Book Title: Vardhaman Padmasinh Shreshthi Charitam
Author(s): Amarsagarsuri
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 84
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagerul Gyanmandit समान चरित्रम, 1000+ समागतोऽसौ पटवासमध्ये । सबांधवो बंधुरचित्तनावः ॥ सूरींद्रकादेशमवाप्य तुर्ण-मष्टाहिकोरू- त्सवमाततान ॥१॥ सकलसंघजना अपि पूजनं । वृषलतीर्थपतेः क्रमशो गिरौ ॥ विदधुरत विधेर्विविधक्रमै-रपगताखिल विघ्नसमूहकं ॥ ७२ ॥ प्रदक्षिणामष्टमवासरेऽसौ । संघाधिपः संघयुतस्ततान॥तीर्थाधिनाथस्य सुसिविध्वाः। पाणिग्रहोरुक्षणसूचकां किं॥३॥ राजादनीक्षीरसमूहद्धारां । ववर्ष संघाधिपतेः सुमूर्ति ॥ बभौ नु सामुक्तिवधूप्रमुक्ता । किं कुंदमाला वरणाय तस्य ।। 5+C++1151451516 XXC-5-1551 त्यारपट्टी बांधवसहित मुंदर चित्तना भाववाळा ते वर्धमानशाह शेठ (तळेटीमा रहेला पोताना) तंबृमां आव्या, अने आचार्य महाराजना आदेशने पामी तुरत अष्टाह्निकनो महोटी उत्सव विस्तारवा लाग्या. ॥ ८॥ पछी त्यां ते गिरिराजपर संघनां सघळो माणसोए पण विधिना नानाप्रकारना अनुक्रमपूर्वक सर्व विनोना समूहने दूर करनारुं श्रीऋषभदेवमधुनु पूजन कर्य. ॥४॥ पड़ी ते संघपतिए आठमे दिवसे संघसहित उत्तम एवी मुक्तिरूपी स्त्रीने पाणवाना मनोहर समय ने जाणे सूच वनारी होय नहिं एवी रीतनी ते तीर्थाधिराजनी प्रदक्षिणा करी. ॥ ८३ ।। (ते वखते)रायणना वृक्षे ते संघपतिना उत्तम मस्तकपर क्षीरना समूहनी धारा वरसाची, ते जाणे मुक्तिरूपी स्त्रीए ते शेठने वरवा माटे मोगराना पुष्पोनी वरमाळाज जाणे पहेरावी होय नही? तेम शोभवा लागी. ।। ८४ ॥ Gon For Private And Personal Use Only X

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