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(३७) शुभ कार्योमा आगळ ने आगळ वध्याज करवु. श्री आनंदघनजी लखे, छे के शुभ काममा प्रवृति करता जरा पण थाकवू नहि. साहिज्जइ परमप्पा,अप्पसमाणो गणिज्जइ परोवि।। किज्जइ न रागदोसो,छिन्निज्जइ तेण संसारो॥२४ __ अर्थः- परमात्मानुं ध्यानकरवं, पोताना समान परने बीजाने गणवो, राग द्वेष न करवा, आ रीते वर्तवाथी मनुष्य संसारने छेदे छे-मुक्ति मेळवे छे. ॥२४॥
भावार्थ:-हवे आ पुस्तकने समाप्त करतां ग्रन्थकार संसारनो छेद करवानी-मुक्ति पामवानी कुंची · आपणने त्रण वाक्योमा जणावे छे. मुक्तिनो मार्ग तो टुंको छे, पण ते समजवानी अने समजीने ते प्रमाणे वर्तवानी खास आवश्यकता छे. प्रथम ए कहेवामां आव्यु के परमात्मानु ध्यान करवू. कुदरतनो एवो नियम छ के मनुष्य जेनुं ध्यान करे छे, तेवो ते थाय छ, पवित्रतानुं ध्यान करवायी पवित्र थवाय छे. अने विषयन ध्यान करवाथी विषयी थवाय छ, तेज रीते परमात्माना गुणनुं स्वरूप वारंवार चिंतन करवाथी पोतानामा रहेला परमात्माना गुणो प्रकट यता जाय छे. अने उच्च जीवन गाळवानुं काम स्वाभाविक बनतुं जाय छे. बीजो मार्ग ए कहेवामां आव्यो छे के मनुष्ये बीजाने पोताना तुल्य गणवा कहूंछे के.
इष्टा यथात्मनो प्राणाः, भूतानामपि ते तथा ॥ __ आत्मौपम्येन भुतेषु, दयां कुर्वन्ति साधवः ॥१॥ जेवा पोताना प्राण-पोतानो जीव पोताने व्हालो छ, तेवी रीते दरेकने पोतानो जीव व्हालो छे. आ प्रमाणे पोतानी साथे बीजाने सरखावीने साधु पुरुषो बीजा प्रत्ये दयाभाव बतावे छे.
मनुष्य स्वार्थेथी अज्ञानथी स्वहित साधवा जतां बीजान केटलुं अहित करी बेसे छे, तेनुं तेने भान रहेतुं नथी. पण आत्ममार्गनो अभ्यासी जीव बीजा जीवोने पण पोताना तुल्य गणी बीजाओ प्रत्ये प्रेम, अनुकंपा, दयाभाव बतावे छे, एटलुज नहि पण ते दयाभावने दयानां कार्यों रुपे प्रकट करे छे.
त्रीजी बाबत ए जणाववामां आवी के मुमुक्षु जीवे रागद्वेषने तजी देवा प्रिय वस्तु अथवा मनुष्य उपर राग थाय अने अप्रिय वस्तु अथवा मनुष्य