Book Title: Updesh Ratnamala Tatha Prakirna Updesh
Author(s): Padmajineshwarsuri, Munisundarsuri, Manilal Nathubhai Doshi
Publisher: Suriramchandra Diksha Shatabdi Samiti
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( २८ )
आ त्रण नियमो जे पाळे छे तेनी कोइ निन्दा करतुं नथीः उल्टो ते सर्वनी प्रशंसाने पात्र थाय छे, याने तेना आचरण बीजाने अनुकरण करवा लायक थाय छे. माटे सुज्ञोए आ उपर मनन करवुं अने यथाशक्ति यथामति ते प्रमाणे वर्तवुं एज लखनारनो शुभ हेतु छे.
विहवे विन मच्चिइ, न विसीइज्जइ असंपयाए वि जिइ समभावे, न होई रणरणइ संतावो ॥ १६ ॥
अर्थः-- वैभवने विषे माचीए - गर्व करीए नहि, तेम संपत्ति रहित दशामां विषाद-खेद न करीए, अने समभावमां रहीए तो गमता अणगमतानो संताप थाय नहि ॥ १६॥
भावार्थ:- वैभवने विषे गर्व करीए नहि - मनुष्योने पूर्व कर्मानुसार संपत्ति मळे छे, अथवा निर्धनता प्राप्त थाय छे. आ श्लोकमां आपण ने सलाह आपवामां आवी छे के वैभव वखते मनुष्ये हर्षघेला बनी गर्व न करवो, तेमज विपत्ति वखते दीन थइ शोकातुर बनी न जवं के निराश न थवुं, पण आ बन्ने स्थितिमां मनुष्यें समतोलवृत्ति राखवी. जिम जबरजस्त व्हाण आ तरफथी कल्लोलो वागे तेमज पेली तरफथी कल्लोलो वागे छतां दरियामां पोतानो मार्ग करी साध्य बिन्दु ऐ पहोंचे छे, तेवीज रीते आपणा जीवनने वैभवना तथा गरीबाईंना कल्लोलो वागे, तो पण अडग रही पोतानो मार्ग कापवो. जेम कोइ पात्र बनाववु होय तो कुंभार माटीनो पिंड लई ऐक हाथमां राखे छे, अने बाजा हाथ वती तेने ठोकी ठोकीने योग्य रुप आपे छे. आ रीते आपणे जोईए छीए के, तेने पात्र बनाववाने बन्ने हाथनी जरूर पडे छे. एक हाथमां माटीनो पिंड लांब समय पडी रहें तो पण तेनो आकार घडाव नहि. तेमज जो कोई पण आधार विनां तेने ठोक ठोक करवामा आवे तो तेना चूरेचूरा थई जाय. तेवीज रीते अनुकूल स्थितिमा मनुष्य बहु आगळ वधी शकतो नथी, अने केवळ प्रतिकूळ दशामां ते बहुज दबाई जाय छे. त्यारे कर शुं? मनुष्ये आ बन्ने स्थितिमां पोताना मन उपरनो काबु खोवो नहि. प्रिय वस्तुनो समागम थतां बहु फुलाई जवुं नहि, कारण के आपणने जेटली अमुक वस्तुनी प्राप्ति थतां रति- प्रीति थाय छे, तेटलोज ते वस्तुनो विनाश थये दुःख थाय
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