Book Title: Vardhaman Padmasinh Shreshthi Charitam
Author(s): Amarsagarsuri
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 125
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailasagarsur Gyanmandir वर्धमान चरित्रमा ॥१२१॥ जीर्णोद्धारस्ततस्ताभ्यां । सूरीणामुपदेशतः ॥ कारितः सार्धलक्षस्य ।मुखिकाणां व्ययेन च ॥१३॥ नवीननगरे ताभ्यां । चापसिंहाय बंधवे ॥ स्वकारितार्हदागार-रक्षणाय सदैव हि ॥ १४ ॥ वाटिका नव क्षेत्राणि । चत्वारि च निजानि च ॥ मनोझा त्वेकपंचाश-दृश्रेणिः समर्पिता ॥१५॥ हिसक्षमुडिकाश्चापि । प्रेषिताः संघसादिकं ॥ मंदिरापूर्णकार्याणि । पूर्णीकर्तु सुभावतः॥१६॥ त्रिनिविशेषकं ।। परं नाविनियोगेन। न च पूर्ण बभूव तत् ॥ नूनं प्रयत्नतोऽप्यत्र । विधिरेव समर्थकः ॥१७॥ ___त्यारपछी ते श्रीकल्याणसागरसूरीश्वरना उपदेशथी ते बन्ने भाइओए दोढलास्त्र मुद्रिकाना खर्चथी ( तेज मंदिरनो) जीर्णोद्धार कराव्यो. ॥ १३ ॥ त्यारबाद ते चन्ने भाइओए नवानगरमा ( पोतानी मीलकतमांनी) नव वाडीओ, चार खेतर, अने सुंदर एवी एकावन हाटनी श्रेणी, ते पोते करेला उत्तम मंदिरनी हमेशा रक्षा थाय ते माटे चापसी नामना (पोताना) भाइने समर्पण करू, अने संघनी सालिए मंदिरना अपूर्ण काम पूरा करचा माटे उत्तम भावपूर्वक बे लाख मुद्रिका पण तेने मोकली. ॥ १४ ॥ १५ ॥ १६॥ परंतु भाविनी प्रबलताथी ते ( मंदिरनु अपूर्ण काम ) पूर्ण थयु नहि, खरेखर आ दुनीआमां प्रयत्नथी पण विधिज बलवान छे. ॥१७ ।। For Private And Personal Use Only

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