Book Title: Vakya Rachna Bodh
Author(s): Mahapragna Acharya, Shreechand Muni, Vimal Kuni
Publisher: Jain Vishva Bharti

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Page 612
________________ परिशिष्ट ५ ७. असुच (अस्यति) फेंकना ६. आसङ्क (आस्ते) बैठना वि (विस्तारे) विस्तार करना उप (उपासने) उपासना करना सम् (संक्षेपीकरणे) संक्षेप करना उत् (औदास्ये) उदास रहना अनु (न्यक् स्थितौ) नीचे बैठना अधि-ठहरना अप (त्यागे) छोडना, दूर करना १०. इणक् (एति) जाना नि (स्थापने) स्थापित करना प्र (परलोकगमने) परलोक में जाना निर् (निष्कासने) निकालना परा (परलोकगमने) परलोक में जाना परि+उप (परितः आवृत्य स्थितौ उपास- उत् (उद्यमने प्रकाशे वा) ऊंचा जाना, नायां च) पर्यपासना करना प्रकाशित होना प्र (गगनगतौ खण्डने अस्वीकारे च) आकाश अनु (अनुगमने संबन्धे च) पीछे जाना, में गति करना, तोडना, अस्वीकार संबंध करना करना अभि (अभिमुखगमने) सम्मुख जाना वि (विभागे) विभाग करना उप (समीपगमने) समीप जाना वि+आ (विस्तारे अनुक्रमन्यासे च) विस्तार अभि+उप (स्वीकारे) स्वीकार करना करना, अनुक्रम से रखना अभि+उद् (ऐश्वर्यादिकः प्रसिद्धः) ऐश्वर्य सं+नि (संन्यासे) संन्यास लेना आदि से प्रसिद्धि पाना सम् (एकत्रीकरणे) समास करना निर् (निर्गमने दुर्गती च) निकलना, दुर्गति उप (पूजाकरणे सेवायां च) पूजा करना, में जाना सेवा करना अप+वि (व्यर्थनाशे) अपव्यय करना उत्+आ (खंडने उपेक्षायां च) तोडना, आ (आगमने) आना उपेक्षा करना अधि (स्मरणे) स्मरण करना वि+अति (विलोमे) प्रतिकूल होना ८. आप्लुत् (आप्नोति) प्राप्त करना। वि-व्यय करना अभि +वि (परितो व्याप्तौ) चारों तरफ प्रति (विस्रम्भे प्रसिद्धौ ज्ञाने च) विश्वास ___ से व्याप्त होना करना, प्रसिद्ध होना, ज्ञान करना अव (प्राप्तौ) प्राप्त होना अति (अतिक्रमे, विनाशे) अतिक्रमण करना, उप (समीपागमने) समीप आना . विनाश होना सं+ (समाप्ती) समाप्त होना अभि+प्र (अभिप्राये अनुसंदधाति) अनुपरि+वि (परितो व्याप्ती) चारों तरफ से संधान करना व्याप्त होना उद्-उदय होना सं+वि (सम्यक् व्याप्तौ) अच्छी तरह से अभि+ उप-स्वीकार करना व्याप्त होना अप (विनाशे) विनाश होना

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