Book Title: Vardhaman Padmasinh Shreshthi Charitam
Author(s): Amarsagarsuri
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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वर्धमान
॥ १२७॥
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इति विदितसुकृत्य तीर्थयात्रापवित्रा व मितधनसुदानात्प्रीतिार्थिजनौघौ ॥ अतिमुदित कुटुंब चातरौ तौ समेतौ । निजनगरमविघ्नं नंद्यमानौ जनौघैः ॥४२॥ इति श्रीमद्विधिपगबाधीश्वरनहारक शिरोमणिश्रीमत्कल्याणसागरसूरीश्वर पट्टालंकारश्री मदमर नागरसूरिविरचिते श्रीमलाल गोश्रीयश्रावर्य श्रीमद्वर्धमानपद्मसिंह श्रेष्टिचरित्रे तत्कृतानेक तीर्थयात्राचित्रवल्लोजटिका माहात्म्यामि तद्रव्यव्ययादिपुण्य प्रजाववर्णनो नामाष्टमः सर्गः समाप्तः ॥ श्रीरस्तु ॥
एवी रीते करेल के उत्तम कृत्यो जेणे एवा तीर्थयात्राथी पवित्र थयेला, अतिघनना उत्तम दानवी मन करेल के अ जनना समूह जेणे एवा, अति हर्षित कुटुंबवाळा मनुष्योना समूहोथी खणाता ते बन्ने भाइयो निर्विशे पोताना नगरां आया. ॥ ४२ ॥ एवी रीते श्रीमान् विधिपक्षगच्छाधीश्वर भट्टारकशिरोमणि श्रीमान् कल्याणसागरसूरीश्वरना पाटने शोभावनारा श्रीमान् अमरसागरसूरि जीए रचेला श्रीमान् लालणगोत्रना श्रावकोत्तम श्रीमान् वर्धमान अने पद्मसिंहशेठना चरित्रमा तेओए क रेली अनेक तीर्थोनी यात्रा, तथा चित्रावेलनी जडीना माहात्म्ययी करेलो अगणित द्रव्यनो खर्च तथा पुण्यमभावना वर्णनरूप आठमो सर्ग समाप्त थयो । श्रीरस्तु ॥
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चरित्रम्,
॥१२७॥

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