Book Title: Updesh Ratnamala Tatha Prakirna Updesh
Author(s): Padmajineshwarsuri, Munisundarsuri, Manilal Nathubhai Doshi
Publisher: Suriramchandra Diksha Shatabdi Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 59
________________ (४०) अर्थ-जे धर्मनो बोध आपीने शुद्ध धर्ममा जोडे तेज तत्वथी खरेखरां माबाप, तेज खरेखरां पोताना हितस्वी अने तेज सुगुरु समजवा जे आजीवने सुकृत्य अथवा धर्मना विषयमा अंतराय करीने संसार समुद्रमां फेंकी दे छे तेना सरखो कोइ दुश्मन नथी. ॥२॥ भावार्थ--पातीति पिता जे पाळे ते पिता. त्यारे नरक निगोदना महादुःखथी जे उगारे तेनेज खरेखरा पिता कही शकाय. तेमज 'दुःखथी तारे ते माता' अने पोताना पण तेज कहेवाय के जेओ आपणुं परिणामे सारं थवानी आशा राखे अने तेने लगती योजनाओ करी आपे. गुरु महाराज पण तेज कहेवाय के जेओ शुद्ध धर्ममा जोडे. धर्मना प्रतापयी दुःखनो नाश याय छे. आनाथी उलटुं जेओ धर्ममां अंतराय करे छे तेना समान कोइ दुश्मन नथी आ 'भाव' स्पष्ट छे. उपदेश माळा मां आज भाव बीजा रुपमा कह्यो छे. त्यां कहे छे के "मातापिता बाळक पर जे उपकार करे छे ते अनहद छे अने ते एटलो बधो छे के करोडो वरसो सुधी एकाग्र चित्ते तेमनी सेवा करवाथी पण तेनो बदलो वाळी शकातो नथी, ते बदलो वाळवानो उपाय एकज छे अने ते एके मा बापने धर्मनो बोध जो पुत्रथी थाय तो बदलो वळे." संसारपरथी उद्विम चित्तवाळा वैराग्य रसिक जीवने ज्यारे आत्मिक उन्नति करवानी इच्छा थाय छे त्यारे स्वाभाविक रीते सर्व जीवोने उन्नत करवानी इच्छा पण प्रबळ थाय छे अने तेवे प्रसंगे संसारनी असारता जोई तेनाथी जरा अळगा रहेवाना प्रयत्न वखते मा बाप के सगा स्नेही आडां आवे छे; तेने सूरि महाराज दुश्मनना वर्गमां मूके छे अने तेमनी अवज्ञा करी सरस्वती चंद्रनी जेम लोक यज्ञ माटे पितृयज्ञनो भोग आपवो तेमां कांइ पण अडचण नथी, पण महान लाभ छे, ए विचारने तेओ पुष्टि आपे छे.. एक नाना वाक्यमां आवा गंभीर प्रश्ननो सरि महाराजे खुलासो कर्यो छे, जे जोइए तेटलो स्पष्ट अने विचारवा लायक छे. संपत्तिना कारणो, ( उपजाति छंद) दाक्षिण्यलज्जे गुरुदेवपुजा, पित्रादिभक्तिः सुकृताभिलाषः ॥ परोपकारव्यवहारशुध्दी, नृणामिहामुत्र च.संपदे स्युः ॥३॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80