Book Title: Vakya Rachna Bodh
Author(s): Mahapragna Acharya, Shreechand Muni, Vimal Kuni
Publisher: Jain Vishva Bharti

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Page 611
________________ परिशिष्ट ५ उपसर्गपूर्वक धातु के अर्थपरिवर्तन अर्थ उपसर्ग के संयोग से धातुओं के अर्थ बदलते हैं वे दिए गए हैं। धातुरूपादर्श में जिन धातुओं का संस्कृत अर्थ मिला उसको भा पाठक की सुविधा के लिए यहां दिया गया है। १. अञ्चु (अञ्चति) जाना, पूजा अप—व्यर्थ करना करना सम्-समर्थन करना उपसर्ग अनु—उसके जैसा होना परि (ऋजुगमने पार्श्वशयने वा, भ्रमणे) वि–व्यर्थ करना सीधा चलना, पसवाडे से सोना, घूमना अभि-याचना करना, स्वागत करना अप (दूरीकरण) दूर करना ५. अव (अवति) रक्षा करना मा (नमने) झुकना अनु (धैर्यदाने) धैर्य देना उप (निष्कासने) निकालना उत् (ध्यानदाने प्रतीक्षायां प्रवृत्तकरणे च) वि (व्याप्ती) व्याप्त होना ___ ध्यान देना, प्रतीक्षा करना, प्रवृत्त सम् (एकत्रीकरणे) इकट्ठा करना करना उद् (व्यक्तवचने) स्पष्ट बोलना उप (स्नेहकरणे) स्नेह करना २. अर्च (अर्चति) पूजा करना ___सम् (तृप्तिकरणे संरक्षणे च) तृप्त करना, सम् (पूजायां, स्थिरीकरणे संस्थापने च) संरक्षण करना पूजा करना, स्थिर करना, स्थापना ६. अशूङ्त् (अश्नुते) व्याप्त होना करना अनु (प्राप्तो समानभवने) प्राप्त करना, ३. अर्जण् (अर्जयति) अर्जन करना। समान होना अति (गमने दूरीकरणे च) जाना, दूर उद (ऊर्ध्वगमने प्राप्तौ शासके च) ऊर्ध्व करना गमन करना, प्राप्त करना, शासन अनु (प्रेषणे) भेजना करना अपि (योजने) जोडना उप (उपार्जने शासके) उपार्जन करना, अव (प्रेषणे) भेजना शासन करना ४. अर्थङ्ग (अर्थयते) मांगना परि (गमने समावेशे समाप्ती च) गमन प्र-प्रार्थना करना करना, समावेश करना, समाप्त करना

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