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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra वर्षमान ॥ ७३ ॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir निष्पादकानां वरजोजनानां । शतद्वयं तत्र विराजितं च ॥ पक्कान्न निष्पादक कांदवीय - शतं प्रमाणप्रमितं मयैकं ॥ ५२ ॥ सुनापितानां शतकं तथैकं । शतार्धमवाथ सुनर्तकानां । नेर्यादिवाजित्रसुवादकानां । ज्ञेया सदा विंशतिसंख्यकाथ ॥ ५३ ॥ चारणैकशतकं तथा वरं । कीर्तिपाठमुखरं व्यराजत ॥ लालणाख्यवरवंशज न्मिनां । शौक्तिकेय निभ निर्मलौजसां ॥ ५४ ॥ पटनिकेतन कोरुनियोगिनां । शतकमेकमिहार्धयुतं मतं ॥ विविधकार्य नियोगयुजामिति । गणनयाथ सृतं परदेहिनां ॥ ५५ ॥ तेमज उत्तम रसोइ बनावनार बसो माणस तेमां शोभता इता, तथा पकान्नने बनावनार ( मीठाइ बनावनार ) एकसो कंदोई में गण्या हता. ॥ ५२ ॥ वळी एकसो क्षौरकर्म करनार नापित, अने पचास नृत्य करनारा, तथा मेरी आदिक वाजित्र बजावंनारा वीस माणसो हता ॥ २३ ॥ तथा मुक्ताफलनी कांति जेवां निर्मल तेजवाला लालण नामना उत्तम वंशमा जन्मेला उत्तम पुरुषोनी कीर्ति गावामां चतुर अने उत्तम एकसो चारणो (माटो) हता. ॥ ५४ || अने तंबू खोडवा usar आदि काम करनारा दोढसो माणसो हता. अने एवी रीते नाना प्रकारना बीजां कार्यो करनारा बीजा माणसोनी गणत्री करवाथी सर्यु. ( अर्थात् तेओनी संख्या हवे अमो कहेता नथी, एम ग्रंथकार कहे छे. ) ॥ ५५ ॥ For Private And Personal Use Only चरित्रम् ॥ ७३ ॥
SR No.020877
Book TitleVardhaman Padmasinh Shreshthi Charitam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarsagarsuri
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1924
Total Pages159
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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