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वाक्यरचना बोध
दु
- ( उवर्णादावश्यके ५।१।५१ ) उवर्ण अन्तवाली धातुओं से आवश्यक अर्थ में घ्यण् प्रत्यय होता है। लाव्यं, पाव्यम् । जहां आवश्यक अर्थ नहीं वहां लव्यं पव्यम् ।
च - (घ्यण्यावश्यके ६।१।२६ ) आवश्यक अर्थ में होने वाले ध्यण् प्रत्यय परे होने पर च को क, ज को ग नहीं होता । अवश्यपाच्यं, अवश्यरञ्ज्यम् । अन्यत्र पाक्यं, रङ्ग्यम् ।
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छ
- ( भुजो भक्ष्ये ६।१।३१) भुज् धातु से भक्ष्य अर्थ में घ्यण् प्रत्यय होने पर ज को ग नहीं होता । भोज्यं अन्नं, भोज्या यवागूः । भक्ष्य अर्थ न हो वहां भोग्यः कंबलः ।
ज
- ( वचोऽशब्दसंज्ञायाम् ६।१।२८) वच् के च को क नहीं होता अशब्द संज्ञा में । वाच्यम् । शब्द संज्ञा में वाक्यम् ।
प्रयोगवाक्य
त्वया एतद् स्थानं मार्ग्यम् । युष्माभिः मा यज्यम् । मात्रा सुतः न शोच्यः । दरिद्रैः कटु न वाच्यम् । युष्माभिः वीतरागदेवः अर्च्यः । श्रेष्ठिनः पुत्रैः कुसंग: त्याज्यः । त्वया गुरुभिः त्राप्यम् । शिशुभिः न दाभ्यम् । त्वया कस्यापि वस्तूनि न हार्याणि । सूदेन अन्नं पाक्यम् । त्वया शर्करायां धूलिः न याव्या रोगिभिः मिष्टान्नं न भोज्यम् । बलवता नृपेण इयं पृथ्वी भोग्या ।
संस्कृत में अनुवाद करो
साधुओं को श्रम करना चाहिए । हमें अपने स्थान को साफ करना चाहिए । रमा को दही अच्छा लगना चाहिए। बीती हुई बात का शोक नहीं करना चाहिए । मुनियों को गृहस्थों से भिक्षा मांगनी चाहिए। हमें वीतराग देव की भाव पूजा करनी चाहिए । स्त्रियों को मधुर बोलना चाहिए । मनुष्यों को अधिक मीठा नहीं खाना चाहिए। तुम्हें दुर्जनों का साथ छोड देना चाहिए । ग्वाले को दूध में पानी नहीं मिलाना चाहिए। किसानों को उर्वर भूमि में बीज बोना चाहिए । बहूओं को सास-ससुर से लज्जा करनी चाहिए । सुशील को दंभ नहीं करना चाहिए। श्याम को गुरुचरणों में झुक जाना चाहिए । हमें किसी की वस्तु का हरण नहीं करना चाहिए। सुशीला को अन्न पकाना चाहिए | सभी को योग्यता प्राप्त करनी चाहिए। तुम्हें टूटे हुए हृदय को जोडना चाहिए। सभी को अहं का जप करना चाहिए। स्त्रियों को गेहूं साफ करने चाहिए ।
अभ्यास
१. निम्नलिखित वाक्यों को शुद्ध करो
त्वया सुतं न शोच्यम् । मुनयः निरवद्यं वचनं वाच्यम् । रुग्णाः घृतं न भोज्यम् । नृपेण पृथिवी भोग्यः । आपणिकाः मधुरं वचनं लप्यम् । तथा