३१ ॥ त्यारपछी ते बॅन्ने भाइओए शुभ भाववडे ते बन्ने जिनमंदिरोनो पण पांच लाख मुद्रिका खरचीने जीर्णो द्धार कर्यो. ।। ३२ ॥ तेजपाल सहित मंत्रीश्वर वस्तुपालना तेमज विमलशाहना पण कीर्तिना स्तंभ एवां अने अर्बुदाचलना ४ शिखरना मनोहर मुकुटरूप एवां ते बन्ने जिनमंदिरोने ते बन्ने भाइओ वारंवार जोता थका परम आनंद पाम्या. ॥ ३३ ॥ ॥३४॥ त्यारवाद बन्ने भाइओ ते पर्वतथी ( अर्बुदाचलथी) उतरीने जिनश्रेणिनी मोक्षपातिथी अति पवित्र ए अने अभ2 व्योना समूहे अति दुर्लभ ए, सुंदर सम्मेतशैल नामनु जे तीर्थ ते प्रत्ये गया. ॥ ३५ ॥ ॥१२५॥ For Private And Personal Use Only Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirm.org Acharya Shri Kailasagarsur Gyanmandir चरित्रम. वर्धमान-3 विधाय पूजां वरपादुकानां । तत्राईतां विंशतिसंख्यकानां ॥धन्यं निजात्यानममन्यतां तौ। संसारवा. 15/ धैरिव पारतं ॥३६॥ विक्षोक्य दुर्गमं वर्य-शैक्षारोहणमत्र तौ॥यात्रिकाणां च नव्यानां। सुवारोहण हेतवे।३। साहिलक्षमुडाणां । पदश्रेणीर्व्ययेन च ॥ कारयामासतुर्मुक्ति-सौधनिःश्रेणिका श्व ॥३॥ युग्मं । एवं सुपंचतीर्थानां । मुख्यानां शुजनावतः॥यात्राश्च विहितास्ताच्यां। मोदैकफलदा ध्रुवं ।३॥ वैजारचंपाकाकंदी। पावाराजगृहादयः॥ वाराणसीदस्तिनाग-पुर चनृतयस्तथा ॥४०॥ तीर्थकरपदाभोजैः । पवित्रास्तीर्थभूमयः ॥ जावतो वंदितास्ताभ्यां । भूरिजव्यव्ययेन च ॥४१॥ युग्मं ॥ त्या वीस तीर्थकरोनां उनम पगलांओनी पूजा करीने ते बन्ने भाइओ पोताना आत्माने संसारसमुद्रवी पार पामेलो होय नहि |? नेम पन्य मानवा लाग्या. ।। ३६ ॥ अने ते वन्ने अहिं (आ) उत्तम पर्यंत उपर चडवू अति कठिन छ, एम जाणीने भव्य यात्रिकोने मुखथी चढवाने माटे अढी लाख मुद्राना खर्चथी मुक्तिना महेलनी नीमरणी हाय नहिं |? तेम पगथि बंधाव्या. ।। ७ ।। ३८ एवीरीने मुख्य एवां उत्तम पांच तीर्थोनी सारा भाव पीते चन्नेए खरेखर मोक्षना फलने | आपनारी यात्राओ करी. ॥३९॥ वैभारगिरि, चंपा, काकंदी, पावा, राजगृह आदिक तेवी रीने बाणारसी, हस्तिनापुर, इत्यादि तीर्थंकरोना चरणकमलोबडे पवित्र थयेली तीर्थभूमिओने ते बन्ने भाइओए घणा द्रव्यना खर्चथी भावपूर्वक नमस्कार कर्या.॥४०॥४१॥ |१२६॥ a For Private And Personal Use Only Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra वर्धमान ॥ १२७॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इति विदितसुकृत्य तीर्थयात्रापवित्रा व मितधनसुदानात्प्रीतिार्थिजनौघौ ॥ अतिमुदित कुटुंब चातरौ तौ समेतौ । निजनगरमविघ्नं नंद्यमानौ जनौघैः ॥४२॥ इति श्रीमद्विधिपगबाधीश्वरनहारक शिरोमणिश्रीमत्कल्याणसागरसूरीश्वर पट्टालंकारश्री मदमर नागरसूरिविरचिते श्रीमलाल गोश्रीयश्रावर्य श्रीमद्वर्धमानपद्मसिंह श्रेष्टिचरित्रे तत्कृतानेक तीर्थयात्राचित्रवल्लोजटिका माहात्म्यामि तद्रव्यव्ययादिपुण्य प्रजाववर्णनो नामाष्टमः सर्गः समाप्तः ॥ श्रीरस्तु ॥ एवी रीते करेल के उत्तम कृत्यो जेणे एवा तीर्थयात्राथी पवित्र थयेला, अतिघनना उत्तम दानवी मन करेल के अ जनना समूह जेणे एवा, अति हर्षित कुटुंबवाळा मनुष्योना समूहोथी खणाता ते बन्ने भाइयो निर्विशे पोताना नगरां आया. ॥ ४२ ॥ एवी रीते श्रीमान् विधिपक्षगच्छाधीश्वर भट्टारकशिरोमणि श्रीमान् कल्याणसागरसूरीश्वरना पाटने शोभावनारा श्रीमान् अमरसागरसूरि जीए रचेला श्रीमान् लालणगोत्रना श्रावकोत्तम श्रीमान् वर्धमान अने पद्मसिंहशेठना चरित्रमा तेओए क रेली अनेक तीर्थोनी यात्रा, तथा चित्रावेलनी जडीना माहात्म्ययी करेलो अगणित द्रव्यनो खर्च तथा पुण्यमभावना वर्णनरूप आठमो सर्ग समाप्त थयो । श्रीरस्तु ॥ For Private And Personal Use Only चरित्रम्, ॥१२७॥ Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shah Ahana Kenda www.inbaarm.org Acharya Shri Kailasagarsur Gyanmar वर्धमान चरित्रम्. ॥१५॥ ॥ अथ नवमः सर्गः प्रारभ्यते ॥ यायुः प्रपूर्याथ निजं स एवं । ट्यशीतिवर्षप्रमितं मनोइं॥ श्रीवर्धमानो निजबंधुसेवितः। श्रीवीरपालादिचतुः सुतैश्च ॥१॥ संसेवितः पौत्रगणालिनिश्च । तीर्थकराणां शरणं विधाय ॥ समाधिना मृत्युमवाप्य शीघ्र-माराधनातश्च जगाम नाकं ॥२॥ युग्मं ॥ चातुर्वियोगजं पुःखममानं मानसे वहन् ॥ कारयामास तस्याथ । मृतकार्याणि पद्मकः ॥३॥ हादशलक्षमुद्राणां । व्ययेनासावजोजयत् ॥ कबदेशं च हालारं । पक्वान्नैर्विविधैः समं ॥४॥ ॥ हवे नवमो सर्ग प्रारंभ थाय छे. ॥ I पछी एवी रीते पोताना पंधुथी अने श्रीवीरपाल आदिक चार पुत्रोधी सेवा कराता ते श्रीमान् वर्धमानशाहशेठ पोतानुं सुखाकारी ब्यासी वर्षतुं आयुष्य पूर्ण करी पौत्रोना समूहथी पण उत्तम सेवा कराता थका तीर्थंकरोतुं शरण लेइने आराधनाथी | जलदी समाधिवडे मृत्यु पामीने स्वर्गे गया. ॥१॥२॥ त्यारे पद्मसिंहशाह (पोताना) भाइना वियोगथी थ अमाप दुःखने चित्तमा धारण करता यका तेनी उत्तरक्रियानां कार्यों करवा लाग्या. ॥ ३॥ (तेमां) आ पद्मसिंहशाहे वारलाख | मुद्राचं खर्च करी नाना प्रकारना पकानो (मीठाइ )वडे करीने एकी वखते कच्छदेश अने हालारदेशने नमाड्यो. ॥ ४॥ ॥१२॥ For Private And Persons Lise Only Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shravan Anna Kenda www.kobauit.org Acharya Sh Kailasagarsur Gyan and चरित्रम्, वर्धमान त्रिलक्षमुद्राव्ययतस्ततोऽसौ । तदग्निसंस्कारसुभूमिकायां ॥ चकार वापी वरवारिरम्यां । सुशिल्प- रम्यां निकटे पुरोऽस्याः॥५॥ पाश्वेऽस्या देवकुक्षिकां । शांतिनाथ जिनेशितुः ॥ श्रेयोऽर्थ कारया॥१२९॥ मास । निजबंधोर्हितार्थ्यसौ॥६॥ अर्थातसमयं ज्ञात्वा । पद्मसिंहःस बुद्धिमान् ॥ वीरं च विजपा. लं च । जार्मलं जगहुँ तथा ॥ ७॥ चतुरो वर्धमानस्य । चतुरांस्तनुजाननि ॥ श्रीपालं कूरपाल च । रणमसानिधं तथा ॥७॥ त्रीनपि तनुजान् स्त्रीया-नाहृयामास वेगतः ॥ द्रव्य नागकृतेऽपृच्छत् । समस्तानपि तानसौ ॥ ॥ त्रिनिर्विशेषकं ॥ पछी ते पद्मसिंहशाहे ते वर्धमानशाहना अग्निसंस्कारनी पृथ्वी उपर त्रण लाख मुद्राना खर्चथी उत्तम कारी गिरीवाळी अने सुंदर (मीठा) जलथी शोभती आ शहेरनी (भद्रावतीनी) नजीकमा एक वाव बंधावी. ।।५।। अने तेनी पासे पोताना बंधुनुं सहित इनार आ पद्मसिंहशाहे कल्याण माटे शांतिनाथ जिनेश्वरनी देरी करावी. ।।६।। त्यारवाद बुद्धिशाळी ते पासिंहशाहे (पोतानो) अंत समय जाणीने वीरपाल, विजपाल, भारमल अने जगड नामना वर्धमानशाहना चार पुत्रोने तथा | श्रीपाल, कूरपाल, अने रणमल नामना पोताना त्रण पुत्रोने तुरत पोतानी पासे चोलाव्या, अने तेओ सर्वने द्रव्यना भाग 31 माटे पूज्यु. ॥ ७॥८॥९॥ For Private And Personal use only Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jan Aradhana Kendra www.kobalrm.org Acharya Shri Kailasagarsur Gyanmar ॥१३०॥ वर्धमान-3| तेऽप्यवोचन समस्तं नो। द्रव्यं तुल्यं विभज्य च ॥आयतिक्वेशनाशाय । देहि सांप्रतमेव हि ॥१०॥ पद्मसिंहोऽपि विज्ञाय । बुद्धिमान मानसे निजे ॥ विजक्तवसने वांबा तेर्षा नाविनियोगतः ॥११॥ हृदिनो जटीयुक्तां। पेटिकामुदघाटयत् ॥ नाग्यश्रेणिमिवामीषां । वत्सलानामहर्निशं ॥१॥ युग्मं॥ ततो निष्कास्य निष्कास्य । पेटातो निजइस्ततः ॥ सप्तलदोरुसौवर्ण-मुद्रिका यावता तदा ॥१३॥ गणितास्तावता तेन । जटिका तत्र नेक्षिता॥न चापि मुद्रिकैकापि । पेटिकायां मनस्विना ॥१॥ युग्मं. ESH ___ त्यारे तेओए पण कयुं के भविष्यकाळमां केशना विनाश माटे तमो हमणोज अमोने सघलु द्रव्य सरखे भागे वहेंची | आपो. ॥१०॥ त्यारे बुद्धिवान् एवा ते पासिंहशाहे पण भाविना प्रबलथी तेओनी जुदा रहेवानी इच्छाने पोताना मनमा जा णीने हृदयमा दुभाया थको हमेशां वत्सल एवा ते सघळाओनी जाणे भाग्यनी श्रेणि होय नहि तेम (चित्रावेलनी) जडी| वाळी पेटी उघाडी. ॥ ११ ॥ १२ ॥ पछी ते वखते पोताने हाथे ते पेटीमाथी कहाडी कहाडीने जेवामा तेमणे सात लाख सोनामहोरो गणी, तेवामा ते पेटीनी अंदर ते बुद्धिवान् पद्मसिंहशाहे ते जडी, तथा एक पण सोनामहोर जोइ नहि. 61565ॐ For Private And Personal Use Only Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirm.org Acharya Shri Kailassagerul Gyanmandit C वर्धमान ॥१३॥ HECASEARC%ACANCE तावदेव दि विज्ञाय । तेषां जाग्यं स बुद्धितः ॥ विनज्य तुल्य मेकैकं । मुद्रालक्षमथार्पयत् ॥१५॥ चरित्रम, ततोऽसौ कथयामास । वृत्तांतं निजमादितः ॥ तदने जटिकावाप्ति-गमनादिकथायुतं ॥ १६ ॥ अथासौ मेलयित्वारं । कुटुंबं सकलं निजं ॥ प्रतिमां गोत्रजायास्तां । स्फटिकोपलनिर्मितां ॥१७॥ वृक्षाय वीरपालाय। महाकालीसमर्पितां॥अर्पयामास विघ्नौघ-चारिणी हितकारिणीं ॥१०॥ युग्मं ॥ | जगौ च पूजनीयेयं । युष्मभिः सकलैरपि ॥ रक्षणीया प्रयत्नेन । वांछितार्थप्रदायिनी ॥ १९ ॥४ हवे तेणे ( पोतानी ) बुद्धिथी तेभो सर्वनुं खरेखर तेटलुंज भाग्य जाणीने तेओने एक एक लाख सोनामहोरो सरखे | भागे वहेंची आपी. ॥ १५ ॥ पछी तेणे ते चित्रावेलनी जडीनी प्राप्ति तथा तेनु चाल्या जवू इत्यादिक कथावालो पोतानो वृत्तांत पहेलेथी मांडीने तेओने कही संभळाव्यो. ॥१६॥ पछी तेमणे तुरत पोताना सर्व कुटुंबने एकहुं करी महाकालिए अर्पण करेली विनोना समूहने निवारनारी तथा हित करनारी एवी पोतानी गोत्रदेवीनी स्फटिक रत्ननी बनावेली ते प्रतिमा ( वर्ध ॥१३॥ मानशाहना) महोटा पुत्र विरपालने सोंपी, ॥१७॥१८॥अने कथु के तमो सघळाोए पण वांछित अर्थने देवावाळी आ प्रतिमानुं पूजन करवू, तथा यत्नपूर्वक तेनुं रक्षण करवू. ॥ १९॥ For Private And Personal Use Only Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirm.org Acharya Shri Kailassagerul Gyanmandit वर्धमान चरित्रम्, ॥१३॥ वाराध्या महाकालीयं । कष्टे किल समागते ॥ अष्टमोरुतपःपूर्व । प्रत्यक्ष्यं नविष्यति ॥ २०॥ गदित्वेति कुटुंबं स्वं । शांतचित्तो बभूव सः॥ अहंदादिशरण्यानां । शरणं जावयन् हृदि ॥१॥ पद्मसिंहो जगाम स्वः । कालेन कियता ततः ॥ सप्तसप्ततिवर्षायुः । प्रपूर्याराधनापरः ॥२२॥ योग्यव्यव्ययेनाथ। मृतकार्याणि तस्य तु ॥ कृतानि तनुजैस्तस्य । श्रीपालाद्यैरनेकधा ॥ १३ ॥ नार्या श्रीवर्धमानस्य । पद्मसिंहानिधस्य च ॥ अपि प्रथमं पत्यो-गते स्वर्ग समाधिना ॥२४॥ SACRORRHARMA बळी कष्ट आव्ये खरेखर तमारे अष्ठमना मनोहर तपपूर्वक आ महाकाली देवीनुं आराधन कर, के जेथी ते प्रत्यक्ष थशे. ( प्रत्यक्ष दर्शन आपशे. ) ॥ २० ।। एवी रीते पोतानां कुटुंबने कहीने ते पद्मसिंहशाह शरणुं करवा लायक एवा श्रीतीर्थकर आदिकनुं शरणु हृदयमा भावता थका शांतचित्तवाळा यया. ॥ २१ ॥ त्यारवाद केटलेक काळे ते पद्मसिंहशाह आराधनामा | तत्पर थया थका ( पोतार्नु ) सत्तोतेर वर्षनुं आयुष्य संपूर्ण करी स्वर्गे गया. ।। २२ ॥ पछी श्रीपाल आदिक तेना पुत्रोए योग्य द्रव्य खरचीने अनेक प्रकारे तेमनी उत्तरक्रिया करी. ॥ २३ ॥ वर्धमानशाह तथा पद्मसिंहशाहनी बनेनी बन्ने स्त्रियो पण ( पोताना ) पतिथी पहेलांज समाधिपूर्वक स्वर्गे गइ हती. ॥ २४ ॥ ॥१३॥ For Private And Personal use only Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra वर्षमान ॥१३३॥ www.kobatirth.org. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चरित्रम्, तनुजैरेतयोः स्वीय- स्वीयमात्रोश्व कारिते ॥ द्वे देवकुलिके कोण - ग्रामे पूर्वजरीतितः ॥ २५ ॥ नद्रावत्यामथान्येद्युर्महामारी प्रवर्तिता ॥ मरणं बहुलोकानां । तेन जातं जयप्रदं ॥ २६ ॥ शनैः शनैः ततश्चैवं । पुरी सोइसिता ततः ॥ प्रौढिमापि दद्दा तस्या । जग्रसे कालरक्षसा ||२७| त्यक्त्वा च सकलाः शेषा । लोकास्तां नगरीं ततः ॥ याताश्च निकटे दूरं । नानाग्रामपुरादिषु ॥२७॥ श्री पालाद्यास्त्रयो याता । चातरो मांडवींप्रति || वीरपालादयश्चापि । चातरो जुजमाययुः ॥ २७ ॥ पछी ते बन्नेना पुत्रोए (पोताना ) पूर्वजोना रिवाजमुजब डोण गाममां पोतपोतानी मातानी वे देरीओ करावी. ||२५|| हवे एवामां एक वखते ते भद्रावती नगरीमां मरकीनो महोटो उपद्रव थयो, अने तेथी घणा लोकोनुं भयंकर मरण थj. ।। २६ ।। अने त्यारवाद एवी रीते धीमे धीमे ते नगरी उज्जड थइ, तेथी अरेरे! ते नगरीनी जाहोजलालीने पण काळरूपी राक्षस गळी गयो. ॥ २७ ॥ ते पछी बाकी रहेला सघळा लोको पण ते नगरी छोडीने नजीक तथा दूर रहेलां जुदा जुदां गाम तथा नगर आदिकमां चाल्या गया. ।। २८ ।। श्रीपाल आदिक त्रणे भाइओ (पद्मसिंहशाहना पुत्रो ) मांडवी बंदरमां गया, अने वीरपाल आदिक चारे भाइओ पण ( वर्धमानशाहना पुत्रो ) भुज नगरमा आन्या. ॥ २९ ॥ For Private And Personal Use Only ॥१३६॥ Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra वर्धमान: ॥१३४॥ | www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कालेन कियता भद्रा - वत्यां वातो जयंकरः ॥ ववैौ तलोकगेहादि । प्रायो नष्टमथ क्षणात् ॥१९॥ तनुज वर्धमानस्य । जगरुः सर्वतो लघुः ॥ औदार्यधैर्यगांनीर्या-द्यनेकगुणमंडितः ॥ ३० ॥ आहयामास सूरींद्रान् । वृद्धान् कल्याणसागरान् ॥ जुजोरुनगरे जक्त्या । महोत्सव पुरस्सरं ॥ ३१ ॥ युग्मं ॥ चक्रे तेन महाभक्ति - गुरूणां विनयोज्ज्वला ॥ गुरुभिर्गदितं तस्य । पितुर्वृत्तं समं ततः ॥ ३२ ॥ पछी केटलेक काले ते भद्रावती नगरीमां भयंकर वायु वावा लाग्यो, ( अर्थात् त्यां पवनना वावाझोडानुं भयंकर तोफान थ. ) अने तेथी लोकोनां घर आदिक मायें करीने क्षणवारमां नाश पाम्यां ॥ २६ ॥ हवे उदारता, धीरता, तथा गंभीरता आदिक अनेक गुणोथी शोभता एवा जगड़शाह नामना वर्धमानशाहना सर्वथी न्हाना पुत्रे भक्तिथी महोत्सवपूर्वक वृद्धावस्थाने प्राप्त थयेला एवा श्रीमान् कल्याण सागरसूरीश्वरजीने भुजनगरमा बोलाव्या. ॥ ३० ॥ ३१ ॥ ते जगडुशाहे विनयथी पवित्र थली ते गुरुमहाराजनी घणी भक्ति करी, अने तेथी ते गुरुमहाराजे तेमना पितानुं ( वर्धमानशाह शेठनुं ) सघळु वृत्तांत तेने कही संभळाच्युं ॥। ३२ ।। For Private And Personal Use Only चरित्रम्. ॥१३४॥ Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagerul Gyanmandit चरित्रम. वर्धमान तत् श्रुत्वा जगमुस्तूर्ण-ममंदं मुदमुझदन् ॥ पितृपितृव्यसनक्ति-परः कीर्त्यजिलाषुकः ॥ ३३ ॥ प्रार्थयामास सूरीमान् । श्रीमत्कल्याणसागरान् ॥ चरित्ररचनायैष । एतयोर्जव्यवोधये ॥ ३४ ॥ ॥१३५॥ युग्मं ॥ सूरयोऽप्यथ संतुष्टा-स्तस्य वांछाप्रपूर्तये ॥ जगडोर्गुरुतातोरु-भक्तिं च प्रविलोक्य ते ॥३५॥ आदिशन्नमरसागरं कविं । तच्चरित्ररचनाय सादरं ।। स्वीयपट्टकवरोदयाचले । भास्वर द्युतिनरोरुभास्करं ॥ ३६ ॥ युग्मं ॥ ते सांभळीने कीर्तिना इच्छक एवा ते जगडुशाहे अत्यंत हर्ष धारण करतां थका पोताना पिता अने काकानी उत्तम भक्ति करवामां तत्पर थइ भव्य जीवोना बोधने अर्थे तेओर्नु चरित्र रचवा माटे श्रीमान् कल्याणसागरसूरीश्वरजीने प्रार्थना करी. ॥ ३॥ ३४ ॥ त्यारे ते जगडशाहनी गुरु तथा पिता प्रत्ये मनोहर भक्ति जोइने तेनी इच्छा संपूर्ण करवा माटे खुशी * थइ ते आचार्य महाराज श्रीकल्याणसागरमरिजीए पण पोताना पाटरूपी उत्तम उदयाचल पर्वतपर देदीप्यमान कांतिना समू हथी मनोहर सूर्यसरखा कवीश्वर श्री अमरसागरसूरीश्वरजीने तेश्रोनु (वर्धमानशाह तथा पासिंहशाहनु ) चरित्र रचवा माटे 18| आदर सहित हुकम कर्यो. ॥ ३५ ॥ ३६ ॥ CREACANCHLOCACANCESCA | ॥१३॥ For Private And Personal Use Only Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagerul Gyanmandit चरित्रम्, वर्षमान-5 एवं प्रेरणयैष तस्य जगडोर्यथोऽथ संवत्सरे । एकांकर्तुशशांकसंपरि मिते (१६५१ ) ह्यादेशतः सूरितः ॥ शुक्के श्रावणसप्तमीशुभदिने सूरीश्वरैर्भावतः । श्रीमनिरमरायसागरवरैः संपूर्णतां प्रापिनः ॥३॥ ॥१३६॥ औदार्य च निरीक्ष्य यस्य जगमोरर्थिवजप्रीणनं । दुष्कालोकरणप्रसिजगडोः पूर्व श्रुतस्याथ तत् ॥ नामापीद जगज्जनस्मृतिपथं नागादतीवश्रुतं । जीयादेष जनप्रियश्च जगमुः श्रीवर्धमानांगजः ॥३०॥ लालणाद्योशगोत्रिणां । सर्वेषां सुखकारकं ॥'धनदं ह्यपरं चैनं । जगईं जगदुर्बुधाः ॥ ३ ॥ एवी रीते ते जगडुशाहनी प्रेरणाथी तथा आचार्य महाराज श्रीकल्याणसागरसूरीश्वरजीना हुकमथी विक्रम संवत् शोलसो एकाणुना ( १६९१ ) श्रावण शुद सातमना शुभ दिवसे श्रीमान् अमरसागरसूरीश्वरजीए भावपूर्वक आ ग्रंथ संपूर्ण कर्यो छे. ॥ ३७॥ जे आ जगडुशाहनुं याचकोना समूहोने खुशी करनारं उदारपणुं जोइने दुष्काळमांगी ( लोकोने ) उगारनारा पूर्वे थयेला प्रसिद्ध एवा जगदशाहनु अत्यंत प्रसिद्ध एवं नाम पण जगतना लोकोने स्मरणमा आब्युं नही, एवा आ श्रीमान् वर्धमानशाहना लोकप्रिय पुत्र जगडुशाह जयवंता वर्तो ? ॥ ३८ ॥ लालण आदिक गोत्रवाळा सर्व ओशवाळोने सुख आपनारा एवा आ जगडुशाहने डाह्या माणसो खरेखर वीजा कुबेर सरखा कहेवा लाग्या. ॥ ३९ ॥ For Private And Personal Use Only Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirm.org Acharya Shri Kailassagerul Gyanmandit वर्धमाम ॥१३॥ न च कोऽपि गतो ह्यर्थी। पूनस्तस्य गृहांगणात् ॥ जगमोनॊजनादीनां । दानं च ददतोऽनिशंधाचरित्रम जगडोरस्य कीर्तिश्च । विस्तृता भारतेऽखिले ॥ चारणैः कविभिर्गीय-माना नित्यं पदे पदे ॥४१॥ जगमुर्जगमुरेव । वर्धमानांगसंजवः ॥ अपरो धनदो जीयात् । सर्वदा कविनिः स्तुतः ॥ ४५ ॥ तस्य गेहांगणं नित्य-मर्थिसार्थसमाकुलं ॥ विलोक्य जगालोका । जगडोः श्रीनिकेतनं ॥ ४३ ।। EGUAGAMANAGECEKA 51 अने हमेशां भोजन आदिकनुदान देता एवा ते जगडुशाहना घरना आंगणामांथी कोइपण याचक निश्चे दुभाइने गयो नाहतो. ॥ ४० ॥ अने आ जगडुशाहनी कीर्ति चारण कविओवडे हमेशां पगले पगले गवातीथकी सघळा भरतखंडमा विस्तार पामी. ४॥४१॥ वर्धमानशहना पुत्र जगडु तो जगडुज थया छे, हमेशा कविओथी स्तुति कराता एवा ते वीजा कुबेरभंडारी सरखा जगडु जय पामो? ॥ ४२ ॥ ते जगहुशाहना घरना आंगणाने याचकोना समूहोथी हमेशां भरेलुं जोइने लोको तेने लक्ष्मीन घर कहेवा लाग्या. ॥ ४३ ॥ ॥१३॥ 0000000 For Private And Personal Use Only Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirtm.org Acharya Shri Kailasagarsur Gyanmandie चरित्रम्, वर्षमान ॥ अथ ग्रंथकर्तुः प्रशस्तिः ॥ ॥१३०॥ श्रीवीरपट्टे क्रमतोऽथ जाताः। प्रजावकाः सुरय आर्यरक्षिताः ॥ येऽस्थापयन् श्रीविधिपक्षगन्छ । कालीप्रसादाधिगमेन विश्रुताः ।। ४४ ॥ पट्टे तदीये जयसिंहसूरयः । सर्वागमांभोनिधिपारसंगताः ॥ लक्षप्रमक्षत्रविबोधविश्रुताः । प्रजावका लालणसेविता बजुः॥४५॥ तत्पट्टे धर्मघोषाश्च । ततो महेंजसिंहकाः ॥ ततः सिंहप्रजाशासन् । सर्वशास्त्रविशारदाः ॥ ४६॥ ॥ हवे आ ग्रंथकर्तानी प्रशस्ति कहे छे. ॥ हवे श्रीवीरप्रभुनी पाटपर अनुक्रमे श्रीआर्यरक्षित नामना प्रख्यात अने प्रभाविक आचार्य महाराज थया, के जेमणे महाहै कालीदेवीनो प्रसाद मेळवीने विधिपक्षगच्छ स्थाप्यो. ॥४४॥ तेमनी पाटे सर्व आगमोरूपी समुद्रना पारने पहोंचेला, तथा एक लाख क्षत्रिओने प्रतिबो बाथी प्रख्याति पामेला अने लालणथी सेवायेला श्रीजयसिंहमूरि नामना प्रभाविक आचार्य शोभता हता. ॥४५॥ अने तेमनी पाटे धर्मघोपसरि थया, ते पछी महेंद्रसिंहमूरि थया, अने ते पछी सर्व शास्त्रोमां विचक्षण एवा | श्रीसिंहप्रभसूरि थया. ।। ४६ ॥ ॥१३॥ For Private And Personal Use Only Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailasagarsur Gyanmandir चरित्रम वर्धमान | आसन्नजितसिंहाख्या-स्ततो देवेंद्रसिंहकाः ॥ धर्मप्रतास्ततो जाता। नव्यपंकजभास्कराः ॥७॥ जैनशास्त्राब्धिपारीणाः । श्रीसिंहतिलकास्ततः ॥ तत्पट्टे च ततो रेजु-महेंजप्रजसूरयः ॥४॥ 18] मेरुतुंगाभिधा जाताः । सूरयश्च ततोऽनुताः ॥ ततः श्रीजयकीया॑ह्वाः । सूरयः शास्त्रकोविदाः ॥ ४५ ॥ ततो बभूवुर्जयकेसरीशा-स्ततश्च सिद्धांतसुसागराख्यकाः ॥ अपारसिकांतममुख्यानास्ततो बभूवुः किल नावसागराः ॥ ५० ॥ ततो गुणनिधानाख्याः । संजाता वरसूरयः ॥ सकला| गमपारीणाः । शिष्यौघपरिसेविताः ॥५१॥ ते पछी अजितसिंहसरि थया, ते पछी देवेंद्रसिंहमूरि थया, ते पछी भव्योरूपी कमलपते मर्यसमान धर्मप्रभमूरि थया. ॥४७॥ त्यारपछी जैनशाखोरूपी समुद्रनो पार पामेला श्रीसिंहतिलकमूरि थया, अने पछी तेमनी पाटे महेंद्रप्रभसूरि शोभवा लाग्या. ॥४८।। ते पछी अद्भुत शक्तिवाळा मेरुतुंग नामना आचार्य थया, ते पछी शास्त्रोमा विचक्षण एवा जयकीर्ति नामना सूरीश्वर थया. ॥ ४२ ॥ ते पछी जयकेसरीसूरीश्वर थया, अने ते पछी सिद्धांतसागर नामना आचार्य थया, ते पछी खरेखर अपार एवा आगमोरूपी समुद्रमा वहाण सरखा भावसागर सूरीश्वर थया. ॥ ५० ॥ ते पछी सकल आगमोना पारंगामी, तथा शिष्योना समूहथी सेवायेला गुणनिधान नामना उत्तम सूरीश्वर थया. ॥ ५१ ॥ R-CHACANCCACANC+ 8 ॥१३॥ C+ For Private And Personal Use Only Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra वर्धमान ॥१४०॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तत्पट्टोदयपर्वते किल बजुर्मार्तडतुष्या जुवि । जव्यत्रात विबोधनैकपटुतासंगीतसत्कीर्तयः ॥ दुर्वा दिवजनागपंक्तिविजये पंचानना विश्रुताः । श्रीमंतः किल सुरयो वरतराः श्रीधर्ममूर्त्याह्वयाः ॥ ॥ ५१ ॥ शज्ञातिसमुडूत - लोढागोत्रसमुत्रौ ॥ कुरपाल सोनपाला - वागरापुरि वासिनौ ॥ ॥ ५२ ॥ बोधितौ यैर्जिनेशस्य । प्रासादं पुरि चक्रतुः ॥ श्रीमतो वर्धमानस्य । सुंदरं वरजावतः ॥ ५३ ॥ युग्मं ॥ ते श्री गुणनिधान सूरिश्वरजीनी पाटरूपी उदयाचल पर्वतपर खरेखर सूर्य सरखा, तथा पृथ्वीपर भव्यलोकोना समूहने प्रतिबोध करवानी कुशलताथी गवायेली छे उत्तम कीर्ति जेमनी एवा, तथा दुर्वादिओना समूहरूपी हाथी ओनी श्रेणीनो विजय करवाम सिंह सरखा, तथा प्रख्याति पामेला एवा, श्रीमान् धर्ममूर्ति नामना निवे अति श्रेष्ठ आचार्य थया. ॥ ५१ ॥ हवे ओशवाल ज्ञातिना लोढा गोत्रमा उत्पन्न थयेला तथा आगरा नगरना रहेवासी एवा करपाल अने सोनपाल नामना ( बने भाइओए) जे श्रीकल्याणसागरसूरि महाराजना ( उपदेशथी ) प्रतिबोध पामीने ते आगरा नगरमा उत्तम भावथी श्रीमान् महावीरप्रभूनुं सुंदर जिनमंदिर बंधाव्युं हतुं ।। ५२ ।। ५३ ।। For Private And Personal Use Only चरित्रम्. ॥१४०॥ Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirm.org Acharya Shri Kailasagarsur Gyanmandir चरित्र वर्धमान || संघयुक्ता ततस्ताभ्यां । सम्मेतशिखरस्य च ॥ कृता यात्रा प्रबोधेन । येषां भूरिधनव्ययात् ॥५४॥ पातिशाहोऽन्यदा ढिया । श्रागरापुरमागतः॥ तत्कारितजिनागार-पातनायातुरोऽजवत् ॥ ५५॥ विज्ञप्तः सोनपाखेन । पातिसाहो जगौ च तं ॥ देवस्तेऽयं चमत्कारं । दर्शयतु पुतं मम ॥ ५६ ॥ नो चेदेवालयं ह्येनं । पातयिष्यामि निश्चितं ॥ इत्युक्त्वा विससर्जेनं । कृत्वा दिनदशावधि ॥५॥ खूनोऽथ सोनपालोऽपि । गतो वाणारसी पुरीं ॥ कल्याणसागरेभ्यश्च । वृत्तांतं निजगाद तं ॥५॥ 45 वळी त्यारपछी जे श्रीकल्याणसागरसूरिजीना प्रतिबोधथी ते बन्ने भाइओए घणु धन खरचीने श्रीसम्मेतशिखर तीर्थनी संघ सहित यात्रा करी हती. ॥ ५४॥ हवे एक वखते दिल्लिनो बादशाह ते आगरा नगरमा आव्यो, अने ते करपाल सोनपाले बनावेलां जिनमंदिरने तोडी पाडवा माटे उत्सुक थयो. ॥ ५५ ॥ त्यारे ते सोनपालनी आजीजीथी बादशाहें तेने कयु के, तारो आ देव मने तुरत (कंइंक) चमत्कार बतावे, ॥ ५६ ॥ नहिंतर आ देवालयने हुँ खरेखर पाडी नाखीश, एम कही दश दिवसनी महेतल करी तेने रजा आपी. ।। ५७ ॥ हवे (पोताना हृदयमा) दुभाएलो ते सोनपाल पण वाणारसी नगरीमा गयो, अने ( त्यां रहेला ) श्रीकल्याणसागरसूरिजीने ते वृत्तांत कहो. ॥ ५८ ।। For Private And Personal Use Only Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirm.org Acharya Shri Kailassagerul Gyanmandit वर्धमान-2 चरित्रम्, ॥१४॥ सूरयोऽपि महाकाली-प्रसादादथ तं जगुः ॥मा कुरु मानसे चिंता । त्वं च याहि पुरं निजं ॥५९॥ आयाम्यहं पुतं तत्र । सर्व जव्यं नविष्यति ॥ तमित्या श्वासयामासुः । सूरयस्ते प्रनावकाः ॥६०॥ हृष्टोऽथ सोनपालोऽपि । समारुह्य निजोष्ट्रकं ॥ गुरूणां वचसि श्रद्धांदधानोऽगान्निजं पुरं ॥६॥ एवं दिनाष्टकप्रांते । स्वपुरं यावदाययौ। तावत्स्वपूर्वतः प्राप्तान् । वीक्ष्य सूरीन् स विस्मितः॥६॥ किमेते व्योमगामिन्या। विद्ययात्र समागताः ॥ किंवा देवसहायेन । तर्कमेवं चकार सः ॥३॥ R HIGHHE530 + त्यारे ने आचार्यश्रीए पण महाकाली देवीना प्रसादथी ते सोनपालने कयु के, तुं मनमां चिंता न कर? अने तारा पो. ताना नगरमा जा? ॥ २९ ॥ अने हुं त्यां तुरत आq छु, सघळु सारं थइ रहेशे, एवी रीते ते प्रभाविक आचार्यश्रीए तेने आश्वासना आपी.।१०॥ त्यारे ते सोनपाल पण खुशी थइने तथा गुरुमहाराजना वचनपर श्रद्धा धारण करतो थको पोताना ऊंटपर चडीने पोताना नगरमा (आगरामां) गयो. ।।६।। एवी रीते आठ दिवसे ज्यारे ते पोताना नगरमा आव्यो, त्यारे आचार्य श्रीकल्याणसागरमूरिजीने पोतानी पहेला त्यां आवेला जोइने विस्मय पाम्यो. ॥ ६२ ॥ अने भुं आ आचार्यश्री अहिं आकाशगामिनी विद्याथी पधार्या अथवा शुं कोइ देवनी सहायथी पधार्या? एवी रीतनो तर्कवितर्क ते ६.रवा | लाग्यो. ॥ ६३ ॥ ॥१४२॥ +4% For Private And Personal Use Only Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra वर्धमान ॥१४३॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सोनपालमथाचख्यु - गुरवो महिमान्विताः ॥ पातिसादः समायातु । स्वयं श्रीजिनमंदिरे ॥ ६४ ॥ दशमे दिवसे सोन- पालं सोऽथ समाह्वयत् ॥ जगौ देवचमत्कारो । मया दृष्टोऽथ नो तव ॥ ६५ ॥ तोऽहं तव देवस्य । पातयिष्यामि मंदिरं ॥ येन पाखंडिधर्मोऽयं । विस्तरेन्न जुवस्तले ॥ ६६ ॥ जगौ च सोनपालोऽपि । पातिसादं कृतांजलिः ॥ कृपां कृत्वा समायांतु । जवंतस्तत्र मंदिरे ॥ ६७ ॥ पातिसादः समेतोऽत्र । कौतुकालोकनातुरः ॥ परिवारेण संयुक्तः । श्रीवीरप्रनुमंदिरे ॥ ६८ ॥ जगडुः पातिसारं तं । सूरयः पूर्वमागताः ॥ देवमूर्तिरियं नोऽस्ति । नूनं पाषाणनिर्मिता ||६|| हवे ते महिमायुक्त गुरुमहाराजे सोनपालने कधुं के, बादशाह पोते भले ते जिनमंदिरमां आवे || ६ || एवामां बादशाहे दशमे दिवसे सोनपालने बोलान्यो, अने कयूं के तारा देवनो चमत्कार ( हजीसुधी ) में कइ जोयो नहि. ।। ६५ ।। माटे हुं तारा देवनुं आ मंदिर पाडी नाखीश, के जेथी पाखंडी ओनो आ धर्म पृथ्वीतलपर फेलाय नहि. ।। ६३ ।। त्यारे सोनपाले पण हाथ जोडी बादशाहने कं के, आप कृपा करीने ते जिनमंदिरमां पधारो. ॥ ६७ ॥ त्यारे कौतुक जोवा माटे उत्सुक थयेलो ते बादशाह ( पोताना ) परिवार सहित ते श्रोवीरमना मंदिरमां आव्यो ।। ६८ ।। त्यारे त्यां पहेलेथी आवेला ने श्री कल्याण सागरसूरिजीए ते बादशाहने कधुं के अमारा देवनी आ मूर्ति खरेखर पाषाणानी बनावेली छे ।। ६९ ।। For Private And Personal Use Only चरित्रम् ॥१४३॥ Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirm.org Acharya Shri Kailassagerul Gyanmandit वर्धमान नबद्भ्योऽथ नतेभ्यस्तु । सजीवेव स्वयं मुखात् ॥ ऊर्वीकृत्य निजं हस्तं । धर्मलानं प्रदास्यति ॥०॥ || चरित्रम्, कौतुकी पातिसाहोऽपि । नतमूर्धा कृतांजलिः ॥ नमस्कारं चकाराथ । प्रतिमायै जिनेशितुः ॥७॥ ॥१५॥ धर्मध्वजं स्वकीयं ते । ऊर्वीकृत्याथ सूरयः ॥ जगदुर्देव देहि त्वं । धर्मलाभाशिष नृपं ॥ १२ ॥ प्रतिमा पातिसाहाय । धर्मलाभाशिषं ददौ ॥ स्वकीयमुखतस्तूर्ण-मूर्वीकृत्य निजं करं ॥ ३ ॥ X विस्मितः पातिसाहोऽपि । सूरीणां पादयोनतः ॥ सत्यः सत्यश्च देवोऽय-मिति जरूपन् ययौ ततः ॥४॥ | परंतु ज्यारे तमो ( आ मूर्तिने ) नमस्कार करशो, त्यारे आ मूर्ति जाणे जीवती होय नहि, तेम पोतानो हाथ उंचो करीने पोताना मुखथी तमोने धर्मलाभ आपशे. ॥ ७० ॥ त्यारे कौतुकी एवा बादशाहे पण मस्तक नमावी हाथ जोडी ते श्री जिनेश्वरमभुनी प्रतिमाने नमस्कार कर्यो. ॥ ७१ ॥ ते वखते आचार्य महाराजे पोतानो धर्मध्वज (ओघो) उंचो करी कर्म्यु के, हे देव तमो राजाने धर्मलाभनी आशीष आपो. ॥ ७२ ॥ तुरतज ते पतिमाए पोतानो हाथ उंचो करी पोताना मुखथी | ॥१४॥ बादशाहने धर्मलाभनी आशीष आपी. ॥ ७३ ।। त्यारे बादशाहे पण आश्चर्य पामीने ते श्रीकल्याणसागरसूरिजीना चरणोमां नमस्कार कर्यो, अने आ देव खरा छे, खरा छे, एम बोलतो थको ते बादशाह त्यांथी चाल्यो गयो. ॥ ७४ ।। SARAASHA MAHARMA-AIRCRACHANA For Private And Personal Use Only Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra वर्धमान ॥१४५॥ www.kobatirth.org. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir I थैवं मंदिरे तत्र । प्रतिमोर्ध्वकरा स्थिता ॥ तदादितो जिनेशस्य । सूरिमाहात्म्यसूचका ॥ ७५ ॥ पातिसाहेन तुष्टेन | सूरये प्रेषितान्यथ ॥ दीनाराणां सहस्राणि । सौवर्णानां दश डुतं ॥ ७६ ॥ सूरिनिर्निःस्पृहैः किंतु । पातिसादाज्ञया ततः ॥ अर्पिताः सोनपालाय । धर्ममार्गव्ययाय ताः ॥9॥ इत्याद्यनेकैरमलैः प्रजावै रुद्योतयंतो जिनशासनं सदा ॥ श्रीधर्ममूर्तेरि चारुपट्टे । जयंति ये संप्रति गहनायकाः ॥ ७८ ॥ तेषां सूरिवराणां । श्रीमत्कल्याणसागराख्यानां ॥ कृपया विनिर्मितोऽयं । ग्रंथोऽमरसागरैरेवं ॥ ७९ ॥ युग्मं ॥ हवे एवी ते त्यारथी मांडीने जिनेश्वरप्रभुनी ते प्रतिमा ते जिनमंदिरमां उंचा हाथवाळी रहेली छे, अने ते आचार्यश्रीनो महाप्रभाव सूचवे छे. ॥ ७५ ॥ हवे खुशी थयेला ते बादशाहे ते आचार्यश्रीने आपणा माटे तुरत दशहजार सोनामहोरो मोकली. ।। ७६ ।। परंतु निःस्पृही एवा ते आचार्यश्रीजीए ( पोते ते सोनामहोरो नहिं लेतां ) बादशाहनी आज्ञाथी सोनामहोरो धर्मकार्यमा वापरखा माटे सोनपालने सोंपी. ॥ ७७ ॥ इत्यादि अनेक निर्मल प्रभाववडे हमेशां जिनशासनने दिपावता तथा श्री धर्ममूर्तिसूरीश्वरजीना अहिं मनोहर पाटपर सांप्रत काले जेओ गच्छना नायक तरीके जयवंता वर्ते छे, ते श्रीमान् कल्याणसागरजी नामना सूरीश्वरजीनी कृपाथी एवी रीतनो आ श्रीवर्धमानपद्म सिंहचरित्र नामनो ग्रंथ श्री अमरसागरसूरिजीए रच्यो छे ।। ७८ ।। ७९ ।। For Private And Personal Use Only चरित्रम्, ॥१४५॥ Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirm.org Acharya Shri Kailassagerul Gyanmandit चरित्रम् वर्धमान-चिरं नंदतु ग्रंथोऽयं । यावच्चंउदिवाकरौ ॥ वाच्यमानः सन्नामध्ये । पंमितैः श्रीनिकेतनं ॥ ॥ ॥१४६॥ इति श्रीमछिधिपगबाधीश्वरजहारकशिरोमणिश्रीमत्कल्याणसागरसूरीश्वरपट्टालंकारश्रीमदमरसागरसूरिविरचिते श्रीमहालणगोत्रीयश्रारूवर्यश्रीमहर्षमानपद्मसिंहश्रेष्टिचरित्रे तत्स्वर्गगमनग्रंथनिर्माणकारणकविप्रशस्त्यादिवर्णनो नाम नवमः सर्गः समाप्तः ॥ श्रीरस्तु.॥ RA 15151-~ + लक्ष्मीना स्थान सरखो आ ग्रंथ सभामा पंडितोवडे करीने वंचातो थको चंद्र अने सूर्यनी हयाती सुधी चिरकाल स मृद्धि पामो? ।। ८० ॥ एवी रीने श्रीमान् विधिपक्षगच्छाधीश्वर भट्टारकशिरोमणि श्रीमान् कल्याणसागर सूरीश्वरना पाटने शोभावनारा श्रीमान अमरसागरसूरिजीए रचेला श्रीमान् लालणगोत्रना श्रावकोत्तम श्रीवर्धमान अने पमसिंहशेठना चरित्रमा तेमनु स्वर्गगमन, ग्रंथ रचवानुं कारण तथा कविनी प्रशस्ति आदिकना वर्णनरूप नवमो सर्ग समाप्त थयो. ॥ श्रीरस्तु ।। ॥१४६॥ For Private And Personal Use Only Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagerul Gyanmandit चरित्रम्, वर्धमान आ श्री वर्धमानशाहना जामनगरना जिनपासादमा जतां रंगमंडपना दरवाजा बहार, डाबा हाथ उपर, आरीआमा आ जिनमंदिर संबधि शिलालेख छे, तेनी नकल अहीं तेना अर्थ साथे प्रसंगोपात छापी प्रसिद्ध करी छे. ॥१४॥ ॥ जामश्रीलदराजराज्ये ॥ श्रीमत्पार्श्वजिनः प्रमोदकरणः कल्याणकन्दाम्बुदो। विघ्नव्याधिहरः सुरासुरनरैः संस्तूयमानक्रमः॥ साङ्को नविनां मनोरथतरुव्यूहे वसन्तोपमः । कारुण्यावसथः कलाधरमुखो निलहविः पातु वः ॥१॥ क्रीमां करोत्यविरतं कमला विलास-स्थानं विचार्य कमनीयमनन्तशोभम् ॥ श्रीनजयन्तनिकटे विकटाधिनाथे । हावारदेश अवनिप्रमदाललामे ॥२॥ हर्ष करनार, कल्याणरूपी वृक्षना मूळने वर्षाद समान, विघ्न तथा व्यापिने हरनार, सुर, असुर, तथा नरोधी पूजाएल छे चरण जेमना, सर्पना लंछनवाळा, भवि माणसोना मनोरथरूपी वृक्षना समूहने प्रफुल्लित करवामा वसंतऋतु समान, करुदाणाना स्थानकरूप, चंद्रसरखा मुखवाळा तथा श्याम कांतिवाळा श्रीमान् पार्श्वनाथ प्रभु तमाएं रक्षण करो? ॥१॥ श्री गिरनार पर्वतनी पासे, बळवान के राजा ज्या तथा पृथ्वीरूपी स्त्रीने ललाम (चांडला) सरखा हालार देशमा, लक्ष्मी पोतार्नु विलास 18॥१४॥ 181 करवानु अति मनोहर स्थान विचारीने हमेशा क्रीडा करे छे. ॥२॥ For Private And Personal Use Only Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirm.org Acharya Shri Kailassagerul Gyanmandit वर्धमान ॥१४॥ वीणचरित्रम्, उत्तुगतोरणमनोहरवीतराग-प्रासादपंक्तिरचनारुचिरीकृतोर्वी॥नन्द्यान्नबीननगरी क्षितिसुन्दरीणां। वक्षःस्थले ललति सा हि ललन्तिकेव ॥३॥ सौराष्ट्रनाथः प्रणतिं विधत्ते । कजाधिपो यस्य जया. हिनेति ॥ अर्धासनं यजति मालवेशो। जीयाद्यशोजित् स्वकुलावतंप्तः ॥४॥ श्रीवीरपट्टकमसंगतोऽनु-नाग्याधिकः श्रीविजयेन्फुसूरिः ॥ श्रीमन्धरैः प्रस्तुतसाधुमार्ग-श्चक्रेश्वरी दत्तवरप्रसादः उचा उंचा, तथा मनोहर तोरणोवाळा वीतरागना प्रासादनी पंक्तिरचनाथी अति सुंदर छे पृथ्वी जेनी, तथा आ पृथ्वीरूपी प्रमदाना वक्षस्थलमा जे एक माळानी पेठे उल्लसायमान थइ रही छे, एवी नवीननगरी निश्चे (जामनगर) समृद्धि पामो.॥३॥जेने सौराष्ट्र देशनो राजा नमे छे, तथा कच्छ देशनो राजा जेना भयथी बीहे छे, तथा मालवानो राजा जेने अरधु आसन कहाडी आपे छे, एवा | पोताना कुळमां मुकुट समान, जाम श्री "जशाजी" जयवंता वर्तो? ।। ४ ।। श्री वीरमभुनी पाटे अनुक्रमे, अधिक भाग्यवंत, श्री विजयेंदुसूरि (आर्यरक्षितसूरि ) नामना आचार्य थया, जेनो साधुमार्ग श्रीमंधरस्वामिए वखाण्यो छे तथा चक्रेश्वरी देवीए जेमने वरदान आप्यु हतं. ॥ ५॥ ॥१४॥ ६ For Private And Personal Use Only Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirtm.org Acharya Sh Kailasagarur Gyanmandir वर्धमान ॥१४॥ सम्यक्त्वमार्गे हि यशोधनाह्वो। दृढिकृतो यत्सपरिबदोऽपि ॥ संस्थापितश्रीविधिपतगतः। संधैश्च- 4 तुर्धा परिसेव्यमानः ॥६॥ पट्टे तदीये जयसिंहमूरिः। श्रीधर्मघोषः प्रमहेंसिंहः ॥ सिंहपजश्चाजितसिंहसुरि-देवेन्द्रसिंहः कविनक्रवर्ती ॥ ॥ धर्मप्रजः सिंहविशेषकाहः । श्रीमान्महेन्द्रप्र. भसूरिरार्यः । श्रीमेरुतुङ्गोऽमितशक्तिमांश्च । कीर्त्यद्जुतः श्रीजयकीर्तिपूरिः॥5॥ वादिहिपौधे जयकेसरीशः । सिद्धान्तसिंधु वि भावसिन्धुः ।। सूरीश्वरः श्रीगुणसेवधिश्च । श्रीधर्ममूर्तिर्मधुदीपमूर्तिः ॥ ५॥ जेमणे यशोधन नामना क्षत्रियने परिवार सहित सम्यक्त्व मार्गमा ( जैन धर्ममा ) दृढ को हतो, तथा विधिपक्षगच्छ स्थाप्यो हतो, अने जे चतुर्विध संघथी सेवाता हता. ॥ ६॥ तेमनी पाटे जयसिंहमूरि, पछी श्री धर्मयोपसूरि पछी महेंद्रसिंहमूरि, पछी सिंहप्रभसूरि, पछी अजितसिंहसरि तथा पछी कविओमा चक्रवर्ति समान देवेंद्रसिंहसूरि थया. ।। ७॥ पछी धर्मप्रभसिंह, पछी सिंहतिलकसूरि, पछी श्रीमान् महेंद्रप्रभमूरि, पछी घणी शक्तिवाळा मेरुतुंगमरि तथा पछी अद्भुत कीर्तिवाळा जयकीर्तिसरि यया. ॥८॥ ते पछी वादिरूपी हाथीओना समूहमा सिंह समान जयकेसरीमरि थया, ते पछी सिद्धांतसागरसूरि 15/॥१४ | थया, ते पछी भावसागरसरि थया, ते पछी गुणनिधानसूरि थया, तेपछी मधना दीपक सरखी कांतिवाळा धर्ममूर्तिसूरि यया. ॥९॥ For Private And Personal Use Only Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailasagarsur Gyanmandir चरित्रम. वर्षमान- यस्यांघ्रिपङ्कजनिरन्तरसुप्रसन्नात् । सम्यक् फलन्ति सुमनोरथवृक्षमालाः ॥ श्रीधर्ममूर्तिपदपद्मम॥१५०॥|PI नोझहंसः । कल्याणसागरगुरुर्जयताकरित्र्याम् ॥ १०॥ पञ्चाणुवृतपालकः सकरुणः कल्पफुमानः सताम् । गांजीर्यादिगुणोज्ज्वलः शुभवतां श्रीजैनधर्मे मतिः॥के काल्ये समतादरः क्षितितले श्रीओशवंशे विनुः । श्रीमहालणगोत्रजो वरतरोऽभूत्सादिसिंहानिधः ॥ ११॥ तदीयपुत्रो इरपालनामा । देवाच नन्दोऽथ स पर्वतोऽभूत् ॥ वच्चुस्ततः श्रीअमरात्तु सिंहो । नाग्याधिकः कोटिकलाप्रवीणः ॥ १२ ॥ AKASHAIL जेना चरणकमळना प्रसादथी हमेशा, मनोरथरूपी वृक्षनी माळा सारीरीतेफळे छे तथा श्रीधर्ममूर्तिसूरिजीना चरण कमलपर जे | हंसनी पेठे शोभे छे, एवा कल्याणसागरसूरि आ पृथ्वीमा जयवंता बों? 10॥ श्रावकना पांच अणुव्रत पाळनार, करुणावंत, गांभिर्य आदिक गुणोए करी उज्ज्वल, उत्तम माणसोने कल्पवृक्ष समान, जैनधर्मनी मतिवाळा, सुखदुःखमा सरखो आदर राखनारा, "ओश" नामना वंशमा नायकसमान, श्रीमान् लालण नामना गोत्रमा उत्पन्न थयेला साहिसिंह (सिहाजी-सिंघजी) नामना उत्तम श्रावक पृथ्वीपर हता. ।। ११ ।। तेमना पुत्र हरपाल, तेमना देवनंद, तेमना पर्वत, तेमना वच्छ तथा तेमना | भाग्यवंत अने क्रोडुं कळाओमा प्रविण अमरसिंह नामे पुत्र थया. ॥ १२ ।। ॥१५॥ For Private And Personal Use Only Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Achane Shi Kailasagarsur Gyanmandir चरित्रम. वमान ॥१५॥ www.kobatirth.org श्रीमतोऽमरसिंहस्य । पुत्रा मुक्ताफलोपमाः ॥ वर्धमानचापसिंह । पद्मसिंहा अमी त्रयः ॥ १३ ॥ सादिश्रीवर्धमानस्य । नन्दनाश्चंन्दनोपमाः ॥ वीराहो विजपालाख्यो । भामो हि जगमुस्तथा ॥ ॥१४॥ सादिश्रीचापसिंहस्य । पुत्रः श्रीयमीयाभिधः । तदङ्गजो शुरुमती । रामजीमावुनावपि ॥ १५ ॥ मंत्रीशपद्मसिंहस्य । पुत्रा रत्नोपमास्त्रयः ॥ श्रीश्रीपालकुंरपाल । रणमा वरा इमे ॥ ॥१६॥श्रीश्रीपालाङ्ग जो जीया-नारायणो मनोहरः॥ तदङ्गजः कामरूपः। कृष्णदासो महोदयः॥१॥ साहिश्रीकुंरपालस्य । वर्तेतेऽन्वयदीपको ॥ सुशीलः स्थावराख्यश्च । वाघजिन्नाग्यसुन्दरः ॥ १०॥ श्रीमान् अमरसिंहना, वर्धमान, चापसिंह तथा पद्मसिंह ए त्रणे मुक्ताफळ सरखा पुत्रो थया. ॥ १३ ॥ श्री वर्धमानशा हना, वीरपाल, विजपाळ, भामसिंह तथा जगड्डु ए चार चंदन सरखा नंदनो थया. ॥ १४ ॥ चापसिंहशाहना अमीचंद नामे पुत्र थया तथा तेना शुद्ध मतिवाळा रामजी अने भीमजी, ए के पुत्रो थया. ॥१५॥ मंत्रिओमा मुकुट समान श्री पद्मसिंहना श्रीपाल, कुंवरपाल तथा रणमल्ल, ए त्रण रत्न सरखा उत्तम पुत्रो थया. ॥१६।। श्री श्रीपालना मनोहर नारायणजी नामे पुत्र घया अने तेना पुत्र महाउदयवंत तथा कामदेव सरखा रूपवाळा कृष्णदास नामे थया. ॥ १७ ।। श्री कुंवरपालशाहना कुलदीपक बे पुत्रो थया, तेमा उत्तम आचारवाळा स्थावर नामे अने वीजा भाग्यवंत वाघजी नामे थया. ॥ १८॥ ॥१५१॥ For Private And Personal Use Only Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagerul Gyanmandit वर्धमान- स्वपरिकरयुताभ्याममात्यशिरोरत्नाच्यां सादिश्रीवर्धमानपद्मसिंहाभ्यां हाहारदेशे नव्यनगरे जा-चरित्रम्, मश्रीशत्रुशख्यात्मजश्रीजसवंतजीविजयगज्ये श्रीअंचलगच्नेशश्रीकल्याणसागरसूरीश्वराणामुपदेशे॥१५॥ नात्र श्रीशान्तिनाथप्रासादादिपुण्यकृत्यं कृतं. श्रीशान्तिनाथप्रनृत्येकाधिकं पंचशतप्रतिमाप्रतिष्टायुगं करापितम् । चाद्या संवत १६३६ वैशाखशुक्ल ३ बुधवासरे, हितीया संवत १६७० वैशाकशुक्ल ५ शुक्रवासरे. एवं तदा मंत्रीश्वरश्रीवर्धमानपद्मसिंहाच्यां सप्तलक्षरुप्यमुडिका व्ययीकृता नवक्षेत्रेषु. पोताना परिवार सहित, अमात्यमा शिरोमणि समान, वर्धमानशाह तथा पद्मसिंहशाहे, हाल्लार देशमा, नवानगरमा ( जामनगरमा ) जामश्री शत्रुशल्यना पुत्र महाराजा जामश्री जशवंतजीना राज्यमा, श्री अंचलगच्छना आचार्य श्री कल्याण6. सागर सूरीश्वजीना उपदेशथी, श्रीशांतिनाथ महाराजना प्रासाद आदिक पुण्यना काम करू श्री शांतिनाथजी मधु आदिक पांचशो एक प्रतिमानी वे वार प्रतिष्टा करावी. तेमा पहेली संवत १६७६ना वैशाक शुद ३ बुधवारे तथा बीजी संवत ॥१५॥ १६७८ना वैशाक शुद ५ शुक्रवारे करावी. एवी रीते ते वखते मंत्रीश्वर श्री वर्धमानशाह तथा पद्मसिंहशाहे सात लाख रुपा| मोहोरो नव क्षेत्रोमां वापरी. ( हाल ते बांधणीनु एवुज मंदिर जो करवामां आवे, तो खरेखर एक करोड कोरी एटले पचीश || KANER91-+-+-74 For Private And Personal Use Only Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirm.org Acharya Shri Kailassagerul Gyanmandit वर्धमान चरित्रम् संवत १६५७ मार्गशीर्षशुक्ल १ गुरुवासरे नपाध्यायश्रीविनयसागरगणेः शिष्यसोजाग्यसागरैरल. खीयं प्रशस्तिर्मनमोहनसागरप्रसादात् ।। ॥१५३॥ लाख रुपीआ बेसे, एम खरेखीं अनुमान ते श्री वर्धमानशाहनुं मंदिर जोइने बुद्धिवानोने थाय छे. ) संवत १६९७ना मागसर सुदर गुरुवारे आ शिलालेख उपाध्याय श्री विनयसागरगणीना शिष्य, सौभाग्यसागरे मनमोहनसागरना प्रसादथी लख्यो छे. BAAHARASHEKHABAR ॥समाप्तोऽयं ग्रंथो गुरुश्रीमत्कल्याणसागरसूरीश्वरसुप्रसादात् ॥ १५३॥ For Private And Personal Use Only Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirm.org Acharya Shri Kailasagarsur Gyanmandir चरित्रम् वर्ष गोचले सुविहिते विधिपक्षसंज्ञे। कल्याणसागरमुनीशवरा बभूवुः ॥ देवाग्रसागरवराश्च परं॥१५॥ परायां । तेषां बजुर्मुनिवरा नवनीरवश्च ॥१॥ स्वरूपसागरास्तेषां । बभूवुर्मुनिसत्तमाः॥ शिष्याः सर्वगुणोपेता । गुरुनक्तिपरायणाः ॥॥ तबिष्यवर्यभविबोधसुबहकक्षाः । साधुक्रियोकरण निर्मचित्तनावाः ॥ वाचंयमेंद्रवरगौतमसागराख्याः । संसारसागरतरंडनिजाश्चरंति ॥३॥ नीतिसागरनामानो। विदरंति महीतले ॥ तबिष्या नव्यजीवानां । प्रबोधायार्कसन्निजाः ॥४॥ तेषां विनेयगणवर्यगुणोपपन्नाः । श्रीधर्मसागरवरा व्रतधारकाश्च ॥ मह्यां चरति भविकांबुजबोधनार्का श्चारित्रपात्रगुरुक्तिपरागमझाः ॥५॥ साहाय्यतःप्रेरणया च तेषां । मुनापयित्वा प्रकटीकृतं हि |॥ चरित्रमेतरवर्धमान-श्रीपद्मयो नविबोधदायि ॥ ६ ॥ । * आ चरित्रनी एक प्रति सं. १७१ मा भुजमा श्रीकल्याणसागरसूरीश्वरजीना शिष्य सौभाग्यसागरजीनी लखेली प्रव. तकजी महाराज श्रीकांतिविजयजी महाराज मारफत जामनगरना वीसा श्रीमालीओना ज्ञान भंडारमाथी मळी के तथा बीजी प्रति सं. १७२३मा बाडमेरमा लखेली गुरांजी धनरुपजी पासेथी मळी छे, ते बन्ने प्रतोने आधारे बनते प्रयासे शुद्ध करी आ द ग्रंथ छापी प्रसिद्ध कर्यो छे, ASSAYERSEASE SHARE mean For Private And Personal Use Only Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirm.org Acharya Shri Kailassagerul Gyanmandit // इति श्रीवर्धमानपद्मसिंहश्रेष्टिचरित्रं समाप्तम् // For Private And Personal Use Only