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पाठ ६५ : तव्य,
अनीय प्रत्यय
शब्दसंग्रह (तव्य, अनीय के रूप )
भवितव्यम्, भवनीयम् (भू) होना चाहिए । अत्तव्यम्, अदनीयम् (अद्) खाना चाहिए । वेदितव्यम्, वेदनीयम् (विद् ) जानना चाहिए । हन्तव्यम्, हननीयम् ( हन्) मारना चाहिए । स्तवितव्यम्, स्तवनीयम् (ष्टु) स्तुति करनी चाहिए । भेतव्यम्, भयनीयम् ( भी ) डरना चाहिए । नष्टव्यम्, नशनीयम् (नश् ) नष्ट होना चाहिए । श्रोतव्यम्, श्रवणीयम् (श्रु) सुनना चाहिए । मर्तव्यम् मरणीयम् (मुंज्) मरना चाहिए । पेष्टव्यम्, पेषणीयम् ( पिष्) पीसना चाहिए । बोद्धव्यम् बोधनीयम् (बुध् ) जानना चाहिए । मन्तव्यम्, मननीयम् ( मन्) मानना चाहिए । हर्तव्यम्, हरणीयम् (ह) हरण करना चाहिए । कर्तव्यम्, करणीयम् (कृ) करना चाहिए । भर्तव्यम्, भरणीयम् (भृ ) भरना चाहिए । धर्तव्यम् धरणीयम् (धृ ) धारण करना चाहिए । स्मर्तव्यम्, स्मरणीयम् (स्मृ ) याद करना चाहिए । पठितव्यम्, पठनीयम् ( पठ् ) पढना चाहिए । जागरितव्यम्, जागरणीयम् (जागृ) जागना चाहिए । शयितव्यम्, शयनीयम् (शी) सोना चाहिए। द्रष्टव्यम्, दर्शनीयम् (दृश् ) देखना चाहिए । प्रष्टव्यम्, प्रच्छनीयम् (प्रच्छ् ) पूछना चाहिए । नर्तितव्यम्, नर्तनीयम् (नृत्) नाचना चाहिए । हसितव्यम् हसनीयम् (हस् ) हंसना चाहिए । गन्तव्यम्, गमनीयम् ( गम् ) जाना चाहिए ।
तव्य, अनीय
जहां अन्त में चाहिए का प्रयोग आए तथा यह करने योग्य है, खाने योग्य है या करना है, खाना है, जाना है— इत्यादि स्थानों में कृत्य प्रत्ययों IIT प्रयोग होता है | कृत्य प्रत्यय पांच हैं - तव्य, अनीय, य, क्यप्, घ्यण् । कृत्य प्रत्यय सकर्मक धातुओं से कर्म में और अकर्मक धातुओं से भाव में होता है । भाव में नपुंसकलिंग होता है और कर्म में होने से त्रिलिङ्गी होता है । कर्ता में तृतीया और षष्ठी विभक्ति होती है तथा कर्म में प्रथमा विभक्ति होती है। लिंग और वचन कर्म के अनुसार होते हैं । भाव में नित्य एकवचन और नपुंसकलिंग होता है । तव्य और अनीय ये प्रत्यय सब धातुओं से होते हैं । तव्य और अनीय के रूप बनाने के लिए कुछ नियम ध्यान में रखें । सरल तरीका यह है कि तुम् प्रत्यय के जो रूप बनते हैं, उनमें तुम् को हटाकर व्य लगा देना चाहिए। जैसे— कर्तुं – कर्तव्यम् । हसितुं हसितव्यम् ।