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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirtm.org Acharya Shri Kailasagarsur Gyanmandir चरित्रम. वर्षमान-3 श्रीशत्रुजयतीर्थचारुमहिमा संसारसंतारक-स्तीर्थेशैर्गदितः श्रुतोऽपि नविना कल्पपुमानो जुवि॥ धन्या एव विलोकनं गिरिपतेरस्यात्र कृत्वादरात्। साफल्यं निजनेत्रयोर्विदधते द्रव्यव्ययेनापि च ॥६ ॥ ॥ ४५ ॥ इति श्रीमद्विधिपक्षगडाधीश्वरजट्टारकशिरोमणिश्रीमत्कल्याणसागरसूरीश्वरपट्टालंकारश्रीमदमरसागरसूरि विरचिते श्रीमहालणगोत्रीयश्राद्धवर्यश्रीवर्धमानपद्मसिंहश्रेष्टिचरित्रे श्रीक. व्याणसागरसूरिकृतोपदेशशत्रुजयतीर्थमाहात्म्यवर्णनो नाम चतुर्थः सर्गः समाप्तः ॥ श्रीरस्तु.॥ ANS ACCO5C श्रीशत्रुजय तीर्थनो मनोहर महिमा तीर्थंकरप्रभुओए संसारमाथी तारनारो कह्यो छे. अने सांभळवाथी पण भव्योने ते महिमा आ पृथ्वीपर कल्पवृक्षसमान थाय छे. माटे अहीं द्रव्य खरचीने पण धन्य प्राणीओज आदरपूर्वक आ गिरिराजनुं दर्शन करीने पोताना नेत्रोनी सफलता मेळवे छे. ॥ ४९ ॥ एव रीते श्रीमान् विधिपक्षगच्छाधीश्वर भट्टारकशिरोमणि श्रीमान् कल्याणसागर सूरीश्वरना पाटने शोभावनारा श्रीमान् अमरसागरमूरिजीए रचेला श्रीमान् लालणगोत्रना श्रावकोत्तम श्रीवर्धमान अने पद्मसिंह शेठना चरित्रमा श्री कल्याणसागर मूरिजीए करेलो उपदेश तथा शत्रुजयतीर्थना माहात्म्यना वर्णनवाळो चोथो सर्ग समाप्त थयो. ॥ श्रीरस्तु. ।। -SERIALSCROLO ॥६ ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020877
Book TitleVardhaman Padmasinh Shreshthi Charitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarsagarsuri
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1924
Total Pages159
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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