Book Title: Updesh Ratnamala Tatha Prakirna Updesh
Author(s): Padmajineshwarsuri, Munisundarsuri, Manilal Nathubhai Doshi
Publisher: Suriramchandra Diksha Shatabdi Samiti

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Page 45
________________ (२६) न कुसंगेण वसिज्जइ, बालस्स विधिप्पए हिअं वयणं अनायाओ निवटिज्जइ, न होइ वयाणिज्जया एवं ॥ अर्थः--कुसंगी साथे न वसवू, बाळक पासेथी पण हितवचन ग्रहण करवू,अन्यायथी पाछा हठवू, एम करवाथी निन्दा न थायः ॥१५॥ भावार्थः-कुसंगी साथे न वसवं-संगनो रंग लाग्या वगर रहेतो नथी. सत्संगनी असर थतां जेटलीवार लागे छे, तेना करता पण घणा थोडा समयमां कुसंगनो पास बेसी जाय छे. मनुष्यनु मन बाळपणमां, तेमज ज्यां सुधी स्थिर थयुं नथी त्यां सूधी जुवानीमां पण जे मनुष्यना संबंधमां आवे छे, जे पुस्तको वांचे छ, तथा जे जे प्रसंगमां आवे छे, ते सर्वथी एक अथवा बीजी रीते रंगित थाय छे. ए निर्विवादीत सत्य छे, अने हालना मानसिक शास्त्रवेत्ताओ बेधडक रीते ते पूरवार करी आपे छे. एकवार पण वांचेला पुस्तकनी असर जन्मभर रहे छे; एकवार पण संबंधमां आवलो मनुष्य सारा अथवा नरसाने माटे आपणां बंधातां चारित्रपर कांईने कांई असर करतो जाय छ; तो पछी कुसंगीना सहवासमा रहेवाथी ते केटली बधी माठी असर करी शके ते माराथी कल्पी शकातुं नथी. निर्दोष जीवन गाळनारा सेंकडो मनुष्यो, कुसंगीना संबंधमा आवी, तेमनां कुव्यसनोना भोगी बनी, आपत्तिमां आर्वी पडता शु आपणी नजर आगळ नथी जणाता? आपणने आ बाबत प्राचीन इतिहास समर्थ पुरावो नथी आपतो ? जो एमज छे तो पछी बहारथी मीठु बोली पोताना कृत्योना पाशमां निरपराधी मृगलाओने फसाववा मथता कुसंगी-अधम मनुष्योथी निरंतर दूर वसवू ए शुं आपणी उत्तम फरज नथी ! जो होय तो ते अदा करावा आ लेख प्रबोधे छे. वाळक पासेथी पण हित वचन ग्रहण करवू; आ सामान्य पण अत्यंत हितकारी वचन एटलं आवश्यक छ के दरेक भाषामां तेना तेज शब्दोमा नहीं तो तेवा अर्थवाळा शब्दोमां ते वर्णवेलुं जणाई आवे छे. संस्कृतमा कडं छे के मेध्यादपि कांचनं ग्राह्य नरकमांथी पण सुवर्ण ग्रहवं. तेज श्लोकमां जणावेलं छे के बाळक पासेथी पण पथ्य अने हितकारी वचन लेता जरा पण आंचको खावो नहीं. जे सत्य छे, ते निरंतर सत्यज छे. पछी तेनो बोलनार वृद्ध होय के जुवान, पुरुष होय के स्त्री, उच्च जातिनो होय

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