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वर्धमान -
॥११८॥
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इति श्रीमद्विधिपगठाधीश्वर जट्टारक शिरोमणिश्रीमत्कल्याण सागरसूरीश्वरपट्टालंकारश्रीमदमरसागरसूरिविरचिते श्रीमलाणगोत्रीयश्राद्धवर्य श्रीमद्वर्धमानपद्मसिंह थेष्टिचरित्रे योगिरूपधारिणीगोत्रदेवतायाश्चित्रवल्लीज टिकाप्राप्तिपुण्यप्रकाशद्रव्य वृद्धिनावत्यागमन गोत्र देवी दर्शनादिवर्णनो नाम सप्तमः सर्गः समाप्तः ॥ श्रीरस्तु ॥
॥ अथाष्टमः सर्गः प्रारभ्यते ॥
धर्मज्ञा शुभावेन । वर्धमानवधूर्व्यधात् ॥ गुरूपदेशतः सिद्ध-चक्राराधनमादरात् ॥ १ ॥ एव ते श्रीमान् विधिपक्ष गच्छाधीश्वर भट्टारकशिरोमणि श्रीमान् कल्याणसागर सूरीश्वरना पाटने शोभावनारा श्रीमान् अमरसागरसूरिजीए रचेका श्रीमान् लालणगोत्रना श्रावकोत्तम श्रीवर्धमान अने पद्मसिंहशेटना चरित्रमां योगरूपने धारण करनारी गोत्रदेवी पासेधी चित्रावेलनी जडीनी प्राप्ति, पुण्य प्रकाश, द्रव्यनी वृद्धि, भद्रावतीमां आगमन, तथा गोत्रदेवीना दर्शन आदिकना वर्णनरूप सातमो सर्ग समाप्त भयो. ॥ श्रीरस्तु ।।
|| हवे आठमो सर्ग प्रारंभ थाय छे. ॥
(त्यारपछी ) धर्मने जाणनारी वर्धमानशाहनी स्त्री (नवरंगदेवी ) उत्तम भाववडे करीने गुरुना उपदेशथी आदरपूर्वक सिद्धचक्र आराधन करवा लागी ॥ १ ॥
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चरित्रम्.
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