Book Title: Vardhaman Padmasinh Shreshthi Charitam
Author(s): Amarsagarsuri
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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पर्वमान-
॥१०॥
प्राह रिकोऽपि संदेशं । तदीयं नोऽथ भूपतेः ॥ प्रापयामास पुष्टेन । प्रेरितस्तेन पूर्वतः ॥ १७ ॥ चरित्रम, निरुपायस्ततः सोऽय-मागबन् हटके निजे ॥ मार्गितो नोजनं मागें । वृझेनैकेन योगिना ॥ १० ॥15 अथ विलोक्य सुयोगिनमेनकं । हृदि विचारयतिस्म स धीनिधिः ॥ अयमहोऽस्ति स यो हि गतः पुरा । मम विमुच्य गृहे रसतुंबकं ॥ १७ ॥ सपदि दापयतिस्म स जोजनं । मतिनिधिः किल कांदविकापणात् ॥ घृतनृतं च तदीयहृदिप्सितं । परिवृतोऽप्ययमस्य तु चिंतया ॥ २० ॥
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बळी प्रथमयीज ते दुष्ट खजानचीए समजावेला एचा चोकीदारे पण तेमनो ( पद्मसिंहशाहनो ) संदेशो राजामे पहोंचाड्यो नहि. ॥ १७॥ पछी ते पद्मसिंहशाह निराश थइ पोतानी वखारे आववा लाग्या, एवामां मार्गमा एक वृद्ध योगीए तेनी ॐ पासे भोजन माग्यु. ॥१८॥ हवे ते उत्तम योगीने जोइने बुद्धिना निधान सरखा ते पद्मसिंहशाहे मनमा विचार्य के, अहो ! आ
| तेज योगी छे, के जे पूर्वे मारे घेर सिद्धरसनु तुंबडं मूकीने गयो हतो. ॥ १९ ॥ पछी पोते चिंताग्रस्त छतां पण बुद्धिना ₹ निधान सरखा ते पद्मसिंहशाहे तुरत खरेखर घृतथी भरेल मनोवांछित भोजन कंदोइनी दुकानेथी तेने अपाव्यु. ॥ २० ॥
॥१०॥
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