Book Title: Vardhaman Padmasinh Shreshthi Charitam
Author(s): Amarsagarsuri
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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वर्धमाम
॥१३॥
न च कोऽपि गतो ह्यर्थी। पूनस्तस्य गृहांगणात् ॥ जगमोनॊजनादीनां । दानं च ददतोऽनिशंधाचरित्रम जगडोरस्य कीर्तिश्च । विस्तृता भारतेऽखिले ॥ चारणैः कविभिर्गीय-माना नित्यं पदे पदे ॥४१॥ जगमुर्जगमुरेव । वर्धमानांगसंजवः ॥ अपरो धनदो जीयात् । सर्वदा कविनिः स्तुतः ॥ ४५ ॥ तस्य गेहांगणं नित्य-मर्थिसार्थसमाकुलं ॥ विलोक्य जगालोका । जगडोः श्रीनिकेतनं ॥ ४३ ।।
EGUAGAMANAGECEKA
51 अने हमेशां भोजन आदिकनुदान देता एवा ते जगडुशाहना घरना आंगणामांथी कोइपण याचक निश्चे दुभाइने गयो नाहतो.
॥ ४० ॥ अने आ जगडुशाहनी कीर्ति चारण कविओवडे हमेशां पगले पगले गवातीथकी सघळा भरतखंडमा विस्तार पामी. ४॥४१॥ वर्धमानशहना पुत्र जगडु तो जगडुज थया छे, हमेशा कविओथी स्तुति कराता एवा ते वीजा कुबेरभंडारी सरखा
जगडु जय पामो? ॥ ४२ ॥ ते जगहुशाहना घरना आंगणाने याचकोना समूहोथी हमेशां भरेलुं जोइने लोको तेने लक्ष्मीन घर कहेवा लाग्या. ॥ ४३ ॥
॥१३॥
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