Book Title: Updeshamrut
Author(s): Shrimad Rajchandra Ashram Agas
Publisher: Shrimad Rajchandra Ashram

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Page 11
________________ [<] प्रासंगिक निवेदन (हिन्दी अनुवादके बारेमें) प्रस्तुत ग्रन्थ परमकृपालु श्रीमद् राजचंद्र देवके परम भक्त आत्मज्ञ श्रीमद् लघुराजस्वामीके बोधका हिंदी अनुवाद है । इस ग्रंथका सामान्य परिचय गुजराती आवृत्तिके निवेदन ( हिन्दी अनुवाद) से हो ही जायगा, अतः इसके बारेमें यहाँ कुछ नहीं लिखा है । प्रस्तुत हिन्दी अनुवाद कई वर्ष पूर्व जोधपुर निवासी स्वातंत्र्यसेनानी श्री लालचंद्र जैनके पास करवाया गया था मगर वे आश्रमकी प्रणालिका तथा श्रीमद्की भक्तिसे अपरिचित होनेसे काफी जगह चूक गये थे । पश्चात् आश्रममें कई वर्ष तक पंडितके रूपमें रहे हुए श्री बाबुलाल सिद्धसेन जैन इस अनुवादको शुद्ध करनेका प्रयत्न किया, मगर समयके अभावसे वे भी अनुवादको पूरा न्याय न दे सके। फिर अशोककुमार जैनने इस अनुवादको फिरसे मूलसे मिलान किया है और अर्थ-स्खलनाको सुधारनेका प्रयत्न किया है। चाहे जितना प्रयत्न करने पर भी अनुवाद अनुवाद ही होता है, वह मूलकी समानता कभी नहीं कर सकता। जो मीठाश मूलमें है, वह अनुवादमें कभी नहीं आ सकती। उसमें भी श्री लघुराज स्वामीकी भाषा विशेष ग्रामीण (जिसमें देशी और स्थानीय शब्दप्रयोग ज्यादा है) और सांकेतिक एवं मार्मिक भाषा होनेसे उसके समानार्थी शब्द मिलने भी कठिन है और मर्म समझना तो बूतेके बाहरकी बात है । ऐसी जगह शब्दशः अनुवादके बदले भाव ही लेना पड़ा है । यद्यपि भाव पूरी तरह पकड़ पाना मुश्किल है फिर भी यथाबुद्धि वैसा प्रयत्न किया गया है । फिर भी कहीं पर अर्थस्खलना हुई हो तो पाठकगण हमारे ध्यानमें लावे ताकि पुनरावृत्तिमें संशोधन किया जा सके । Jain Education International एक मुख्य बात पाठकोंके ध्यानमें लानी है और वह यह है कि श्रीमद् लघुराज स्वामीने जो भी काव्य उद्धृत किये हैं वे काव्य प्रस्तुत अनुवादमें मूल भाषामें ही लिये हैं, अर्थात् काव्योंका अनुवाद नहीं किया गया है । मूल अनुवादक श्री लालचंद्र जैनने काव्योंका हिन्दीकरण करनेका प्रयास किया था, मगर सैद्धांतिक रीतिसे हमने उसे स्वीकार न करते हुए काव्य मूल भाषामें ही दिये हैं, क्योंकि काव्योंका हिन्दी पद्यानुवाद करनेमें अर्थ काफी बदल जाता है और उसकी गेयता खत्म हो जाती है । हाँ, वाचकोंकी सुगमताके लिये गुजराती काव्योंका भावार्थ पादटिप्पणमें दे दिया है। जो गुजराती काव्य श्रीमद् राजचंद्र रचित है उनका अर्थ आश्रम प्रकाशित 'श्रीमद् राजचंद्र' हिन्दी अनुवादमें आ चुका है और कई पद जो आश्रमके दैनिक भक्तिक्रममें बोले जाते हैं उनका अर्थ आश्रम प्रकाशित For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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