Book Title: Vardhaman Padmasinh Shreshthi Charitam
Author(s): Amarsagarsuri
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 142
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirtm.org Acharya Shri Kailasagarsur Gyanmandie चरित्रम्, वर्षमान ॥ अथ ग्रंथकर्तुः प्रशस्तिः ॥ ॥१३०॥ श्रीवीरपट्टे क्रमतोऽथ जाताः। प्रजावकाः सुरय आर्यरक्षिताः ॥ येऽस्थापयन् श्रीविधिपक्षगन्छ । कालीप्रसादाधिगमेन विश्रुताः ।। ४४ ॥ पट्टे तदीये जयसिंहसूरयः । सर्वागमांभोनिधिपारसंगताः ॥ लक्षप्रमक्षत्रविबोधविश्रुताः । प्रजावका लालणसेविता बजुः॥४५॥ तत्पट्टे धर्मघोषाश्च । ततो महेंजसिंहकाः ॥ ततः सिंहप्रजाशासन् । सर्वशास्त्रविशारदाः ॥ ४६॥ ॥ हवे आ ग्रंथकर्तानी प्रशस्ति कहे छे. ॥ हवे श्रीवीरप्रभुनी पाटपर अनुक्रमे श्रीआर्यरक्षित नामना प्रख्यात अने प्रभाविक आचार्य महाराज थया, के जेमणे महाहै कालीदेवीनो प्रसाद मेळवीने विधिपक्षगच्छ स्थाप्यो. ॥४४॥ तेमनी पाटे सर्व आगमोरूपी समुद्रना पारने पहोंचेला, तथा एक लाख क्षत्रिओने प्रतिबो बाथी प्रख्याति पामेला अने लालणथी सेवायेला श्रीजयसिंहमूरि नामना प्रभाविक आचार्य शोभता हता. ॥४५॥ अने तेमनी पाटे धर्मघोपसरि थया, ते पछी महेंद्रसिंहमूरि थया, अने ते पछी सर्व शास्त्रोमां विचक्षण एवा | श्रीसिंहप्रभसूरि थया. ।। ४६ ॥ ॥१३॥ For Private And Personal Use Only

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