Book Title: Updesh Ratnamala Tatha Prakirna Updesh
Author(s): Padmajineshwarsuri, Munisundarsuri, Manilal Nathubhai Doshi
Publisher: Suriramchandra Diksha Shatabdi Samiti

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Page 61
________________ (४२) कार्योनी भावना निरंतर राखवी. आथी अनेक प्रकारना लाभ थाय छे. नकामी कुथली ओछी थाय छे अने मन शुभ मार्गे चढतां शीखे छे. ६ परोपकार- आत्मभोग वगरनुं जीवन नथी, एटले के स्वा संतोष मानी, शरीर पंगळी, पुत्रने रमाडी. स्त्रीने शोभावी, तीजोरीओ भरवी एमां कांइ सार नथी. पोतानी लक्ष्मी, ज्ञान के शक्तिनो लाम कोम, देश के जनसमूहना हित माटे करवो एज कर्तव्य छे. ७ व्यवहारशुद्धि--श्राद्ध रत्नना गुण प्राप्त कर्या पहेला मार्गानुसारीना गुणोमांज आ गुण प्रथम पंक्ति धरावे छे श्रावक रत्न तो शुद्ध व्यवहार वालोज होय ए विवाद वगरनी हकीकत छ. __ उपर लखेली सात बाबतो उपर खास चित्त आप जोइए. ए दरेक बाबत उपर एकेक मोटो लेख लखाय तेवू छे, पण ग्रंथ गौरवना भवथी अत्र सामान्य स्वरूपनो निर्देश को छ. ए सर्वे शुभ विचार अने शुभ वर्तन छे अने तेना निमित्तभुत पण छे. शुभ विचार अने वर्तनथी शुभ कर्मबंध थायछे अने जेवो बंध तेवो उदय थाय छे, तेथी ते वडे आ भवर्मा अने परभवमा मानसिक अने शारीरिक आनंद प्राप्त थाय छे. उपर लखेला सात सद्गुणोमांथी कोईपण सद्गुण महालाभनुं कारण छ. परंतु साध्य दृष्टिवान् पुरुष ज्यारे चीवट राखी तेमांथी बे चार अथवा सातेने आदरे अने अनुसरे त्यारे तेना फळ वखते मना आनंद थाय ते शक वगरनी वात छे. पण ते कार्यों करता जे आनंद थाय छे. ते वखते मनमा जाणे एमज लागे छ के हं एक महान कार्य करूं छु, एक महान फरज बजावु छु. ___ अत्र प्रस्तुत विषय गुरुदेव पूजानो छ. तेमना तरफ भक्ति भावथी संपत्ति मळे छे ते बताववा सारु तेना सहचारी सद्गुणो अथवा क्रियाओं प्रसंगे बतावी छे. विपत्तिना कारणो. (उपजाति छंद.) जिनेष्वभक्तिर्यमिनामवज्ञा, कर्मस्वनौचित्यमधर्मसंगः ॥ पित्राद्युपेक्षा परवंचनं च, सृजान्त पुंसां विपदः समंतात् ॥ ४॥

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