Book Title: Updesh Ratnamala Tatha Prakirna Updesh
Author(s): Padmajineshwarsuri, Munisundarsuri, Manilal Nathubhai Doshi
Publisher: Suriramchandra Diksha Shatabdi Samiti

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Page 30
________________ (११) जे पोते ज्ञानमां, सद्गुणमा, आत्मशक्तिमा आगळ वघेलो होय तो अज्ञानीने सबोध आपी शुद्ध मार्गे चढाववो ए पण तेनुं कर्तव्य छे. ज्ञान गर्व माटे नहि पण स्वपरना बोध सारु छे ते भुली नहि जई यथाशक्ति बीजाने बोध आपवो. पोताथी सूर्यनी माफक प्रकाश न आपी शकाय तो तारानी. माफक चळकीने पण अशानरुपी अंधकारमा फांफां मारता मुसाफरने सिधा मार्ग तरफ दोरवारुप कर्तव्य बजाव. कारण के दरेक मनुष्यने एवा मनुष्य मळी आवशे के जे पोताना. करतां पण हलकी स्थितिमां होय, तो तेवाने ते मदद करी शके. आवो उपदेश विद्वानोनो छे. जेओए विद्या संपादन करी अनुभव मेळव्यो छे, तेवा महान् पुरुषो उपर प्रमाणे जणावे छे. को वि न अप्भत्थिज्जइ, किजइ कस्स वि न पत्थणाभङ्गो ॥ दीणं न य जंपिज्जइ, जीवीज्जइ जाव इहलोए ॥ ८॥ अर्थः-- कोईनी अभ्यर्थना-प्रार्थना करवी नहि. कोईनी प्रार्थनानो भंग न करवो; वळी दीन वचन बोलवू नहि. जीवन पर्यंत उपरना नियमो पाळवा.॥८॥ भावार्थः-कोइनी प्रार्थना नहि करवी. आ सूत्रनो उद्देश एम जणाय छे. के पोतानी शक्तिमा विश्वास राखतां शिखq. वारे घडीए बीजानापर आधार राखवो नहि, आत्मा अनंत शक्तिवाळो छे. ते पोतानी शक्तिना प्रभावथी त्रण भुवनने चलावनाने समर्थ छ. तेवो आत्मा आपणामां रहेलो छे, तो पछी शा सारु बीजानी आशाए बेसी रहेवू. भर्तृहरीए वैराग्यशतकमां कडं छे के " अनेक दुर्गमस्थानोथी विकट बनेला प्रदेशमा भम्यो, पण कांई फळ मळयु नहि. जाति अने कुळनु उचित अभिमान पडतुं मूकी, सेवा करी, ते पण निष्फळ नीवडी, परघेर व्हीता व्हीता कागडानी पेठे मानविनानुं खाधुं. दुर्गति अने पापकर्मपर आधार राखती हे तृष्णा! हजु तने संतोष वळतो नथी. दुष्ट लोकानुं आराधन करवा जतां ते लोकोना गर्विष्ट वचन सह्या, अंतर- आंसु अंतरमा दाबी राखी, मन शून्य होवा छतां हस्यो पण खरो, चित्तने रोकी राख्यु, हसवाने पात्र लोकोने प्रणामा

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