Book Title: Updesh Ratnamala Tatha Prakirna Updesh
Author(s): Padmajineshwarsuri, Munisundarsuri, Manilal Nathubhai Doshi
Publisher: Suriramchandra Diksha Shatabdi Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 53
________________ (३४) . जीवा परस्पर उपकारी छे, अने एक बाजाने आधारे टकी रहेला छे, माटे आपवु अने लेबु ए कुदरतनो क्रम छे. पण जीव जेम आगळ वधे छे-प्रवृत्ति मार्ग परथी निवृत्ति मार्ग पर आवे छे, तेम लेवा करतां आपq ए तेनो धर्म बने छे. माटे हमेशं आपवाने तैयार रहेवू. आ श्लोकमा उचित वस्तु आपवी तथा लेवी ए शब्द वापरवानो हेतु ए छ के मित्र तरफी अयोग्य वस्तु अथवा अयोग्य कार्यनी मागणी करवामां आवे त्यारे विवेक वापरी शांतिथी तेनी अयोग्यता तेने समजाववी. मित्र- लक्षण आपता भर्तृहरि जणावे छे के. पापानिवारयति योजयते हिताय, गुह्यं च गृहति गुणान् प्रकटी करोति ॥ आपद्गतं च न जहाति ददाति काले, सन्मित्रलक्षणमिदं प्रवदन्ति सन्तः ॥१॥ सन्त पुरुषो सन्मित्रनुं लक्षण आपतां जणावे छे के सारो मित्र पापकर्म करतां रोके छे, शुभ कार्यमा जोडे छे, छुपी वात छानी राखे छे, गुणोने प्रकट करे छे, दुःख वखते त्याग करतो नथी अने योग्यकाळे योग्य मदद आपे छे. को विन अवमान्नज्जइ,न य गविज्जइ गुणेहिं निअएहि॥न विम्हओ वहिज्जइ,बहुरयणाजेणिमा पुहवी अर्थः- कोई, अपमान न करखं, वळी पोताना गुणोनो गर्व न करवो; अने कोई पण बाबतथी विस्मय न पामवो, कारणके आ पृथ्वी बहु रत्न वाळी छे. ॥२२॥ . ___ भावार्थः-कोईवें अपमान न करवू-आ जगतमा अनेक रत्नो पड्या छे. पण आपणे ते जोइ शकता नथी. जगतमा ज्ञानी, पवित्र, उदार अने परमार्थे मोग आपनारा अनेक जीवो होय छे; पण ते घणीवार आपणी दृष्टिए पडता नथी, तेनुं मुख्य कारण तो ए होष छ के तेवा मनुष्योनी कदर बुझवानी आपणामां शक्ति होती नयी. जेनामां अमुक गुणो केटलेक अंशे खोलेला होय ते मनुष्यज बीजामा विशेष अंशे खीलेला ते गुणोने जोई शके छे-तेनी महत्ता समजी

Loading...

Page Navigation
1 ... 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80