Book Title: Updeshamrut
Author(s): Shrimad Rajchandra Ashram Agas
Publisher: Shrimad Rajchandra Ashram

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Page 10
________________ [ ७] प्राप्त हो, उसके लिए यदि कुछ भी प्रबल अवलम्बन है तो वह सद्बोध या स्वभावपरिणामी ज्ञानीपुरुषके शान्त सुधारसमय बोधवचन-उपदेशामृत ही हैं। आशा है कि इस ग्रन्थमेंसे तत्त्वजिज्ञासु मोक्षार्थी गुणग्राही सज्जन हंसके समान सारको ग्रहण कर कृतार्थ बनेंगे और आत्मानन्दका आस्वादन करेंगे तथा दोषदृष्टिका परिहार कर स्वश्रेयके सन्मुख होंगे। फिर भी, अगम्य ज्ञानी पुरुषोंके अति गहन चरित्र आदिका कथन होनेसे और हमारी बुद्धि अल्प होनेसे इस ग्रन्थमें सुज्ञ पाठकोंको कोई भी त्रुटि दिखायी दे तो उसके लिए उदारभावसे क्षमा प्रदान कर वह त्रुटि बतानेका उपकार करनेकी नम्र प्रार्थना है। इस ग्रन्थके प्रकाशनमें भेंट देनेवाले मुमुक्षुजनोंका हम आभार व्यक्त करते हैं, तथा उस भेंटकी सूचि इसी ग्रन्थमें अन्यत्र दी गई है। इस ग्रन्थमें 'श्रीमद् राजचन्द्र' ग्रन्थके पत्रोंकी जो जो संख्या निर्दिष्ट की गयी है, वह इस आश्रम द्वारा प्रकाशित आवृत्तिकी संख्या है। श्री वसंत प्रिन्टिंग प्रेसके व्यवस्थापक श्री जयंति दलालने इस ग्रन्थके प्रकाशनमें स्वयं उत्साह और रस लिया है जिससे यह ग्रन्थ इतने सुन्दर ढंगसे प्रकाशित हो सका है। सत्पदाभिलाषी सज्जनोंको सत्पदकी आराधनामें इस ग्रन्थका विनय और विवेकपूर्वक सदुपयोग आत्मश्रेयकी सिद्धिमें प्रबल सहायक बनो, इत्यलम् । श्रीमद् राजचंद्र आश्रम स्टेशन अगास, वाया आणंद गुरुपूर्णिमा, गुरुवार सं. २०१० ॥ ता.१५-७५४ सतसेवक रावजीभाई छ. देसाई Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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