SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 99
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagerul Gyanmandit वर्षमाम चरित्रम्, ॥ ५॥ S+CE एवं गतेष्वष्टसु वत्सरेषु । प्रायोऽथ तन्मंदिरकार्यमत्र ॥ बभूव पूर्ण परितः परंतु । स्तोकं ह्यपूर्ण किल शेषमेव ॥ ४४ ॥ एकाधिकाः पंचशतप्रमाणा। निर्मापितास्तत्र जिनेश्वराणां ॥ सुरत्नकादिप्रभवा मनोज्ञा-स्ताभ्यां प्रमाणात्प्रतिमा भवियां ॥४५॥ कृतांजनशलाकास्ताः । श्रीमकल्याणसागरैः ॥ प्रतिमाः शुशुजुर्विश्व-कर्मणा किमु निर्मिताः ॥ ४६॥ संपूर्णे शिखरे मुख्यमंदिरस्याथ कारिता ॥ शांतिबिंबत्रयस्यात्र । प्रतिष्टा तेन सूरिणा ॥४॥ + + एवी रीते आठ वर्षों वीत्याबाद अहीं पायें करीने ते मंदिरनु कार्य संपूर्ण थयु, परंतु फरतीनुं थोडं कार्यज खरेखर बाकी रथु. । ४४॥ हवे त्यां ते बन्ने भव्य भाइओए उत्तम रनआदिकनी बनावटवाळी जिनेश्वरपभुनी पांचसोएक मनोहर प्रतिमाओ प्रमाणपूर्वक बनावरावी. ॥ ४५ ॥ ते सर्व प्रतिमाओनी श्रीमान् कल्याणसागरसूरीश्वरजीए अंजनशलाका करी, अने तेथी ते सर्व प्रतिमाओ शुं जाणे विश्वकर्माए बनावी होय नही? तेम शोभवा लागी.॥४६॥ पछी ते मुख्यमंदिरनु शिखर संपूर्ण 131॥ | थयाबाद तेमां ते आचार्य महाराजना हाथे शांतिनाथप्रभुनी त्रण प्रतिमाओनी प्रतिष्टा करावी. ।। ४७ ॥ ५॥ + For Private And Personal Use Only
SR No.020877
Book TitleVardhaman Padmasinh Shreshthi Charitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarsagarsuri
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1924
Total Pages159
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy