________________
व्यास नहीं। इसका कोई प्रतिपक्ष नहीं। आन्तरिक विकास, ध्यान, श्रद्धा आदि किसी भी माध्यम से इस अन्तर्निहित सुख का साक्षात्कार किया जा सकता है। साक्षात्कार के साथ ही उस सुख के साथ तादात्म्य स्थापित कर जीवन पर्यंत सुखी रहा जा सकता P° आदमी अपने आपको देखकर आनंद का जीवन जी सकता है। आन्तरिक शक्ति और आनन्द की पहचान के साथ ही प्राप्तव्य हासिल हो जाता है, आगे और कोई व्यास को वहां अवकाश नहीं। जब भीतर के स्पंदन जागते हैं तब एक ऐसा प्रसाद बरसने लगता है कि व्यक्ति अपूर्व आनंद की स्थिति में चला जाता है। यह आनन्द ही सकारात्मक सुख, मानव-संसाधन का परिचायक और प्रकृति का संरक्षक है। अर्थशास्त्र और अध्यात्मशास्त्र की समानान्तर चलती राह व्यक्ति को नई दिशा, विश्व को नई आशा दे सकती है। सकारात्मक सुख की ओर एक कदम उठे, मंजिल सामने ही है।
संदर्भ सूची - 1. जे. शुंपीटर- केपिटलिज्म शोसलिज्म 10. वही, पृ. 92
एण्ड डेमोक्रेसी प्र. 129-130 11. व्यष्टि अर्थशास्त्र पृ. 12 2. Economics and passession- 12. Nehru. the first sixty years. 3. इंडियन एक्सप्रेस-मुंबई, 11 नवम्बर vol. 1 page 550 2002
13. व्यष्टि अर्थशास्त्र पृ. 13 4. 21वीं शताब्दी में अर्थशास्त्र की भूमिका, 14. वही, पृ. 13 विमल जालान
15. वही. पृ. 15 5. युगीन समस्या और अहिंसा, आचार्य 16. युगीन समस्या और अहिंसा, पृ. 14 महाप्रज्ञ, पृ.5
17. वही, पृ. 155 6. See you at the top P. 29-30 18. धर्म मुझे क्या देगा, पृ. 100 7. वही पृ. 30
19. वही, पृ. 108 8. गुलिस्तां -शेखसादी
20. आचार्य महाप्रज्ञ वक्तव्य 9. शब्दों का मसीहा-सात्र- पृ. 92
सम्पर्क जैन विश्वभारती संस्थान लाडनूँ (राजस्थान)
54
-
-
तुलसी प्रज्ञा अंक 128
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org