Book Title: Vardhaman Padmasinh Shreshthi Charitam
Author(s): Amarsagarsuri
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

View full book text
Previous | Next

Page 67
________________ Shri Mahavir Jan Athana Kendra Acharya Short Kalasagassut Gyanmand वर्धमान चरित्रम. ॥६३॥ www.kobau.Org प्रोच्य सूरि रिति तिकोविदो। वासचूर्णमथ मस्तके तदा॥ श्रेष्टिनोऽस्य खलु सोऽदिपन्मुदा । संघनायकपदाजिसूचकं ॥७॥ दुंदुनिध्वनय आसमंततो। नेदुरंबुदनिनादसन्निभाः ॥ वर्यतूर्यरवरा जिराजिता । जझिरे बत तदा दिशो दश ॥ ए॥पद्मसिंह इति बांधवाझया। सर्वसंघमथ वै न्यमंत्रयत् ॥ दुर्लनं कुरुत जन्म पावनं । सिहशैखवरतीर्थयात्रया ॥ १०॥ अशनपानसुयानसमु. नवं । पथि विधेयमथो न च चिंतनं ॥ सकलयात्रिकलोकगणे रिह। गिरिवरेंऽसुवंदनकोत्सुकैः ॥११॥ एम कहीने व्यवहारकुशल एवा ते आचार्यश्रीए तेज वखते हर्षवी ते वर्धमानशेठना मस्तकपर निश्चे संघपतिनी पदवीने सूचवनारो वासक्षेप नाख्यो. ॥८॥ ते वखते चारे तरफथी मेघगर्जारवसरखा दुंदुमिभोना ध्वनिओ वागवा लाग्या, अने दशे दिशाओ मनोहर वाजिबोना शब्दोनी श्रेणिोथी शोभवा लागी.॥९॥ पछी पोताना ( वडिल ) बंधुनी आज्ञाथी पद्मसिं हशाहे सर्वसंघने निमंत्रण कयु के, (हे बंधुओ!) सिद्धगिरि नामना उत्तम तीर्थनी यात्रावडे तमो आ दुर्लभ मनुष्यजन्मने Pा पवित्र करो ॥१०॥ वळी अहीं ते गिरिराजने वांदवाने उत्सुक थयेला सर्व यात्राल लोकोना समूहोए मार्गमा भोजन, पान 13|॥६३॥ तथा वाहनसंबंधि ( जरा पण ) विचार करवो नही, अर्थात् ते सघर्छ संघपतितरफथी मळशे. ॥ ११ ॥ For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159