Book Title: Updesh Ratnamala Tatha Prakirna Updesh
Author(s): Padmajineshwarsuri, Munisundarsuri, Manilal Nathubhai Doshi
Publisher: Suriramchandra Diksha Shatabdi Samiti

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Page 25
________________ छे. माटे तेवा लोक विरुद्ध कर्तव्यनो त्याग करी पोताने उचित पोशाक पहेरवो, एज सामान्य उपदेश छे. वांकी दृष्टिए न जोवु. एवा घणा मनुष्यो आ जगतमां. जोवामां आवे छे के जेओ हमेशां वक्रदृष्टियाज जोता होय छे. तेओनी चक्षु रम्य आकृति तरफ झट आकर्षाय छे. अने सर्वे बेठा होय तो ते मध्येथी पण वऋद्दिष्टए ते रम्य आकृति निहाळे छे. पण बीजा मनुष्योनी दृष्टि जो तेनी नजरपर पडी तो तेओने तेनी मानसिक स्थिति अने कटाक्षनी खबर पडे छे, अने पछी ते शरमाई जाय छे; माटे वक्रदृष्टि जे काम विकारना साधन तेमज कारणभुत छे, तेनो त्याग करवो. वांकी दृष्टिए न जोवू, ते उपरथी एम पण अनुमान थाय छे के मानसिक दृष्टि पण सरळ होवी जोईए, अथवा सम्बग द्रष्टि राखी वर्तवू; पण कूडकपट कर नहि. मध्स्थभावे सत्य प्राप्त कस्तां शिखवु. __उपर जणावेला त्रण निंदानां स्थान छ, जे मनुष्य तेनो त्याग करी वत छे, तेने चाडीया पण कशुं करी शकता नथी. चाडीया मनुष्यनो स्वभाव अहर्निश बोजाना दोष निरीक्षण करवानो होय छे. तेवा मनुष्यो पारकानां छिद्र जोई, बीजा आगळ तेमने प्रकाशी आनंद माने छे, तेवा चाडीयाओ, निदाखोरो क्रोधे भराया होय, ते छतां पण उपर जणावेला गुणवाळा मनुष्यमांथी कांई पण छिद्र शोधी शकता नथी. ज्यां निर्बळता होय. त्यां बीजा तेनो लाभ लेई शके, माटे कोइ पण प्रकारनी निवळता न राखतां उचित व्यापारमा प्रवर्तन करवू. नियमिज्जइ नियजीहा, अविआरिअं नेव किजए कज्जं ॥ न कुलकमो अ लुप्पइ, कुविओ किं कुणइ कलिकालो ॥ ५॥ अर्थः-पोतानी जिव्हाने नियममा राखवी, अविचारी कार्य न कर; कुळाचारनो लोप न करवो. तेवा मनुष्यने कोप पामेलो कळियुग पण शंकरी शके १ ॥५॥ भावार्थ:-अमृत अथवा झेर जीभमा रहेलं छ. तेज जीभ मित्रता करावे छे, तेज जीभ शत्रुता करावे छे. जीभमां वशीकरण रहेलं छे; जीभमांज मित्रता

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