________________
पाठ ४५ : तद्धित ८ (भाव)
शब्दसंग्रह अहिफेनम् (अफीम)। गंजा (गांजा)। ताम्रकूट: (तम्बाकू) । घरसम् (चरस) । मद्यम्, मदिरा (शराब) । मांसम् (मांस) । त्रिकम् (कटिदेश) । विधुरः (रंडुवा) । अवल: (बडा शाला)। कुली (बडी शाली)। जन्या (मां की सहेली, वधू की सहेली)। उत्तराधिकारी (वारिस) । श्याल: (साला) । श्याली (साली)। श्यालीधवः (साडू)। श्वसुरगृहम् (ससुराल)।
धातु-डुदांन्क्-दाने (ददाति, दत्ते) देना। डुधांन्क-धारणे च (दधाति, धत्ते) धारण करना । डु नक्-पोषणे च (बिभर्ति, बिभृते) पोषण करना।
दा, धा और , धातु के रूप याद करो (देखें परिशिष्ट २ संख्या ३४,६४,६५)।
यस्य गुणस्य हि भावात् द्रव्ये शब्दनिवेशः। जिस गुण के होने से द्रव्य में शब्द का सन्निवेश (संबंध) होता है, उस गुण को भाव कहते हैं। (भावे त्वतलौ ७।३।५६) भाव में मुख्यतया सभी शब्दों से त्व और तल् प्रत्यय होता है। त्व प्रत्यय नित्य नपुंसकलिंग होता है और तल् प्रत्यय नित्य स्त्रीलिंग होता है । तल में ल का लोप होकर 'आ' आ जाता है (ता) रूप बन जाता है। जैसे—साधुत्वं, साधुता। सज्जनत्वं, सज्जनता । किसी व्यक्ति के साथ साधु या सज्जन शब्द का संबंध जुडता है वह इसलिए कि उसमें साधुता या सज्जनता का भाव है। सज्जनता नाम का गुण है। सज्जनता के कारण ही व्यक्ति सज्जन कहलाता है । सज्जन विशेषण है और सज्जनता उसका भाव (गुण) है। कर्ता का विशेषण जब भाव रूप में बदलता है तब कर्ता में षष्ठी विभक्ति हो जाती है । जैसे—कोमलं पुष्पं, पुष्पस्य कोमलता।
___ भाव में त्व और तल के अतिरिक्त इमन्, ट्यण, य, अण् और ईय प्रत्यय होते हैं।
नियम नियम ४०७-(पृथ्वादेरिमन् वा ७।३।५६) पृथु, मृदु, पटु, तनु, बहु, साधु, मंद, स्वादु, ऋजु, प्रिय, ह्रस्व, दीर्घ आदि अनेक शब्दों से इमन् प्रत्यय होता है। इमन् प्रत्यय लाने से शब्दों की टि (अंतिम स्वर ध्यंजन सहित) का लोप हो जाता है।