Book Title: Vardhaman Padmasinh Shreshthi Charitam
Author(s): Amarsagarsuri
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 110
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra वर्धमान ॥१०६॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गदित्वा निजवृत्तांतं । सकलं जटिकां ततः ॥ दर्शयित्वा जगौ सोऽथ । वृत्तांतं योगिनो डुतं ॥२५॥ पद्मसिंहं निशम्येति । वर्धमानो मुदा जगौ ॥ नः खलु गोत्रदेवीयं । योगिरूपविधायिनी ॥ २६ ॥ वैवात्र सहस्राणि । मुद्रिकाणां विलोक्य सा ॥ जांडागारेऽधुना नून-मस्मदीये समुत्सुका ॥ २७ ॥ पदो रक्षणायैषा-स्माकं नूनमिहागता ॥ ददौ ते जटिकामेतां । चित्रवल्लीसमुद्भवां ॥ २० ॥ युग्मं ॥ वर्धमानसमादिष्टः । पद्मसिंहोऽथ तां न्यधात् ॥ जटिकां सपदि स्वीय-जांमागारे सुरक्षितां ॥ २९ ॥ पछी पोतानुं सघळु वृत्तांत कहीने अने जडी बतावीने ते पद्मसिंहशाहे योगीनुं वृत्तांत तुरत कधुं ।। २५ ।। त्यारे एवी तनुं वचन सांभळीने वर्धमानशाह (पोताना बंधु ) पद्मसिंहशाहने हर्षथी कहेवा लाग्या के हे बंधु ! योगीना रूपने धारण करनारी खरेखर ते आपणी गोत्रदेवी हती. ।। २६ ।। खरेवर तेणी आपणा भंडारमां आ वखते नव हजारज सोनामहोरो जो उतावळी आपणने आपदार्माथी उगारवा माटे खरेखर अहिं आवी हती, अने चित्रावेलथी उत्पन्न थयेली आ जडी तेणीए तने आपीछे. ।। २७ ।। २८ ।। पछी वर्धमानशाहनी आज्ञाथी पद्मसिंहशाहे ते जडीने तुरत सारी रीते साचवीने पोताना भंडारमां मकी. ॥ २९ ॥ For Private And Personal Use Only चरित्रम्. ॥१०६४

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