Book Title: Vardhaman Padmasinh Shreshthi Charitam
Author(s): Amarsagarsuri
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 71
________________ S h ana Kenda www.kobaert.org Acharya Shri Kailasagarsur Gyanmar चरित्रम नाम- दिग्गणसंमतः ॥५३॥ वर्धमानस्ततोऽमान-जनवजसमन्वितः ॥ सकुटुंबो जुतं प्रीत-पद्मसिंहादि सेवितः ॥ २४ ॥ त्रिनिर्विशेषकं ॥ ॥६ ॥ अपरेऽपि जनाः सर्वे । निविष्टा यात्रिकास्तदा ॥ परेषु यानपात्रेषु । यथास्थानं मुदान्विताः॥२५॥ प्रवहणं प्रवरं पवनेरितं । प्रवहणैरपरैरपि संयुतं ॥ विविधरंगितकेतुकरोच्चयै-रजिनयांचितचर्चितनर्तनं ॥ २६ ॥ जननिधौ वरसौध इवाचनौ । परिवृतं परितोऽग्रगवाक्षकैः ॥ जलतरंगचलं तदरं तत-स्ततजनामितमोदमथाचलत् ॥ २७ ॥ युग्मं ॥ आकाश, पृथ्वीतल, तथा दिशाओना समूहे (जाणे प्रयाणमाटे तेमने संमति आपी होय नही ? तेम) अगणित माणसोना समूह सहित कुटुंबयुक्त अने खुशी थयेला पद्मसिंहआदिकयी सेवायेला हर्षथी तुरत वहाणपर चड्या. ।।२२।। २३ ॥ २४॥ पछी ते वखते वीजा पण सघळा यात्रा माणसो बीजा वहाणोपर योग्यता मुजच हर्षसहित बेठा. ।। १५ ।। हवे पवनथी। प्रेरायेलं ते महोदं वहाण वीजा वहाणोनी साथे रंगबेरंगी पताकाओरूपी हाथना समूहोवडे करीने हावभावसहित जाणे नृत्य करतुं होय नहि ? तेम पृथ्पीपर रहेला महोटा महेलनी पेठे चोतरफ बहार पडता झरुवाओवडे घेरायुं यकू तथा जलनां मोजां2 ओथी चपल थयेलुं अने माणसोना अतिशय हर्षने विस्तारतुं थकुं त्यांथी तुरत समुद्रनी अंदर चालवा लाग्यु. ॥ २६-२८ ॥ SUGARCANCE For Private And Personal use only

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