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के नीच जातिनो--तेनो विचार करवानी आवश्यकता नथी. आ वचन मान्य राखीनेज श्रेणिक राजा चंडाल पासेथी अवनामनी अने उन्नामनी बे विद्याओ शिख्यो हतो अने दत्तात्रये बत्रीस गुरु कर्या हता. कई प्रणालिका द्वारा आपणने सत्य प्राप्त थाय छे ते प्रणालिकानो विचार नहि करतां सत्य तरफ दृष्टि राखवी एज उपदेश आ वाक्यमा रहेलो छे. जो आपणने शुद्ध अने निर्मळ जळ प्राप्त यतुं होय तो पछी कई खडकोमा वही आपणी समीप आव्युं छे ते खडकोपर लक्ष आपवानुं नथी. जे खरेखरा सत्यना उपासको छे ते तो निरंतर शिष्यवृत्ति राखी, ज्यांथी सत्य जणाय त्यांथी स्वीकारे छे. वस्तु एक छतां भिन्न भिन्न चष्माद्वारा जोतां जुदीजुदी जणाय छे. तेज प्रमाणे एक अखंडित परमसत्य भिन्न भिन्न दृष्टिए तपासतां विचित्र भासे छे. माटे ते ते दृष्टिअपेक्षा ध्यानमा राखी ग्रहण कर. __ अन्यायथी पाछा हठवू. कयो विवेकी पुरुष अन्यायमा प्रवर्तवानो उपदेश आपे? कोई नहि. पण जगतनी स्थिति तपासता सखेद कहे पडे छे के नीति पंथे विचरनारा करतां अन्याय मार्ग प्रवर्तन करनारा प्रमाणमां वधारे छे. ___ अन्याय मार्ग प्रवर्तवाथी सामा मनुष्यने जे हानि नुकशान थाय छे ते करता प्रवर्तनारने वधारे महत्त्वनो कलाभ थाय छे ते पर सुज्ञोए लक्ष आपवानी जरूर छे. अन्यायथी आपणे बीजाने छेतरीए, तेथी तेने जे नुकशान थाय ते स्थूळ जगतना मायिक धननुं छे; पण ते कार्यथी आपणामांथी न्यायर्नु तत्व सत्य अने असत्य वच्चे भेदभाव करवानी शक्ति धीमे धीमे बुठी थती जाय छे. उच्च भूमिकाओपर जे मनुष्यो कार्य करे छे तेमने अनेक प्रकारनी मायावी शक्तिओ छेतरवा प्रयत्न करे छे. त्यां तेमनो खरो रक्षक तेमनी सत्यवृति छे. ते सत्यवृत्ति तो अन्याय मार्गे प्रवर्तनारमाथी धीमे धीमे अदृश्य थती जाय छे; माटे तेने जे गेरलाभ ते घणो मोटो छे. वळी आत्मानो स्वभाव शुद्ध चारित्र छे. ते शुद्ध चारित्र अन्याययुक्त वर्तनथी. मलीन थाय छ; अने आत्मा शुद्ध रीते प्रकाशी शकतो नथी. तेनापर अन्यायतुं पडलं आवी जाय छे. माटे ते पडल दूर करवाने अने आत्मानुं शुद्ध स्वरूप खीलववाने-जे दरेक आत्मानो परम उद्देश होवो जोईए-अन्याययुक्त वर्तनथी विमुख रही नानी तेमज मोटी दरेक बाबतमा शुद्ध निष्ठाथी अने सत्य विचारथी विचरg एज आ श्लोकना वाक्यनो सार छे.