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कयो एवो मूर्ख होय के ते शत्रुनो विश्वास करे ? छतां आपणे अशानी जीव मूर्ख छीए, अने तेथी करीने जो के बाह्य शत्रुओनो विश्वास करता नथी, तो पण अंतरंग मानसिक शत्रुओनो विश्वास करीओ छीए. कारण के तेओ आपणने शत्रुरूप हजु जणाया नथी. तेओ जुदा जुदा रूपमा आपणने तेमना पासमां फसावे छे, अने आपणे तेमनुं दुष्ट स्वरूप जोइ शकता नथी. जिनेश्वर भगवाने पांच प्रमादो कह्या छे, ते आपणा खरा शत्रु छे. तेओ स्वकर्तव्यथी चुकावी आपणने कुमार्गे दोरे छे. ते पांच प्रमाद आ प्रमाणे:-(१) मद्यपान, (२) विषय विकार, (३) कषाय, (४) निद्रा अने (५) विकथा.
मद्यपानथी लक्ष्मीनी हानि थाय छे, बुद्धिनी भ्रष्टता थाय छे, अने लोकमां अपकीर्ति थाय छे, अने ते समयमां मनुष्य गमे तेवू अविचारी कार्य करवा दोराय छे, माटे समजु जनोए मद्यपानथी सर्वथा विमुख रहेवू, अने आ प्रमाणे प्रथम शत्रु उपर जय मेळववो.
विषयो पांच इंद्रियोने आश्रयी पांच छे, तेमां पण स्पर्शेन्द्रिय अने जीव्हा इन्द्रियना विकारो वधारे प्रबळ होय छे. ते एक मोटो शत्रु छे, तेने वश करवो ए काम कांड सरळ नथी; पण उपदेशथी अने अनुभवथी धीमे धीमे मनुष्य विषयीक सुखनी असारता समजतो जाव छ, नम धीमे धीमे तेना पर निग्रह मेळववा समथें थाय छे. ए शत्रु उपर जे विजय मेळवे छे, ते आ जगतमां देव समान छे.
क्रोध, मान, माया अने लोभरूप चार कषाय ते त्रीजो प्रमाद छे. आ पण शत्रुरूप छे. तेनुं वर्णन बीजे प्रसंगे करीशं. पण भारवि कविना शब्दो याद राखवा जोईए के " मननी अंदर उत्पन्न थता दुर्जय मनोविकारोनी सामे बहादुरताथी लढवू जोइए. जे तेमनापर जय मेळवे छे, ते त्रण जगतनो जीतनार छे." निद्रा अथवा आळस ए चौथो प्रमाद छे.
- आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महारिपुः आळस ए मनुष्यनी अंदर रहेलो मोटो शत्रु छ, अने ते शत्रुने वश करवाने सदा उद्यमवंत य. अने पळे पळे पोताना कार्यपर, पोताना शब्दोपर तेमज हृदयमा उत्पन्न थता विचारो पर लक्ष आपq,. विकथा ए