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मततंताण न पासे, गम्मइ नय परगिहे अबीएहिं ॥ पडिवन्तं पालिज्जइ, सुकुलीणत्तं हवइ एवं ॥ २०॥
अर्थः- मंत्र तंत्रना मार्गे न जकुं, तेमज बीजाने घेर एकला न जयुं; अने अंगिकार करेलुं पाळवु-आ रीते वर्तवाथी कुलीनता प्राप्त थाय छे. ॥ २० ॥
भावार्थ:- दरेक मनुष्य कुलीन कहेवराववा मागे छे. कुलीनपणुं तेना गुणोथो आवे छे. जो गुणो मनुष्यमां होय तो ते कुलीन गणाय, तेमांना केटलाक गुणो अहीं वर्णववामां आव्यां छे प्रथम तो तेथे मंत्रतंत्रमां न पडवुं मंत्रो खरा छे, अने योग्य विधिसर, पवित्र हृदयथी अने शब्दोना योग्य उच्चारण पूर्वक जपवामां आव्या होय तो फळदाता थाय छे, पण अहीं जे कहेवामां आव्युं छे, तेनो अर्थ ए थाय छे के आजकालना मंत्रवादीओ मोटे भागे धुतारा होय छे, अने जे मनुष्योने एनो छंद पडी जाय छे, ते पुरुषार्थ करवो छोडी दई क्षुद्र देवाने तृप्त करवामां पोतानो समय पसार करे छे वळी ते धुतारा मंत्रवादीओना प्रसंगमां आवतां अनेक प्रकारना कुव्यसनो शीखे छे. माटे आत्म मार्गमां आगळ वधवु, पवित्र जीवन गाळनाराओने देवो पण आवीने नमस्कार करे छे. कोईना घेर एकला न जवुं . - आ सूत्र कहेवानो भावार्थ एज छे के ते प्रमाणे चालनार मनुष्य चोरी अने व्यभिचारथी दूर रहेशे अने तेने माथे तेवुं कोई पण कलंक आववानो भय रहेशे नहि. वळी मनुष्ये आपलं वचन पाळवुं . - घणा मनुष्यो मां ना कवामी हिम्मत होती नथी, तेथी तेओ बधाने हाजी हा कही वचन आपे छे. ते जाणता हाय छे के अमारा थी ते काम थई शकशे नहि. छता सामाने राजी राखवाने हा पाडे छे, पण पछीथी पोतानुं वचन पाळी शकता नथी. माटे का तो कोईनुं काम माथे न लेवुं, अथवा कोईपण प्रकारनुं वचन न आपवुं, अने काम माथे लीधुं होय अथवा वचन आप्युं होय तो गमे ते जोखमे-अनेक संकटो वेठीने पण ते करवा कमर कसी तैयार थवुं. आवा गुणो धरावनार मनुष्यो कुलीन कद्देवाय छे.
भुंजइ भुजाविज्जइ पुच्छिज्ज मणोगयं कहि