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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirm.org Acharya Shri Kailassagerul Gyanmandit | *चरित्रम. ॥५ ॥ KHEKAS संघसेवन विधायको नरो। वित्तचित्तवरपात्रयोगतः॥ मुक्तिरम्यरमया गतामयो। वर्यते वरतरागिरागया ॥ ४६॥ युगादिजिनेशपदोः शरणं । तरणं तु जवार्णवतोऽनिहितं ॥ चरणांचितचारुमुनेश्चरणं । शरणीकरणीयमिदोरु गिरौ ॥ ४ ॥ लजते खलु योऽत्र गिरौ पदवीं । वरसंघपतेल भते सुपदं ॥ तततीर्थपतेः सततं स ततं । त्रिदशाधिपतेरपि संमददं ॥ ४ ॥ धन, हृदय तथा उत्तम पात्रना योगथी संघनी सेवा करनारो माणस नीरोगी (कर्मोरूपी रोगथी रहित) थयोथको अति उत्तम मनुष्योप्रते राग धरनारी मुक्तिरूपी उत्तम स्त्रीसाथे वरे छे. ॥ ४६ ॥ आ उत्तम गिरिराजपर श्रीऋषभदेवप्रभुना चरणोनुं शरण संसारसमुद्रथी तरवारूप कहेलुं छे. तेमज अहीं चारित्रथी शोभता उत्तम मुनिराजना चरण शरणुं करवं. ॥४७॥ वळी | आ गिरिराजपर जे माणस उत्तम संघपतिनी पदवी मेळवे , ते माणस हमेशा इंद्रने पण हर्ष आपनारा तथा विस्तारवाळा 18| विस्तृत तीर्थपतिना उत्तम पदने मेळवे छे. अर्थात् ते तीर्थकरपद प्राप्त करे छे. ॥४८॥ AMARHICALCA ॥५ ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020877
Book TitleVardhaman Padmasinh Shreshthi Charitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarsagarsuri
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1924
Total Pages159
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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