Book Title: Vardhaman Padmasinh Shreshthi Charitam
Author(s): Amarsagarsuri
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

View full book text
Previous | Next

Page 117
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagerul Gyanmandit पर्धमान - योगिरूपममरी विकुळ सा । कालिका किल तयोः सहायदा ॥ सर्वदास्ति वरदानयंत्रिता । पूर्व- चरित्रम् जप्रवरलालणार्चिता ॥७॥ वर्धमानस्ततोऽपृछत् । सूरीणां क्रमयोर्नतः ॥ नगवन् योगिनाथोऽ-15 ॥११३॥ सौ। क इति मम कथ्यतां ॥ ५९ ॥ निवेदयामासुरिमे मुनीश्वरा । अपि श्रुतझानसमुद्रपारगाः ॥ वृत्तं समस्तं च तदीयपूर्वजो-रुलालणस्याथ सविस्तरं तयोः ॥ ६० ॥ इति निशम्य मुनीशनिवे. दितं । प्रमुदितौ निजपूर्वजवृत्तकं ॥ पुलकितौ किल सुरिपदांबुजा-नतिपरौ वदतःस्म च बांधवौ।६।। कारण के तेमना पूर्वज एवा उत्तम लालणथी पूजाएली अने वरदान देवाथी बंधायेली ते कालिका देवी खरेखर योगीनुं रूप धारण करीने तेश्रो बन्नेने हमेशा सहाय करनारी थइ छे. ॥ ५८ ।। त्यारबाद ते सूरीश्वर श्रीकल्याणसागरजीना चरणोमां नमेला वर्षमानशेठ पूछवा लाग्या के हे भगवन् ! ते योगिराज कोण हता? ते कृपा करी मने कहो? । ५९ ॥ त्यारे श्रुतज्ञानरूपी समुद्रने पार पामेला आ श्री कल्याणसागर मुनीश्वरे पण तेओना पूर्वज एवा उत्तम लालणनु सपळु वृत्तांत विस्तार सहित ते वनेने कही संभळाव्यु.॥६० ॥ एवी रीते मुनीश्वरे कहेलु पोताना पूर्वजनुं वृत्तांत सांभळीने खरेखर हर्षित ॥११३॥ थयेला अने रोमांचित थयेला ते बन्ने भाइओ सूरीश्वरना चरणोमा नमस्कार करता छता कहेवा लाग्या के, ।। ६१ ॥ ANCHORCHACHUSIAS ॐॐॐॐॐ535 For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159