Book Title: Tulsi Prajna 2005 04
Author(s): Shanta Jain, Jagatram Bhattacharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 61
________________ चेतना को शास्त्रों में उपयोग कहा गया है। Medougall इसके लिए horme शब्द का प्रयोग करते हैं। मनोविज्ञान में चेतना के तीन स्तर हैं- 1. The cognitive ज्ञान, 2. The conative संकल्प, 3. The affective अनुभूति। जैन ग्रन्थों में भी मनोविज्ञान सम्मत लक्षणों को देखा जा सकता है किन्तु 'आचारांग' में ज्ञानात्मक पक्ष पर विशेष बल दिया है, क्योंकि अनुभूत्यात्मक एवं संकल्पात्मक अवस्था में कभी समाधि संभव नहीं। जब तक सुख दुःखानुभूति है अथवा संकल्प-विकल्पों का चक्र गतिशील है, चेतना परभाव में स्थित रहती है। अतः ज्ञाताभाव आत्मा का स्वरूप है। 'आचारांग' सूत्र में लिखा है- 'जे आया से विनाया, जे विनाया से आया - जो आत्मा है, वह जानता है, जो जानता है, वह आत्मा है। भगवती सूत्र में भी ‘णाणे पुण णियमं आया' का उल्लेख है। वस्तुतः ज्ञान मंजिल का दिशायंत्र है, अज्ञान मंजिल का भटकाव। ज्ञानाभाव में आत्मा अनावृत्त नहीं हो सकती, क्योंकि अज्ञान की खूटी पर ही रागद्वेषात्मक अनुभूतियों के संस्कार लटकते रहते हैं। कर्मबन्ध होती है और प्रतिक्रिया स्वरूप जन्म-मरण की परम्परा आगे बढ़ती है। बुद्ध ने सम्बोधि प्राप्त की तो यही पाया कि वह विशाल भवन जिसमें वे अनन्त जन्मों तक भटके थे, मात्र अपरिज्ञा थी। महावीर ने जिसे मोहनीय कर्म का खेल माना था। इसलिए चेतना का ज्ञानात्मक पक्ष विशेष उल्लेखनीय है। चैतन्य के तीन स्तर हैं- जानना, देखना और अनुभव करना। जैन शास्त्रीय दृष्टि से ज्ञान के दो साधन हैं- इन्द्रिय और मन । इन्द्रिय-जिनके द्वारा नियत विषयों का ज्ञान होता है।' मन-जिसके द्वारा सब विषयों का ग्रहण किया जाता है और जो त्रैकालिक संज्ञा है। इन्द्रियों के पांच प्रकार वर्णित हैं- स्पर्शन, रसन, घ्राण, चक्षु, श्रोत" । प्रत्येक इन्द्रिय के दो भेद हैंद्रव्येन्द्रिय और भावेन्द्रिय । शारीरिक रचना द्रव्येन्द्रिय- जिसके निवृत्ति एवं उपकरण दो प्रकार हैं। मानसिक कार्य भावेन्द्रिय, जिसके लब्धि और उपयोग दो प्रकार हैं । द्रव्येन्द्रिय की तुलना आधुनिक मनोविज्ञान के Sense organs से की जा सकती है। लब्धि specific sense experience की अभिव्यक्ति है और उपयोग-मानसिक शक्ति है जो specific experience को निर्धारित करती है। जैन ग्रन्थों में ज्ञानोपलब्धि का विकास क्रम मनोवैज्ञानिक ढंग से प्रस्तुत किया गया है (1) अवग्रह- The stage of sensaggtion, (2) ईहा - The stage of associativie integration, (3) अवाय- Perceptual judgment (4) धारणा-Retention 112 56 - तुलसी प्रज्ञा अंक 128 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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