Book Title: Vaddhamana Deshna
Author(s): Rajkirti Gani, Surchandra Gani
Publisher: Luwar Pol Jain Upashray Ahmedabad

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Page 188
________________ श्रीवर्द्धमान जिन देशना ॥१८२॥ श्रीकामदेवस्योपसर्गाः 藤藤藤藤游柴柴聯弟柴柴桑桑亲柴柴柴柴柴柴柴柴柴柴柴柴亲絲夢 षयाणि प्रश्नानि पृष्ट्वा वंदित्वा च स्वगृहेऽगच्छत्. श्रीवर्द्धमानजिनोऽपि ततोऽन्यत्र विजहार. एवमानंदवत्समाराधितैकादशपतिमः कामदेवश्राद्धो विंशतिवर्षाणि यावज्जिनधर्म प्रतिपाल्य मनसि श्रीवीरजिनं स्मरन धर्मध्यानलीनः प्रांते चैकमासिकी संलेषणां विधाय मृत्वा प्रथमदेवलोकेऽरुणामे विमाने चतुःपल्योपमायुर्देवो जातः. तदा गौतमेन पृष्टं हे स्वामिन्नसौ कामदेवश्राद्धः सौधर्मदेवलोकाच्च्युत्वा कुत्र यास्यति ?' स्वामिनोक्तं भो गौतम! ततश्च्युत्वासौ मदाविदेहे महर्दिककुले समुत्पद्य चारित्रं गृहीत्वा शाश्वतसुखानि प्राप्स्यति.' इति कामदेवचरित्रं श्रुत्वा भो भव्या यूयं धर्मे आदरं कुरुत ? । ॥ इति श्रीवर्द्धमानदेशनायां वाचनाचार्यश्रीरत्नलाभगणिशिष्येण राजकीर्त्तिगणिना गद्यबंधेन प्रणी तायां कामदेवश्रावकप्रतियोधो नाम द्वितीयोल्लासः समाप्तः॥ श्रीरस्तु॥ 张张张黎张彩券密带张张张张张张张张张张杂萨帝奉举紧张不够。 ॥१८२॥

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