Book Title: Tulsi Prajna 2005 04
Author(s): Shanta Jain, Jagatram Bhattacharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 38
________________ (8) जीवाभिगम सूत्र, भगवती, जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, तिलोयपण्णति, त्रिलोकसार आदि सभी श्वेताम्बर-दिगम्बर मान्य ग्रंथों में जम्बूद्वीप का आकार तेल के पूर्व जैसा गोल, रथ के पहिये जैसा गोल, पूर्णचन्द्र जैसा वृत्त संस्थान का माना गया है। ये सभी आकार वृत्तीय चकती जैसे गोल आकार की ओर इशारा करते है जिसकी वृतीय विमा नहीं होती। जबकि पृथ्वी तो नारंगी या किसी गेंद जैसी त्रिविमीय गोलाकार (Spherical Shaped) है। (9) जम्बू को अभ्यंतर (सबसे बीच वाला) द्वीप माना गया है। पृथ्वी किस निकाय का अभ्यंतर भाग है? (10) जम्बू सबसे छोटा है जबकि ग्रहों के बीच पृथ्वी सबसे छोटी नहीं हैं। (11) जगती, गवाक्ष, चार द्वार, वेदिका आदि पृथ्वी पर कहाँ हैं? (12) भरत और ऐरावत जैसे एक समान दो भाग पूरी पृथ्वी पर कहीं नहीं है। (13) उत्तरकुरू क्षेत्र में कमल तथा कस्तूरीमृग जैसी गंधवाले, ममत्वरहित, सहनशील तथा शनैः-शनैः चलने वाले (शनैश्चरी) जीव रहते हैं, ऐसा समस्त जैन शास्त्रों में वर्णन है। उत्तरकुरू और देवकुरू में मनुष्यगण 49 अहोरात्रि में ही युवावस्था को प्राप्त हो जाते हैं, ऐसा कहा गया है। क्या यह वर्णन पृथ्वी के किसी भाग में संभव है या था? (14) जम्बूद्वीप का व्यास एक लाख योजन बताया गया है। यदि एक योजन का न्यूनमान (1y...-4 कोस= 8 मील=12.8 किलोमीटर) भी लेकर चलें तो जम्बू का व्यास बारह लाख अस्सी हजार किलोमीटर प्राप्त होता है। हमारी पृथ्वी इतनी बड़ी कभी नहीं रहीं। अरबों वर्ष पूर्व अपने जन्म के समय भी वह इतनी बड़ी नहीं थी, क्योंकि याद रखें कि सूर्य का व्यास चौदह लाख किलोमीटर (से कुछ कम) है तथा पृथ्वी उसका एक टुकड़ा मात्र है। अतः पृथ्वी का व्यास कभी 12,80,000 किलोमीटर रहा हो, यह संभव नहीं है। (पृथ्वी का व्यास तो इससे सौवां भाग ही है।) उपरोक्त तर्कों से यह सिद्ध होता है कि जम्बूद्वीप पृथ्वी का द्योतक नहीं है। निःसन्देह वह इस मध्यलोक के आकाश का ऐसा विभाग (Circular Zone) है जिसमें दो सूर्य हैं। ऐसा मानने से हमारे शास्त्रों में वर्णित दो सूर्यों का सिद्धान्त सत्य प्रतीत होता है। दो सूर्य का सिद्धान्त __ जैन खगोल दर्शन में जम्बूद्वीप में दो सूर्यो का होना बताया गया है। यदि जम्बू को पृथ्वी माने तो यह बात प्रेक्षणों से परे हो जाती है। लेकिन यदि जम्बू को आकाश का एक तुलसी प्रज्ञा अप्रेल – जून, 2005 - - 33 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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