Book Title: Tulsi Prajna 2005 04
Author(s): Shanta Jain, Jagatram Bhattacharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 13
________________ अर्थ और अर्थ-छाया जतनलाल रामपुरिया The only thing you take with you when you are gone is what you leave behind- - John Allston. प्रकृति और उसकी यह दृश्यमान सृष्टि बड़ी विचित्र है। एक विचित्रता इसकी यह भी है कि इसमें जो विचित्र है, वह एक साथ सामने नहीं आता। एक मन्दगामी धारावाहिक की तरह सब बहुत धीरे-धीरे स्पष्ट होता है और जितना स्पष्ट होता है उससे अधिक सदा ओझल बना रहता है। प्रत्यक्षतः प्रकृति का रंगमंच आकाश की तरह खुला है। न कहीं परदा है, न कहीं नेपथ्य। जो घटता है, वह सामने ही घटता है- बनना भी, मिटना भी। कहीं कोई आवरण नहीं। फिर भी एक अवृत्त वृत्त की तरह सारा कुछ अबूझ और अगम्य है, न ओर का पता चलता है, न छोर का। जो अनावृत्त है, खुला है उसका भी इतनी निर्ममता से अपारदर्शी होना विचित्र ही तो है। प्रकृति की विचित्रताओं में आदमी भी एक है। उसकी इन्द्रियाँ दृश्यमान हैं, पर उनका संचालक मन है और वह अदृश्य है। आदमी की देह की तरह उसका मन भी अगर प्रत्यक्ष होता तो इस धरती का स्वरूप कुछ और होता। तब आदमी समझता कि जो उसके सामने है और जो उसके पीछे है, वह उस सबकी तुलना में बहुत क्षुद्र और नगण्य है जो उसके भीतर है। पर वैसा नहीं हुआ। आदमी अपने भीतर के विराट का अंकन नहीं कर सका। विवशता की इस व्यथा को लॉर्ड बायरन ने इन शब्दों में बड़ी सुन्दर अभिव्यक्ति दी है Between two worlds life hovers like a star 'Twist night and morn, upon the horizon's verge How little do we know that which we are How less what we may be. 8 - - तुलसी प्रज्ञा अंक 128 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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