Book Title: Updesh Ratnamala Tatha Prakirna Updesh
Author(s): Padmajineshwarsuri, Munisundarsuri, Manilal Nathubhai Doshi
Publisher: Suriramchandra Diksha Shatabdi Samiti
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कर्या. छेवटे महाप्रयासे विशूचिका मटी पण वैद्योए हमेशने माटे ताकीद करी के तेणे केरी खावी नहि; जो केरी खावामां आवशे तो तेनाथी जरूर मरण थशे. माटे तेना स्वादनो विचार पण करवो नहि. अने तेना सामुं पण जोवुं नहि. राजाने आ वात पसंद न होती पण शरीर खातर राजाए पोताना राज्यमाथी सर्व आंबाओनो नाश करावी नांख्यो, हवे बन्युं एम के राजा एक दिवस शिकारे निकळ्यो. एक शिकारनी पछवाडे जतां प्रधान साथै पोताना लश्करथी छुटो पडी गयो अने महा अटवीमां प्रधान साथै एकलो पडयो. अटवीमां फरतां फरतां बन्ने एक मोटा आंबाना झाड तळे आवी पहोंच्या. केरी जोइ राजाने अपूर्व प्रेम जाग्यो, अने ते खावानुं मन थयुं. विनाशकाळे विपरीत बुद्धि प्राप्त थाय छे अने समजु होय ते पण ते वखते भान भूली जाय छे. प्रधाने घणुं वाय पण राजा एकनो बे थयो नहिं. राजाए केरी हाथमां लीधी. वनपक केरी जोई खुशी थयो, भांगी, खाधी अने तरतज विसूचिका थवाथी राजा तेज जगोए मरण पाम्यो. ( उपनय ) राजा जिव्हा इंद्रिय परवश थइ केरीना स्वादमां खैचायो 'अने जीवितव्यथी भ्रष्ट थयो; तेवीज रीते आ जीव इंद्रियोने वश थइ प्रमादथी कामभोगनां सुखोमां प्रवर्ते छे. इंद्रियने वश पडेला जीवने कार्याकार्यनुं भान रहेतुं नथी. लोकोमां पण कहेवत छे के " जेनी दाढ ढळकी तेनो प्रभु रुठयो ” एटले जे जीभने वश थयो तेनो दुनियादारीमा उंचा आववानो हक गयो. राजाने तो थोडो वखत मनपर काबु रह्यो एटलोए घणीवार आ जीवने रहेतो नथी अने खावानी बाबतमां ते केटलो उंचो नीचो थया करे छे ते डाक्टर चरी पालवानुं कहे छे त्यारे जणाइ आवे छे. खावाना लोभथी पोताना शरीरना लाभोने पण जोखममां मूकवामां आ जीव डरतो नथी. आ दृष्टांतपरथी बीजो सार ए ग्रहण वरवानो छे के आ जीवने संसारना विषयोना उपभोगथी असाध्य व्याधि थतां गुरु महाराज तेनुं निवारण करी देशथी अगर सर्वथी चारित्र आपी फरीने संसारनां सुखो सामुं जोवानो पण प्रतिबंध करे छे, छर्ता पुर्वोक्त राजानी जेम ते प्राणी फरी पाछो संसारिक सुखभोग भोगववा इच्छे - भोगवे छे; ते कर्मना असाध्य व्याधिने वश थइ दुर्गतिमा चाल्यो जाय छे, फरीने उंचो पण आवतो नथी.
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