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पाठ २० : साधन
शब्दसंग्रह शंकुला (सरीता)। दण्ड: (डंडा)। परशुः (कुल्हाड़ी)। गुलिका, गुटिका (गोली) । कृपाणः (तलवार)। कर्तरी (कैंची)। यष्टिः (लाठी)। भुशण्डिः (बन्दूक)। चपेटः, चर्पटः (तमाचा)। लवित्रम् (चाकू) । सूचिः (सूई)। दोरकम् (धागा)। शतघ्नी (तोप)। संदंशक: (चिमटा) । संडसी (संडासी)। मुष्टिः, मुस्तुः (मुक्की) । शास्त्रवरूथम् (टैक) । ऋष्टिः (दुधारी तलवार)। गुलिकास्त्रम् (पिस्तौल)। नालास्त्रम् (बंदूक) । गुलिकायन्त्रम् (मशीनगन)। स्फोटास्त्रम् (बंब)। कुक्षिभृतास्त्रम् (राईफल)। तोमरः (संगीन)। शस्त्रम् (आयुध)। धनु: (धनुष)। शरः (बाण) । इषः (बाण) । खड्गपिधानकम् (म्यान) । फलकम् (ढाल)। क्षुरिका (छुरी)। असिपुत्री (छुरी) । करपालिका (कटार)। त्रिशीर्षकम् (शुल) । तरवारिः (तलवार) । खड्गः (तलवार)।
- धातु-त्यजं-हानी (त्यजति) छोडना। तपं- संतापे (तपति) तपना। चूष-पाने (चूषति) चूसना । पूष-वृद्धी (पूषति) वृद्धि करना। लूष, मूष-स्तेये (लूषति, मूषति) चुराना । भूष-अलंकारे (भूषति) अलंकार करना।
अव्यय-अति (अधिक) । अद्य (आज) । अधुना, इदानीं (अब) । अन्तरेण, ऋते (बिना)। अन्तरा (बीच में) । इह (यहां) । शश्वत् (निरन्तर)।
___ मधु और कर्तृ शब्द (नपुंसक) को याद करो। (देखें परिशिष्ट १ संख्या २८, ६६)
त्यज और भूष धातु के रूप याद करो। (देखें परिशिष्ट २ संख्या ६२, ६३) तप के रूप त्यज की तरह चलते हैं । चूष से लेकर मूष तक के रूप भूष की तरह चलते हैं।
साधन ___ 'साध्यते येनेति साधनम्', क्रियते येनेति करणम्-जिसके द्वारा कार्य किया जाता है उसे साधन या करण कहते हैं। किन्तु एक कार्य करने में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से अनेक वस्तुएं सहायक होती हैं, क्या उन सबको साधन मानना चाहिए या उनमें से किसी एक को? इस प्रश्न को समाहित करने के लिए हमें साधन की एक पूर्ण या मंजी हुई परिभाषा की ओर दृष्टि