Book Title: Vardhaman Padmasinh Shreshthi Charitam
Author(s): Amarsagarsuri
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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वर्धमान-5] सार्धद्विलक्षमुडाणां। व्ययेन विहितस्तदा। जीर्णोधारोऽस्य तीर्थस्य । ताभ्यां कल्याणदेतवे ॥२६॥ 1चरित्रम,
ततोऽर्बुद गिरावेता-वेतौ श्रेयोऽभिलाषिणौ ॥ वकीयोरुकुटुंबेन । सहितौ हितकारिणि ॥ २७ ॥ ॥१२॥
वीक्ष्य तत्र विमलेन कारितं । मंदिरं वृषजनाथमंडितं ॥ वर्यशिल्पकलितं मनोहरं । तावुभौ हृदि निजे चमत्कृतौ ॥रा रंगमंझपमनपशिल्पकं । सुंदरं गजगणोरुमंदिरं ॥ स्वर्ग एव नुवि किं समागत-स्तत्र वीक्ष्य खलु मन्यतःस्म तौ ॥ १९ ॥ वस्तुपालपरिनिर्मितं तथा । नेमिनाथवरमंदिरं ततः ॥ संविलोक्य किल चित्रितावुभौ । मानसे परममोदमापतुः ॥ ३० ॥
त्यारे ते बन्नेए (पोताना ) कल्याण माटे आ तीर्थनो अढी लाख मुद्राना खर्चबडे करीने जीर्णोद्धार कर्यो. ॥ २६ ॥ पात्यारपछी पोताना उत्तम कुटुंब साथे कल्याणनी इच्छावाळा ते बन्ने भाइओ हितकारी अर्बुद गिरि उपर (आबु पर्वतपर) गया.
॥ २७ ॥ त्यां विमलशाहे बनावेलुं वृषभनाथ प्रभुथी शोभतुं उत्तम कारीगरीवाळु मनोहर मंदिर जोइने ते बन्ने पोताना हृद| यमा आश्चर्य पाम्या. ॥ २८ ॥ त्या ते जिनमंदिरमा अतिशय कारीगिरीवाळा सुंदर रंगमंडपने तथा हाथीओना समूहनी 151 विशाल शाळाने जोइने तेओ पोताना मनमा खरेखर एम मानवा लाग्या के, शुं अहिं पृथ्वीपर स्वर्गज आवेलो के? ॥२२॥
॥१४॥ बळी पछी त्या वस्तुपाले बनावेलु नेमिनाथप्रभुनु उत्तम मंदिर जोइने खरेखर ते बन्ने आश्चर्य पाम्या थका मनमा अति ह४ा ने पामवा लाग्या. ॥ ३०॥
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