Book Title: Vardhaman Padmasinh Shreshthi Charitam
Author(s): Amarsagarsuri
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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Shah
Ahana Kenda
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Acharya Shri Kailasagarsur Gyanmar
वर्धमान
चरित्रम्.
॥१५॥
॥ अथ नवमः सर्गः प्रारभ्यते ॥ यायुः प्रपूर्याथ निजं स एवं । ट्यशीतिवर्षप्रमितं मनोइं॥ श्रीवर्धमानो निजबंधुसेवितः। श्रीवीरपालादिचतुः सुतैश्च ॥१॥ संसेवितः पौत्रगणालिनिश्च । तीर्थकराणां शरणं विधाय ॥ समाधिना मृत्युमवाप्य शीघ्र-माराधनातश्च जगाम नाकं ॥२॥ युग्मं ॥ चातुर्वियोगजं पुःखममानं मानसे वहन् ॥ कारयामास तस्याथ । मृतकार्याणि पद्मकः ॥३॥ हादशलक्षमुद्राणां । व्ययेनासावजोजयत् ॥ कबदेशं च हालारं । पक्वान्नैर्विविधैः समं ॥४॥
॥ हवे नवमो सर्ग प्रारंभ थाय छे. ॥ I पछी एवी रीते पोताना पंधुथी अने श्रीवीरपाल आदिक चार पुत्रोधी सेवा कराता ते श्रीमान् वर्धमानशाहशेठ पोतानुं
सुखाकारी ब्यासी वर्षतुं आयुष्य पूर्ण करी पौत्रोना समूहथी पण उत्तम सेवा कराता थका तीर्थंकरोतुं शरण लेइने आराधनाथी | जलदी समाधिवडे मृत्यु पामीने स्वर्गे गया. ॥१॥२॥ त्यारे पद्मसिंहशाह (पोताना) भाइना वियोगथी थ अमाप
दुःखने चित्तमा धारण करता यका तेनी उत्तरक्रियानां कार्यों करवा लाग्या. ॥ ३॥ (तेमां) आ पद्मसिंहशाहे वारलाख | मुद्राचं खर्च करी नाना प्रकारना पकानो (मीठाइ )वडे करीने एकी वखते कच्छदेश अने हालारदेशने नमाड्यो. ॥ ४॥
॥१२॥
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