Book Title: Updesh Ratnamala Tatha Prakirna Updesh
Author(s): Padmajineshwarsuri, Munisundarsuri, Manilal Nathubhai Doshi
Publisher: Suriramchandra Diksha Shatabdi Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 21
________________ (२) अर्थः-जीवदया करवी, सर्वदा इन्द्रियोना समूहने दमवो, अने सत्य बोलवू, आज (ढूंकाणमां ) धर्मनुं रहस्य छे ॥२॥ भावार्थ:-मनुष्यो आ रत्नत्रयी समजे, अने ते प्रमाणे चाले, तो थोडा समयमा पोताना आत्मानी उन्नति करी शके. अहिंसा परमोधर्मः ए उत्तम सूत्र छे, मन, वचन अने कायाथी कोई पण प्राणीनो द्रोह न थाय, तेनुं नाम अहिंसा-दया. केवळ प्राणीपर अनुकंपा करवी. तेनुं नामज दवा न कहेवाय. पण दयानो अर्थ विशाळ छे. सर्व जीवतां प्राणी मनुष्य तेमज ढोर प्रत्ये मनथी बुरु न ईच्छवू, वचनथी मूंडु न बोलवू, अने कार्यथी अनिष्ट न करवू, तेनु नाम दया गणी शकाय. जेटले अंशे ते रीते चलाय तेटले अंशे लाभ छे. पण आ उपर जणावेली दयानी व्याख्या ध्यानमा राखवा जेवी छे. सर्व प्राणीओना आत्मा सरखा छे. दरेकने मरणनो भय लागे छे. मात्रै कोई पण प्राणीनो विनाश न करवो; तेमज तेना जीवने जेथी दुःख थाय, तेवू काय पण न करवू. बीजं इन्द्रिय निग्रह करवो. आ शरीर तेमज इन्द्रियो ए आत्मा नथी. पण आ संसारमां आत्माने अनुभव मेळववाना साधन छे. ते चाकररुपे छे. माटे चाकर शेठना कबजामां रहे ते माटे इन्द्रियंनां निग्रहनी जरूर छे. जगतमा जे जे दुष्ट आचरणो थाय छे, तेमां घणाखरा इन्द्रियोनी स्वतंत्रताने लीधे छे. इन्द्रियो मनने वश नहि रहेतां विषय भणी दोडे छे. मन पण ते तरफ घसडाय छे. अने परिणाम ए आवेछे के, आपणे ते इन्द्रियोना गुलाम बनीए छीए, अने इन्द्रियोनी तृप्तिने अर्थे सर्व प्रकारना उच्च विचारो तेमज नीतिना सिद्धान्तो तजी देवामां आवे छे. माटे मूळथीज तेमन प्रयोजन जाणी तेमनो निरोध करतां शीखवू जोईए. त्रिजी बाबत सत्य बोलवा संबंधी छ. उपदेश बहु अमूल्य छे. पण ते प्रमाणे चालवू सुकर नथी मनुष्यमा रहेली लोभवृत्ति तेमज जगतना क्षणिक विषयोनी लालसा मनुष्यना हृदयमां एटलं साम्राज्य भोगवे छे के तेने वश थई मनुष्य असत्य बोलतां जरापण आंचको खातो नथी. पण ज्वारे आत्मानो स्वभाव शुं छे, अने असत्य बोलवाथी मन केवी रीते मलीन थई आत्माना शुद्ध प्रकाशने ग्रहण करता अटके छे तेनो ख्याल आवेछे, त्यारे असत्य मार्ग तरफथी विमुख थवाय छे. माटे आत्मशुद्धिने ईच्छता दरेक तत्वाभिलाषी पुरुषने

Loading...

Page Navigation
1 ... 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80