Book Title: Vardhaman Padmasinh Shreshthi Charitam
Author(s): Amarsagarsuri
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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॥१३०॥
वर्धमान-3| तेऽप्यवोचन समस्तं नो। द्रव्यं तुल्यं विभज्य च ॥आयतिक्वेशनाशाय । देहि सांप्रतमेव हि ॥१०॥
पद्मसिंहोऽपि विज्ञाय । बुद्धिमान मानसे निजे ॥ विजक्तवसने वांबा तेर्षा नाविनियोगतः ॥११॥ हृदिनो जटीयुक्तां। पेटिकामुदघाटयत् ॥ नाग्यश्रेणिमिवामीषां । वत्सलानामहर्निशं ॥१॥ युग्मं॥ ततो निष्कास्य निष्कास्य । पेटातो निजइस्ततः ॥ सप्तलदोरुसौवर्ण-मुद्रिका यावता तदा ॥१३॥ गणितास्तावता तेन । जटिका तत्र नेक्षिता॥न चापि मुद्रिकैकापि । पेटिकायां मनस्विना ॥१॥ युग्मं.
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___ त्यारे तेओए पण कयुं के भविष्यकाळमां केशना विनाश माटे तमो हमणोज अमोने सघलु द्रव्य सरखे भागे वहेंची | आपो. ॥१०॥ त्यारे बुद्धिवान् एवा ते पासिंहशाहे पण भाविना प्रबलथी तेओनी जुदा रहेवानी इच्छाने पोताना मनमा जा
णीने हृदयमा दुभाया थको हमेशां वत्सल एवा ते सघळाओनी जाणे भाग्यनी श्रेणि होय नहि तेम (चित्रावेलनी) जडी| वाळी पेटी उघाडी. ॥ ११ ॥ १२ ॥ पछी ते वखते पोताने हाथे ते पेटीमाथी कहाडी कहाडीने जेवामा तेमणे सात लाख सोनामहोरो गणी, तेवामा ते पेटीनी अंदर ते बुद्धिवान् पद्मसिंहशाहे ते जडी, तथा एक पण सोनामहोर जोइ नहि.
61565ॐ
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