________________
सन्दर्भ :
1.
3.
4.
6.
5.
7.
38
त्रिलोकसार, तिलोयपण्णति, लोकविभाग, जम्बद्वीप-प्रज्ञप्ति, सूर्यप्रज्ञप्ति, जम्बूद्वीप पतिसमुहाओं, हरिवंशपुराण, सिद्धान्तसार दीपक, व्याख्याप्रज्ञति, गणितानुयोग तथा करणानुयोग से संबंधित अन्य ग्रंथ ।
2. तिलोयपणति में 64 द्वीप - समुद्रों का वर्णन है ।
जो भरत क्षेत्र है वह वास्तव में ऐसा क्षेत्र है जिसमें हमारी पृथ्वी स्थित है । यह भी हो सकता है कि पृथ्वी के साथ कुछ आकाशीय स्थान भी रिक्त रूप में हो। इस क्षेत्र का नाम भरत क्षेत्र इसलिये रखा गया है कि इसमें स्थित पृथ्वी पर भारतवर्ष नाम का एक देश है ।
जम्बूद्वीप में जो 7 क्षेत्र बताये गये हैं वे सभी कोई ग्रह हैं तथा जो 6 विषधर पर्वत हैं, वे कोई रिक्त आकाशीय स्थान है । जम्बू के दक्षिण में स्थित तीन क्षेत्र तथा तीन पर्वत हमारे सूर्य के परिवार के सदस्य हैं जबकि जम्बू के उत्तर में स्थित तीन क्षेत्र तथा तीन पर्वत दूसरे सूर्य के परिवार के सदस्य हैं। विदेह क्षेत्र एक ऐसा ग्रह है जिसका अर्धभाग (दक्षिणी) हमारे परिवार में है तथा उसका शेष अर्धभाग (उत्तरी) दूसरे सूर्य के परिवार में है। यह भी हो सकता है कि यह दो छोटे ग्रहों का समूह हों । विदेह के केन्द्र से गुजरते हुए एक अक्ष की परिकल्पना की गई है जिसे मेरू पर्वत कहा गया है तथा जिसके परित: यह गैलक्सी परिभ्रमण करती है । जिस प्रकार पृथ्वी अपनी धुरि (अक्ष) के परित: घूमती है । लेकिन वास्तव में वहाँ धुरि जैसी कोई वास्तविक वस्तु मौजूद नहीं है, वैसी ही तस्वीर मेरू की होनी चाहिए ।
I
तिलोयपणति भाग 3, महाअधिकार 5, गाथा 13 से 261
तिलोयपण्णति - 3 म.अ. 5, गाथा 34 तथा त्रिलोकसार, आदि ।
कॉस्मालाजी ओल्ड एण्ड न्यू, प्रो. जी. आर. जैन, पेज 80 ( सन्दर्भ जर्मन दार्शनिक वॉन ग्लेसनप द्वारा लिखित पुस्तक "दर - जैनिस्मस " ) । इसके अनुसार कोई देव 6 माह में 2057152 योजन प्रति क्षण की दर से जो दूरी तय करे वह 1 रज्जु है । यदि एक योजन ( महायोजन) का शास्त्रोक्त मान 4000 मील अर्थात् 6400 किलोमीटर अर्थात् 6.4 X100 मीटर लिया जाएं ( आकाशीय दूरियों हेतु यह मान सर्वमान्य है) तथा एक क्षण को 0.25 सैकेण्ड के तुल्य लिया जाएं तथा 6 माह के 6 x 30 x 24 x 60 X 60 सैकेण्ड बनाये जाऐं तो 1 रज्जु का मान 8.15 x 1020 मीटर प्राप्त होता है। रज्जु का यह मान सत्य है अथवा नहीं, इससे लेख के निष्कर्षों में विशेष प्रभाव नहीं पड़ता ।
ए ब्रिफ हिस्ट्री ऑफ टाइम, स्टीफन हाकिंग्स, जिसमें बताया गया ( अ. 3, पेज 39 ) है
तुलसी प्रज्ञा अंक 128
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org